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भारत
राजनीति
प्रधानमंत्री का भाषण कच्ची भावनाओं के समंदर पर सवार झूठ के बवंडर जैसा था!
हिंदुस्तान को इस बात पर शर्मसार होना चाहिए कि आज़ाद भारत एक ऐसे दौर में पहुंच चुका है, जिसमें हमारे प्रधानमंत्री खुलेआम झूठ बोलते हैं।
अजय कुमार
08 Feb 2022
Modi

राष्ट्रपति के अभिभाषण के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण के हर तथ्यगत बात की अगर फैक्ट चेक किया जाए तो वो झूठ साबित होगा। लेकिन इससे अलग प्रधानमंत्री ने भावनाओं के जिस समंदर पर सवार होकर झूठ का बवंडर फैलाया, उसका भी उन्हीं के शैली में पलटवार होना चाहिए। तो चलिए प्रधानमंत्री के भाषण के झूठ को सच से गड़े गए भावनाओं के समंदर से समझते हैं।

नरेंद्र मोदी की ही भाषण शैली में कहा जाए तो बात यह है कि भारत का प्रधानमंत्री संसद भवन में खड़ा होकर खुलेआम झूठ बोलता है, उसके झूठ पर तालियां बजती है, मीडिया उसकी चीर फाड़ नहीं करता, यह भारत की आजादी के 70 साल बाद के समय का सबसे बड़ा दुर्भाग्य है। भारत की आबादी का बहुत बड़ा हिस्सा कमजोर होता चला जा रहा है और प्रधानमंत्री की तरफ से उसे मजबूती का नाम दिया जाता है। यह सबसे बड़ा झूठ है। 

प्रधानमंत्री ने कहा कि कौन हिंदुस्तानी को इस बात पर गर्व नहीं होगा कि आज गरीबों का पक्का घर बन रहा है? शौचालय बन रहे हैं? गरीब का घर बनने की योजना पहले से थी लेकिन हमारे काल में घर बनने की गति तेजी से बढ़ी है। प्रधानमंत्री की बात को पलट कर कहा जाए तो बात यह है कि तकरीबन हर हिंदुस्तानी इस बात पर शर्मसार होता है कि ग्लोबल हंगर इंडेक्स में उसका देश बहुत नीचे खड़ा है। अब भी भारत के गांव से लेकर शहर के तकरीबन हर इलाके में बड़ी संख्या में ऐसे लोग मिल जाएंगे जिनके पास रहने के लिए छत नहीं है। शहरों में कोई सड़क पर सो रहा है। ओवरब्रिज के नीचे सो रहा है। स्टेशन के किनारे खाली पड़ी जमीन पर प्लास्टिक तानकर गुजर बसर कर रहा है।

गांव में छप्पर इतना बेकार हो चुका है कि बारिश आती है तो रात भर जागना पड़ता है। तेज हवा चलती है तो यह डर सताता है कि कहीं आग न लग जाए। जातिगत भेदभाव का दंश रहता है कि अब भी निचली जाति के ढेर सारे लोग गांव के बाहर रहते है। प्रधानमंत्री जब इन सारी हकीकतों को छुपाकर पाखंड की भाषा में बात करते हैं तो हर हिंदुस्तानी अपने प्रधानमंत्री के बोल बच्चन पर शर्मसार होता है। 

प्रधानमंत्री के काल में प्रधानमंत्री आवास योजना की हकीकत आए दिन अखबारों में छपती रहती है।अगर आपको अखबारों में ना देखे तो न्यूज़क्लिक की वेबसाइट पर जाकर देखिए।प्रधानमंत्री आवास योजना में मौजूद भ्रष्टाचार पर कई लेख मिल जाएंगे। गरीब लोगों ने बहुत मुश्किल से पैसा जमा किया। मुखिया को दिया। उनके लिए कागजों में पैसा आवंटित भी हो गया। लेकिन उन्हें नहीं मिला। सब बीच में ही खा लिया गया। मुस्लिम समुदाय और प्रधानमंत्री आवास योजना का संबंध तो और भी बदतर है। कई इलाके के आरोप जाते हैं कि मुस्लिम नाम देखते ही आवास योजना नहीं दी जाती।

 प्रधानमंत्री आवास ग्रामीण योजना के साल 2016 में शुभारंभ के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद कहा था कि मार्च 2022 तक हिंदुस्तान के हर एक गांव में हर एक परिवार के पास बुनियादी सुविधाओं के साथ एक पक्का घर होगा। मार्च 2022 आने को है। इसकी हकीकत जानने के लिए आप किसी सरकारी आंकड़े की तरफ मत जाइए। आप हिंदुस्तान के जिस किसी भी इलाके में रहते हैं। उस इलाके के 5 किलोमीटर एरिया में घूमकर आइए। आपको कई ऐसे घर दिख जाएंगे जिन्हें प्रधानमंत्री आवास योजना की जरूरत है। अगर आप सब को एक जगह बैठा कर पूछा जाएगा कि क्या आने वाले 2 महीने में पूरे हिंदुस्तान में सबको पक्का घर मिल सकता है? तो आप सब कहेंगे कि ऐसा होना नामुमकिन है। भारत की बहुत बड़ी आबादी के पास पक्का घर नहीं है। प्रधानमंत्री भले झूठ, पैसे और नफरत की बुनियाद पर पूरी जिंदगी चुनाव जीतते रहे लेकिन जितनी बड़ी आबादी के पास भारत में पक्का घर नहीं है। उतनी बड़ी आबादी को उनकी भ्रष्ट सरकार घर मुहैया नहीं करवा सकती। 

प्रधानमंत्री ने कहा कि अगर आप जमीन से जुड़े होते तो देख पाते कि डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर का फायदा कितना हो रहा है? लोगों की जेब में सीधे पैसा पहुंच रहा है। इस वक्तव्य का यही मतलब है कि प्रधानमंत्री जमीन से जुड़े होने के नाम पर हवा हवाई बातें कर रहे हैं। डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर के नाम पर सरकार के जरिए किसी गरीब को मुश्किल से साल भर में ₹10 हजार रूपए से अधिक रुपए नहीं मिलते होंगे। अगर ₹10 हजार रूपए का फायदा इतना बड़ा फायदा है कि उस पर लोगों को हिंदुस्तान पर गर्व करना चाहिए तो सबसे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यहीं बता दे कि क्या हिंदुस्तान के नागरिक होने के नाते केवल 10 हजार के खर्च पर भारत के किसी भी इलाके से अपने चुनाव लड़ने का सपना पूरा कर सकते हैं? जितना पैसा डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर के तौर पर हिंदुस्तान के किसी गरीब नागरिक को दिया जाता है उससे कई गुना पैसा उस गरीब आदमी का सरकार और बड़े कारोबारी मिलकर छीन लेते हैं।

जिस पैसे से प्रधानमंत्री के कपड़े पर लाखों खर्च होता है। वह प्रधानमंत्री अगर यह बात कहें कि देश को डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर के जरिए दिए गए रत्ती बराबर पैसे पर गुमान होना चाहिए तो यह देश का दुर्भाग्य है कि उसके पास ऐसा प्रधानमंत्री है जो यह नहीं देख सकता कि जितना रुपए उसकी सरकार किसी गरीब परिवार के खाते में डालती है, उतने रुपए से एक गरीब परिवार का बच्चा ढंग के स्कूल में एडमिशन नहीं ले सकता। ढंग से पढ़ाई नहीं कर सकता। ढंग का भविष्य नहीं बना सकता।

प्रधानमंत्री ने विपक्ष पर तंज कसते हुए कहा कि इन्हें आईना मत दिखाओ यह आईने को भी तोड़ देंगे। जबकि हकीकत यह है कि यह तंज भारत में सबसे अधिक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा सरकार पर काम करता है। मीडिया को देश का आईना कहा जाता है। मोदी के काल में मीडिया की हालत ऐसी है जैसे सरकार ने उस आईने को तोड़ दिया हो। नरेंद्र मोदी जमकर झूठ बोलते हैं। उस झूठ पर जमकर तालियां भी बजती है। लेकिन आजादी के 75 साल बाद वह भारत के ऐसे बुजदिल प्रधानमंत्री हैं कि पत्रकारों के सवाल जवाब से भागते हैं। खुला प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं करते। तो आप खुद सोचिए कि आईने में कौन अपना चेहरा नहीं देखना चाहता है। किसने हकीकत से मुंह मोड़ने के लिए आईने को ही तोड़ दिया है?

