हाल ही में हिंदू मुस्लिम विरोधी नफरत के कारण दिल्ली का उत्तरी पूर्वी इलाका मारपीट, हत्याओं और सांप्रदायिकता के नफरत भरे नारों की जगह बन गया था। इस दौरान हुए दंगों में कई लोगों और परिवारों की जिंदगी भर की कमाई जलकर खाक हो गई। इसमें सबसे ज्यादा उनका नुकसान हुआ जो सड़क किनारे जीवन यापन करके मुश्किल से दो वक्त की रोटी कमाते हैं।
ऐसे ही उत्तरी पूर्वी दिल्ली के मुस्तफाबाद से शिवविहार की तरफ जाने वाले रास्ते के तिराहे पर गाड़िया लोहार की बस्ती है। ये लोग गंदे नाले के किनारे अपनी झुग्गियां बनाकर रहते थे। वहीं पर लोहों को अपने हाथों से पीटकर औजार बनाते थे। इन्हीं औजारों को बेचकर किसी तरह से अपना गुजारा करते थे लेकिन 24 फरवरी को ये लोग दंगे की चपेट में आ गए। दंगाइयों ने इनकी झुग्गियों में आग लगा दी और इनके सभी औजार, घर के समान और जमा पूंजी लूट ले गए।
अभी स्थिति यह है कि उनके पास बर्तन नहीं है कि वे सामाजिक संगठनों द्वारा दिए जा रहे राशन से खाना पका सकें। इन कई परिवारों को मिलाकर एक बर्तन है जिसमें ये लोग केवल चाय बना पाते हैं। इसके अलावा कोई अगर पका हुआ खाना देता है तो खा लेते हैं।

न्यूज़क्लिक से बातचीत में गड़िया लोहारों की बस्ती में रहने वाले राजकुमार कहते हैं, 'हम शिव विहार तिराहे के नाले पर बीते 20 साल से रह रहे हैं। इस दौरान जो भी कमाया वह सब इस हिंसा की आग में जल चुका है। अब हम लोगों के सिर पर रहने को छत भी नहीं बची है। यहा तक की बारिश में भी खुले आसमान के नीचे रहने को मज़बूर हैं।'
हालांकि यह पूछे जाने पर की आप लोग किसी राहत शिविर में क्यों नहीं जाते हैं। इस पर बस्ती वालों का कहना था कि हम न हिंदू शिविर में जाएंगे और न ही मुस्लिम शिविर में जाएंगे। हमने अपनी पूरी जिंदगी इन दोनों समुदायों के बीच में यही बिताई है। ऐसे में हमारी सरकार से गुजारिश है कि बस हमारी यही मदद करें।
बस्ती की रहने वाली अनारकली बताती हैं, 'इस दंगे में हमारे घर के बर्तन से लेकर बिस्तर तक सब कुछ या तो लूट लिया गया या फिर जला दिया गया है। इन सभी घरों में मिलाकर 30 से अधिक खाट थी। अब केवल एक या दो बची है। इसके अलावा सब जल गई हैं। दंगे में हम न तो हिन्दू की तरफ थे और न मुस्लिम की तरफ। हम तो मज़दूर हैं, मज़दूरी करते हैं। हम औजार हिंदू और मुसलमान दोनों के लिए बनाते हैं।'
इस पूरे हिंसा पर वो कहती है कि इन दंगों में न हिंदू मरा है और न ही मुसलमान मरा है। मरे तो सिर्फ मजदूर हैं।
अनारकली आगे बताती हैं, 'हम लोगों के पास बैंक खाता नहीं है। इसलिए जो कुछ हम अपनी मेहनत की कमाई में से बचाते थे सब घर में ही रखते थे,सब कुछ लूट लिया गया है।' उनके साथ खड़ी अन्य महिलाओं ने भी दावा किया कि उनके सोने के ज़ेवर जो उन्होंने बुरे वक्त के लिए रखे थे सब दंगाई लूटकर ले गए है।
रजनी जिनका शरीर का एक हिस्सा पूरी तरह से निष्क्रिय है वो बताती है कि हम लोग किसी तरह से अपने बच्चों को लेकर अपनी जान बचाकर भागे। हम मेहनत करके खाने वाले लोग हैं लेकिन आज हमें एक समय के खाने के लिए दूसरों का मुंह ताकना पड़ रहा है।'
रजनी कहती हैं कि हमें सरकार से बड़ी राशि की मांग नहीं है। बस सरकार हमारी झोपड़ियां हमें वापस कर दें और औजार लौटा दें। हम उसी से अपना जीवन यापन कर लेंगे।
आपको बता दें कि गड़िया लोहार राजस्थान की घूमतूं जाति है। पिछले कई सालों से कुछ परिवार शिव विहार के गंदे नाले के पास झोपड़ी डालकर रह रहे हैं। हालांकि शिव विहार में जहाँ यह रह रहे थे, वहां भी दंगे से पहले भी उनकी स्थिति कोई अच्छी नहीं थी।
वहां रहने वाले लोगों ने बताया कि उन झोपड़ियों में बिजली, पानी की सुविधा नहीं थी। इसमें से अधिकतर के बच्चे भी स्कूल नहीं जाते थे। आपको याद होगा कि 2014 में मोदी सरकार और 2015 की दिल्ली सरकार ने भी अपने चुनाव में वादा किया था, जहाँ झुग्गी वही मकान लेकिन उनकी सत्ता का समय पूरा हो गया, यहां तक कि ये दोनों सरकारें दोबारा भी चुनकर आ गई लेकिन ये अब भी सड़क किनारे झुग्गी में रह रहे थे।
अब भी मुआवजे को लेकर मजदूरों का कहना है कि सरकार उन्हें क्या देगी। एक तो उनके पास ज्यादा कागजात नहीं है और जो थे भी वो आग में जल गए हैं। सरकार मुआवजे को लेकर बैंक का डिटेल और आधार कार्ड मांग रही है। ऐसे में उन्हें मुआवजा कहा से मिलेगा। गौरतलब है कि सरकार ने वैसे सभी क्षेत्रों के एसडीएम को यह जिम्मेदारी दी है कि जिनके कागज़ात पूरे नहीं है उसे पूरा करने और अगर बैंक खाता नहीं है तो उसे खोलने में उनकी मदद करें। हालांकि अभी तक गड़िया लोहारों के पास इस तरह की पेशकश लेकर कोई नहीं आया है।