NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
साहित्य-संस्कृति
भारत
राजनीति
15 अगस्त: इतने बड़े हुए मगर छूने को न मिला अभी तक कभी असल झण्डा
हम सबके प्रिय कवि और पत्रकार वीरेन दा (वीरेन डंगवाल) का बीती 5 अगस्त को जन्मदिन था। 5 अगस्त 1947 को टिहरी गढ़वाल के कीर्तिनगर में जन्मे वीरेन डंगवाल का 28 सितंबर 2015 में कैंसर से निधन हो गया था। आपका पहला कविता संग्रह 1991 में ‘इसी दुनिया में’ प्रकाशित हुआ। उसके बाद 2002 में ‘दुश्चक्र में स्रष्टा’ और 2009 में तीसरा कविता संग्रह ‘स्याही ताल’ प्रकाशित हुआ। आपकी प्रकाशित और अप्रकाशित कविताओं का समग्र संकलन ‘कविता वीरेन’ नाम से नवारुण प्रकाशन ने 2018 में प्रकाशित किया। आपको साहित्य अकादमी पुरस्कार (2004) के अलावा कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। ‘इतवार की कविता’ में कविता में पढ़ते हैं आपकी कविताएं-  
न्यूज़क्लिक डेस्क
09 Aug 2020
इतवार कविता
फोटो साभार : फेसबुक

झण्डा

 

पन्द्रह अगस्त

सुबह नींद खुलती

तो कलेजा मुंह के भीतर फड़क रहा होता

ख़ुशी के मारे

स्कूल भागता

झंडा खुलता ठीक 7:45 पर, फूल झड़ते

जन-गण-मन भर सीना तना रहता कबूतर की मानिन्द

बड़े लड़के परेड करते वर्दी पहने शर्माते हुए

मिठाई मिलती

 

एक बार झंझोड़ने पर भी सही वक़्त पर

खुल न पाया झण्डा, गांठ फंस गई कहीं

हेडमास्टर जी घबरा गए, गाली देने लगे माली को

लड़कों ने कहा हेडमास्टर को अब सज़ा मिलेगी

देश की बेइज़्ज़ती हुई है

 

स्वतंत्रता दिवस की परेड देखने जाते सभी

पिताजी चिपके रहते नए रेडियो से

दिल्ली का आंखों-देखा हाल सुनने

 

इस बीच हम दिन भर

काग़ज़ के झण्डे बनाकर घूमते

बीच का गोला बना देता भाई परकार से

चौदह अगस्त भर पन्द्रह अगस्त होती

सोलह अगस्त भर भी

 

यार, काग़ज़ से बनाए जाने कितने झण्डे

खिंचते भी देखे सिनेमा में

इतने बड़े हुए मगर छूने को न मिला अभी तक

कभी असल झण्डा

कपड़े का बना, हवा में फड़फड़ करने वाला

असल झण्डा

छूने तक को न मिला!

 

हमारा समाज

 

यह कौन नहीं चाहेगा उसको मिले प्यार

यह कौन नहीं चाहेगा भोजन वस्त्र मिले

यह कौन न सोचेगा हो छत सर के ऊपर

बीमार पड़ें तो हो इलाज थोड़ा ढब से

 

बेटे-बेटी को मिले ठिकाना दुनिया मे

कुछ इज़्ज़त हो, कुछ मान बढ़े, फल-फूल जाएँ

गाड़ी में बैठें, जगह मिले, डर भी न लगे

यदि दफ़्तर में भी जाएँ किसी तो न घबराएँ

अनजानों से घुल-मिल भी मन में न पछ्तायँ।

 

कुछ चिंताएँ भी हों, हाँ कोई हरज नहीं

पर ऐसी भी नहीं कि मन उनमें ही गले घुने

हौसला दिलाने और बरजने आसपास

हों संगी-साथी, अपने प्यारे, ख़ूब घने।

 

पापड़-चटनी, आँचा-पाँचा, हल्ला-गुल्ला

दो चार जशन भी कभी, कभी कुछ धूम-धाँय

जितना संभव हो देख सकें, इस धरती को

हो सके जहाँ तक, उतनी दुनिया घूम आयँ

 

यह कौन नहीं चाहेगा?