कोरोना के मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इतना झूठ बोला और इस तरह से बोला कि झूठ भी शर्मा जाए। वैसा झूठ अगर हम और आप अपनी आपसी बातचीत में करें तो हमारी छवि खराब हो जाएगी। लोग हम पर भरोसा नहीं करेंगे। लेकिन प्रधानमंत्री के पद पर बैठे नरेंद्र मोदी के कामकाज की खासियत यही है कि वह जमकर झूठ बोलते हैं। उनके हर झूठ को टीवी की दुनिया चुनावी जीत के डंके की तरह प्रस्तुत करती है।

याद कीजिए कोरोना का वह भयावह दृश्य जब लोग पैदल शहरों से गांव की तरफ निकल चले थे। वह दृश्य हिंदुस्तान के 75 साल के इतिहास का सबसे काला दृश्य था। उस दर्दनाक दृश्य से पता चल रहा था कि भारत की बहुत बड़ी आबादी की आमदनी और बचत इतने भी नहीं कि वह कोरोना से बचने के लिए कुछ महीने महीने घर के चार दीवारों के भीतर रह सके। इस मजबूरी पर भारत के नेताओं को रोना चाहिए था। आत्ममंथन करना चाहिए था कि वो कैसे देश का राजकाज चला रहे है कि लोगों की बदहाली पहाड़ की तरह बनती जा रही है। प्रधानमंत्री ने ऐसा कुछ भी नहीं बोला। लाखों मरे लोगों के लिए कोई संवेदना प्रकट नहीं की। इस बात को बिल्कुल कबूल नहीं किया कि भारत का प्रशासन कोरोना के वक्त बिल्कुल कमजोर रहा है। कोरोना की विभीषिका पर कईयों ने कई तेज की किताब लिख दी है। हिंदी और अंग्रेजी के अखबारों के पहले पन्ने पर जलती हुई लाशें, ऑक्सीजन के लिए भागते लोग और भूख से तड़पते हुए लोगों की कोई तस्वीर फिर से उठा कर देख ले तो आप प्रधानमंत्री के बोल पर शर्मसार हो जाएगा कि आपके देश का प्रधानमंत्री कितना निर्लज्ज है। रवीश कुमार ने ठीक ही कहा कि प्रधानमंत्री ने संसद में भाषण नहीं दिया बल्कि प्रधानमंत्री खूब झूठ बोलो योजना की नुमाइंदगी की। 

अर्थव्यवस्था के मुहाने पर प्रधानमंत्री ने जो कुछ भी बोला उन बातों में और साल 2014 के बाद से भारत की अर्थव्यवस्था में जमीन और आसमान का अंतर है। आंकड़ों और आर्थिक जानकारों की दृष्टि से देखें तो प्रधानमंत्री के काल में सबसे अधिक बर्बादी भारत की अर्थव्यवस्था की हुई है। इस बर्बादी का परिणाम यह है कि पूरी दुनिया में औसत रोजगार दर 57% के आसपास है। भारत के बराबर चीन जैसे मुल्क में 63% के बराबर है। यानी दुनिया के दूसरे देशों में काम करने वाली आबादी के बीच तकरीबन 57% लोगों के पास किसी ना किसी तरह का रोजगार है। लेकिन भारत में यह संख्या महज 38% की है।

आरआरबी और एनटीपीसी की परीक्षाओं की धांधली से परेशान विद्यार्थियों पर इलाहाबाद और पटना में जो लाठियां पड़ रही थी वह लाठियां भारत की अर्थव्यवस्था की बर्बादी की बायनगी थी। 

प्रधानमंत्री ने कहा कि महलों में बैठने वाले छोटे किसानों का दुख-दर्द नहीं समझते हैं। किसानों के नाम पर राजनीति करने वाले छोटे किसानों का दुख-दर्द नहीं समझते हैं। ठीक बात है कि महलों में बैठने वाले छोटे किसानों का दुख-दर्द नहीं समझते। लेकिन महलों में बैठने वालों से सांठ गांठ कौन करता है? 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पूरा राजकाज महलों में बैठने वाले लोगों के पैसों पर टिका हुआ है। मोदी सरकार उन्हीं की सुनती है। उन्हीं की वजह से जिस करोना काल में मोदी सरकार की नीतियों की वजह से हालात इतने बदतर हुए कि 84% लोग गरीब हो गए। उसी कोरोना के दौर में महलों में बैठने वाले मोदी सरकार के रहनुमाओं ने जमकर कमाई की। 

मोदी सरकार के रहनुमाओं को मुनाफा देने की वजह से किसान आंदोलन में 700 से अधिक किसानों ने अपनी जिंदगी गवा दी जिस पर मोदी सरकार ने कुछ भी नहीं कहा। अगर मोदी सरकार को सच में छोटे किसानों के दुख दर्द का अंदाजा है तो वह स्वामीनाथन कमीशन के फार्मूले के आधार पर किसानों की सभी तरह की उपज के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य क्यों नहीं घोषित करती। अगर सच में मोदी सरकार को छोटे किसानों कि दुख दर्द का अंदाजा है तो अब तक न्यूनतम समर्थन मूल्य की लीगल गारंटी क्यों नहीं दी गई? 

प्रधानमंत्री ने कहा कि लोग गुलामी से बाहर नहीं निकले हैं। अब भी ढेर सारे लोग गुलामी की मानसिकता को लेकर के चल रहे हैं। यह बात सबसे अधिक प्रधानमंत्री के पार्टी पर लागू होती है। वह पार्टी जो लोगों के बीच जाति और धर्म के आधार पर भेदभाव करती है, जिसका प्रधानमंत्री लोगों के कपड़ों के आधार पर लोगों को दंगाई बताता है,जो पार्टी गौ हत्या के नाम पर लिंचिंग का समर्थन करती है, वह को पार्टी खुद को गुलाम कहने के बजाय दूसरे को गुलाम कहे तो इसका मतलब यही है कि वह पार्टी इतनी गुलाम हो चुकी है कि दूसरों की प्रगतिशीलता बर्दाश्त नहीं कर पा रही है। 

प्रधानमंत्री और मोदी सरकार बार-बार कहती है कि बिजनेस करना सरकार का काम नहीं है। सरकार के बिजनेस ना करने की वजह से देश का ढेर सारा विकास हुआ है। इस विकास को साबित करने के लिए कई तरह के आंकड़े और कई तरह के योजनाओं का नाम गीनवाती है। 

उस पार्टी से पूछना चाहिए कि आखिरकर साल 1990 के आर्थिक उदारीकरण के बाद ऐसा क्या हुआ कि गरीब और अधिक गरीब और अमीर और ज्यादा अमीर होते चले गए। आखिर कर क्या हुआ कि 1990 के बाद की नीतियों की वजह से जिस तरह आबादी बढ़ी और रोजगार की मांग बढ़ी तरह लोगों को रोजगार नहीं मिला? आखिर कर क्या वजह है कि अब भी भारत का बहुत बड़ा हिस्सा मनरेगा जैसी योजनाओं के सहारे जिंदगी काट रहा है? अगर आर्थिक मुहाने पर सब कुछ सही चल रहा है, हर तरह की आर्थिक नीतियां लोगों की भलाई का डंका पीट रही हैं तो क्या वजह है कि भारत के 80 फ़ीसदी कामगारों की महीने की आमदनी ₹10 हजार के आसपास है? आखिर कर क्या वजह है कि भारत की बच्चों की आबादी का बहुत बड़ा हिस्सा आगे चलकर मजदूर बनने के लिए अभिशप्त रहता है।


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय कारणों की वजह से महंगाई बढ़ती है। यह बात करते हुए सीधे 1950 में चले गए और नेहरू को भी कोट किया। नेहरू ने भी कहा था कि अंतरराष्ट्रीय कारणों की वजह से महंगाई बढ़ती है। यह बात ठीक है कि महंगाई बढ़ने के ढेर सारे कारणों में एक कारण अंतरराष्ट्रीय दशाएं भी होती हैं। लेकिन केवल अंतरराष्ट्रीय दशाओं की वजह से महंगाई बढ़ती है। यह कहना शासन प्रशासन की जिम्मेदारी से भागना है। अपनी बात को साबित करते हुए 1950 के दौर में चले जाना जब भारत आजाद हुआ था, उस समय के माहौल की तुलना आज से करना, यह स्वीकारना है कि भारत आजादी के बाद जस का तस बना हुआ है। इतना मजबूत नहीं बना है कि वह महंगाई को कंट्रोल कर पाए।

 महंगाई को लेकर के एक बुनियादी बात यह है कि जब देश में पैसे का संचरण बहुत ज्यादा होता है और संसाधनों का दोहन उस पैसे के मुताबिक नहीं होता है, तो महंगाई बढ़ जाती है। इस बुनियादी बात को थोड़ा और खोलकर समझें तो बात यह निकलेगी कि पैसे का संचरण बढ़ता है लेकिन फिर भी ढेर सारे लोगों की जेब में पैसा नहीं है। इसका मतलब यह है कि जमकर भ्रष्टाचार हो रहा है। 

पैसा किसी न किसी इलेक्टोरल बांड में इकट्ठा हो रहा है और महंगाई बढ़ रही है। भारत में आमदनी कम होने के बाद भी महंगाई बढ़ने से आम आदमी की बीट पर पड़ने वाली मार का सबसे बड़ा कारण भारत का भ्रष्टाचार है। जिस पर सरकार बिल्कुल नहीं बोलती है। नरेंद्र मोदी जैसे नेता राष्ट्रवाद का नारा लगाते हुए जिस भ्रष्टाचार को चुपचाप किनारे लगाते रहते हैं, वही भ्रष्टाचार महंगाई के गहरे कारणों में छुपा होता है। जिसकी वजह से आम लोगों की आमदनी इतनी अधिक नहीं बढ़ती कि तेल खाना, स्कूल की फीस में होने वाले इजाफे को सहन कर पाए। 

