सत्ता और सत्ताधारियों से असहमत होना क्या गुनाह है? अगर लोकतंत्र में यह गुनाह नहीं, लोगों का अधिकार है तो नताशा नरवाल, देवांगना, आसिफ इकबाल, उमर ख़ालिद, पत्रकार सिद्दीक कप्पन, गौतम नवलखा, लेखक आनंद तेलतुबडे, वकील सुधा भारद्वाज या प्रोफेसर हानी बाबू जैसे लोगों को यह सत्ता जेल में क्यों रखना चाहती है? वह निर्दोष छात्र-छात्राओं की कोर्ट से मिली ज़मानत तक को निष्प्रभावी बनाने की कोशिशें क्यों करती है?
आज के सत्ताधारी अपने को इंदिरा गांधी के इमर्जेंसी-राज का आलोचक बताते हैं फिर वे इमर्जेंसी से भी ज्यादा निरंकुश और क्रूर शासन का माडल आज क्यों तलाश रहे हैं? #HafteKiBaat में वरिष्ठ पत्रकार Urmilesh का विश्लेषण: