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भारत
राजनीति
स्वच्छ भारत अभियान: एक ख़्याली  क्रांति
स्वच्छ भारत अभियान में बढ़-चढ़ कर चापलूसी की हद तक शामिल नामी गिरामी मशहूर हस्तियाँ इसके कई महत्वपूर्ण सवालों पर पूरी तरह से खामोश हैं।
सुबोध वर्मा
03 Oct 2019
swachchta abhiyan

25 सितंबर के दिन, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को भारत में स्वच्छ भारत अभियान को लागू करने के लिए न्यूयॉर्क में गेट्स फाउंडेशन द्वारा 'ग्लोबल गोलकीपर' पुरस्कार से नवाजा गया। इसके तहत 1.1 करोड़ शौचालय बनाए गए हैं और देश को लगभग 100% शौच मुक्त घोषित कर दिया गया है (ODF)। उसी दिन, मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिले के भवखेड़ी नामक एक छोटे से गाँव में, दो बच्चे, अविनाश वाल्मीकि (उम्र 10 वर्ष) और रोशनी (12 वर्ष) को खुले में शौच करने के कारण मौत के घाट उतार दिए गए।

यह बर्बर घटना इस बात का सूचक है कि किस प्रकार स्वच्छ भारत अभियान के शोरगुल में ऐसी अनेक घटनाएं सरकार समर्थक चारणों द्वारा जबरिया बड़ी सफाई से छिपा दी जाती हैं, जिसमें मुख्य तौर पर वंचितों और सामाजिक रूप से  उत्पीड़ित तबकों को इसका दंश  झेलना पड़ रहा है। मान लेते हैं कि अविनाश और रौशनी की हत्या इसका एक चरम उदहारण हो, लेकिन जुर्माने के रूप में जोर-जबरदस्ती, न्यायोचित अधिकारों से वचिंत करने, जातीय आडंबर और शारीरिक हिंसा प्रधानमंत्री द्वारा स्वंय आयोजित इस बहु प्रशंसित ‘अभियान’ का अहम हिस्सा रहे हैं।

यह निर्विवाद रूप से स्पष्ट है कि स्वच्छ भारत अभियान के गर्भ में इस तरह की बातों का उल्लेख सरकार के आधिकारिक बयानों में अपना स्थान नहीं पातीं।  इस तरह के अतिशियोक्तिपूर्ण- और तकरीबन भ्रम फ़ैलाने वाली बयानबाजी का ताजातरीन उदहारण आप हाल ही में प्रकाशित पुस्तक ‘The Swachh Bharat Revolution’ और उसके विचित्र उपशीर्षक ‘Four Pillars of India’s Behavioural Transformation’ में देख सकते हैं।  इस किताब का संपादन पेयजल और स्वच्छता विभाग के वर्तमान सचिव परमेश्वरन अय्यर ने किया है, जो कि विश्व बैंक को अपनी सेवाएं दे चुके हैं।

इस पुस्तक की प्रस्तावना किसी और ने नहीं बल्कि खुद प्रधान मंत्री ने लिखी है, जिसमें भूतपूर्व मंत्रियों, धर्मगुरुओं ( और धर्ममाताओं), नौकरशाहों, शीर्ष उद्योगपतियों, विश्व बैंक और संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (UNICEF) के प्रतिनिधियों, गेट्स फाउंडेशन, नामी गिरामी फ़िल्म जगत की हस्तियों, अर्थशास्त्रियों और दिग्गज पत्रकारों के लेखों की श्रंखला है, जिसमें स्वच्छ भारत मिशन की भूर- भूरि प्रशंसा के गीत हैं।  इनमें से कई लेख परीकथा सरीखे हैं- जहाँ कल्पना के पंखों की उड़ान की मदद से एक छोटे से तथ्य से शुरू कर उन्हें असाधारण छलांग लगाते देख सकते हैं।

उदाहरण के तौर पर एक दिवंगत मंत्री अपने लेख में सीमेंट और ईंटों की संख्या की गणना कर इस बात का बखान करते हैं कि किस प्रकार स्वच्छ भारत अभियान के तहत निर्मित 1 करोड़ शौचालयों में इस्तेमाल सीमेंट और ईंटों ने अर्थव्यवस्था को गति देने का काम किया है।  इसी तरह एक-दूसरे लेखक ने दर्शाया है कि किस तरह शौचालय निर्माण से हर परिवार को एक साल में 50,000 रूपये की सालाना बचत हो रही है, क्योंकि शौचालय के बिना किस तरह एक परिवार को विभिन्न बीमारियों से जूझना पड़ता है और इस दौरान मजदूरी से हाथ धोना पड़ता है।  क्या बीमारियाँ सिर्फ घर में शौचालय न होने के कारण आती हैं? लेखक महोदय शायद इन बेहद मामूली प्रश्नों से अनजान हैं।

