NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
नेताजी की जयंती पर विशेष: क्या नेहरू ने सुभाष, पटेल एवं अंबेडकर का अपमान किया था?
नरेंद्र मोदी का यह आरोप तथ्यहीन है कि नेहरू ने सुभाष चंद्र बोस, डॉ. अंबेडकर और सरदार पटेल को अपेक्षित सम्मान नहीं दिया।
एल एस हरदेनिया
23 Jan 2022
nehru and subhash
फ़ोटो साभार : गूगल

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पंडित जवाहरलाल नेहरू की आलोचना करने में आत्मिक सुख मिलता है। उनका बस चले तो वे जवाहरलाल नेहरू का नाम हमारे देश के इतिहास से पूर्णतः विलुप्त कर दें। पिछले दिनों उन्होंने सुभाषचन्द बोस की आजाद हिंद सरकार के गठन की 75वीं वर्षगांठ पर न सिर्फ नेहरू अपितु संपूर्ण नेहरू-गांधी परिवार पर हमला किया। उन्होंने आरोप लगाया कि नेहरू-गांधी परिवार ने सुभाष बोस, सरदार पटेल और डॉ अम्बेडकर के साथ अन्याय किया।

इस संदर्भ में हम सर्वप्रथम सुभाष बोस के बारे में चर्चा करना चाहेंगे। आजादी के आंदोलन के दौरान सुभाष बोस और नेहरू के बीच जबरदस्त वैचारिक समानता थी। दोनों की लोकतंत्र, समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता के आदर्शों में आस्था थी। यह बात अनेक किताबों में दर्ज है।

नेहरूजी ने ‘बंच ऑफ़ लेटर्स' नामक पुस्तक का संपादन किया। इस किताब में नेहरू और सुभाष के बीच हुए पत्रव्यवहार का विवरण दर्ज है। इन पत्रों को पढ़ने पर यह स्पष्ट होता है कि केवल कुछ मुद्दों पर दोनों के बीच मतभेद थे परंतु अधिकांश मुद्दों पर दोनों में जबरदस्त वैचारिक समानता थी। महात्मा गांधी भी सुभाष बोस का सम्मान करते थे। परंतु सन् 1939 में जबलपुर के पास त्रिपुरी कांग्रेस के अध्यक्ष के निर्वाचन को लेकर गांधी व सुभाष में मतभेद हो गए। गांधी ने सुभाष बोस के विरूद्ध डॉ पट्टाभि सीतारमैया को कांग्रेस अध्यक्ष पद का उम्मीदवार घोषित किया गया। चुनाव में सुभाष की जीत हुई।

चुनाव में प्रतिद्धंद्विता का आधार व्यक्तिगत अहं या पसंद-नापसंद नहीं था अपितु वैचारिक था। गांधीजी को शंका थी कि यदि सुभाष के हाथ में कांग्रेस का नेतृत्व चला गया तो शायद आजादी का आंदोलन हिंसक रूप ले सकता है। चुनाव में सुभाष बोस के विरूद्ध जो प्रचार हुआ उसमें सरदार पटेल की प्रमुख भूमिका थी। उस समय कांग्रेस के अध्यक्ष को राष्ट्रपति कहा जाता था। चुनाव में जीत के बाद भी सुभाष बोस को अपनी मर्जी से कार्यकारिणी नहीं बनाने दी गई। उनके रास्ते में और भी रोड़े लगाए गए और अंततः सुभाष बोस ने कांग्रेस छोड़ दी और फारवर्ड ब्लाक नाम से नई पार्टी का गठन किया। इसके बाद भी उन्हे घुटन महसूस हुई और उन्होंने भारत छोड़ दिया और आजादी प्राप्त करने के लिए हिंसा का रास्ता अपनाया।

वे इस उदेश्य को लेकर जर्मनी और जापान गए और अंग्रेजों के विरूद्ध अपने अभियान में उनकी मदद मांगी। परंतु न तो जर्मनी के तानाशाह हिटलर ने और ना ही जापान के नेतृत्व ने सुभाष बोस की ठोस मदद की। हिटलर ने तो उनसे मुलाकात तक नहीं की हालांकि जापान के राजा हिरोहितो से उनकी भेंट हुई। जर्मनी और जापान के नेताओें से उन्होंने यह आश्वासन मांगा कि विश्वयुद्ध में उनकी जीत होने पर वे भारत को आजाद कर देंगे। किंतु इन दोनों देशों के नेताओं ने ऐसा कोई आश्वासन देने से इंकार कर दिया।

