'इतिहास के पन्ने' के इस अंक में वरिष्ठ पत्रकार और लेखक नीलांजन मुखोपाध्याय चर्चा कर रहे हैं आज़ादी की लड़ाई के दौरान हुए उन आंदोलनों की जिन्हें खड़े होने में एक स्थापित राजनीतिक नेतृत्व की ज़रूरत नहीं पड़ीI इसी परंपरा में वे मौजूदा किसान आंदोलन और उसे बदनाम करने की तमाम कोशिशों पर भी नज़र डाल रहे हैंI