और फिर, इस बात का वर्णन भी है कि किस प्रकार 60 करोड़ से अधिक भारतीयों को प्रधानमंत्री के सपनों को साकार करने के लिए एक आन्दोलन के रूप में संगठित किया गया, जो शायद अब तक के इतिहास में सबसे बड़ा जनभागीदारी का आन्दोलन हो, जो महात्मा गाँधी के स्वच्छ भारत के सपनों को पूरा करने के लिए तत्पर हो। प्रधानमंत्री खुद चौंका देने वाला यह दावा करते हैं कि महात्मा ने घोषित रूप से कहा था कि यदि उन्हें स्वच्छता और ब्रिटिश हुकुमत से आजादी के बीच किसी एक को चुनने का विकल्प हो तो वे स्वच्छता को वरीयता देंगे।

इन सभी आत्म-प्रशंसा से लबरेज शब्दाडंबरों, जैसे-प्रतिष्टित, अदम्य इच्छाशक्ति, असम्भव लगने वाले कार्य, अभूतपूर्व और इस तरह के अनेकों शब्दों से सुसज्जित लेखों में उल्लेखनीय चूक हैं।  इनमें से कुछ इस प्रकार हैं।

क्या लोग अपने शौचालय का इस्तेमाल कर रहे हैं?

सरकार का दावा है कि हाँ, वे इस्तेमाल कर रहे हैं। इसमें दावा किया गया है कि कुल 5,99,963 गाँव हैं और उन्हें ओडीफ (ODF) घोषित करने से पहले आधिकारिक रूप से सत्यापित किया गया है। इसका मतलब है कि हर कोई शौचालय का इस्तेमाल कर रहा है।  जबकि स्वच्छ भारत मिशन की वेबसाइट खुद दर्शा रही है कि शौचालय निर्माण के एक महीने बाद का यह पहले चरण का सत्यापन ही है।  दूसरे चरण (6 महीने बाद) के बाद सिर्फ 1,48,994 गांवों का ही सत्यापन ही हो सका है, यानी मात्र 24% गांवों को ही इसमें कवर किया गया है। इस प्रकार, यह प्रक्रिया अभी भी जारी ही है।

लेकिन इससे भी अधिक महत्वपूर्ण रिसर्च इंस्टिट्यूट फॉर कम्पैशनेट इकोनॉमिक्स (RICE) द्वारा 28 सितम्बर 2019 को प्रकाशित पत्र इस बात का खुलासा करता है कि जांच की पद्धति से अंतिम निष्कर्ष काफी अलग हो सकते हैं कि कोई परिवार शौचालय का इस्तेमाल कर रहा है या नहीं। यह इस बात पर निर्भर करता है कि आपने यह सवाल पूरे परिवार से  शौचालय के इस्तेमाल के लिए पूछा है या परिवार के हर सदस्य से अलग-अलग व्यक्तिगत तौर पर पूछा है।

उन्होंने पाया कि यदि शोधकर्ता यह सवाल परिवार के प्रत्येक व्यक्ति से पूछता है तो परिणाम दिखाते हैं कि पूरे परिवार से पूछने की तुलना में 20-21% अधिक लोग खुले में शौच करते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो, परिवार के कुछ सदस्य घरों में बने शौचालय का उपयोग कर रहे हैं जबकि कुछ लोग अभी भी शौच के लिए बाहर जाते हैं।  यह 100% (ODF) खुले में शौच मुक्त ग्रामीण भारत के दावे को ध्वस्त करता है क्योंकि इस तरह की सभी रिपोर्टें इस अनुमान पर आधारित होती हैं कि चूँकि घर में शौचालय बन गया है इसलिए परिवार का हर सदस्य उसे इस्तेमाल करने लगा है।

