NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
स्वास्थ्य
भारत
राजनीति
अर्थव्यवस्था
फ़ुटपाथ व्यापारियों की हालत बेहद ख़राब, तालाबंदी के बाद भी काम शुरू करने लायक नहीं बचेंगे!
सब कुछ के साथ झारखंड के फ़ुटपाथ व्यापारियों की ज़िंदगी भी रुक सी गई है। उनके काम बंद हैं और जेब खाली। भूख है लेकिन राशन नहीं।
आसिफ़ असरार
15 May 2020
फ़ुटपाथ व्यापारियों की हालत बेहद ख़राब

कोरोना वायरस की वजह से हुए लॉकडाउन से हवाओं में एक सन्नाटा सा पसरा है। मुहल्ले वीरान हैं तो सड़कें खाली। मानो दुनिया थम सी गयी है। सब कुछ रुक सा गया है। सब कुछ के साथ झारखंड के फ़ुटपाथ व्यापारियों की ज़िंदगी भी रुक सी गई है। उनके काम बंद हैं और जेब खाली। भूख है लेकिन राशन नहीं। 

ऐसे ही कुछ सड़क किनारे दुकान लगाने वालों से हमनें बात की है। 

51 वर्षीय शर्मिला नागेर राजधानी रांची के नेपाल हाउस एरिया में चॉउमिन-मोमोज़ का ठेला लगाती थीं। उनको जैसे ही पता चला कि मैं एक पत्रकार हूँ, वैसे ही वो बिना कुछ पूछे ही अपनी परेशानियां मुझसे कहने लगीं। ऐसा लगा मानो उन्हें ऐसे किसी की तलाश थी जो उनकी बातों को सुने। उनकी बातें शुरू ही इस बात से होती है कि 'सरकार कुछ नहीं कर रही हमारे लिए।'

उन्होंने आगे बताया कि जब से लॉकडाउन हुआ है, 'तब से हमारी ज़िंदगी जानवरों जैसी हो गयी है। मेरे परिवार में पांच लोग हैं, जिसमें से कमाने वाली एकलौती मैं ही हूँ। काम-धंधा पूरे तरीके से बंद है। पहचान के लोग कुछ मदद कर रहे हैं, जिससे साग-सब्ज़ी, तेल-मसाला ख़रीद पाते हैं वरना हमारे पास ज़हर खाने को भी पैसे नहीं हैं।'

अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहती हैं कि, 'मैं दिन भर में  250 से 300 रुपये कमाती थी। हमारे पास अब पैसा नहीं है जो दोबारा से अपना काम शुरू कर पाएं। सारा पैसा ख़त्म हो चुका है। मेरी उम्र भी इतनी हो गयी है, लेकिन पेट की आग बुझाने के लिए काम तो करना ही पड़ेगा। इसलिए लॉकडाउन के बाद किसी होटल में बर्तन धोने का काम खोजेंगे। सरकार को हमारे जैसे व्यापारियों को आर्थिक मदद देनी चाहिए थी जिससे हम और हमारा काम बच सके।'

वहीं रांची के एक और वेंडर अब्दुल ने बताया कि 'हमारे पास अब पैसा नहीं बचा है। रमज़ान में हमारा खर्च बाकी दिनों में मुकाबले थोड़ा बढ़ जाता है। ईद के वक़्त पर अच्छी कमाई हो जाती थी। लेकिन काम धंधा बंद होने की वजह से घर की स्थिति बेहद खराब हो गयी है। आगे हमारा और हमारे काम क्या होगा अल्लाह ही मालिक है।' अब्दुल रांची के अटल स्मृति वेंडर मार्किट में कपड़े की दुकान लगाते हैं।

नगर निगम के आंकड़ों के मुताबिक झारखंड की राजधानी रांची में करीब पांच हज़ार फ़ुटपाथ व्यापारी हैं। वहीं नेशनल हॉकर्स फेडरेशन के मुताबिक रांची में स्ट्रीट वेंडर्स की संख्या तीस हज़ार आसपास है।

रांची के बाद हम पहुंचे रामगढ़ जिला के पतरातू प्रखंड में। हाल के दिनों में पतरातू एक पर्यटक स्थल के रूप में उभरा है। यहाँ की जलेबीनुमा घाटी और वातावरण जितना हरीभरी दिखाई पड़ता है, वहीं इस देशव्यापी तालाबंदी के कारण यहाँ के सड़क किनारे दुकान लगाने वालों की ज़िंदगी उतनी ही बेरंग नज़र आ रही है।

इसी सिलसिले में हमने बात की मधु देवी से। मधु एक गृहणी हैं और मधु के पति कार्तिक हर शाम पतरातू के न्यू मार्किट में समोसे की रेहड़ी लगाते थे। दिन-भर में तीन से चार सौ की आमदनी हो जाती थी। मगर उनपर यह पचास दिन से भी ज्यादा का लॉकडाउन दोहरा क़हर बरपा रहा है।

मधु ने बताया कि कार्तिक की तबीयत खराब होने की वजह से लॉकडाउन के एक महीने पहले से ही काम बंद था। बचे हुए पैसे ख़त्म होने लगे तो बीमार होने के बावजूद उन्होंने रेहड़ी लगाना शुरू किया लेकिन तीन-चार दिनों के बाद ही तालाबंदी हो गई।

अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए वह कहती हैं, 'सरकारी मदद के नाम पर महज़ चावल मिला है। लेकिन सिर्फ चावल कैसे खाएं। कुछ पैसा उधार लिया था लेकिन उधार मांगना भी अच्छा नहीं लगता है क्योंकि इस वक़्त सबकी हालत खराब है।'

उन्होंने बताया कि उनका बेटा क़िताब खरीदने को ज़िद कर रहा था लेकिन पैसे न होने की वजह वो अपने बेटे को किताब तक ख़रीद कर नहीं दे सकतीं।

खाने के नाम पर कहती हैं कि 'बाजार में जाते हैं तो कभी-कभी पहचान के लोग खुद से कुछ सब्ज़ियां दे देते हैं। यदि नहीं मिला तो फिर माड़-भात भी खा लेते हैं। हमें ज्यादा बुरा बच्चों के लिए लगता है, हम बड़े तो मन को मार कर रह जाते हैं लेकिन बच्चे तो ज़िद करते ही हैं।'

उनके पति कार्तिक ने बताया कि 'लॉकडाउन के बाद जब काम फिर से शुरू होगा तब भी हमारे पास कुछ नहीं बचेगा। क्योंकि एक साल से ज्यादा समय तो हमारा कर्ज़ चुकाने में ही गुज़र जाएगा। इसी बीच सरकार के तरफ से हमें कुछ पैसे मिल जाते तो थोड़ी बहुत राहत मिल जाती।'

राज्य में स्ट्रीट वेंडरों को वित्तीय मदद और राहत पैकेज की मांग करते हुए हॉकर्स फेडरेशन ऑफ इंडिया के जनरल सेक्रेटरी शक्तिमान घोश ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को एक चिट्ठी भी लिखी है।

'चिट्ठी में लिखा गया है कि, सड़क किनारे दुकान लगाने वाले दुकानदारों की स्थिति दिन पर दिन बिगड़ती जा रही है। लॉकडाउन के दौरान सिर्फ सब्जी विक्रेताओं को सब्ज़ी बेचने की अनुमति दी गयी है। 90% से अधिक स्ट्रीट वेंडरों का काम बंद है।

यह फुटपाथ व्यापारी अपनी बची हुई पूंजी खा रहे हैं, जो बहुत ही असामान्य है। वे एक कमजोर स्थिति में हैं। हमने सड़क विक्रेताओं की स्थिति के बारे में पहले भी भारत सरकार को एक पत्र भेजा है। इसके अलावा ओडिशा, तमिलनाडु, गुजरात, राजस्थान और पश्चिम बंगाल की सरकारों ने सड़क विक्रेताओं को मौद्रिक पैकेज दिया है।'

