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भारत
राजनीति
दर-दर भटकते बनारस के शहीद के माता-पिता, योगी-मोदी सरकार ने नहीं पूरे किए वादे
सर्जिकल स्ट्राइक में अपनी बहादुरी का परचम लहराने वाले इस सार्जेंट का एमआई-17 हेलीकॉप्टर करीब ढाई साल पहले जम्मू के बडगाम में क्रैश हो गया था।
विजय विनीत
02 Sep 2021
Vishal Kumar Pandey

कोई ढाई बरस पहले वायुसेना के जांबाज सार्जेंट विशाल कुमार पांडेय का शव जब बनारस पहुंचा तो हर आंख नम थी। उस ग़मज़दा माहौल में ही मोदी सरकार और उनके दूतों ने पीड़ित परिवार को ढांढस बंधाते हुए वादों की झड़ी लगा दी थी, मगर सारे वादे कोरे साबित हुए। कभी केंद्र सरकार की अनदेखी, तो कभी राज्य सरकार की उपेक्षा के चलते बनारस के शहीद को पहचान नहीं मिल सकी। विशाल की शहादत और उनके परिवार की उपेक्षा उस सरकार के दौर में हो रही है जो देशभक्ति की सिंपैथी बटोरकर ही सत्ता में आती रही है।  

उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले के काशीपुर कुरहुआ गांव के विशाल कुमार पांडेय जम्मू-कश्मीर में तैनात थे। इनका परिवार शहर के हुकुलगंज मुहल्ले में रहता है। 26 फरवरी 2019 को पाकिस्तान पर हुई सर्जिकल स्ट्राइक में विशाल ने अपनी बहादुरी का परचम तो लहराया, लेकिन अगले दिन 27 फरवरी को जम्मू के बडगाम जिले में हेलीकॉप्टर एमआई-17 क्रैश होने की  वजह से शहीद हो गए। सीमा पर बहादुरी का झंडा बुलंद करने वाले इस जांबाज की शहादत पर बनारस का हर शख्स सन्न था। सबकी आंखों में आंसू थे। विशाल की मां विमला और पिता विजय शंकर पांडेय की आंखों के आंसू आज तक नहीं सूख पाएं हैं। चाचा ओमप्रकाश और धर्मेंद्र, बहन सावित्री की की आंखें रोते-रोते पथरा गईं हैं। 

शहीद के पिता विजय शंकर पांडेय ने "न्यूज क्लिक" से योगी सरकार के खिलाफ सख्त लहजे में कहा, "पीएम नरेंद्र मोदी का दूत बनकर आए भाजपा सरकार के मंत्रियों और आला अफसरों ने उस वक़्त जो भी वादे किए, उनमें से कोई पूरा नहीं हुआ। यूपी के काबीना मंत्री अनिल राजभर, राज्यमंत्री डा. नीलकंठ तिवारी और रविंद्र जायसवाल के कोरे आश्वासन आज भी हमें बेचैन करते हैं। शोक संवेदना व्यक्त करने हमारे घर आए इन मंत्रियों ने मोदी का नाम लेकर कहा था कि प्रधानमंत्री चाहते हैं कि बनारस के गिरजा देवी संकुल के पास शहीद की प्रतिमा लगाई जाए और स्मारक बनवाया जाए। वादा करने के बाद तीनों मंत्री गए तो कभी लौटे ही नहीं। हमारे साथ मुहल्ले भर के लोग इंतजार में बैठे हैं कि चुनाव के समय ही सही, शायद भाजपा नेताओं को शहीद विशाल याद आ जाएं।"  

सार्जेंट विशाल की तैनाती पहले राष्ट्रपति की सुरक्षा बेड़े में हुई थी। बनारस का हर शख्स उनके पराक्रम से वाकिफ था। हेलिकॉप्टर क्रैश की घटना के बाद योगी सरकार का प्रतिनिधि बनकर घर आए उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने भी लंबे-चौड़े वादे किए। हुकुलगंज आवास पर उन्होंने लोक निर्माण विभाग के आला अफसरों को बुलाया और अतिक्रमण हटाते हुए मार्ग को चौड़ा करने की घोषणा कर डाली। वह घर तक जाने वाली सड़क को शहीद का नाम देने का वादा भी कर गए। हुकुलगंज के लोग कहते हैं, "बदहाल ही सही, गनीमत है कि शहीद के घर तक सड़क तो है। तीस महीने गुजर जाने के बावजूद आज तक अतिक्रमण तक नहीं हट सका तो भविष्य में क्या हट पाएगा।”

किसे कोसें, खुद को या सरकार को?

शहीद के पिता विजय शंकर कहते हैं, ''वादों के पूरा न हो पाने की वजह से हमें मुहल्ले वालों से मुंह चुराना पड़ता है। गली से आते-जाते लोग हमसे सवाल करते हैं कि सरकार के वादों का क्या हुआ, तब हमें बहुत शर्म आती है? आखिर हम क्या जवाब दें? किसको कोसें, खुद को या फिर सरकार को?''

विशाल के माता-पिता की उम्र करीब 60 साल है। पिता विजय शंकर तभी से बेरोजगार हैं जब बेटा शहीद हुआ था। इनकी जिंदगी में दोनों झंझावत एक साथ आए थे। इनके पास जीने का कोई सहारा नहीं है। वायुसेना और भारत सरकार दोनों ने इनकी घोर उपेक्षा की है। किसी ने इन्हें फूटी कौड़ी तक नहीं दी। शहीद के छोटे भाई आकाश और बहन वैष्णवी की शादी बाकी है। शहादत के बाद सांत्वना देने आए सत्तारूढ़ दल के नेताओं ने सरकार की ओर से घोषित पैकेज में से माता-पिता की आजीविका के लिए बड़े-बड़े वादे किए थे। उस समय लगा था कि बेटा देश के काम आ गया तो सरकार उनकी खोज-खबर जरूर लेगी। कुछ दिन गुजरते ही उम्मीद की लौ बुझ गई। विशाल का भाई आकाश कहता है, "11 नवंबर 2020 को यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने ट्विटर हैंडल पर ऐलान किया था कि खनांव टिकरी मार्ग से कुरहुआ काशीपुर होते हुए तारापुर तक की सड़क को शहीद विशाल का नाम दिया जाएगा। इस बाबत विधिवत पोस्टर भी जारी किए गए, लेकिन मुख्यमंत्री का वो घोषणा भी मूर्त रूप नहीं ले सकी।''

कोरे ही रह गए वादे

वाराणसी जिले के खनाव टिकरी मार्ग से जाएंगे तो एक सड़क खेत खलिहानों से गुजरती हुई तारापुर से होकर कुरहुआ वाया काशीपुर तक पहुंचती है। यह सड़क ऐसे गांव से रूबरू कराती है जहां ज्यादातर लोग खेती करते हैं। हरे-भरे खेत मनोहारी तस्वीर प्रस्तुत करते हैं। इसी सड़क को शहीद सार्जेंट विशाल कुमार पांडेय नाम दिया जाना था। खनाव टिकरी मार्ग से कुरहुआ होते हुए काशीपुर का फासला करीब दो किमी है। इसके आगे शहीद विशाल कुमार पांडेय के मकान तक सीसी रोड और केसी ड्रेन के साथ इंटरलाकिंग का कार्य कराया जाना था। लोनिवि के वाराणसी क्षेत्र के मुख्य अभियंता जेपी पांडेय ने 2 मार्च 2019 को ही 43.99 लाख का आगणन तैयार करा लिया था। कुछ रोज गुजरते ही शहीद के नाम बनने वाली सड़क के इस्टीमेट के पन्ने फाइलों के ढेर में दफन हो गए। योगी सरकार ने कुरहुआ में शहीद स्मारक बनाने का भी वादा किया था, लेकिन वह भी हवा-हवाई साबित हो गया। 

बचपन के दिनों में विशाल कुमार पांडेय कुरहुआ गांव के एक निजी स्कूल नव जागरण विद्यालय में पढ़ते थे। जिस स्थान पर स्कूल था, उसे तोड़कर अब गरीबों के लिए प्रधानमंत्री आवास बनवाया जा रहा है। उधर, खंडहर होकर जमींदोज हो चुके अपने पुश्तैनी मकान को दिखाते हुए शहीद की मां विमला पांडेय रो पड़ीं। वे योगी सरकार के रुख से काफी निराश और दुखी नजर आईं और कहा, "कुरहुआ गांव में घर के नाम पर सिर्फ ईंट की बाउंड्री भर है। मकान तो न जाने कब का ढह चुका है। सरकारी वादों को पूरा कराने के लिए पिछले ढाई साल से खतो-खिताबत किया जा रहा है। गाहे-बगाहे हम मंत्रियों के घरों पर चक्कर भी लगा आते हैं, लेकिन कोई सुनता ही नहीं। यह बहुत तक़लीफ़ देने वाली बात है।''

वायुसेना के सार्जेंट विशाल पांडेय का विवाह बीएचयू के कृषि विज्ञान संस्थान में कार्यरत रवि कुमार पांडेय की बेटी माधवी से हुआ था। बड़ी बहन वर्णिता की शादी हो चुकी है, जबकि छोटे भाई आकाश और छोटी बहन वैष्णवी अविवाहित हैं। परिजनों के मुताबिक विशाल अपने काम में इतने कुशल थे कि छुट्टी पर आते, तब भी उनके सहकर्मियों का फोन किसी न किसी काम से आता रहता था। पिता विजय शंकर ने सीमित संसाधनों में अपने बच्चों की परवरिश की और उनकी पढ़ाई में किसी तरह की कमी नहीं आने दी। वह विशाल पर हमेशा गर्व महसूस करते थे।  

