NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
कमलेश की तरह फिर न लौटाया जाए किसी बेटे का शव, ये तय करे सरकार
उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल के रहने वाले कमलेश की मौत हार्ट अटैक से दुबई में हो गई थी। वहां से इस प्रमाण पत्र के साथ कि कमलेश कोरोना संक्रमित नहीं थे, उनका शव भारत आया तब भी यहां अधिकारियों ने उसे लेने से इनकार कर दिया और शव को वापस भेज दिया।
वर्षा सिंह
27 Apr 2020
उत्तराखंड

अबू धाबी से कमलेश भट्ट का शव 25-26 अप्रैल की दरमियानी रात दोबारा दिल्ली एयरपोर्ट पहुंचा। कोरोना के संकटग्रस्त समय में यूएई में लॉकडाउन के दौरान बड़ी मुश्किल से यही ताबूत 23 अप्रैल को भी दिल्ली एयरपोर्ट पहुंचा था। समूचे दस्तावेजों, डेट सर्टिफिकेट, पोस्टमार्टम रिपोर्ट के साथ आबू धाबी से भारतीय दूतावास ने शव दिल्ली भिजवाया था लेकिन तब कई फोन घुमाने के बाद एयरपोर्ट अधिकारियों ने शव लेने से इंकार कर दिया और उसी विमान से ताबूत आबू धाबी लौटा दिया। आपको बता दें कि उसके मृत्यु प्रमाणपत्र में लिखा है कि वह कोरोना से संक्रमित नहीं था।

उसके साथ दो और शव वतन से वापस भेज दिए गए। कमलेश की मौत 17 अप्रैल को हुई थी। टिहरी से शव लेने के लिए विशेष पास बनवाकर दिल्ली पहुंचे उसके दो भाइयों के होश फाख्ता हो गए, ये क्या क्रूर मज़ाक था, जो अभी-अभी उनके भाई के शव के साथ हुआ।

भारतीय दूतावास का सर्टिफिकेट.jpeg

मामूली वेतन के लिए विदेश जाने को मजबूर युवा

टिहरी के धनौल्टी तहसील के सकलाना पट्टी के सेमवाल गांव का रहने वाला 24 साल का कमलेश अपने परिवार का इकलौता कमाऊ सदस्य था। माता-पिता पढ़े-लिखे नहीं हैं। आर्थिक स्थिति कमज़ोर है। छोटा भाई पढ़ाई कर रहा है। दो बहनों की शादी हो चुकी है। घर की सारी ज़िम्मेदारी अपने कंधों पर लेकर वो दुबई के होटल में नौकरी करने चला गया। दुबई में मात्र 25-26 हजार के वेतन के लिए घर छोड़ने वाले कमलेश को अगर यहीं रोजगार मिला होता तो वो इतनी दूर क्यों जाता।

उस रोज भी ऋषिकेश के पूर्णानंद घाट पर पहाड़ के इस युवा के अंतिम संस्कार की पूरी तैयारियां थीं। लेकिन शव नहीं पहुंचा। आज सुबह इसी घाट पर दोबारा अंतिम रस्मों को पूरा किया गया। आपको बता दें कि कमलेश का शव दोबारा दुबई से भारत आ गया था। इस समय हर तरफ कोरोना से मौत की आहटें सुनायी दे रही हैं, कमलेश की मौत हार्ट अटैक से हुई, पोस्टमार्टम रिपोर्ट इसकी तस्दीक करती है।

ये ज़ख़्मों पर नमक छिड़कने जैसा था, बेहद अमानवीय

उनके चचेरे भाई विमलेश भट्ट बताते हैं कि अबू धाबी में समाजसेवी रोशन रतूड़ी ने सभी कागजात तैयार कराकर, भारतीय दूतावास से बात करने के बाद शव दिल्ली भिजवाया था। हम शव लाने के लिए देररात एयरपोर्ट पहुंच गए थे। करीब डेढ़ घंटा वहां इंतज़ार किया। किन्हीं वजहों से भारत सरकार शव उतारने की अनुमति नहीं दे रही थी।

शायद रात का समय था और गृह मंत्रालय, विदेश मंत्रालय से क्लीयरेंस मिलने में दिक्कत आ रही थी। हमें ये समझ आ रहा था कि विभागों में आपसी तालमेल नहीं था और अधिकारियों ने हमारे सामने ही हमारे भाई का शव वापस भेज दिया। वह कहते हैं कि ये जख्मों पर नमक छिड़कने जैसा था। बेहद अमानवीय। एक बेटे का शव बड़ी मुश्किल से वतन पहुंचे और दोबारा लौटा दिया जाए। कमलेश के साथ ही पंजाब के दो युवाओं संजीव कुमार और जगसीर सिंह के शव भी वापस लौटा दिए गए।

दिल्ली हाईकोर्ट में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से सुनवाई

इसके बाद, विमलेश भट्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका डाली। 25 अप्रैल को हाईकोर्ट ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से सुनवाई करते हुए सरकार को मामले में दखल देने को कहा। अदालत में ये भी कहा गया कि ये अपनी तरह का अनोखा मामला है, गृह मंत्रालय और स्वास्थ्य तथा परिवार कल्याण मंत्रालय स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रॉसिजर तैयार कर रहे हैं ताकि भविष्य में इस तरह की दिक्कत सामने न आए।

कहां खोई है उत्तराखंड की सरकार?

ये मामला सोशल मीडिया पर आ गया। उत्तराखंड सरकार की ओर से कोई हरकत न देख राज्य के लोगों की नाराजगी बढ़ चली। इससे पहले गुजरात के लोगों को हरिद्वार से गुजरात छोड़ने लेकिन उत्तराखंडी लोगों को वापस न आने पर पहले ही राज्य सरकार को लोगों का गुस्सा झेलना पड़ा था।

उत्तर प्रदेश में योगी सरकार ने अन्य राज्यों में फंसे अपने छात्रों को बसों के ज़रिये वापस बुलाया तो फिर त्रिवेंद्र सरकार पर सवाल उठे कि वो अपने राज्य के लोगों को वापस लाने के लिए क्या इंतज़ाम कर रही है? पहाड़ के बेटे का शव दुबई से दिल्ली आकर वापस लौट गया और त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार पर कोई फर्क ही नहीं पड़ा। ये बात लोगों को नागवार गुजर रही है।

केरल से सीखो मुख्यमंत्री जी!

ठीक इसी समय केरल की सरकार खाड़ी देशों में मरने वाले केरल के लोगों के शव लाने के प्रयास कर रही है। अनुमान के मुताबिक करीब 150 लोगों के शव वहां फंसे हुए हैं और कार्गो एयरलाइन्स से शवों को भारत लाने के लिए जरूरी प्रयास किया जा रहा है। ये वो लोग हैं जिनकी मौत कोविड-19 से नहीं हुई है। लेकिन ऐसे समय में उत्तराखंड की डबल इंजन वाली सरकार की ख़ामोशी अखरती है।

क्या राज्य के मुखिया को इस मामले में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए था? एक गरीब परिवार अपने बूते अपने बेटे का शव लाने के लिए संघर्ष कर रहा है। वोट लेने के लिए घर-घर पहुंचने वाले नेताओं की ये अनदेखी आपराधिक लग रही थी।

यूएई में भारतीय राजदूत पवन कपूर ने भी शव लौटाए जाने पर कड़ी प्रतिक्रिया दी और कहा कि ये चौंकाने वाला था। शव भेजने से संबंधित सभी औपचारिकताएं पूरी की जा चुकी थीं। कोरोना संक्रमित लोगों के शव वापस नहीं भेजे जा रहे हैं और कमलेश की मौत कोरोना से नहीं हुई थी।

एक गरीब मां-बाप के बेटे का शव बड़ी मशक्कत के बाद अपने पहाड़ों में वापस लाया जा सका। दिल्ली एयरपोर्ट पर जो कुछ भी हुआ उसके साथ ही उत्तराखंड सरकार की निष्क्रियता भी लोगों को नाराज कर रही है, लेकिन फिर वोट की बात आती है तो लोग क्या फैसला करते हैं। विमलेश भट्ट कहते हैं कि हमारा भाई तो चला गया, हम ये चाहते हैं कि ऐसा दोबारा किसी और के साथ न हो, ये सुनिश्चित किया जाए।

Indian government
Dubai
Embassy of India
Uttrakhand
modi sarkar
Kerala
uttrakhand government
Yogi Adityanath
UttarPradesh
Trivendra Singh Rawat

Related Stories

बदायूं : मुस्लिम युवक के टॉर्चर को लेकर यूपी पुलिस पर फिर उठे सवाल

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

उत्तर प्रदेश: "सरकार हमें नियुक्ति दे या मुक्ति दे"  इच्छामृत्यु की माँग करते हजारों बेरोजगार युवा

यूपी में  पुरानी पेंशन बहाली व अन्य मांगों को लेकर राज्य कर्मचारियों का प्रदर्शन

UPSI भर्ती: 15-15 लाख में दरोगा बनने की स्कीम का ऐसे हो गया पर्दाफ़ाश

क्या वाकई 'यूपी पुलिस दबिश देने नहीं, बल्कि दबंगई दिखाने जाती है'?

कोरोना अपडेट: केरल, महाराष्ट्र और दिल्ली में फिर से बढ़ रहा कोरोना का ख़तरा

बच्चों को कौन बता रहा है दलित और सवर्ण में अंतर?

मलियाना नरसंहार के 35 साल, क्या मिल पाया पीड़ितों को इंसाफ?

यूपी: बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था के बीच करोड़ों की दवाएं बेकार, कौन है ज़िम्मेदार?


बाकी खबरें

  • डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
    तिरछी नज़र: ये कहां आ गए हम! यूं ही सिर फिराते फिराते
    29 May 2022
    उधर अमरीका में और इधर भारत में भी ऐसी घटनाएं होने का और बार बार होने का कारण एक ही है। वही कि लोगों का सिर फिरा दिया गया है। सिर फिरा दिया जाता है और फिर एक रंग, एक वर्ण या एक धर्म अपने को दूसरे से…
  • प्रेम कुमार
    बच्चे नहीं, शिक्षकों का मूल्यांकन करें तो पता चलेगा शिक्षा का स्तर
    29 May 2022
    शिक्षाविदों का यह भी मानना है कि आज शिक्षक और छात्र दोनों दबाव में हैं। दोनों पर पढ़ाने और पढ़ने का दबाव है। ऐसे में ज्ञान हासिल करने का मूल लक्ष्य भटकता नज़र आ रहा है और केवल अंक जुटाने की होड़ दिख…
  • राज कुमार
    कैसे पता लगाएं वेबसाइट भरोसेमंद है या फ़र्ज़ी?
    29 May 2022
    आप दिनभर अलग-अलग ज़रूरतों के लिए अनेक वेबसाइट पर जाते होंगे। ऐसे में सवाल उठता है कि कैसे पता लगाएं कि वेबसाइट भरोसेमंद है या नहीं। यहां हम आपको कुछ तरीके बता रहें हैं जो इस मामले में आपकी मदद कर…
  • सोनिया यादव
    फ़िल्म: एक भारतीयता की पहचान वाले तथाकथित पैमानों पर ज़रूरी सवाल उठाती 'अनेक' 
    29 May 2022
    डायरेक्टर अनुभव सिन्हा और एक्टर आयुष्मान खुराना की लेटेस्ट फिल्म अनेक आज की राजनीति पर सवाल करने के साथ ही नॉर्थ ईस्ट क्षेत्र के राजनीतिक संघर्ष और भारतीय होने के बावजूद ‘’भारतीय नहीं होने’’ के संकट…
  • राजेश कुमार
    किताब: यह कविता को बचाने का वक़्त है
    29 May 2022
    अजय सिंह की सारी कविताएं एक अलग मिज़ाज की हैं। फॉर्म से लेकर कंटेंट के स्तर पर कविता की पारंपरिक ज़मीन को जगह–जगह तोड़ती नज़र आती हैं।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License