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अमेरिका में प्रतिबंधात्मक मतदाता क़ानूनों की बाढ़
'इक्कीसवीं सदी के किसी चुनाव में अमेरिकी नागरिकों के मतदान करने के अबाधित अधिकार की अहमियत क्या उतनी ही है जितनी कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था में स्वीकृत बजट के रूप में अमेरिकी धन के निर्बाध प्रवाह की अहमियत है?'
सुबीर पुरकायस्थ
23 Jul 2021
अमेरिका में प्रतिबंधात्मक मतदाता क़ानूनों की बाढ़

टेक्सास एक बार फिर सुर्ख़ियों में है, मगर लगता है कि इसके पीछे की तमाम वजह ठीक नहीं है। राज्य के गवर्नर ग्रेग एबॉट ने उन प्रतिबंधात्मक मतदान क़ानूनों को लागू करने को लेकर 30 दिनों के लिए टेक्सास हाउस और सीनेट के एक विशेष सत्र को यह तय करने के लिए बुलाया है कि टेक्सास के लोग अपने वोट कैसे डालेंगे और आने वाले दिनों के चुनावों में चुनाव अधिकारियों द्वारा इन वोटों की गणना किस तरह की जायेगी। इन मतदाता दमन क़ानूनों को रोकने के लिए किसी भी अन्य व्यवहारिक विकल्प के नहीं होने से टेक्सास हाउस के डेमोक्रेटिक पार्टी के ज़्यादातर सदस्य वाशिंगटन डी.सी. इसलिए चले गये हैं ताकि बहुसंख्यक रिपब्लिकन का कोरम पूरा ही नहीं हो। ऐसे में सवाल तो यही है कि वक़्त गंवाने की यह नाटकीय रणनीति क्या अंतत: कामयाब हो पायेगी? सवाल यह भी है कि दूसरे रिपब्लिकन राज्यों में इस मतदाता दमन क़ानूनों के सिलसिले में चल क्या रहा है?

इन राज्यों में जो कुछ हो रहा है और इसके होने के पीछे की वजह क्या है, इसे समझने के लिए आइए हम अतीत में अमेरिका में मताधिकार क़ानूनों में आने वाले उतार-चढ़ाव की एक संक्षिप्त समीक्षा करते हैं।

19वीं सदी के मतदान अधिकार क़ानून

1860 के दशक में दासता को ख़त्म करने के लिए हुए गृहयुद्ध के बाद अमेरिकी संसद ने अमेरिकी संविधान में 13वां, 14वां और 15वां संशोधन पारित किया, ताकि दक्षिणी राज्यों में पूर्व दास आबादी को अमेरिकी समाज की मुख्यधारा से जोड़ा जा सके और इस तरह उन्हें वोट देने का अधिकार हासिल हो गया। 20 से 30 सालों के भीतर इन दक्षिणी राज्यों में श्वेत वर्चस्ववादियों ने अल्पसंख्यक अश्वेत मतदाताओं के साथ भेदभाव बरतने को लेकर ज़बरदस्त प्रतिबंधात्मक राज्य क़ानून (चुनाव कर, साक्षरता जांच आदि) बनाये। इसके अलावा, अश्वेतों के ख़िलाफ़ लिंचिंग के ज़रिये मार देने समेत डराने-धमकाने और ज़बरदस्त प्रचारित हिंसा का इस्तेमाल व्यवस्थित रूप से अश्वेत आबादी को आतंकित करने और उन्हें वोट देने के उनके अधिकार से वंचित करने के लिए किया गया । संघीय क़ानूनों को लागू करने के लिए न तो अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट और न ही अमेरिकी संसद ने किसी तरह का कोई हस्तक्षेप किया। यह अमेरिकी इतिहास का एक शर्मनाक और वास्तव में दुखद अध्याय है।