चिट्ठी में आगे लिखा है कि, 'हम झारखंड सरकार से अनुरोध करते हैं कि वह राशन के साथ छह महीने के लिए प्रति माह सड़क विक्रेताओं को 3,000 रुपये देने की घोषणा करे, ताकि वे अभी और भविष्य में भुखमरी से बच सकें।'

झारखंड के बोकारो में सड़क किनारे चूड़ी बेचने वाले अनवारुल हक़ बताते हैं कि, 'हम दिन भर में 150 से 200 रुपये कमाते थे। इतने ही पैसे में बच्चों की पढ़ाई और घर का खर्च भी चलता था। कोटा से चावल मिला है, वही खा रहे हैं। सब्ज़ी-मसाला के लिए लोगों से उधार लेते हैं। उन्होंने यह भी बताया कि मेरी पत्नी के खाते में पांच सौ रुपया आया था लेकिन पता चला वो भी पैसा बैंक ने काट लिया।'

वो अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहते हैं कि, 'अगल-बगल के लोग न होते तो जाने क्या होता। विधायक हो या मुखिया कोई एक बार हमें झांकने तक नहीं आया कि हम मर गए या ज़िंदा हैं।

उन्होंने यह भी कहा कि, 'इस बीच सब्ज़ी वगैरह भी बेच लेते मगर जाति-धर्म इतना हो गया है कि क्या बताएं। लोग मुसलमानों से सामान खरीदना नहीं चाहते हैं।'

इस मामले में हॉकर्स फेडरेशन ऑफ इंडिया की झारखंड की सचिव अनिता दास ने कहा है कि 'स्ट्रीट वेंडर्स राज्य के अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करने में एक अहम रोल निभाते हैं। इस लॉकडाउन ने उनपर आर्थिक व मानसिक रूप से चोट किया है। कई ऐसे व्यापारी हैं जो लॉकडाउन के बाद भी खड़े नहीं हो सकेंगे क्योंकि इनकी जमापूंजी भी ख़त्म हो गयी है। सरकार को उन्हें आर्थिक मदद के साथ साथ उन्हें लोन देने का भी इंतेज़ाम करना चाहिए ताकि वो फिर से अपने काम को शुरू कर सकें।'

वहीं झारखण्ड शिक्षित बेरोजगार फुटपाथ दुकानदार महासंघ के संस्थापक कौशल किशोर ने बताया कि 'साल 2011 में हमारे संघ द्वारा किये गए सर्वे में पाया था कि राज्य में चार लाख सड़क किनारे दुकान लगाने वाले दुकानदार हैं। यह लोग रोज कुआं खोदते हैं तब जा कर पानी पी पाते हैं। ऐसे में सरकार के तरफ से अभी तक फ़ुटपाथ व्यापारियों को राहत देने के लिए कोई दिशानिर्देश तय नहीं किया गयी है।'

इस सिलसिले में न्यूज़क्लिक के लिए हमने फेडरेशन ऑफ झारखंड चैम्बर ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष कुणाल अजमानी से बात की। राज्य के फ़ुटपाथ व्यपारियों के हालात पर उन्होंने कहा कि, 'सरकार को इस बात का ख़्याल रखना चाहिए कि राज्य सभी स्ट्रीट वेंडर्स तक राशन सामग्री पहुंचे और साथ ही साथ प्रत्येक स्ट्रीट हॉकर्स को पच्चीस हज़ार रुपये का ग्रांट देना चाहिए।'

जब हमने उनसे पूछा कि झारखंड चैम्बर ऑफ कॉमर्स ने फुटपाथ दुकानदारों को राहत पैकेज देने जैसी कोई बात झारखंड सरकार के सामने रखी है? इसके जवाब में उन्होंने कहा कि 'अभी तक झारखंड सरकार ने हमसे किसी भी तरह की बात नहीं की है।'

इस सिलसिले में हमने झारखंड उद्योग विभाग के निदेशक से भी सवाल किया मगर उन्होंने विभाग के सचिव से बात करने को कहा, लेकिन उद्योग विभाग के सचिव प्रवीण टोप्पो का कॉल ट्रांसफर होने की वजह से उनसे किसी तरह का संपर्क नहीं हो पाया।