कलह से मुहाल हो गई जिंदगी

शहीद परिवार को सरकार से तो शिकायत है ही, समाज से भी है। मां विमला पांडेय बात करते हुए फफक-फफककर रोने लगीं। अपना दुखड़ा सुनाते हुए कहा, "अब हमें कोई नहीं पूछता। बेटे की शहादत के बाद विशाल की पत्नी माधवी की लखनऊ स्थित सैनिक कल्याण बोर्ड में नौकरी लग गई। मुआवजा और पेंशन लेकर चली गई। साथ में पोता-पोती विशेष पांडेय और धरा पांडेय को भी ले गई। अपनी अलग दुनिया बसा ली और दोबारा कभी लौटी ही नहीं। बहू ने यह तक जानने की कोशिश नहीं की कि जिस मां-बाप ने विशाल को जन्म दिया, उनकी आजीविका आखिर कैसे चलेगी?बदहाल ज़िंदगी काटेंगे तो हम काटेंगे, सरकार को थोड़े ही पता है। वायुसेना के जिस कमांड में बेटा विशाल नौकरी करता था, वहां भी चिट्ठियां भेजी गईं। वायुसेना के किसी अधिकारी ने भी आकर नहीं पूछा कि तुम लोग कैसी हो? कोई सरकारी नुमाइंदा दुख-सुख पूछने कभी नहीं आता। बस हम और पति दौड़ते रहते हैं। हम आए दिन सरकारी अफसरों की देहरी पर गुहार दर गुहार लगाते रहते हैं।"

विमला यह भी बताती हैं, "हमारे बड़े बेटे विकास कुमार पांडेय की पत्नी प्रियंका पांडेय और विशाल पांडेय की पत्नी माधवी सगी बहनें हैं। विकास दवा बनाने वाली एक मल्टीनेशनल कंपनी में प्रबंधक हैं। अच्छी खासी तनख्वाह भी है। बड़ा बेटा पहले कुछ रुपये भेज देता था तो घर का खर्च चल जाया करता था। ससुराल वालों के दबाव में उसने भी हमसे संबंध तोड़ लिया। आकाश और वैष्णवी के पास भी उनके फोन नहीं आते।"  

कौन करेगा मां-बाप की परवरिश? 

शहीद विशाल के पिता विजय शंकर पांडेय कुछ साल पहले तक बनारस के सिगरा स्थित साजन सिनेमा में प्रबंधक थे। सिनेमा हॉल बंद हुआ तो उनकी किस्मत पर भी ताला लग गया। तभी से वह बेरोजगार हैं। बड़ा बेटा, उसकी पत्नी-साली सबने मुंह मोड़ लिया है। बेटे की शहादत के बाद पत्नी माधवी को नौकरी मिल गई। साथ ही वायुसेना की पेंशन भी मिल रही है। सेना के अधिकारी पिछले ढाई सालों में यह भी नहीं बता सके कि पेंशन और मुआवजे की राशि पर मां-बाप का कोई हक होता भी है अथवा नहीं? बूढ़े मां-बाप की परवरिश आखिर कौन करेगा?

विजय शंकर के पास खेती के लिए जमीन तक नहीं है। वह कहते हैं, "परिवार में बेटे ही हमारे लिए मज़बूत सहारा थे। कितना बड़ा दुःख है कि एक पिता को अपने बेटे को कंधा देना पड़े। उस वक़्त तो सबने कहा हम आपके साथ हैं, मगर अब कोई नहीं पूछता।"

परिवार के मुताबिक़, विशाल का चयन साल 2006 में एयरमैन पर पर हुआ था। बाद में प्रोन्नति पाकर वह सार्जेंट बन गए थे। जम्मू-कश्मीर से पहले राजस्थान के गंगानगर में तैनात थे। उस समय उनकी तैनाती भारत के राष्ट्रपति की हिफाजत में हुई थी। आखिर में करीब तीन महीने पहले श्रीनगर में उनकी पोस्टिंग हुई। हेलीकॉप्टर क्रैश के समय विशाल का परिवार भी उनके साथ था। मां विमला पांडेय कहती हैं, "बेटे की सेना में नौकरी लगी और उसे वर्दी में देखा था तो बहुत ख़ुश हुई। बेटे के गम में हमारे कलेजे में हूक सी उठती है। तब उसे याद कर रोने के अलावा कोई चारा नहीं होता। बेटे की शहादत के वक्त हर कोई कह रहा था हम आपके साथ हैं। लेकिन अब कोई नहीं पूछता। केंद्र और राज्य सरकार दोनों के रवैये से हमारा परिवार बहुत दुखी है। ढाई बरस गुजर गए। विशाल के पिता ने उस समय कहा था कि घर चलाने के लिए हमें भी नौकरी का अवसर दिया जाना चाहिए। तब सरकार ने हामी भी भरी थी। अब नेताओं के चक्कर लगा रहे हैं। कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही है। हम इतने परेशान हैं कि अपना दर्द भी हर किसी से साझा नहीं कर सकते।"

