NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
इस गणतंत्र दिवस पर, भारत यादों पर कपट की जीत को भी मनाएगा 
एक भ्रमित और बेचैन राष्ट्र को झूठे आख्यानों के माध्यम से निर्मित किया जा रहा है, जबकि मध्यम वर्ग अतीत के गौरव को पुनर्जीवित करने की कहानियों में खोया हुआ है। 
शलिनी दीक्षित
26 Jan 2022
Translated by महेश कुमार
republic day
फाइल फोटो।

मलयालम फिल्म दृश्यम (जो अब हिंदी में भी उपलब्ध है) में दिखाई गई विजुअल मेमोरी की चाल अंग्रेजी लेखक डीएच लॉरेंस के शब्दों की विशेषता है, जिन्होंने एक बार कहा था कि, "जो आंख नहीं देखती और जिसे दिमाग नहीं जानता, वह चीज़  मौजूद नहीं है।" फिल्म का मुख्य किरदार लोगों से बात करते हुए घूमता है, उन्हें उन बातों की याद दिलाता है जो कभी हुई ही नहीं थीं। लोग उसके व्यवहार से खुश होते हैं और वे यह संदेह भी नहीं करते कि वह उन पर झूठी यादें प्लांट कर रहा है जो बाद में पुलिस और अदालतों के सामने उसके बचाव का काम करेगी। हम भारत में वर्तमान में इसी तरह की साजिश के शिकार हैं। दुर्भाग्य से, मुख्य अभिनेता के धोखे से गुमराह होने वाले, नागरिक पुलिस और न्यायपालिका हैं। एक बार फिर से, भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान राष्ट्रवादी भावनाओं जगाने वाले शिक्षित मध्यम वर्ग को भारत के मूल विचार को हिंदू राष्ट्र-निर्माण परियोजना के लिए लक्षित किया जा रहा है।

जबकि विरासत में मिली हमारी यादों के प्रतीकों और उनसे जुड़ी यादों को व्यवस्थित रूप से मिटाया जा रहा है, और हमारे सामने स्मरण के नए प्रतीकों को प्रस्तुत किया जाता है, इस पूरी प्रक्रिया को "हमारे गौरवशाली अतीत में लौटने" के रूप में पेश किया जा रहा है। हमने प्राचीन अतीत की परंपराओं के मिश्रण के साथ एक भव्य सभ्यता का निर्माण किया था। इसी परंपरा को जारी रखते हुए आजादी के बाद के 75 वर्षों में हमने सहनशक्ति जयते की नींव पर एक निष्पक्ष और साहसी राष्ट्र का निर्माण किया है। हमने झूठ पर अपना व्यक्तित्व या पहचान नहीं बनाई है। हमने अपने अतीत को स्वीकार किया और उसका सामना किया, उससे सीखा और अपनी जीत का जश्न मनाया। चूंकि हम पिछली गलतियों से सीखते हैं, इसलिए हम सांप्रदायिक घृणा, रंगभेद और सामूहिक हत्याओं को बढ़ावा नहीं देते हैं। इसलिए, हम कभी भी महाभारत में हुई हत्याओं, सिख विरोधी दंगों या गोधरा के बाद के दंगों को याद नहीं करना चाहेंगे! चल रही महामारी के दौरान एक लापरवाह सरकार के कारण हमने जो भीषण जीवन और मृत्यु की लड़ाई लड़ी, उसे हम कभी भी याद नहीं करना चाहेंगे। सही? तो फिर, वर्तमान सरकार ने पिछले साल विभाजन की भयावह स्मृति दिवस क्यों मनाया?

भय और घृणा की चेतना को जगाने के मामले में हमें भाजपा के एजेंडे में इसका जवाब मिल सकता है। "डरावना दिन" मनाने से यह संदेश जाता है कि "दुश्मनों" ने हमें विभाजन का दर्द दिया, इसलिए उन्हें सबक सिखाया जाना चाहिए। यह मतभेदों को पैदा करने और असंतुलन को बढ़ावा देने के लिए किया गया है। यह इस बात को स्थापित करने का भी प्रयास करता है कि हम 'दूसरों' के रूप में पेश किए गए लोगों से बेहतर हैं। इस तरह की तुलना इस विचार से प्रेरित है कि हमारा ऐतिहासिक रूप से शोषण किया गया था और इसलिए, हमें अपने देश के मान को पुनः हासिल करना चाहिए। इस मानस को बनाने के लिए जो कुछ भी आवश्यक है, उसका निर्माण, स्थापना और स्मरण किया जा रहा है। इस कथा के विपरीत जो भी सच है उस पर बुलडोजर चलाया जा रहा है। ये मेमोरी ट्रिक्स कई कमजोर दिमागों पर अच्छा काम कर रही हैं।

