इस साल 26 जनवरी को हम भारतीय गणराज्य की 70वीं सालगिरह मना रहे हैं लेकिन यह दिन सिर्फ एक राष्ट्रीय पर्व नहीं है। ये वह दिन है जब भारत के लोगों ने अपने आपको एक संविधान दिया था। एक ऐसा संविधान जो हम सब के आदर्शों और उदार मूल्यों का प्रतीक था। लगभग सत्तर साल बीत गए हैं। हमें यकीन था कि जैसी भी सरकार हो, कैसी भी नीति अपनाये, संविधान के दायरे में ही उसे रहना पड़ेगा। लेकिन हाल की घटनाएं यह बताती है, इसकी कोई गारंटी नहीं है। संसदीय बहुमत का इस्तेमाल करके ऐसे कानून पास किये गए हैं, जो न सिर्फ संविधान का मूल चरित्र, बल्कि राष्ट्र की कल्पना को भी चुनौती दे रहे हैं।