NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
चुनाव तो जीत गई, मगर क्या पिछले वादे निभाएगी भाजपा?
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव भले ही भाजपा ने जीत लिया हो लेकिन मुद्दे जस के तस खड़े हैं। ऐसे में भाजपा की नई सरकार के सामने लोकसभा 2024 के लिए तमाम चुनौतियां होने वाली हैं।
रवि शंकर दुबे
15 Mar 2022
yogi

403 विधानसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश के समीकरण भले ही भाजपा के हक में बने हों लेकिन मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद योगी आदित्यनाथ की मुश्किलें आसान होने वाली नहीं है। महज़ 2 सालों में ही लोकसभा के चुनाव होने हैं ऐसे में योगी आदित्यनाथ के सामने उन चुनौतियों पर काम करना बेहद अहम हो जाएगा जिसका असर विधानसभा चुनावों में कुछ खास देखने को नहीं मिला। कहने का तात्पर्य यह है कि प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए विपक्ष भी नहीं तैयारियों के साथ जुट चुका है। ऐसे में योगी आदित्यनाथ को 2024 के लिए जो रास्ता बनाना है, वो उत्तर प्रदेश में बहुत सी चुनौतियों को पार पाने के बाद ही हो सकता है।

चुनौती नंबर 1 : आवारा पशुओं की समस्या

विधानसभा चुनावों में आवारा पशुओं के कारण बढ़ती किसानों की बदहाली का मुद्दा खूब गूंजा, हर रैली, हर सभा में विपक्षियों ने खूब सवाल खड़े किए। लेकिन यह मुद्दे शायद मतदान तक नहीं पहुँच पाये और बीजेपी ने फिर से सत्ता में वापसी कर ली। अगर बारीकी से समझें तो उत्तर प्रदेश के किसानों को आवारा पशु दोतरफा नुकसान पहुंचाते हैं, एक तो खेतों में घुसकर फसलों को तबाह करते हैं, वहीं दूसरा नुकसान आर्थिक और सुरक्षा के दृष्टिकोण से है। खेतों को इन आवारा पशुओं से बचाने के लिए किसानों को तारबंदी करानी पड़ती है, जिसके लिए पैसा खर्च होता है। आवारा पशुओं से अपने खेत को बचाने के लिए कटीले तार लगवाने पड़ते हैं। अनुमान के मुताबिक एक बीघे खेत की तारबंदी कराने में किसानों पर काफी आ जाता है। इसमें तकरीबन 16 हजार रुपये का खर्च आता है। 'दूसरी पशुधन जनगणना-2019 अखिल भारतीय रिपोर्ट' के आंकड़ों से पता चलता है कि उत्तर प्रदेश में आवारा पशुओं की संख्या बढ़ी है। जहां पूरे देश में 2012 से 2019 तक देश में आवारा पशुओं की कुल संख्या में 3.2 प्रतिशत की कमी आई है, वहीं इस दौरान उत्तर प्रदेश में उनकी आबादी में 17.34 प्रतिशत की भारी बढ़ोतरी दर्ज की गई है। 2019 के पशुगणना के आंकड़ों के अनुसार, राज्य में 11.8 लाख से ज्यादा आवारा मवेशी थे। ख़ैर... योगी आदित्यनाथ को 2024 लोकसभा में जीत के लिए इस समस्या का समाधान करना ही होगा।

चुनौती नंबर 2 : ठाकुरवाद में फंसे हैं योगी आदित्यनाथ

भारतीय जनता पार्टी भले ही विपक्षियों पर परिवारवाद और जातिवाद का आरोप लगाती रही हो, लेकिन सच में भाजपा खुद घोर जातिवाद से घिरी हुई पार्टी है। जिसका सबसे बड़ा उदाहरण खुद योगी आदित्यनाथ ही हैं। आदित्यनाथ का पूरा नाम अजय कुमार बिष्ट है। योगी ठाकुर समाज से आते हैं। ऐसे में उनपर अक्सर ठाकुरों को ज्यादा बढ़ावा देने का आरोप लगता रहा है। प्रदेश का ब्राह्मण समाज अक्सर भाजपा से नाराज़ रहा है कि उन्हें दरकिनार कर ठाकुरों को ज्यादा तवज्जो दी जाती है। ये बात तब खुलकर सामने आ गई थी जब कानपुर देहात के माफिया विकास दुबे का एनकाउंटर किया गया था। इसके बाद तमाम ब्राह्मण संगठनों ने योगी आदित्यनाथ के खिलाफ मोर्चा खोल दिया और खुद को दबा-कुचला बताने लगे। कई ब्राह्मण संगठनों ने तो योगी आदित्यनाथ को सत्ता से हटाने तक की बात कह डाली थी। ब्राह्मणों को भाजपा से रूठा हुआ देख विपक्षी पार्टियों मे खूब ब्राह्मण सम्मेलन किए और उन्हें अपने समीकरण में फिट करने की कोशिश की। ‘हिन्दुस्तान टाइम्स’ के साथ एक इंटरव्यूह में योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि उन्हें क्षत्रिय होने पर गर्व है।'जब आपसे ये कहा जाता है कि आप सिर्फ राजपूतों की राजनीति करते हैं, तो क्या आपको दुख होता है? सीएम योगी ने इस सवाल के जवाब में कहा कि नहीं... उन्हें कोई दुख नहीं होता है। क्षत्रिय जाति में पैदा होना कोई अपराध नहीं है'। हालांकि, इसके बाद सीएम योगी यह सफाई भी देते है कि उन्होंने जाति के आधार पर सरकार में कोई भेद-भाव नहीं किया। सरकार की योजनाओं का लाभ हर धर्म और जाति के लोगों को बराबर मिला है। सीएम आगे पूछते हैं कि विपक्ष ये बताए कि गरीबों के लिए बनाए गए 43 लाख घरों में से कितने राजपूतों को मिले हैं? ख़ैर... कुछ भी हो लेकिन सच्चाई तो सामने आ ही जाती है। और हाल-फिलहाल योगी इसी सच्चाई से बचने की पूरी कोशिश कर रहे हैं।