पर हमने यह कैसा समाज रच डाला है

इसमें जो दमक रहा, शर्तिया काला है

वह क़त्ल हो रहा, सरेआम चौराहे पर

निर्दोष और सज्जन, जो भोला-भाला है

 

किसने आख़िर ऐसा समाज रच डाला है

जिसमें बस वाही दमकता है, जो काला है।

 

मोटर सफ़ेद वह काली है

वे गाल गुलाबी काले हैं

चिंताकुल चेहरा- बुद्धिमान

पोथे क़ानूनी काले हैं

आटे की थैली काली है

हर साँस विषैली काली है

छत्ता है काली बर्रों का

यह भव्य इमारत काली है

 

कालेपन की वे संतानें

हैं बिछा रहीं जिन काली इच्छाओं की बिसात

वे अपने कालेपन से हमको घेर रहीं

अपना काला जादू हैं हम पर फेर रहीं

बोलो तो, कुछ करना भी है

या काला शरबत पीते-पीते मरना है?

-    वीरेन डंगवाल

 

इसे भी पढ़े : ...पूरे सिस्टम को कोरोना हो गया था और दुर्भाग्य से हमारे पास असली वेंटिलेटर भी नहीं था

इसे भी पढ़े : ...कैसा समाज है जो अपनी ही देह की मैल से डरता है

इसे भी पढ़े : वरवर राव : जो जैसा है, वैसा कह दो, ताकि वह दिल को छू ले

इसे भी पढ़े : क्या हुआ छिन गई अगर रोज़ी, वोट डाला था इस बिना पर क्या!

इसे भी पढ़े : ‘इतवार की कविता’: मेरी चाहना के शब्द बीज...

Sunday Poem
poem
Hindi poem
independence day
हिन्दी कविता

Related Stories

वे डरते हैं...तमाम गोला-बारूद पुलिस-फ़ौज और बुलडोज़र के बावजूद!

इतवार की कविता: भीमा कोरेगाँव

सारे सुख़न हमारे : भूख, ग़रीबी, बेरोज़गारी की शायरी

इतवार की कविता: वक़्त है फ़ैसलाकुन होने का 

कविता का प्रतिरोध: ...ग़ौर से देखिये हिंदुत्व फ़ासीवादी बुलडोज़र

...हर एक दिल में है इस ईद की ख़ुशी

जुलूस, लाउडस्पीकर और बुलडोज़र: एक कवि का बयान

फ़ासीवादी व्यवस्था से टक्कर लेतीं  अजय सिंह की कविताएं

सर जोड़ के बैठो कोई तदबीर निकालो

लॉकडाउन-2020: यही तो दिन थे, जब राजा ने अचानक कह दिया था— स्टैचू!


बाकी खबरें

  • भाषा
    अदालत ने सिद्धार्थ वरदराजन के ख़िलाफ़ दर्ज प्राथमिकी रद्द की 
    25 May 2022
    अदालत ने कहा, “चूंकि प्राथमिकी में लगाए गए आरोप, भारतीय दंड संहिता की धारा 153-बी और 505 (2) के तहत अपराधों के कारित होने का खुलासा नहीं करते, इसलिए कानून की नजर में यह टिकाऊ नहीं हैं और रद्द किये…
  • UP
    न्यूज़क्लिक टीम
    उत्तर प्रदेश विधानसभा में भारी बवाल
    25 May 2022
    बोल के लब आज़ाद हैं तेरे के इस एपिसोड में वरिष्ठ पत्रकार अभिसार शर्मा चर्चा कर रहे हैं उत्तर प्रदेश विधानसभा सत्र के दौरान डिप्टी सीएम केशव मौर्या और अखिलेश यादव के बीच हुई बहस की।
  • सत्यम् तिवारी
    मनोज मुंतशिर ने फिर उगला मुसलमानों के ख़िलाफ़ ज़हर, ट्विटर पर पोस्ट किया 'भाषण'
    25 May 2022
    मनोज मुंतशिर ने अपने ट्विटर प्रोफ़ाइल कविता जैसा लगता हुआ ज़हरीला भाषण पोस्ट किया है जिसमें मुसलमानों से मुख़ातिब होकर वे कह रहे हैं, 'क़ब्रों से खींच कर हम लाएँगे सच तुम्हारे...'
  • DILEVERY
    पॉल क्रांत्ज़
    ऐप-आधारित डिलीवरी के काम के जोखिम…
    25 May 2022
    अगरचे नए डिलीवरी स्टार्टअप के द्वारा रिकॉर्ड निवेश आय का दावा किया जा रहा है, वहीं दूसरी तरफ बड़ी तादाद में उनके कर्मचारी थका देने वाली मेहनत, कम पारिश्रमिक और कंपनी के भीतर के मुद्दों के बारे में…
  • RAJYASABHA
    रवि शंकर दुबे
    15 राज्यों की 57 सीटों पर राज्यसभा चुनाव; कैसे चुने जाते हैं सांसद, यहां समझिए...
    25 May 2022
    देश में अगले महीने राज्यसभा चुनाव होने हैं, ऐसे में सभी राजनीतिक पार्टियां विधायकों को साधने में जुट गई हैं।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License