NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
फिर बेपर्दा मोदी सरकारः स्वप्न दास गुप्ता हों या जस्टिस अरुण मिश्रा
बात बोलेगी: मोदी सरकार के हर नए कदम की पिछले कदम से तुलना करके, कौन-सा कदम हमारे लोकतंत्र, लोकतांत्रिक ढांचे के लिए ज़्यादा ख़तरनाक है—यह बताना इस समय का सबसे मुश्किल सवाल है।
भाषा सिंह
02 Jun 2021
Swapan Das Gupta and Justice Arun Mishra

जिस तरह से प्याज के छिलके उतरते हैं, परत-दर-परत, ठीक उसी तरह से केंद्र की मोदी सरकार परत-दर-परत बेपर्दा होती ही जा रही है। उसके हर नए कदम की पिछले कदम से तुलना करके, कौन-सा कदम हमारे लोकतंत्र, लोकतांत्रिक ढांचे के लिए ज्यादा खतरनाक है—यह बताना इस समय का सबसे मुश्किल सवाल है। एक के बाद एक संविधान, नियम-कायदे कानून की धज्जियां पूरी निर्लज्जता से उड़ाई जाती हैं और फिर उसे नया नॉर्मल करार दिया जाता है।

मोदी सरकार के सात सालों में इस तरह के न्यू नार्मल की फेहरिस्त बहुत लंबी है। उसमें दो और नये जुड़े हैं। पश्चिम बंगाल के चुनावों में हारे हुए स्वप्न दास गुप्ता को दोबारा राज्यसभा सांसद नामित किया गया। उन्हें विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए राज्यसभा सांसद पद से इस्तीफा देना पड़ा था। इधर वह चुनाव हारे और उधर दोबारा उन्हें राष्ट्रपति ने उनके इस्तीफे से ही खाली हुई सीट पर दोबारा नामित कर दिया। यह गुल, भारतीय इतिहास में पहली बार खिला। घर की मुर्गी है संसद—जब मन चाहा, नामित सीट से इस्तीफा देकर चुनाव लड़ लिये और हार गये तो सीट तो मोदी जी ने रिजर्व ही कर रखी है न, वापस बैठ गये। यह बताने की ज़रूरत नहीं कि राज्यसभा में राष्ट्रपति जिन सदस्यों को नामित करता है—वह अब तक अलग-अलग क्षेत्रों में महारत रखते हैं। सामान्य तौर पर ये गैर–राजनीतिक हस्तियां होती हैं। पर मोदी जी तो वाह मोदी जी वाह मोदी जी वाले प्रधानमंत्री हैं—देखिए अपने भक्ति में डूबे पत्रकार को सांसद बनाया (जो पहले भी होता रहा है) फिर बंगाल में ममता के किले को ध्वस्त करने के लिए विधानसभा चुनाव लड़वा दिया, हार गये तो जो सीट छोड़कर गये थे, उसी पर वापस बैठवा दिया।

ऐसे में संविधान, नियम कायदा कानून सब धराशाही हो गये।  

इसी तरह से मोदी सरकार ने अपनी तारीफ के पुल बांधने वाले सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज अरुण मिश्रा को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का मुखिया बना दिया। एक अंतरराष्ट्रीय स्तर के सार्वजनिक आयोजन में जस्टिस अरुण मिश्रा ने प्रधानमंत्री मोदी को बहुमुखी प्रतिभा का धनी (versatile genius) बताया और भूरि-भूरि प्रशंसा करके सबको हतप्रभ कर दिया था।

वे अपने तमाम फैसलों, मोदी सरकार से करीबी रिश्तों के लिए कुख्यात रहे। तमाम राजनीतिक रूप से संवेदनशील केसों में उन्होंने केंद्र सरकार का पक्ष लिया। मानवाधिकार संस्था -पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज़ (पीयूसीएल) ने अपने बयान में बाकायदा इस बात का उल्लेख किया है कि किस तरह से जस्टिस अरुण मिश्रा ने आदिवासियों के अधिकारों का हनन करने वाला फैसला दिया और वह मानवाधिकार विरोधी फैसलों के लिए ही जाने गये। राजनीतिक रूप में संवेदनशील केसों में उन्होंने हमेशा केंद्र की मोदी सरकार के पक्ष साथ रहे, चाहे वह लोया केस, सहारा बिड़ला भ्रष्ट्राचार केस, संजय भट्ट केस, हीरेन पांड्या केस या फिर सीबीआई के भीतरी संघर्ष का मामला, या भीमाकोरगांव केस में आनंद तेलतुमड़े और गौतम नौलखा का मामला हो। इस तरह के अनगिनत मामले हैं।