विशाल की बहन वैष्णवी की आंखें अपने भैया को याद करते हुए भर आती हैं। कहती है, "हमारे ऊपर एक साथ आफत का पहाड़ टूट पड़ा है। पहले भैया शहीद हुए और बाद में बड़े भैया ससुराल वालों के पास चले गए। उन्होंने हम सभी से रिश्ता-नाता तोड़ लिया। अबकी रक्षाबंधन पर हमने कई बार फोन किया और मैसेज भी भेजा, मगर उनका कोई जवाब नहीं आया। बहन हूं। भाई को नहीं भूल सकती। वह बहुत अच्छे हैं। उन्होंने हमें छोड़ा है, हमने उन्हें नहीं छोड़ा है। यकीन है कि वो जब भी आएंगे पहले की तरह प्यार देंगे।" 

मदद दे रहीं प्रियंका गांधी 

यूपी की भाजपा सरकार ने भले ही सार्जेट विशाल कुमार पांडेय की शहादत को भुला दिया, लेकिन प्रियंका गांधी वाड्रा बड़ी खामोशी के साथ इस परिवार की खोज-खबर लेती रहती हैं। प्रियंका ने ही वैष्णवी को इंदौर के एक कालेज में पीजीडीएम कोर्स में दाखिला दिलाया है। एडमिशन से पहले ही उन्होंने एक साथ कॉलेज की फीस भर दी थी। वैष्णवी को पढ़ाई के साथ ही हॉस्टल की फीस भी देनी नहीं पड़ रही है। लॉकडाउन के दौरान प्रियंका गांधी ने कई मर्तबा वैष्णवी पांडेय और उसके मां-पिता को फोन कर कुशलक्षेम पूछा था। वैष्णवी बताती हैं, "प्रियंका गांधी के निजी सचिव का हर महीने फोन आता है और जरुरतों के बारे में पूछा जाता है। भाई की शहादत के बाद जिन लोगों ने हमें काफ़ी हिम्मत और सांत्वना दी उनमें सिर्फ प्रियंका ने ही वादा पूरा किया।"

शहीद का परिवार जिस मकान में रहता है वह पूरी तरह बदहाल है। ईंट पर टिकाई गई एक फोल्डिंग चारपाई, गिनी-चुनी कुर्सियां और कुछ बर्तन-डिब्बे, यही है इनकी पूरी गृहस्थी। बिना प्लास्टर वाली छत के नीचे विशाल कुमार पांडेय की पोस्टरनुमा तस्वीर बताती है कि इस घर का कोई शख्स देश के लिए जरूर शहीद हुआ है। 

भाजपा को चिकोटी काट रही कांग्रेस 

इलेक्शन मोड आने से पहले ही शहीद विशाल कुमार पांडेय की उपेक्षा पर कांग्रेस, योगी सरकार पर हमलावर हो गई है। लोकसभा चुनाव में दो-दो बार पीएम नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ चुनाव लड़ने वाले अजय राय के नेतृत्व में कांग्रेस ने भारत माता मंदिर से 28 अगस्त 2021 से “क्या हुआ तेरा वादा...???” अभियान शुरू किया है। एक पखवाड़े बाद बेमियादी धरने का अल्टीमेटम दिया गया है। 

"न्यूजक्लिक" से बातचीत में अजय राय ने कहा, “देशभक्ति के नाम पर सिंपैथी बटोरने वाली सरकार की कलई खुल गई हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र में जब किसी शहीद का अपमान हो रहा है तो देश के अन्य हिस्सों में कितना सम्मान मिलता होगा, यह गौर करने की बात है। विशाल के परिजनों को भाजपा के नेताओं ने भरोसे का जो काढ़ा पिलाया है, वह हजम नहीं हो पा रहा है। मोदी सरकार शहीदों का सम्मान करती नहीं। सिर्फ उनकी सिंपैथी भुनाती है। शहीद विशाल पांडेय का अपमान बनारस का अपमान है। पीएम नरेंद्र मोदी अगर बनारस के शहीद को सम्मान नहीं दिला सकते तो सांस्कृतिक संकुल में जगह ही दिलवा दें। कांग्रेस कार्यकर्ता काशी के लाल की स्मृति में शहर के लोगों से अंशदान जुटाकर शहीद की भव्य प्रतिमा और उनकी स्मृति में द्वार बनवा देंगे।

लेखक बनारस स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं।

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