NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
साहित्य-संस्कृति
भारत
राजनीति
कुर्सीनामा : कुर्सी ख़तरे में है तो देश ख़तरे में है… कुर्सी न बचे तो...
बिहार में चुनाव हैं और इसी सिलसिले में याद आया जनकवि गोरख पांडेय का 1980 में लिखा कुर्सीनामा। जिसमें वे कहते हैं कि “महज ढाँचा नहीं है/ लोहे या काठ का/ कद है कुर्सी...” और ये कुर्सी क्या खेल करती है और इसे पाने के लिए क्या-क्या खेल होते हैं इस कविता में बहुत साफ़ ढंग से बात की गई है। आइए ‘इतवार की कविता’ में पढ़ते हैं गोरख की यही कविता
न्यूज़क्लिक डेस्क
25 Oct 2020
कुर्सीनामा
प्रतीकात्मक तस्वीर। साभार : पत्रिका

कुर्सीनामा

 

1

 

जब तक वह ज़मीन पर था

कुर्सी बुरी थी

जा बैठा जब कुर्सी पर वह

ज़मीन बुरी हो गई।

 

2

 

उसकी नज़र कुर्सी पर लगी थी

कुर्सी लग गयी थी

उसकी नज़र को

उसको नज़रबन्द करती है कुर्सी

जो औरों को

नज़रबन्द करता है।

 

3

 

महज ढाँचा नहीं है

लोहे या काठ का

कद है कुर्सी

कुर्सी के मुताबिक़ वह

बड़ा है छोटा है

स्वाधीन है या अधीन है

ख़ुश है या ग़मगीन है

कुर्सी में जज्ब होता जाता है

एक अदद आदमी।

 

4

 

फ़ाइलें दबी रहती हैं

न्याय टाला जाता है

भूखों तक रोटी नहीं पहुँच पाती

नहीं मरीज़ों तक दवा

जिसने कोई ज़ुर्म नहीं किया

उसे फाँसी दे दी जाती है

इस बीच

कुर्सी ही है

जो घूस और प्रजातन्त्र का

हिसाब रखती है।

 

5

 

कुर्सी ख़तरे में है तो प्रजातन्त्र ख़तरे में है

कुर्सी ख़तरे में है तो देश ख़तरे में है

कुर्सी ख़तरे में है तो दुनिया ख़तरे में है

कुर्सी न बचे

तो भाड़ में जायें प्रजातन्त्र

देश और दुनिया।

 

6

 

ख़ून के समन्दर पर सिक्के रखे हैं

सिक्कों पर रखी है कुर्सी

कुर्सी पर रखा हुआ

तानाशाह

एक बार फिर

क़त्ले-आम का आदेश देता है।

 

7

 

अविचल रहती है कुर्सी

माँगों और शिकायतों के संसार में

आहों और आँसुओं के

संसार में अविचल रहती है कुर्सी

पायों में आग

लगने

तक।

 

8

 

मदहोश लुढ़ककर गिरता है वह

नाली में आँख खुलती है

जब नशे की तरह

कुर्सी उतर जाती है।

 

9

 

कुर्सी की महिमा

बखानने का

यह एक थोथा प्रयास है

चिपकने वालों से पूछिये

कुर्सी भूगोल है

कुर्सी इतिहास है।

 

- गोरख पांडेय

रचनाकाल: 1980

साभार : कविता कोश

इसे भी पढ़ें : वो राजा हैं रियासत के, नफ़ा नुकसान देखेंगे/ नियम क़ानून तो उनके बड़े दीवान देखेंगे

इसे भी पढ़ें : अवधी में ग़ज़ल: ...मंदिर मस्जिद पेट हमार न भरिहैं साहेब

इसे भी पढ़ें : हर सभ्यता के मुहाने पर एक औरत की जली हुई लाश और...

इसे भी पढ़ें : हमें ये शौक़ है देखें सितम की इंतिहा क्या है

इसे भी पढ़ें : लिखो तो डरो कि उसके कई मतलब लग सकते हैं...

Sunday Poem
Hindi poem
poem
Bihar election 2020
कविता
हिन्दी कविता
इतवार की कविता

Related Stories

वे डरते हैं...तमाम गोला-बारूद पुलिस-फ़ौज और बुलडोज़र के बावजूद!

इतवार की कविता: भीमा कोरेगाँव

सारे सुख़न हमारे : भूख, ग़रीबी, बेरोज़गारी की शायरी

इतवार की कविता: वक़्त है फ़ैसलाकुन होने का 

कविता का प्रतिरोध: ...ग़ौर से देखिये हिंदुत्व फ़ासीवादी बुलडोज़र

...हर एक दिल में है इस ईद की ख़ुशी

जुलूस, लाउडस्पीकर और बुलडोज़र: एक कवि का बयान

फ़ासीवादी व्यवस्था से टक्कर लेतीं  अजय सिंह की कविताएं

सर जोड़ के बैठो कोई तदबीर निकालो

लॉकडाउन-2020: यही तो दिन थे, जब राजा ने अचानक कह दिया था— स्टैचू!


बाकी खबरें

  • शारिब अहमद खान
    ईरानी नागरिक एक बार फिर सड़कों पर, आम ज़रूरत की वस्तुओं के दामों में अचानक 300% की वृद्धि
    28 May 2022
    ईरान एक बार फिर से आंदोलन की राह पर है, इस बार वजह सरकार द्वारा आम ज़रूरत की चीजों पर मिलने वाली सब्सिडी का खात्मा है। सब्सिडी खत्म होने के कारण रातों-रात कई वस्तुओं के दामों मे 300% से भी अधिक की…
  • डॉ. राजू पाण्डेय
    विचार: सांप्रदायिकता से संघर्ष को स्थगित रखना घातक
    28 May 2022
    हिंसा का अंत नहीं होता। घात-प्रतिघात, आक्रमण-प्रत्याक्रमण, अत्याचार-प्रतिशोध - यह सारे शब्द युग्म हिंसा को अंतहीन बना देते हैं। यह नाभिकीय विखंडन की चेन रिएक्शन की तरह होती है। सर्वनाश ही इसका अंत है।
  • सत्यम् तिवारी
    अजमेर : ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ की दरगाह के मायने और उन्हें बदनाम करने की साज़िश
    27 May 2022
    दरगाह अजमेर शरीफ़ के नीचे मंदिर होने के दावे पर सलमान चिश्ती कहते हैं, "यह कोई भूल से उठाया क़दम नहीं है बल्कि एक साज़िश है जिससे कोई मसला बने और देश को नुकसान हो। दरगाह अजमेर शरीफ़ 'लिविंग हिस्ट्री' है…
  • अजय सिंह
    यासीन मलिक को उम्रक़ैद : कश्मीरियों का अलगाव और बढ़ेगा
    27 May 2022
    यासीन मलिक ऐसे कश्मीरी नेता हैं, जिनसे भारत के दो भूतपूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह मिलते रहे हैं और कश्मीर के मसले पर विचार-विमर्श करते रहे हैं। सवाल है, अगर यासीन मलिक इतने ही…
  • रवि शंकर दुबे
    प. बंगाल : अब राज्यपाल नहीं मुख्यमंत्री होंगे विश्वविद्यालयों के कुलपति
    27 May 2022
    प. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बड़ा फ़ैसला लेते हुए राज्यपाल की शक्तियों को कम किया है। उन्होंने ऐलान किया कि अब विश्वविद्यालयों में राज्यपाल की जगह मुख्यमंत्री संभालेगा कुलपति पद का कार्यभार।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License