अपेक्षाकृत ज़्यादा उदार उत्तरी और पश्चिमी राज्यों में अश्वेतों और दक्षिणी और पूर्वी यूरोप, मैक्सिको और चीन से हाल ही में आये अप्रवासी मज़दूर वर्ग के ख़िलाफ़ भेदभावपूर्ण मतदान क़ानून और अपनाये जा रहे तौर-तरीक़े कम हिंसक, मगर कहीं ज़्यादा नुक़सान पहुंचाने वाले (मसलन अंग्रेज़ी भाषा का टेस्ट, मतदान के दौरान नागरिक होने सम्बन्धित काग़ज़ात पेश करना, निर्धन बहिष्करण क़ानून आदि) थे। रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक,दोनों ही पार्टियों के उत्तरी सत्तारूढ़ अभिजात वर्ग इन क़ानूनी उपायों के ज़रिये अप्रवासी मज़दूर वर्ग के श्वेत मतदाताओं और अल्पसंख्यक अश्वेतों, मैक्सिकन और चीनी मतदाताओं के वोटों को दबाने में बहुत हद तक कामयाब रहे। यह यथास्थिति उन्नीसवीं शताब्दी और बीसवीं शताब्दी के मध्य, यानी 1965 तक बनी रही।

प्रिय पाठक, अल्पसंख्यक मतदाताओं को निशाना बनाना, उनके वोटों को दबा देना और बहुसंख्यक समुदाय को उनके ख़िलाफ़ चुनाव जीतने के लिए प्रेरित करना, ये सब आपको कुछ-कुछ जाना पहचाना जैसा नहीं लगता है?

1965 का मताधिकार अधिनियम

1963 में राष्ट्रपति कैनेडी की दुखद हत्या के बाद राष्ट्रपति जॉनसन द्वारा संचालित अमेरिकी कांग्रेस ने वास्तव में 1964 का ऐतिहासिक नागरिक अधिकार अधिनियम और 1965 में मतदान अधिकार अधिनियम पारित कर दिया। इन दो क़ानूनों ने मतदान सहित अमेरिकी समाज में हर जगह मौजूद नस्लीय भेद-भाव के क़ानूनी ढांचे को ख़त्म कर दिया। इसके साथ ही अल्पसंख्यक काले और भूरे मतदाताओं ने अमेरिका भर में बड़ी संख्या में मतदान करना शुरू कर दिया। नतीजतन, उन्होंने राज्यों और अमेरिकी कांग्रेस में प्रगतिशील मेयर, राज्यपालों और सांसदों को चुनने में अहम भूमिका निभायी,अल्पसंख्यक उम्मीदवारों और प्रगतिशील श्वेत उम्मीदवारों, दोनों में से ज़्यादातर डेमोक्रेट से चुनकर आये। अमेरिकी कांग्रेस में ठोस द्विदलीय बहुमत ने समय-समय पर मताधिकार अधिनियम का नवीनीकरण किया। ऐसा सबसे हाल ही में 2006 में अमेरिकी सीनेट में 98-0 के वोट से किया गया था।

मताधिकार अधिनियम के ताबूत में पहली कील

अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में इस मताधिकार अधिनियम के मुख्य स्तंभों में से एक- धारा 5 को रद्द कर दिया था। अदालत ने अमेरिकी न्याय विभाग द्वारा किसी भी नये मतदान क़ानून या नियम परिवर्तन के पूर्व-मंज़ूरी प्रावधान को उलट दिया, क्योंकि यह प्रावधान केवल दक्षिणी राज्यों पर ही लागू होता है। अदालत के मुताबिक़, अमेरिकी कांग्रेस का यह मानदंड पचास साल पहले के "पुराने पड़ चुके आंकड़ों" पर आधारित था। अदालत ने कहा कि अमेरिकी कांग्रेस की ओर से इस्तेमाल किया गया वह मानदंड "तर्कसंगत" नहीं था। इस प्रावधान को बहाल करने के लिए कांग्रेस को हाल के आंकड़ों के आधार पर "तर्कसंगत मानदंड" का इस्तेमाल करना होगा।