सबसे बड़ी बात यह कि सामान्य तौर पर, एक परंपरा रही है अब तक कि सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का अध्यक्ष बनाया जाता है, लेकिन जब मामला अपने चहेते, तारीफ के पुल बांधने वाले न्यायाधीश को सेट करने को हो, तो फिर देर किस बात की और चीफ जस्टिस को कौन पूछता है। गौर करने की बात है कि सुप्रीम कोर्ट आने के बाद से जस्टिस अरुण मिश्रा ने मोदी सरकार को राहत देने वाले तमाम फैसले सुनाए। सिर्फ इतना ही नहीं उन्होंने अडानी समूह को फायदा पहुंचाने वाले ऐतिहासिक फैसला सुनाया, जिसे अडानी को 8000 करोड़ रुपये का अंतिम तोहफा के रूप में याद किया जाएगा। 2 सितंबर 2020 को रिटायर होने वाले जस्टिस अरुण ने जाते-जाते 31 अगस्त के नेतृत्व वाली बेंच ने बिजली नियंत्रकों द्वारा अडानी पावर को 8000 करोड़ रुपये के टैरिफ मुआवजा देने का फैसला किया था। यह जस्टिस मिश्रा के नेतृत्व वाली बेंच का 2019 से 2020 तक सांतवा फैसला अडानी समूह के पक्ष में आया।

मिसाल बेमिसाल है मोदी सरकार की। पूरी कोशिश करके सारी संस्थानों को जेबी संस्थाओं में उन्होंने बदल डाला। और, कोई भी कितना ही विरोध क्यों न करे—परवाह किसे हैं। मोदी जी के मन की बात ही नया नार्मल है।

(भाषा सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

Modi government
Swapna Das Gupta
Justice Arun Mishra
Rajya Sabha
national human rights commission
NHRC
consitution

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

गैर-लोकतांत्रिक शिक्षानीति का बढ़ता विरोध: कर्नाटक के बुद्धिजीवियों ने रास्ता दिखाया

राज्यसभा सांसद बनने के लिए मीडिया टाइकून बन रहे हैं मोहरा!

PM की इतनी बेअदबी क्यों कर रहे हैं CM? आख़िर कौन है ज़िम्मेदार?

आख़िर फ़ायदे में चल रही कंपनियां भी क्यों बेचना चाहती है सरकार?

तिरछी नज़र: ये कहां आ गए हम! यूं ही सिर फिराते फिराते

'KG से लेकर PG तक फ़्री पढ़ाई' : विद्यार्थियों और शिक्षा से जुड़े कार्यकर्ताओं की सभा में उठी मांग

भारत में संसदीय लोकतंत्र का लगातार पतन

मोदी के आठ साल: सांप्रदायिक नफ़रत और हिंसा पर क्यों नहीं टूटती चुप्पी?

कोविड मौतों पर विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट पर मोदी सरकार का रवैया चिंताजनक


बाकी खबरें

  • Forest
    विजय विनीत
    EXCLUSIVE: सोती रही योगी सरकार, वन माफिया चर गए चंदौली, सोनभद्र और मिर्ज़ापुर के जंगल
    19 Jan 2022
    चंदौली, सोनभद्र और मिर्ज़ापुर के जंगलों में अब शेर, बाघ, मोर और काले हिरणों का शोर नहीं सुनाई देता। अब यहां कुछ सुनाई देता है तो धूल उड़ाते भारी वाहनों का भोपू और नदियों का सीना चीरकर बालू निकालती…
  • Cartoon
    आज का कार्टून
    कार्टून क्लिक: पर्यटन की हालत पर क्यों मुस्कुराई अर्थव्यवस्था!
    19 Jan 2022
    ऐसा क्या हुआ कि पर्यटन की हालत देख अर्थव्यवस्था की हंसी छूट गई!
  • Taliban
    एम के भद्रकुमार
    पाकिस्तान-तालिबान संबंधों में खटास
    19 Jan 2022
    अमेरिका इस्लामाबाद के साथ तालिबान के संबंध में उत्पन्न तनाव का फायदा उठाने की तैयारी कर रहा है।
  • JNU protest
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    जेएनयू में छात्रा से छेड़छाड़, छात्र संगठनों ने निकाला विरोध मार्च
    19 Jan 2022
    जेएनयू परिसर में पीएचडी कर रही एक छात्रा के साथ सोमवार रात कथित तौर पर छेड़खानी की गई। मामला सामने आने के बाद मंगलवार को छात्रों और शिक्षकों ने परिसर में सुरक्षा के पर्याप्त इंतजाम नहीं होने का आरोप…
  • census
    अनिल जैन
    जनगणना जैसे महत्वपूर्ण कार्य को क्यों टाल रही है सरकार?
    19 Jan 2022
    सवाल है कि कोरोना महामारी के चलते सरकार का कोई काम नहीं रूका है, तो फिर जनगणना जैसे बेहद महत्वपूर्ण कार्य को हल्के में लेते हुए क्यों टाला जा रहा है?
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License