चुनौती नंबर 3 : रोज़गार देने के मामले में फिसड्डी साबित हुई बीजेपी

चुनाव के दौरान विपक्ष ने युवा मतदाताओं को लुभाने के लिए बेरोजगारी के मुद्दे को जोर-शोर से उठाया था। विपक्ष का दावा था कि उत्‍तर प्रदेश का रोजगार दर पिछले पांच वर्षों में नीचे की ओर गई है। योगी के समक्ष दूसरी पारी में उत्‍तर प्रदेश में रोजगार पैदा करना एक बड़ी चुनौती होगी। सरकारी नौकरी के साथ-साथ कोरोना काल में लोगों के लिए नए मौके और रोजगार के अवसर पैदा करना योगी के लाए किसी चुनौती से कम नहीं होगा। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी यानी CMIE की रिपोर्ट्स के मुताबिक यूपी में रहने वाले उन लोगों की तादाद में 14 फीसदी इजाफा हुआ है, जिन्हें रोजगार की चाहत है. पांच साल पहले ये तादाद 14.95 करोड़ थी, जो बढ़कर 17.07 करोड़ पहुंच गई है। वहीं नौकरी कर रहे लोगों की तादाद 16 लाख से ज्यादा घट गई है, सीधे शब्दों में बताया जाए तो यूपी में लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट यानी LFPR और रोजगार दर पिछले पांच वर्षों में तेजी से गिरी है। इन रिपोर्ट्स की सच्चाई से दूर योगी आदित्यनाथ पूरे पांच साल अपनी सरकार की पीठ थपथपाते रहे। योगी आदित्यनाथ ने लगातार कहा कि उन्होंने 5 लाख नौकरियों का वादा किया था जिसमें से 4.5 लाख नौकरियां दी भी गई हैं। हालांकि योगी सरकार की ये बातें आंकडों और रिपोर्ट्स से कहीं दूर हैं।

चुनौती नंबर 4 : किसानों के मुद्दे बेहद ज़रूरी

एक साल से ज्यादा चला किसानों का आंदोलन भला कौन भूल सकता है, जब वे अपने-खलिहाल और परिवार छोड़कर अपने हक के लिए खुले आसमान में रातें गुज़ारने को मजबूर थे, हालांकि मोदी सरकार ने बाद में तीनों काले कानून वापस लेने का फैसला किया। जिसके बाद कई सवालों ने जन्म लिया, कि जब ये कानून वापस ही लेने थे, सरकार को पता था कि गलत हैं तो इसे लागू क्यों किया गया। दूसरा चुनाव जीतने के लिए मोदी सरकार कुछ भी कर सकती है यही कारण है कि ये कानून वापस लिए गए। लेकिन जब तक ये कानून वापस लिए गए तब तक करीब 750 किसानों की मौत हो चुकी थी। जिसका मर्म किसानों के दिलों में आज भी जिंदा है। हालांकि सरकार की कानून वापसी वाली बात में फंसकर किसानों ने एक बार फिर भाजपा पर विश्वास जताया और यूपी में सरकार वापस आ गई। अब 2024 में लोकसभा चुनाव होने हैं, ऐसे में हर कोई ये बात बखूबी जानता है कि देश की सत्ता की चाबी यूपी में ही है। आगामी 2 सालों के भीतर किसानों के मुद्दों का समाधान करना बेहद जरूरी होगा। गन्ना किसान के नाम पर जो सियासत गरमाई उसको दरकिनार कर योगी ने दोबारा सरकार तो बना ली, मगर इसके बावजूद 2024 की चुनौती से पार पाने के लिए योगी के फैसले पर सभी किसानों की निगाहें टिकी होंगी। यूपी में किसानों के लिए बिजली और पानी का मुद्दा भी बड़ा होगा।

चुनौती नंबर 5 : पुरानी पेंशन करनी होगी बहाल

उत्तर प्रदेश के चुनाव में पेंशन स्कीम और उससे नाराज कर्मचारियों का मुद्दा काफी हावी रहा। सपा प्रमुख अखिलेश यादव और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने कर्मचारियों को ओल्ड पेंशन स्कीम लागू करने की बात कही। इसका चुनाव में असर भी दिखा था। पोस्टल बैलेट पेपर में बीजेपी को हार और सपा को जीत मिली है, जिससे साफ तौर पर समझा जा सकता है कि सरकारी कर्मचारियों के लिए यह मुद्दा कितना अहम रहा। वहीं दूसरी ओर राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार और छत्तीसगढ़ की भूपेश बघेल सरकार ने ओल्ड पेंशन स्कीम लागू करने का ऐलान कर अन्य प्रदेशों पर दबाव डाल दिया। ऐसे में यूपी में सरकारी कर्मचारियों का प्रेशर योगी सरकार पर बढ़ गया। योगी सरकार पुरानी पेंशन स्कीम को बहाल करने की दिशा में क्या कदम उठाती है।

भाजपा को केंद्र में वापसी के लिए उत्तर प्रदेश से ही रास्ता चाहिए, ऐसे में योगी आदित्यनाथ की सरकार पर ज्यादा दबाव होगा। इसके लिए मंत्रीमंडल में तेज़-तर्रार और बेबाकी से फैसला लेने वाले नेताओं का चुनाव भी चुनौती होगी। देखना ये भी दिलचस्प होगा कि केशव प्रसाद मौर्य के चुनाव हारने का उन्हें क्या हर्जाना भुगतना पड़ता है और उन्हें क्या जगह मिलती है। हालांकि कांग्रेस से भाजपा में आईं रायबरेली की अदिति सिंह को मंत्रीमंडल में जगह मिल सकती है इसके अलावा सुरेश खन्ना, बेबी रानी मौर्य, श्रीकांत शर्मा, बृजेश पाठक, सतीश महाना, सिद्धार्थ नाथ सिंह, सूर्य प्रताप शाही, आशुतोष टंडन, अनुराग सिंह, असीम अरुण, राजेश्वर सिंह, आशीष पटेल, नंदकुमार नंदी और नितिन अग्रवाल का नाम भी मंत्रीमंडल के लिए सुर्खियों में बना हुआ है।

योगी आदित्यनाथ सरकार 2.0 जनता से किए वादों पर कितना खरा उतरती है, या फिर गंभीर चुनौतियों से कैसे निपटती है ये कहीं हद तक मंत्रिमंडल पर ही निर्भर करेगा।

(लेख में व्यक्त विचार निजी हैं।)

UttarPradesh
UP Assembly Elections 2022
UP Polls 2022
Yogi Adityanath
yogi government
BJP

Related Stories

बदायूं : मुस्लिम युवक के टॉर्चर को लेकर यूपी पुलिस पर फिर उठे सवाल

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 

बॉलीवुड को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है बीजेपी !


बाकी खबरें

  • संदीपन तालुकदार
    वैज्ञानिकों ने कहा- धरती के 44% हिस्से को बायोडायवर्सिटी और इकोसिस्टम के की सुरक्षा के लिए संरक्षण की आवश्यकता है
    04 Jun 2022
    यह अध्ययन अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि दुनिया भर की सरकारें जैव विविधता संरक्षण के लिए अपने  लक्ष्य निर्धारित करना शुरू कर चुकी हैं, जो विशेषज्ञों को लगता है कि अगले दशक के लिए एजेंडा बनाएगा।
  • सोनिया यादव
    हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?
    04 Jun 2022
    17 साल की नाबालिग़ से कथित गैंगरेप का मामला हाई-प्रोफ़ाइल होने की वजह से प्रदेश में एक राजनीतिक विवाद का कारण बन गया है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    छत्तीसगढ़ : दो सूत्रीय मांगों को लेकर बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दिया
    04 Jun 2022
    राज्य में बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दे दिया है। दो दिन पहले इन कर्मियों के महासंघ की ओर से मांग न मानने पर सामूहिक इस्तीफ़े का ऐलान किया गया था।
  • bulldozer politics
    न्यूज़क्लिक टीम
    वे डरते हैं...तमाम गोला-बारूद पुलिस-फ़ौज और बुलडोज़र के बावजूद!
    04 Jun 2022
    बुलडोज़र क्या है? सत्ता का यंत्र… ताक़त का नशा, जो कुचल देता है ग़रीबों के आशियाने... और यह कोई यह ऐरा-गैरा बुलडोज़र नहीं यह हिंदुत्व फ़ासीवादी बुलडोज़र है, इस्लामोफ़ोबिया के मंत्र से यह चलता है……
  • आज का कार्टून
    कार्टून क्लिक: उनकी ‘शाखा’, उनके ‘पौधे’
    04 Jun 2022
    यूं तो आरएसएस पौधे नहीं ‘शाखा’ लगाता है, लेकिन उसके छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने एक करोड़ पौधे लगाने का ऐलान किया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License