अमेरिकी कांग्रेस 2013 तक ख़ास तौर पर बुरी तरह इसलिए बंटी हुई थी क्योंकि 2008 और फिर 2012 में अमेरिका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति ओबामा चुन लिये गये थे और उनके इस चुनाव के ख़िलाफ़ यह एक प्रतिक्रिया थी। वाशिंगटन में रिपब्लिकन ने प्रतिनिधि सभा और अमेरिकी सीनेट, दोनों को अपने हिसाब से चलाया। अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा करने वाले इन मताधिकार कानूनों को मज़बूत करने में अब उनकी कोई रुचि नहीं थी। यही वजह रही कि  कांग्रेस ने 2013 में आये सुप्रीम कोर्ट के उस फ़ैसले के बाद कार्रवाई नहीं करने का निर्णय लिया।

दक्षिणी राज्यों ने इसका प्रतत्युत्तर जल्द ही चुनाव प्रक्रिया की अखंडता को बढ़ाने की आड़ में बड़ी संख्या में प्रतिबंधात्मक मतदान क़ानून बनाकर दिया । काले, भूरे और नौजवान मतदाताओं पर इनमें से ज़्यादातर क़ानूनों का असर  प्रतिकूल रूप में पड़ा। चरम मामलों में निचले स्तर की संघीय और अपीलीय अदालतों ने अल्पसंख्यकों पर पड़ते "नस्लीय भेदभावपूर्ण" प्रभाव के चलते इन क़ानूनों में से कुछ कानूनों को रद्द कर दिया। एक मामले में तो एक संघीय न्यायाधीश ने कहा भी कि अल्पसंख्यक समुदायों के वोटों को कम करने के लिए राज्य विधायिका ने "सर्जिकल परिशुद्धता" के साथ एक विशिष्ट मतदान क्षेत्र ही तैयार कर लिया है।

ताबूत में दूसरी कील

नवंबर 2020 के चुनाव के बाद डोनाल्ड ट्रम्प यह दावा करते रहे कि बड़े पैमाने पर मतदाता धोखाधड़ी के चलते वह स्विंग स्टेट में चुनाव हार गये हैं। उल्लेखनीय है कि स्विंगस्टेट ऐसे अमेरिकी राज्य को कहते हैं, जहां दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों के पास मतदाताओं के बीच समान स्तर का समर्थन होता है और इसे राष्ट्रपति चुनाव के समग्र परिणाम को निर्धारित करने में अहम माना जाता है। ट्रंप के वकीलों के पास विश्वसनीय सबूत का अभाव था इसलिए सुप्रीम कोर्ट सहित विभिन्न राज्य और संघीय अदालतों में 50 से ज़्यादा मुकदमे हार गये। हालांकि, तक़रीबन आधे रिपब्लिकन अभी भी मानते हैं कि ट्रम्प के हाथ से 2020 का चुनाव इसी मतदाता धोखाधड़ी के चलते निकल गया था !

इस पृष्ठभूमि का फ़ायदा उठाते हुए 17 रिपब्लिकन-नियंत्रित राज्य विधानसभाओं ने चुनाव प्रक्रिया को और अधिक सुरक्षित बनाने के 'महान उद्देश्य' के लिहाज़ से पिछले छह महीनों में 28 प्रतिबंधात्मक मतदान क़ानून पारित कर दिये हैं। यह महज़ संयोग नहीं था कि इन क़ानूनों ने काले, भूरे और नौजवान मतदाताओं के लिए ख़ासकर शहरी क्षेत्रों में उनके मतदान को ज़्यादा मुश्किल बना दिया है।