Jharkhand
Jharkhand government
Coronavirus
Lockdown
Small Vendors
Small merchants
Poor People's
Hemant Soren

Related Stories

कोरोना अपडेट: देश में पिछले 24 घंटों में 2,745 नए मामले, 6 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: देश में आज फिर कोरोना के मामलों में क़रीब 27 फीसदी की बढ़ोतरी

कोरोना अपडेट: देश में कोरोना के घटते मामलों के बीच बढ़ रहा ओमिक्रॉन के सब स्ट्रेन BA.4, BA.5 का ख़तरा 

कोरोना अपडेट: देश में ओमिक्रॉन वैरिएंट के सब स्ट्रेन BA.4 और BA.5 का एक-एक मामला सामने आया

कोरोना अपडेट: देश में फिर से हो रही कोरोना के मामले बढ़ोतरी 

कोविड-19 महामारी स्वास्थ्य देखभाल के क्षेत्र में दुनिया का नज़रिया नहीं बदल पाई

कोरोना अपडेट: अभी नहीं चौथी लहर की संभावना, फिर भी सावधानी बरतने की ज़रूरत

कोरोना अपडेट: दुनियाभर के कई देशों में अब भी क़हर बरपा रहा कोरोना 

कोरोना अपडेट: देश में एक्टिव मामलों की संख्या 20 हज़ार के क़रीब पहुंची 

देश में कोरोना ने फिर पकड़ी रफ़्तार, PM मोदी आज मुख्यमंत्रियों संग लेंगे बैठक


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: अभी नहीं चौथी लहर की संभावना, फिर भी सावधानी बरतने की ज़रूरत
    14 May 2022
    देश में आज चौथे दिन भी कोरोना के 2,800 से ज़्यादा मामले सामने आए हैं। आईआईटी कानपूर के वरिष्ठ वैज्ञानिक प्रो. मणींद्र अग्रवाल कहा है कि फिलहाल देश में कोरोना की चौथी लहर आने की संभावना नहीं है।
  • afghanistan
    पीपल्स डिस्पैच
    भोजन की भारी क़िल्लत का सामना कर रहे दो करोड़ अफ़ग़ानी : आईपीसी
    14 May 2022
    आईपीसी की पड़ताल में कहा गया है, "लक्ष्य है कि मानवीय खाद्य सहायता 38% आबादी तक पहुंचाई जाये, लेकिन अब भी तक़रीबन दो करोड़ लोग उच्च स्तर की ज़बरदस्त खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहे हैं। यह संख्या देश…
  • mundka
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    मुंडका अग्निकांड : 27 लोगों की मौत, लेकिन सवाल यही इसका ज़िम्मेदार कौन?
    14 May 2022
    मुंडका स्थित इमारत में लगी आग तो बुझ गई है। लेकिन सवाल बरकरार है कि इन बढ़ती घटनाओं की ज़िम्मेदारी कब तय होगी? दिल्ली में बीते दिनों कई फैक्ट्रियों और कार्यस्थलों में आग लग रही है, जिसमें कई मज़दूरों ने…
  • राज कुमार
    ऑनलाइन सेवाओं में धोखाधड़ी से कैसे बचें?
    14 May 2022
    कंपनियां आपको लालच देती हैं और फंसाने की कोशिश करती हैं। उदाहरण के तौर पर कहेंगी कि आपके लिए ऑफर है, आपको कैशबैक मिलेगा, रेट बहुत कम बताए जाएंगे और आपको बार-बार फोन करके प्रेरित किया जाएगा और दबाव…
  • India ki Baat
    बुलडोज़र की राजनीति, ज्ञानवापी प्रकरण और राजद्रोह कानून
    13 May 2022
    न्यूज़क्लिक के नए प्रोग्राम इंडिया की बात के पहले एपिसोड में अभिसार शर्मा, भाषा सिंह और उर्मिलेश चर्चा कर रहे हैं बुलडोज़र की राजनीति, ज्ञानवापी प्रकरण और राजद्रोह कानून की। आखिर क्यों सरकार अड़ी हुई…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License