NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
साहित्य-संस्कृति
भारत
इतवार की कविता: मर्द खेत है, औरत हल चला रही है
आज आज़ादी की 74वीं सालगिरह है और हमारे कवि और पत्रकार अजय सिंह की 75वीं। 15 अगस्त, 1946 को बिहार के ज़िला बक्सर के चौगाईं गांव में अजय सिंह का जन्म हुआ। आज इतवार भी है, यानी मौका भी है और दस्तूर भी तो ‘इतवार की कविता’ में पढ़ते हैं अजय सिंह की महिला किसानों को लेकर लिखी गई एक बिल्कुल नयी और नये ढंग की कविता।
न्यूज़क्लिक डेस्क
15 Aug 2021
75वीं सालगिरह के मौके पर लखनऊ में आयोजित कार्यक्रम। तस्वीर में अजय सिंह (दाएं) अपनी जीवन साथी शोभा सिंह (बाएं) के साथ।
75वीं सालगिरह के मौके पर लखनऊ में आयोजित कार्यक्रम। तस्वीर में अजय सिंह (दाएं) अपनी जीवन साथी शोभा सिंह (बाएं) के साथ।

मर्द खेत है

औरत हल चला रही है

 

औरत खेत है

उसमें मर्द हल चलाता है

बीज छिड़कता है

आनंद मिलता है     सृष्टि चलती है

 

अब इसे बिंब कहिये या रूपक

दुनिया भर के साहित्य में

यह चीज़

किसी-न-किसी रूप में मिलेगी

हल की मूठ पर औरत का नहीं

मर्द का हाथ मिलेगा

हाथ सिर्फ़ हाथ नहीं होता

वह औरत का नियंता

भाग्य विधाता बन जाता है

इतिहास को अपने पक्ष में मोड़ लेता है

 

अब इसे अगर उलट-पुलट दिया जाये

कुछ तोड़-फोड़ की जाये

सर के बल खड़ी चीज़ों को

पांवों के बल खड़ा कर दिया जाये

तो कैसा रहे!

 

ऐसा हो

मर्द खेत बन जाये

औरत उसमें हल चलाये

और गाना गाये

मैं तेरा चांद तू मेरी चांदनी...

बीज का छिड़काव तब भी होगा

आनंद तब भी मिलेगा

सृष्टि तब भी चलेगी

बस पैमाना बदल जायेगा

कायनात को देखने का नज़रिया बदल जायेगा

 

जब से धान की खेती शुरू हुई

औरतें खेती-किसानी करती चली आयी हैं

धान की बुवाई रोपाई सोहनी निराई

मवेशियों को चारा-पानी

दूध दुहना

और भी कई कई काम करती रही हैं

अपना हाड़ गलाती रही हैं

लेकिन औरतों को किसान नहीं माना गया

ज़मीन का पट्टा उनके नाम नहीं रहा 

खेत का मालिकाना उनके नाम नहीं रहा

उन्हें कर्ता-धर्ता भतार नहीं समझा गया

जबकि असली पालनहार वही रहीं

हमेशा ‘किसान भाई’ कहा जाता रहा

‘किसान बहन’ कभी नहीं

जबकि औरत ही दुनिया की पहली किसान रही है

 

औरत को खेत क्या इसलिए कहा गया

कि मर्द जब चाहे

उसमें मुंह मारता फिरे?

 

यह हालत बदलने के लिए

औऱत उठ खड़ी हुई है

सत्ता और संपत्ति में

अपना 50 प्रतिशत हिस्सा पाने के लिए

जद्दोजहद शुरू कर दिया है उसने

 

उसने ऐलान कर दिया हैः

ब्राह्मणी पितृसत्ता का नाश हो!

उसने ऐलान कर दिया हैः

मनुस्मृति को फिर जलाया जाना चाहिए!

उसने ऐलान कर दिया हैः

इन्क़लाब ज़िंदाबाद का नारा

हमारी ज़िंदगी का हिस्सा है।

 

याद रखिए

सभ्यताएं सिर्फ़ नदियों के किनारे नहीं पलीं

वे औरतों की गोद में भी पली-बढ़ीं

औरतों ने सभ्यताओं को अपनी गोद में

पाला-पोसा संवारा

अपने सीने का दूध पिलाया

उनके बालों में चोटियां बनायीं

आंखों में काजल लगाया

नज़र न लगे इसलिए माथे पर डिठौना लगाया

सभ्यताओं को बचाने के लिए

वे पहरेदारी करती रहीं

ख़ूब लड़ीं भी वे

औरतों की खेती-किसानी ने

सभ्यताओं को ज़िंदा रखा

उन्हें इस लायक बनाया

कि वे कई शताब्दियों की यात्रा कर सकें

 

आज हम सब

जो इक्कीसवीं शताब्दी में खड़ी हैं

यह न भूलें

कि यहां तक पहुंचने में

मातृसत्तात्मक समाज के सुनहरे दौर की

अहम भूमिका रही है

वह समाज तो अब नहीं लौट सकता

उसका पतन

औरतों की ‘ऐतिहासिक हार’ थी

लेकिन सत्ता और संपत्ति पर

क़ब्ज़ा करने का जो सपना

उसने औरतों को दिखाया

वह आज भी ज़िंदा है

..........

अजय सिंह 

लखनऊ, 12.8.2021 गुरुवार

Sunday Poem
Hindi poem
poem
Ajay Singh
independence day

Related Stories

वे डरते हैं...तमाम गोला-बारूद पुलिस-फ़ौज और बुलडोज़र के बावजूद!

इतवार की कविता: भीमा कोरेगाँव

सारे सुख़न हमारे : भूख, ग़रीबी, बेरोज़गारी की शायरी

इतवार की कविता: वक़्त है फ़ैसलाकुन होने का 

कविता का प्रतिरोध: ...ग़ौर से देखिये हिंदुत्व फ़ासीवादी बुलडोज़र

...हर एक दिल में है इस ईद की ख़ुशी

जुलूस, लाउडस्पीकर और बुलडोज़र: एक कवि का बयान

फ़ासीवादी व्यवस्था से टक्कर लेतीं  अजय सिंह की कविताएं

सर जोड़ के बैठो कोई तदबीर निकालो

लॉकडाउन-2020: यही तो दिन थे, जब राजा ने अचानक कह दिया था— स्टैचू!


बाकी खबरें

  • srilanka
    न्यूज़क्लिक टीम
    श्रीलंका: निर्णायक मोड़ पर पहुंचा बर्बादी और तानाशाही से निजात पाने का संघर्ष
    10 May 2022
    पड़ताल दुनिया भर की में वरिष्ठ पत्रकार भाषा सिंह ने श्रीलंका में तानाशाह राजपक्षे सरकार के ख़िलाफ़ चल रहे आंदोलन पर बात की श्रीलंका के मानवाधिकार कार्यकर्ता डॉ. शिवाप्रगासम और न्यूज़क्लिक के प्रधान…
  • सत्यम् तिवारी
    रुड़की : दंगा पीड़ित मुस्लिम परिवार ने घर के बाहर लिखा 'यह मकान बिकाऊ है', पुलिस-प्रशासन ने मिटाया
    10 May 2022
    गाँव के बाहरी हिस्से में रहने वाले इसी मुस्लिम परिवार के घर हनुमान जयंती पर भड़की हिंसा में आगज़नी हुई थी। परिवार का कहना है कि हिन्दू पक्ष के लोग घर से सामने से निकलते हुए 'जय श्री राम' के नारे लगाते…
  • असद रिज़वी
    लखनऊ विश्वविद्यालय में एबीवीपी का हंगामा: प्रोफ़ेसर और दलित चिंतक रविकांत चंदन का घेराव, धमकी
    10 May 2022
    एक निजी वेब पोर्टल पर काशी विश्वनाथ मंदिर को लेकर की गई एक टिप्पणी के विरोध में एबीवीपी ने मंगलवार को प्रोफ़ेसर रविकांत के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल दिया। उन्हें विश्वविद्यालय परिसर में घेर लिया और…
  • अजय कुमार
    मज़बूत नेता के राज में डॉलर के मुक़ाबले रुपया अब तक के इतिहास में सबसे कमज़ोर
    10 May 2022
    साल 2013 में डॉलर के मुक़ाबले रूपये गिरकर 68 रूपये प्रति डॉलर हो गया था। भाजपा की तरफ से बयान आया कि डॉलर के मुक़ाबले रुपया तभी मज़बूत होगा जब देश में मज़बूत नेता आएगा।
  • अनीस ज़रगर
    श्रीनगर के बाहरी इलाक़ों में शराब की दुकान खुलने का व्यापक विरोध
    10 May 2022
    राजनीतिक पार्टियों ने इस क़दम को “पर्यटन की आड़ में" और "नुकसान पहुँचाने वाला" क़दम बताया है। इसे बंद करने की मांग की जा रही है क्योंकि दुकान ऐसे इलाक़े में जहाँ पर्यटन की कोई जगह नहीं है बल्कि एक स्कूल…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License