इस महीने एक ऐतिहासिक और बेहद अहम फ़ैसले में हाल ही में स्थापित रूढ़िवादी बहुमत ने 6-3 के फैसले में अपना फैसला सुनाया कि मताधिकार अधिनियम की धारा 2 को निचली अदालतों द्वारा प्रतिबंधित मतदान क़ानून को ख़त्म करने के लिए तभी लागू किया जा सकता है, जब "अल्पसंख्यक मतदाताओं पर पर्याप्त और अनुपातहीन बोझ" हो। जब तक वोट देने के अन्य तरीक़े हैं, तबतक मज़दूर वर्ग या अल्पसंख्यक मतदाताओं पर अधिक बोझ वाला एक व्यक्तिगत क़ानून ही ठीक रहेगा। यह एक बहुत ही बड़ी रुकावट थी, क्योंकि इसमें कहा गया है कि सर्वोच्च न्यायालय रिपब्लिकन-नियंत्रित राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित हाल के ज़्यादातर प्रतिबंधात्मक क़ानूनों को नहीं पलट पायेगा। इस ख़ास मामले में सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एरिज़ोना में पारित दो प्रतिबंधात्मक क़ानूनों को बरक़रार रखा। पहले क़ानून ने शहरी क्षेत्रों में ग़ैर-लचीली कार्य अनुसूची वाले ग़रीब, काले मतदाताओं पर प्रतिकूल असर डाला है। दूसरे क़ानून ने छिटपुट मेल सेवा या इसके अलावे मिलने वाले आरक्षण के लिहाज़ से मूल भारतीय मतदाताओं पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है।

इरविन स्थित कैलिफ़ॉर्निया यूनिवर्सिटी के चुनाव से सम्बन्धित क़ानूनों के एक अग्रणी विशेषज्ञ रिचर्ड एल. हसन कहते हैं, "इसमें कोई संदेह नहीं कि संघीय अदालतों में मताधिकार के मुद्दे को ले जाने वालों के लिए आगे का रास्ता बहुत मुश्किल है।" यह बिना लाग लपेट वाला एक बेहद ईमानदार आकलन है। लेकिन ,ऐसा नहीं कि यह घटनाक्रम अभूतपूर्व हो। यह समीक्षक ऐसा मानता है कि  यह एक तरह से 1890 के उस परिदृश्य का फिर से गढ़े जाने जैसा है, जब उस पुनर्निर्माण युग को दक्षिणी राज्यों की तरफ़ से दुखद रूप से बाधित किया गया था और सुप्रीम कोर्ट ने संघीय क़ानूनों को लागू करने के लिए किसी भी तरह के हस्तक्षेप से इनकार कर दिया था।

इस साल 17 रिपब्लिकन राज्यों में बने मतदाता दमन क़ानून

निष्पक्षता के लिए मशहूर विशेषज्ञ समूह, ब्रेनन सेंटर ऑफ़ जस्टिस के मुताबिक़, 17 रिपब्लिकन-नियंत्रित विधायिकाओं और गवर्नरों ने 2021 में 28 क़ानून बनाये हैं। इन क़ानूनों ने उन अश्वेत, लातीनी और नौजवान मतदाताओं के लिए मतदान करने को मुश्किल बना दिया है, जिनका वोट देने के लिहाज़ से डेमोक्रेटिक पार्टी की तरफ़ रुझान है। इस समय अल्पसंख्यक अश्वेत (15%), लातीनी (17%) और एशियाई (5 %) मतदाता मिलकर राष्ट्रीय स्तर पर कुल मतदाता के 37% तक हो जाते हैं। कई माहिर राजनीतिक पर्यवेक्षकों का यह निष्कर्ष है कि आने वाले दशकों में एक प्रतिकूल जनसांख्यिकीय प्रवृत्ति का सामना कर रहे विभिन्न राज्यों में रिपब्लिकन सांसदों ने "मतदाता धोखाधड़ी" को रोकने की आड़ में डेमोक्रेटिक मतदाताओं के मतदान को सीमित करने का फ़ैसला किया है। इसका राष्ट्रीय स्तर पर गहरा असर पड़ेगा, क्योंकि एक ही मतदाता एक ही समय में राज्य और संघीय,दोनों ही चुनावों के लिए मतदान करते हैं (जिनमें राष्ट्रपति, अमेरिकी सीनेटर और अमेरिकी प्रतिनिधि सभा का चुनाव शामिल है) ।