भारत के आजाद होने के बाद जब जवाहरलाल नेहरू बर्मा गए तब वहां के प्रधानमंत्री ने नेहरू से कहा कि यदि युद्ध में जापान की जीत हो जाती तो हम दोनों के देशों पर जापान का शासन हो जाता। इस तरह हम ब्रिटेन की दासता से मुक्त होकर जापान के गुलाम बन जाते। नेहरू और बर्मा के प्रधानमंत्री के बीच हुए इस वार्तालाप का उल्लेख केएफ रूस्तमजी की पुस्तक में है। मध्यप्रदेश काडर के आईपीएस अधिकारी रूस्तमजी काफी लंबे समय तक नेहरूजी के सुरक्षा अधिकारी रहे।

इस तरह कुल मिलाकर सुभाष बोस का मिशन असफल रहा परंतु उनके इरादों और लक्ष्यों पर कदापि शंका नहीं की जा सकती। आजाद हिंद सरकार के मुखिया की हैसियत से उन्होने गांधी और नेहरू के विरूद्ध कभी एक शब्द तक नहीं कहा। इसके विपरीत वे इन दोनों के प्रति सम्मान दिखाते रहे। त्रिपुरी कांग्रेस के राष्ट्रपति के चुनाव के दौरान नेहरूजी ने सुभाष के विरूद्ध चुनाव प्रचार में भाग नहीं लिया था। इस तरह यह कैसे कहा जा सकता है कि नेहरू ने उन्हें यथेष्ठ सम्मान नहीं दिया। इसके ठीक विपरीत जब लाल किले में आजाद हिन्द फौज के अधिकारियों के विरूद्ध मुकदमा चलाया गया तब नेहरू ने अपना वकील वाला कोट पहना और अदालत में वकील की हैसियत से आजाद हिन्द फौज की ओर से मुकदमा लड़ा।

युद्ध की समाप्ति के बाद बोस भारत नहीं आ सके और एक विमान दुर्घटना में उनकी मौत हो गई। विमान दुर्घटना में उनकी मौत की पुष्टि उनपर लिखी गई अनेक पुस्तकों से होती है।

नरेन्द्र मोदी ने अपने भाषण में यह भी कहा कि नेहरू-गांधी परिवार ने सरदार पटेल और डॉ अंबेडकर को यथेष्ट सम्मान नहीं दिया। जहां तक सरदार पटेल का सवाल है सन् 1947 में आजादी मिलने के बाद जितने भी महत्वपूर्ण निर्णय हुए सभी पटेल की सहमति से या उनकी पहल पर हुए। पटेल, नेहरू को अपना छोटा भाई मानते थे। पटेल और नेहरू के संबंध कितने घनिष्ठ थे इसका अंदाज प्रसिद्ध पत्रकार दुर्गादास द्वारा संपादित ‘सरदार पटेल कॉरेस्पोंडेंस’ नामक ग्रन्थ से मिलता है। यहां तक कि कश्मीर के मामले में जो भी निर्णय हुए उनमें भी पटेल की पूर्ण सहमति थी।

जैसा कि ज्ञात है कि आजादी के समय हरिसिंह कश्मीर के राजा थे। वे कश्मीर के भारत या पाकिस्तान में विलय के विरोधी थे और कश्मीर को एक आजाद देश बनाना चाहते थे। ऐसी स्थिति में पटेल ने लार्ड माउंटबेटन के माध्यम से हरिसिंह को यह संदेश भेजा था कि यदि राजा हरिसिंह भारत में शामिल नहीं होना चाहते तो पाकिस्तान में शामिल हो जाएं परंतु आजाद रहने का इरादा छोड़ दें। यह हमारा दुर्भाग्य है कि सरदार पटेल की मृत्यु सन् 1950 में हो गई। यदि वे सन् 1952 में हुए पहले आम चुनाव के बाद तक जीवित रहते तो आजाद भारत के कई अन्य महत्वपूर्ण निर्णयों में उनकी भी महत्वपूर्ण भूमिका होती। पटेल जबतक जीवित रहे नेहरू समेत संपूर्ण राष्ट्र ने उन्हें पूरा सम्मान दिया।

नेहरू और पटेल के बीच मतभेद थे और नेहरू पटेल का सम्मान नहीं करते थे इस गलत कथन को सही साबित करने के लिए नरेन्द्र मोदी ने एक बहुत बड़ा झूठ बोला था। उन्होंने यह दावा किया था कि नेहरू, सरदार पटेल की अंत्येष्ठि में शामिल नहीं हुए थे। पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई की आत्मकथा और कई अन्य पुस्तकें और उस समय के समाचारपत्र इस बात को साबित करते हैं कि नेहरू पटेल के अंतिम संस्कार में शामिल होने बंबई गए थे।