उसी संस्थान द्वारा अपने पहले के शोध अध्ययन में 2014 और 2018 के दौरान शौचालय के उपयोग की तुलना की गई थी, और पाया था कि ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग 43% परिवार अभी भी खुले में शौच कर रहे थे। यह सरकार के इस दावे को तार तार करता है कि ग्रामीण भारत अब वास्तव में (ODF) खुले में शौच से मुक्त हो चुका है।

यहां तक कि गुजरात की अपनी एक रिपोर्ट में नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) ने खुलासा किया है कि 8 जिलों की 120 ग्राम पंचायतों में किए गए एक सर्वेक्षण में पाया गया है कि लगभग 30% घरों में न तो खुद के शौचालय थे और ना ही उनके लिए सार्वजनिक शौचालयों की व्यवस्था थी।

सेप्टिक टैंक की साफ़ सफाई की जिम्मेदारी किसकी?

यह बेहद महत्पूर्ण प्रश्न है और सारा उत्सव धर्मी स्वच्छ भारत/ ODF अभियान इस पर पूरी तरह से मौन साधे हुए है। जैसा कि सफाई कर्मचारी आन्दोलन (SKA) के नेता बेजवाडा विल्सन बार-बार इस बात पर जोर देते हैं कि किस प्रकार नीची जाति के नाम से पुकारे जाने वाले समुदाय को ही जबरन ( जिस जाति से अविनाश और रोशनी आते हैं)  इस घृणित कार्य के लिए इस्तेमाल किया जाता है, और इसे उनका रोजगार बताया जाता है, और आशा की जाती है कि वे ही शौचालय और सेप्टिक टैंक की सफाई का काम करें।  

भले ही गटर और नाले की सफाई के लिए आधुनिक संयंत्र कुछ शहरों और कस्बों में मौजूद हों लेकिन विशाल भारत के गांवों में जहाँ ये 1 करोड़ शौचालय निर्मित किये गए हैं, उसका नामोनिशान तक नहीं है। और फिर इन उपकरणों को किराये पर इस्तेमाल करने का मतलब है पैसा खर्च करना, जिसे गरीब परिवार शायद ही वहन कर सके।  स्वच्छ भारत मिशन के बजट में इसके लिए कोई प्रावधान नहीं है।  वास्तव में, जिन गावों में सामुदायिक शौचालय का निर्माण किया गया है उन्हें आश्वस्त किया जाना चाहिए कि ग्राम समुदाय ही इसका रखरखाव करे।  और इसका मतलब है कि सदियों से जो जाति इस काम को करती आई है, उन्हीं के जिम्मे यह बोझ भी अपने आप आ जायेगा।

जैसा कि सर्वविदित है, इस अमानवीय मानव श्रम विभाजन के अलावा अपने आप में यह काम बेहद खतरनाक है, जिसमें पिछले कई सालों में 1,200 सफाई कर्मी सेप्टिक टैंकों की सफाई के दौरान मौत के मुहँ में समा चुके हैं। क़ानूनी तौर पर मैनुअल स्कैवेंजिंग प्रतिबंधित है लेकिन यह अधिकतर सिर्फ कागजों में ही मौजूद है।  सेप्टिक टैंकों की सफाई का प्रबंध कैसे होगा ? इस बात पर बिना कोई विचार किये ही इतनी भारी संख्या में शौचालयों का निर्माण सरकार का सफाई कर्मचारियों के साथ-साथ स्वच्छ भारत मिशन के बड़े बड़े आदर्शों के प्रति घोर उदासीनता को ही प्रदर्शित करता है। ऐसा प्रतीत होता है जैसे इनकी साफ़ सफाई के लिए अघोषित रूप से मान लिया गया है कि निचली जातियों को मजबूर किया जायेगा। जाति व्यवस्था को तोड़ने का क्या अद्भुत प्रयास हो रहा है।

क्या शौच के लिए पानी उपलब्ध है?

भारतीय शौचालय में पानी का इस्तेमाल पाखाना साफ़ करने और शौच के बाद हाथ धोने में होना एक जरुरत है। अगर इन शौचालयों के आस-पास पानी की उपलब्धता नहीं है, तो परिवार इसका उपयोग नहीं कर सकते।  सरकार के द्वारा भारी भरकम सर्वेक्षणों और हर चीज को ट्रैक करने के लिए आधुनिकतम डिजिटल प्लेटफार्म को इस्तेमाल करने के बावजूद, वह यह डेटा दे पाने में पूरी तरह से अक्षम साबित हुई है कि कितने नए शौचालयों में पानी की व्यवस्था है. पाइप द्वारा पानी की उपलब्धता की खेदजनक स्थिति को देखते हुए इस बात का सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि, सभी शौचालय तो नहीं, लेकिन अधिकतर शौचालयों में नल से पानी की व्यवस्था नहीं है।  तब, इनका इस्तेमाल भी नहीं होने वाला। असल में, मोदी युग से पहले के शौचालय निर्माण प्रोग्राम का भी यही हश्र हुआ था।  लेकिन अफ़सोस है कि उससे कुछ भी नहीं सीखा गया।  

खुले में शौचमुक्त भारत क्या जोर जबर्दस्ती से संभव है?