17 रिपब्लिकन राज्यों की इस सूची में फ़्लोरिडा, एरिज़ोना, जॉर्जिया, आयोवा आदि जैसे महत्वपूर्ण स्विंग स्टेट्स शामिल हैं। इनमें से कुछ क़ानूनों ने तो शुरुआती मतदान के दिनों और घंटों को ही सीमित कर दिया है, चुनाव के दिन मतदान के घंटों को कम कर दिया है, डाक से होने वाले मतदान की राह में बाधा पहुंचाने के अलावे और भी कई परेशानियां पैदा कर दी गयी हैं,इसके अलावे अल्पसंख्यक और नौजवान मतदाताओं को असुविधा हो,इसके लिए मतदाता पहचान क़ानून को और भी ज़्यादा सख़्त कर दिया गया है। जॉर्जिया और आयोवा ने चुनाव अधिकारियों को राज्य के सभी पात्र मतदाताओं को स्वचालित रूप से अनुपस्थित (मेल-इन) मतपत्र भेजने से रोक दिया था,यह एक ऐसा ज़बरदस्त असरदार क़दम था, जिससे 2020 के चुनाव में मतदाताओं के मतदान में बढ़ोत्तरी हो गयी।

इसके अलावा, 14 रिपब्लिकन राज्यों ने ऐसे क़ानून बनाये हैं, जिसने चुनाव प्रशासन प्रक्रिया की देखरेख के लिए राज्य के पक्षपातपूर्ण अधिकारियों के हाथ में ज़्यादा ताक़त दे दी है।  रिपब्लिकन-नियंत्रित राज्य जॉर्जिया में आयोग ने काउंटी रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक पार्टियों द्वारा नामित सदस्यों की समान संख्या वाले काउंटी चुनाव बोर्ड को दरकिनार करते हुए स्थानीय चुनाव अधिकारियों को हटाने का अधिकार हासिल कर लिया है। जॉर्जिया में नवगठित स्टेट कमिशन पहले ही ऐसा कर चुका है। फ़्लोरिडा में अगर एक चुनाव अधिकारी डाक मतपत्रों में लगातार डाले जा रहे मतपत्रों वाले ड्रॉप बॉक्स की निगरानी करने में विफल रहता है, तो उस पर 25,000 डॉलर का जुर्माना लगाया जा सकता है,यह किसी मझोले स्तर के सरकारी अधिकारी के लिए भारी भरकम रक़म है। एरिज़ोना और जॉर्जिया दोनों में रिपब्लिकन सेक्रेटरी ऑफ़ स्टेट, जिन्होंने 2020 में डोनाल्ड ट्रम्प का विरोध किया था, उनसे उनकी चुनावी निगरानी की भूमिकायें छीन ली गयी थीं और उनकी जगह वहां के अटॉर्नी जनरल को वह भूमिका सौंप दी गयी थी।

जॉर्जिया राज्य विधानमंडल को अब किसी काउंटी चुनाव बोर्ड की जगह किसी पक्षपातपूर्ण अधिकारी को रखने का अधिकार हासिल है। इसके अलावे, जैसा कि 2020 में डोनाल्ड ट्रम्प ने सुझाया था,जॉर्जिया विधानमंडल ने राज्य चुनाव बोर्ड और स्टेट सेक्रेटरी या अटॉर्नी जनरल द्वारा सत्यापित चुनाव नतीजे को पलट देने का अधिकार भी हासिल कर लिया है। ग़ौरतलब है कि जॉर्जिया के विधायक ख़ुद सदन के सदस्य के लिए हर दो साल में या सीनेटर के लिए छह साल में फिर से चुनाव के लिए दौड़ लगाते हैं। अब, वे "चुनावी धोखाधड़ी" के आरोपों से ख़ुद के लड़े जा रहे चुनाव नतीजों को भी पलट सकते हैं ! कितना आसान है सबकुछ !

द न्यू यॉर्क टाइम्स में छपे लेख में नैट कोहन कहते हैं कि इन नये अधिनियमों में चुनाव प्रशासन को लेकर ये प्रावधान अमेरिकी "लोकतंत्र के लिए सबसे घातक और गंभीर ख़तरा" हैं।

टेक्सास सदन के डेमोक्रेट आख़िर टेक्सास से क्यों भागे ?