एक सिंपल से उदाहरण से नरेंद्र मोदी से पूछिए कि अगर वह कह रहे हैं कि उनके कार्यकाल में 5% की महंगाई दर है तो क्या इतने ही दर से लोगों की कमाई में भी इजाफा हुआ है? केवल इस सवाल से सारे बतोलेबजी का पोल खुल जाएगा। हकीकत यह है कि कमाई के लिहाज से वैसे लोग जिन्हें भ्रष्टाचार करने का अवसर नहीं मिलता उनकी आमदनी गिरती चली जाती है। जिनके पास भ्रष्टाचार का अवसर होता है उनकी आमदनी बढ़ती चली जाती है।जिनकी कमाई बड़ी हुई होती है वह तो महंगाई को झेल लेते है। लेकिन जिनकी कमाई कम होती है। उनपर बहुत भारी मार पड़ती है। उन सारे उद्यमियों के खातों की कमाई देख लेनी चाहिए जिनकी मुनाफे की चाहत भारत में कोरोना से भी खतरनाक है। जिनकी तुलना कोरोना वायरस से करने नरेंद्र मोदी चिढ़ जाते है। 

प्रधानमंत्री ने एक बात कही कि बात को तोड़ मरोड़ कर के जबरदस्ती का विवाद खड़ा कर दिया जाता है। यह बहुत अधिक गलत बात है। प्रधानमंत्री की यह वाजिब बात सबसे अधिक प्रधानमंत्री पर ही लागू होती है। बात को तोड़ मरोड़ कर जबरदस्ती की गलत बयानी करना बिल्कुल आसान काम है। यह काम दुनिया का कोई भी औसत समझ रखने वाला इंसान कर सकता है। लेकिन असली बात यह है कि अगर सब ने इसी तरीके से बात की होती तो दुनिया बहुत पीछे होती। दुनिया में आज से ज्यादा गंदगी होती। यह सबसे खराब बात है कि किसी की बात को तोड़ मरोड़ कर पेश कर गलत बयानी की जाए।

 पैसे से मीडिया को अपने जेब में रखकर चलने वाले प्रधानमंत्री को अपनी बात रखने का केवल यही तरीका आता है। राष्ट्र के नाम पर जिस तरीके से राहुल गांधी की बात को तोड़ मरोड़ कर उन्होंने पेश किया यही मोदी सरकार की पूरी विचारधारा की सबसे खराब बात है। वह किसी भी जायज बात को समझना नहीं चाहते। केवल हिंदुत्व नफरत और पूंजीवादियों के लिए काम करना चाहते हैं। जायज बात और तर्क देखते हैं तो उसे तोड़ मरोड़ देते हैं। मीडिया के दम पर उसका प्रचार भी करवा देते हैं।

 भारत के संविधान के अनुच्छेद 1 में यह साफ-साफ लिखा हुआ है कि भारत अर्थात इंडिया राज्यों का संघ होगा। यह बात किसी भी तरह से गलत नहीं है। लेकिन जब कोई अपने भ्रष्ट आचरण पर उतर आए तो वह संविधान में लिखी हर प्रावधान को तोड़ मरोड़ कर पेश कर सकता है। यही काम नरेंद्र मोदी ने किया। यही काम उनकी पार्टी करते आ रही है। यही वह काम है जिसकी वजह से देश भले एक कागज पर देश रहे लेकिन अंदर से उस देश के सभी मूल्य मरते चले जाते हैं। ईमानदारी की जगह बेईमानी ले लेती है। प्रेम की जगह नफरत ले लेती है। न्याय की जगह अन्याय ले लेती है। विकास की जगह सांप्रदायिकता ले लेती है। देश भले ही औपचारिक तौर पर बंटा हुआ ना दिखे। लेकिन हर रोज मिलने वाले इस तरह के जहर की वजह से भीतर ही भीतर टुकड़े टुकड़े होते रहता है। इसलिए भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को समझना चाहिए कि उनका झूठ भले ही उनके समर्थकों से ताली पिटवा दें। लेकिन उनके झूठ और मीडिया के जरिए सच को रोक देने की वजह से भीतर ही भीतर भारत के टुकड़े होते रहते हैं। उनका हर काम भारत को टुकड़े-टुकड़े करता है। भारत के प्रधानमंत्री नहीं होते। बल्कि भारत के टुकड़े टुकड़े गैंग के लीडर होते है। 

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Modi Speech
Pradhan Mantri Awas Gramin Yojana
Constitution of India

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