अविनाश और रौशनी की हत्या ही एकमात्र खुले में शौच को रोकने के नाम पर जोर जबर्दस्ती का मामला नहीं है। इस साल जनवरी में जारी RICE के अध्ययन में दर्ज किया गया था कि चार उत्तरी भारतीय राज्यों (बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश) के सर्वेक्षण में शामिल लोगों में से 56% ने यह माना कि उनके गाँव में कम से कम 3 प्रकार से ODF स्कीम को सफल बनाने के लिए जोर जबर्दस्ती की गई।  ये दमनात्मक उपाय थे: खुले में शौच को रोकने के लिए धमकाना और मार पीट, जनकल्याणकारी योजनाओं से वंचित कर देने की धमकी, और जुर्माने की धमकी।

 खुले में शौच करने पर लोगों के साथ मारपीट की कई खबरें आई हैं। ऐसे मामले दर्ज किए गए हैं, जहां लोगों को धमकी दी गई थी कि उनके सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के लाभ (सस्ते अनाज) से उन्हें वंचित कर दिया जाएगा, यदि वे अपने यहाँ शौचालय का निर्माण नहीं करते हैं या इसका उपयोग नहीं करते हैं। इसी तरह, अन्य कई लाभों से वंचित कर देने की रिपोर्टें प्राप्त हुई हैं जो स्थानीय निकायों के माध्यम से जारी की जाती हैं।

यद्यपि, स्वच्छ भारत मिशन यह दावा जोर-शोर से करता है कि उसने भारत के जीवन के तौर तरीकों  को बदल दिया है, जैसा कि पुस्तक में भी दावा किया गया है, और यह कि स्वच्छ भारत मिशन लोगों की सामूहिक भागीदारी (बदलाव के स्तंभों में से एक) के माध्यम से संभव हुआ, और इसके साथ ही शौचालय निर्माण के काम को सरकरी लाभकारी योजनाओं से जोड़ने का प्रयास किसी बदतरीन जोर जबर्दस्ती से कम नहीं हैं। इसका असर किस मात्र में हुआ है यह अध्ययन और उपाख्यानों की रिपोर्टों  से स्पष्ट है।

स्वच्छ भरत मिशन के इस हल्ला गुल्ला में कई और प्रश्न अनुत्तरित रह जाते हैं या उठाये ही नहीं गए। करीब एक तिहाई भारत शहरों में निवास करता है।  स्वच्छ भारत मिशन में शहरी क्षेत्र में इसकी उपलब्धियां सुर्ख़ियों में नहीं हैं।  क्योंकि इसके पीछे काफी छलकपट मौजूद है।  शुरुआती 1 करोड़ घरों में शौचालय प्रदान करने के लक्ष्य को अब संशोधित कर 66 लाख तक सिमटा दिया गया।  इनमे से तकरीबन 59 लाख शौचालय ही इन 5 वर्षों में बनकर तैयार हुए हैं. लेकिन ठोस अपशिष्ट और सीवर सिस्टम की व्यवस्था करने की चुनौती मुहँ बाए खड़ी है।

इसमें कोई संदेह नहीं कि काफी मात्र में शौचालयों का निर्माण इस दौरान किया गया है लेकिन क्या यह वास्तव में कोई मौलिक परिवर्तन जैसा है? जैसा कि अक्सर कहा गया है, इतिहास उसके विजेताओं के झूठ से निर्मित होता है। स्वच्छ भारत क्रांति नामक पुस्तक को भी इसी तौर पर याद किया जाएगा।   या शायद उस तरह भी न याद किया जाए। 

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Open Defecation Free India
PM Narendra Modi
Modi government
Dalit Children Murdered in MP
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Rights of Sanitation Workers
Sanitation Workers Deaths
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Gates Foundation Award
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