अब जबकि हमने इस मताधिकार परिदृश्य पर पूरी नज़र डाल ली है, तो आइये अब हम टेक्सास में हुए हाल के घटनाक्रमों पर चर्चा कर लेते हैं। टेक्सास मैक्सिकन व्यजंन या भारतीय व्यंजन-बड़ा डोसा के लिए बेहद मशहूर है, इसका आकार बहुत बड़ा है और 50 राज्यों के बीच इसका अपना दबदबा है। मतदाताओं के लिए मतदान करने के लिहाज़ से यह सबसे मुश्किल राज्यों में से एक है। 2020 में महामारी का सामना करने वाले ह्यूस्टन इलाक़े के हैरिस काउंटी में स्थानीय चुनाव अधिकारियों ने बड़ी संख्या में नयी नीतियों को लागू कर दिया था, जिसके नतीजे के रूप में मतदाताओं के मतदान में उल्लेखनीय बढ़ोत्तरी हो गयी थी।

टेक्सास विधानमंडल के 30-दिवसीय विशेष सत्र में रिपब्लिकन-प्रायोजित बिलों ने 2020 में लागू किये  गये इन ज़्यादातर नये प्रावधानों पर रोक लगा दी है और कुछ नये प्रतिबंध जोड़ दिये हैं:

*  शिफ़्ट में काम करने वाले कामगारों और विकलांग को समायोजित करने के लिए शुरुआती मतदान अवधि के दौरान 24 घंटे के एकल मतदान पर प्रतिबंध।

*  गाड़ियों में बैठे-बैठ वोटिंग सुविधा पर प्रतिबंध

*  मतदान कक्ष के भीतर पक्षपातपूर्ण मतदान पर नज़र रखने वाले अप्रशिक्षित अधिकारियों के अधिकार और स्वायत्तता में ज़बरदस्त विस्तार, जिससे अल्पसंख्यक मतदाताओं में इन बाहुबलियों द्वारा डराने-धमकाने का डर बढ़ता जा रहा है। अल्पसंख्यकों के बीच मतदान करने वाले लोगों को हतोत्साहित करने में इस कानून का सही मायने में नकारात्मक असर रहा है।

*  ग़लती करने या नियमों का उल्लंघन करने वाले ईमानदार चुनाव कर्मचारियों के लिए आपराधिक दंड का बढ़ाया जाना। इन मतदान कर्मियों की एक बड़ी संख्या काउंटी चुनाव विभागों द्वारा प्रशिक्षित नागरिक स्वयंसेवकों की हैं।

*  डाक से मतदान करने वालों के लिए नयी मतदाता पहचान ज़रूरतों का जोड़ा जाना।

* परिवार के सदस्यों या चुनाव अधिकारियों को छोड़कर इन डाक मतपत्रों के तीसरे पक्ष के संग्रह को सीमित करना। चुनाव अधिकारी शायद ही कभी इन डाक मतपत्रों को एकत्र करते हैं।

टेक्सास के संविधान के लिए ज़रूरी है कि सदन के 150 सदस्यों में से दो-तिहाई सदस्य किसी भी आधिकारिक कामकाज को संचालित करने के लिए उपस्थित हों। बिना किसी बाधा के वोट देने के टेक्सस के इस पवित्र अधिकार की रक्षा के लिए सदन के ज़्यादतर डेमोक्रेट सदस्यों ने वाशिंगटन डी.सी. भागकर और रिपब्लिकन बहुमत को कोरम से वंचित करके एक नाटकीय राजनीतिक रुख़ अपनाया। ओबामा कैबिनेट में काम करने वाले, सैन एंटोनियो के पूर्व मेयर और एक प्रमुख टेक्सास डेमोक्रेट का कहना है, " मैं उनके (टेक्सास हाउस के डेमोक्रेट सदस्यों) के लिए आगे जो कुछ भी देख रहा हूं, वह दरअस्ल वह हाई प्रोफ़ाइल बनाये रखना है और संघीय क़ानून के लिए वाशिंगटन डेमोक्रेट पर दबाव बनाना है। मुझे यक़ीन है कि वे तबतक वहां बने रहेंगे,जबतक इसकी ज़रूरत रहेगी।"

क्या टेक्सास सदन के डेमोक्रेट की यह रणनीति काम कर पायेगी?

आख़िरकार, टेक्सास सदन के इन डेमोक्रेट सदस्यों को अपने-अपने परिवार और काम के लिए टेक्सास तो लौटना ही होगा। प्रति वर्ष 7,200 की मामूली सालाना तनख़ाह वाले टेक्सास के इन ज़्यादातर सांसदों की आमदनी का ज़रिया उनका यही वेतन है। राज्य के संविधान के मुताबिक़, रिपब्लिकन गवर्नर एबॉट के पास टेक्सास विधानमंडल में जितने चाहें, उतने विशेष सत्र बुलाने का अधिकार है। वह पहले ही संकेत दे चुके हैं कि वह ठीक वैसा ही करने का इरादा भी रखते हैं। ऐसे में जब पक्षपातपूर्ण कारणों से मतदान तक पहुंच प्रतिबंधित हो, तब इस हाउस और सीनेट के डेमोक्रेट सदस्य राज्य की लोकतांत्रिक बुनियाद के सामने आये इन ख़तरों को रोक सकते हैं और कमियों को उजागर कर सकते हैं । लेकिन, आख़िरकार रिपब्लिकन बहुमत को अपना रास्ता मिल ही जायेगा। सभी नहीं, तो ज़्यादतर क़ानून को वे अमल में तबतक लाते रहेंगे, जबतक कि टेक्सास में मतदाताओं के बीच कोई विद्रोह नहीं हो जाता है। 2021 में ऐसा हो पाये, इसकी संभावना बहुत ही कम दिखती है। इस समय सियासी बयार उल्टी दिशा में बह रही है। ग़लत सूचना अभियानों और षड्यंत्र के सिद्धांतों से प्रभावित तेज़ी से बेचैन हो रहे रिपब्लिकन के जनाधार को शांत करने के लिए टेक्सास रिपब्लिकन बहुमत ने गर्भपात पर बेहद विवादास्पद और अलोकप्रिय प्रतिबंध को लागू कर दिया है और 2021 में नियमित विधायी सत्र के दौरान पहले से ही ढीले ढाले बंदूक नियंत्रण क़ानूनों को और भी ढीला कर दिया है।

2021 में मताधिकार पर संघीय क़ानून की संभावनायें

यह एक ऐसा ज्वलंत विषय है जिसे लेकर दोनों ही तरफ़ के राजनीतिक पंडित बेशुमार अटकलें लगा रहे हैं। कांग्रेस के डेमोक्रेट ने दो महत्वाकांक्षी मताधिकार विधेयक का मसौदा तैयार कर लिया है। ये विधेयक अमेरिकी सीनेट में रिपब्लिकन की ओर से अड़ंगा लगाये जाने के ख़तरों के कारण रुके हुए हैं। सदन के पटल पर चर्चा के लिए आगे बढ़ाने के लिए प्रत्येक बिल को सीनेट में कम से कम साठ वोट हासिल करने होंगे। 50-50 वाले इस सीनेट में दस रिपब्लिकन सीनेटर के समर्थन की ज़रूरत पड़ेगी और जिसकी संभावना नहीं दिखायी देती है। अगर यह अधिनियमित हो जाता है, तो इस मताधिकार विधेयक का एक छोटा संस्करण 2021 में रिपब्लिकन-नियंत्रित राज्य विधानमंडलों द्वारा लागू किये जाने वाले ज़्यादातर हालिया मतदान तक पहुंच से रोकने वाले प्रावधानों को लेकर चल रही शंका का निवारण कर देगा।