सेंट्रल विस्टा परियोजना कई विनाशकारी कामों में से एक है जिसने हमारे देश की यादों को बेरहमी से छीन लिया है और भारत को एक हिंदू राष्ट्र के रूप में चित्रित करने का मार्ग प्रशस्त किया है। यह परियोजना स्वतंत्रता आंदोलन और उसके बाद के दशकों में भाजपा की अनुपस्थिति की भरपाई करने के लिए राष्ट्र-निर्माण के नाम पर स्थापित किया जा रहा है। इसी मकसद से सेंट्रल विस्टा एवेन्यू के लिए भूमि-पूजन समारोह को फरवरी 2021 में केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी, यानि एक सिख द्वारा आयोजित किया गया था। यह संवाद एक स्पष्ट प्रयास था कि हिंदू राष्ट्र उन अल्पसंख्यकों को स्वीकार करेगा जो हिंदुओं की अधीनता स्वीकार करते हैं।

अमर जवान ज्योति को हाल ही में बुझाना या उसका "विलय" इसी साजिश का एक हिस्सा है। अमर जवान ज्योति का उद्घाटन 26 जनवरी 1972 को दिसंबर 1971 में पाकिस्तान पर भारतीय सेना की जीत में शहीद हुए सैनिकों को सम्मानित करने के लिए किया गया था। तब से, अमर जवान ज्योति की लौ कभी नहीं बुझी थी और वह भारतीय सशस्त्र बलों के प्रति श्रद्धा का बिंदु बनी रही। इंडिया गेट के सामने युद्ध स्मारक रखना इतिहास के सामने खड़े होने और अतीत में हम पर शासन करने वालों के प्रति अपनी संप्रभुता का दावा करना है जोकि एक बहादुर भारतीय का दावा था। यह हमें एक महत्वपूर्ण और लंबे अतीत के बारे में आश्वस्त करता था और सच्चाई को छिपाए बिना फुसफुसाता था, कि "हम सब झेल गए"। गणतंत्र दिवस, जो इस जीत का जश्न मनाता है, ने औपनिवेशिक अतीत के इतिहास को मिटाने या उस पर बुलडोजर चलाने या एक अलग युद्ध स्मारक बनाने के विकल्प को नहीं चुना था।

शहर के बीचोबीच एक नया राष्ट्रीय युद्ध स्मारक का बनाया जाना यह धारणा पैदा करना था  कि राष्ट्र की पिछली संरचना एक औपनिवेशिक विरासत थी। फिर 21 जनवरी को अमर जवान ज्योति की लौ बुझा दी गई। हमने प्रधानमंत्री को "विलय" लौ को श्रद्धांजलि देने की प्रक्रिया का सम्मान करते नहीं देखा। एक बार फिर, हम समझ गए कि एक लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष देश के प्रधानमंत्री रामजन्मभूमि के भूमि-पूजन समारोह में भाग लेना तो जरूरी समझते हैं, लेकिन इसके लिए शहीद हुए सम्मानित भारतीय सैनिकों के सम्मान की "लौ बुझाने/विलय" समारोह में शामिल नहीं होते हैं। इसके अलावा, पूरे अनादर के साथ, राष्ट्रीय युद्ध स्मारक से उन सैनिकों के नाम भी हटा दिए दिए, जो प्रथम विश्व युद्ध और एंग्लो-अफगान युद्धों में अंग्रेजों के लिए लड़े थे, लेकिन जिनके नाम इंडिया गेट पर लिखे गए थे। इस तर्क के अनुसार, तो हमें अपने दादा-दादी और उन महान माता-पिता को त्याग देना चाहिए, यदि उन्होंने अपनी आजीविका ब्रिटिश या ईस्ट इंडिया कंपनी से अर्जित की थी। 

इन चालों पर सवालों को विराम देने के लिए, नेताजी सुभाष चंद्र बोस की एक मूर्ति, जिन्होंने सामराजी ताकतों को कड़ी टक्कर दी थी, उस केनोपी में लगा दिया गया जहां किंग जॉर्ज पंचम की मूर्ति हुआ करती थी और जिसे वहाँ से हटा दिया गया था। इससे पहले, जॉर्ज पंचम की जगह महात्मा गांधी की मूर्ति नहीं लगाई गई थी, इस समझ के आधार पर कि केनोपी सहित पूरी सामराजी संरचना, उनके कद को छोटा कर देगी। यदि स्मारकों को स्थानांतरित करने का कारण सामराजी संरचनाएं थीं, तो नेताजी की प्रतिमा को समान सम्मान के साथ और कहीं और जगह क्यों नहीं उपलब्ध कराई गई?

