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साहित्य-संस्कृति
भारत
इतवार की कविता : 'सिर्फ़ अपना घर न बचा शहर को बचा...'
इतवार की कविता में आज पेश है पाकिस्तान के शायर तैमूर हसन की एक ग़ज़ल जो इंसानियत के 'शहर' को बचाने की बात करती है।
न्यूज़क्लिक डेस्क
11 Jul 2021
इतवार की कविता : 'सिर्फ़ अपना घर न बचा शहर को बचा...'
प्रतीकात्मक तस्वीर। साभार Attachments area

सांप्रदायिकता, नफ़रत और ज़ुल्म के माहौल में ज़रूरत है कि हर शख़्स आगे बढ़े और इंसानियत को बचाने की बात करे। पेश है इसी ख़याल से ताल्लुक रखती पाकिस्तान के शायर तैमूर हसन की एक ग़ज़ल...

मुझ को कहानियाँ न सुना शहर को बचा 
बातों से मेरा दिल न लुभा शहर को बचा 

मेरे तहफ़्फुज़ात हिफ़ाज़त से हैं जुड़े 
मेरे तहफ़्फुज़ात मिटा शहर को बचा 

तू इस लिए है शहर का हाकिम कि शहर है 
उस की बक़ा में तेरी बक़ा शहर को बचा 

लगता है लोग अब न बचा पाएँगे इसे 
अल्लाह मदद को तू मिरी आ शहर को बचा 

तू जाग जाएगा तो सभी जाग जाएँगे 
ऐ शहरयार जाग ज़रा शहर को बचा 

तू चाहता है घर तिरा महफ़ूज़ हो अगर 
फिर सिर्फ़ अपना घर न बचा शहर को बचा 

कोई नहीं बचाने को आगे बढ़ा हुज़ूर 
हर इक ने दूसरे से कहा शहर को बचा 

तारीख़-दान लिक्खेगा 'तैमूर' ये ज़रूर 
इक शख़्स था जो कहता रहा शहर को बचा 

- तैमूर हसन

Sunday Poem
Hindi poem
ghazal
Taimur Hassan

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