जहां तक डॉ अंबेडकर का संबंध है उन्हें संविधान निर्मित करने के लिए बनाई गई समिति का अध्यक्ष बनाया गया था। क्या यह निर्णय बिना नेहरू की सहमति के लिया जा सकता था? संविधान निर्माण का कार्य पूर्ण होने के बाद दिए गए अपने अंतिम भाषण में डॉ अंबेडकर ने संविधान के निर्माण में नेहरू समेत कांग्रेस के अन्य नेताओं की भूमिका की भूरि-भूरि प्रशंसा की थी। बाद में अंबेडकर ने अपना एक अलग राजनैतिक दल बनाया। इस दौरान भी नेहरू ने डॉ अंबेडकर के साथ वैसा व्यवहार किया जैसा विपक्ष के एक बड़े नेता के साथ किया जाना चाहिए।

इस तरह नरेन्द्र मोदी का यह आरोप तथ्यहीन है कि नेहरू ने सुभाष बोस, डॉ अंबेडकर और सरदार पटेल को अपेक्षित सम्मान नहीं दिया।

यह आलेख न्यूज़क्लिक में 25 अक्टूबर 2018 को प्रकाशित किया गया था:

Netaji Subhash Chandra Bose
Jawaharlal Nehru
SARDAR PATEL

Related Stories

पीएम मोदी को नेहरू से इतनी दिक़्क़त क्यों है?

मध्यप्रदेशः सागर की एग्रो प्रोडक्ट कंपनी से कई गांव प्रभावित, बीमारी और ज़मीन बंजर होने की शिकायत

गुटनिरपेक्षता आर्थिक रूप से कम विकसित देशों की एक फ़ौरी ज़रूरत

भारतीय लोकतंत्र: संसदीय प्रणाली में गिरावट की कहानी, शुरुआत से अब में कितना अंतर?

क्या हर प्रधानमंत्री एक संग्रहालय का हक़दार होता है?

नेहरू म्यूज़ियम का नाम बदलनाः राष्ट्र की स्मृतियों के ख़िलाफ़ संघ परिवार का युद्ध

सद्भाव बनाम ध्रुवीकरण : नेहरू और मोदी के चुनाव अभियान का फ़र्क़

पैगाम-ए-आज़ादी। जवाहरलाल नेहरु पर लेक्चर अदित्या मुख़र्जी द्वारा। लोकतंत्रशाला

प्रधानमंत्रियों के चुनावी भाषण: नेहरू से लेकर मोदी तक, किस स्तर पर आई भारतीय राजनीति 

मोदी सरकार और नेताजी को होलोग्राम में बदलना


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    दिल्ली उच्च न्यायालय ने क़ुतुब मीनार परिसर के पास मस्जिद में नमाज़ रोकने के ख़िलाफ़ याचिका को तत्काल सूचीबद्ध करने से इनकार किया
    06 Jun 2022
    वक्फ की ओर से प्रस्तुत अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि यह एक जीवंत मस्जिद है, जो कि एक राजपत्रित वक्फ संपत्ति भी है, जहां लोग नियमित रूप से नमाज अदा कर रहे थे। हालांकि, अचानक 15 मई को भारतीय पुरातत्व…
  • भाषा
    उत्तरकाशी हादसा: मध्य प्रदेश के 26 श्रद्धालुओं की मौत,  वायुसेना के विमान से पहुंचाए जाएंगे मृतकों के शव
    06 Jun 2022
    घटनास्थल का निरीक्षण करने के बाद शिवराज ने कहा कि मृतकों के शव जल्दी उनके घर पहुंचाने के लिए उन्होंने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से वायुसेना का विमान उपलब्ध कराने का अनुरोध किया था, जो स्वीकार कर लिया…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    आजमगढ़ उप-चुनाव: भाजपा के निरहुआ के सामने होंगे धर्मेंद्र यादव
    06 Jun 2022
    23 जून को उपचुनाव होने हैं, ऐसे में तमाम नामों की अटकलों के बाद समाजवादी पार्टी ने धर्मेंद्र यादव पर फाइनल मुहर लगा दी है। वहीं धर्मेंद्र के सामने भोजपुरी सुपरस्टार भाजपा के टिकट पर मैदान में हैं।
  • भाषा
    ब्रिटेन के प्रधानमंत्री जॉनसन ‘पार्टीगेट’ मामले को लेकर अविश्वास प्रस्ताव का करेंगे सामना
    06 Jun 2022
    समिति द्वारा प्राप्त अविश्वास संबंधी पत्रों के प्रभारी सर ग्राहम ब्रैडी ने बताया कि ‘टोरी’ संसदीय दल के 54 सांसद (15 प्रतिशत) इसकी मांग कर रहे हैं और सोमवार शाम ‘हाउस ऑफ कॉमन्स’ में इसे रखा जाएगा।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में कोरोना ने फिर पकड़ी रफ़्तार, 24 घंटों में 4,518 दर्ज़ किए गए 
    06 Jun 2022
    देश में कोरोना के मामलों में आज क़रीब 6 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है और क़रीब ढाई महीने बाद एक्टिव मामलों की संख्या बढ़कर 25 हज़ार से ज़्यादा 25,782 हो गयी है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License