डेमोक्रेट के पास 2021 में व्यावहारिक तौर पर आगे बढ़ने का एक  ही रास्ता है। अगर डेमोक्रेट के सभी 50 सीनेटर इन मताधिकार विधेयकों में किसी तरह की काटछांट को लागू करने को लेकर बाधा पहुंचाने की रणनीति वाले नियम में बदलाव लाने को लेकर सहमत हो जाते हैं, तो वे अमेरिकी सीनेट में 51-50 के साधारण बहुमत से बाधा पहुंचाने वाली रणनीति के नियम में बदलाव को पारित कर सकते हैं। बराबर मत पाने की स्थिति में बतौर अमेरिकी सीनेट के पीठासीन अधिकारी उप-राष्ट्रपति मतदान कर सकते हैं। अमेरिकी सीनेट में बाधा पहुंचाने वाली रणनीति के नियमों में बदलाव किये जाने की मिसाल पहले से ही है। बजट बिल साधारण बहुमत से पारित हो सकते हैं और अमेरिकी सीनेट में इसे लेकर अड़ंगा नहीं लगाया जा सकता है।

अमेरिकी सीनेट के एक-एक डेमोक्रेट सीनेटर को ख़ुद को आईने में देखना होगा और एक बहुत ही आसान सवाल का जवाब देना होगा कि 'इक्कीसवीं सदी के किसी चुनाव में मतदान तक अमेरिकी नागरिकों की अबाधित पहुंच की अहमियत क्या उतनी ही है, जितनी कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था में स्वीकृत बजट के रूप में अमेरिकी धन के निर्बाध प्रवाह की अहमियत है? चूंकि सबके सब पचासों डेमोक्रेट सीनेटरों को इस मताधिकार बिल के छोटे संस्करण के लिए मतदान करना है, ऐसे में त्रुटि रह जाये,इसकी संभावना नहीं दिखती है। राष्ट्रपति जो बिडेन और सीनेट में बहुमत के नेता चक शूमर, दोनों ही डेमोक्रेट हैं और ऐसे में आने वाले महीनों में इस अहम मुद्दे पर इनकी नेतृत्व क्षमता और प्रतिबद्धता,दोनों ही का इम्तिहान होगा।

इस राजनीतिक पर्यवेक्षक का आकलन तो यही है कि 2021 में अमेरिकी कांग्रेस द्वारा मतदान के अधिकार पर संघीय क़ानून पारित करने की संभावना 50-50 है।

इस विषय पर जल्द ही आने वाले दिनों में और कॉलम आयेंगे, इसके लिए न्यूज़क्लिक को पढ़ते रहें।

लेखक एक राजनीतिक कार्यकर्ता और टेक्सास स्थित डलास शहर में रह रहे एक अमेरिकी नागरिक हैं। वह 50 साल से अधिक समय से अमेरिका में रह रहे हैं। इनके विचार निजी हैं।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

Texas on the Cusp, March of Voter Suppression Laws in the US in 2021

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    23 जून को उपचुनाव होने हैं, ऐसे में तमाम नामों की अटकलों के बाद समाजवादी पार्टी ने धर्मेंद्र यादव पर फाइनल मुहर लगा दी है। वहीं धर्मेंद्र के सामने भोजपुरी सुपरस्टार भाजपा के टिकट पर मैदान में हैं।
  • भाषा
    ब्रिटेन के प्रधानमंत्री जॉनसन ‘पार्टीगेट’ मामले को लेकर अविश्वास प्रस्ताव का करेंगे सामना
    06 Jun 2022
    समिति द्वारा प्राप्त अविश्वास संबंधी पत्रों के प्रभारी सर ग्राहम ब्रैडी ने बताया कि ‘टोरी’ संसदीय दल के 54 सांसद (15 प्रतिशत) इसकी मांग कर रहे हैं और सोमवार शाम ‘हाउस ऑफ कॉमन्स’ में इसे रखा जाएगा।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में कोरोना ने फिर पकड़ी रफ़्तार, 24 घंटों में 4,518 दर्ज़ किए गए 
    06 Jun 2022
    देश में कोरोना के मामलों में आज क़रीब 6 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है और क़रीब ढाई महीने बाद एक्टिव मामलों की संख्या बढ़कर 25 हज़ार से ज़्यादा 25,782 हो गयी है।
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CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License