राष्ट्रीय चेतना के साथ और भी अधिक दखल देते हुए, सरकार ने हर साल 29 जनवरी को आयोजित द बीटिंग ऑफ द रिट्रीट समारोह से "एबाइड विद मी" को हटाने का फैसला किया। यह भजन/प्रशंसा धार्मिक और राष्ट्रीय सीमाओं से परे एक खुदा के होने का आग्रह करता है ताकि सैनिकों को उनके कठिन कर्तव्यों को पूरा करने में मदद मिल सके। गांधी अंतरराष्ट्रीय भाईचारे में विश्वास करते थे, और यह उनका पसंदीदा भजन था जो एक अकेले सैनिक को आध्यात्मिक सांत्वना और आराम का संकेत देता है, जो भगवत गीता का भी उपदेश है। लेकिन चूंकि एक भजन जो विभिन्न परंपराओं के साथ समानता और निरंतरता स्थापित करता है, हिंदू राष्ट्रीय पहचान के लिए खतरा है, इसलिए इसे एक राष्ट्रीय उत्सव से हटाना पड़ा।

यह वह प्रक्रिया है जिसके जरिए चुनिंदा प्रतीकों और यादों को हटाया जा रहा हैं क्योंकि वे हिंदू राष्ट्रवादी कथा के साथ मेल नहीं खाते हैं। यह उन झूठे आख्यानों का समर्थन करता है कि सेंट्रल विस्टा जैसी कई नई औपचारिक और स्मारक संरचनाएं बनाई जा रही हैं।

इससे भी बड़ी चिंता की बात यह है कि यदि इन आख्यानों को स्पष्ट रूप से गढ़ा गया है, तो फिर शिक्षित मध्यम वर्ग क्यों इनका शिकार हो रहा है? जो लोग भारत के अखंड विचार का जश्न मनाते हैं, वे उन चालों के सामने घुटने टेक रहे हैं जिसे दृश्यम के मुख्य किरदार ने पेश किया था। मानव स्मृति की रचनात्मक प्रकृति ऐसी खेती के लिए उपजाऊ ज़मीन प्रदान करती है। इसके अलावा, मनुष्यों को वास्तविक या काल्पनिक जड़ों की तलाश करने और उनसे जुड़ने और खुद को "दूसरों" से श्रेष्ठ मानने की मनोवैज्ञानिक जरूरत भी है। शिक्षित मध्यम वर्ग इस नए भारत को हिंदुओं और गैर-हिंदुओं के बीच मतभेदों के व्यवस्थित उच्चारण के आधार पर एक अलग पहचान के रूप में देखता है। इसलिए, वे अतीत को पुनः हासिल करने और उसके विनाश को सही ठहराने के बारे में सभी गढ़े हुए आख्यानों को मानने के लिए ललचाते हैं।

राष्ट्र और व्यक्ति अपनी व्यापक पहचान की भावना के साथ इतिहास की ओर देखते हैं। इसलिए, वे इतिहास को सबसे शुद्ध और असंक्षिप्त रूप में हासिल करते हैं। लेकिन यहां सभी सत्यों को नष्ट कर एक राष्ट्र बनाया जा रहा है। पहले, हमने इस पहचान को समय के साथ इतिहास के जरिए बनाया, लेकिन अब पूरे युग को भव्य संरचनाओं और सैन्यवाद का गुणगान करने के लिए बदला जा रहा है। यह एक अत्यंत भ्रमपूर्ण चेतना की ओर ले जाता है, जहां हमें वास्तविक ऐतिहासिक घटनाओं को नकारने और अतीत की यादों को नष्ट करने के लिए तैयार किया जा आढ़ा है। फिर भी, जब आप अतीत को मिटा देते हैं, भले ही वह आपके लिए अवांछनीय हो, तो इसके परिणाम निश्चित रूप से भयंकर होंगे। आप एक व्यक्ति और एक राष्ट्र के मामले में, दोनों में भ्रमित, बेचैन और दिशाहीन होंगे।

लेखिका नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ एडवांस स्टडीज़, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ साइंस कैंपस, बेंगलुरु में सहायक प्रोफेसर हैं। व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं।

republic day
73rd Republic Day
Narendra modi
Modi government
Republic Day Parade

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष

कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

भारत के निर्यात प्रतिबंध को लेकर चल रही राजनीति

गैर-लोकतांत्रिक शिक्षानीति का बढ़ता विरोध: कर्नाटक के बुद्धिजीवियों ने रास्ता दिखाया

बॉलीवुड को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है बीजेपी !

PM की इतनी बेअदबी क्यों कर रहे हैं CM? आख़िर कौन है ज़िम्मेदार?

छात्र संसद: "नई शिक्षा नीति आधुनिक युग में एकलव्य बनाने वाला दस्तावेज़"

भाजपा के लिए सिर्फ़ वोट बैंक है मुसलमान?... संसद भेजने से करती है परहेज़


बाकी खबरें

  • सोनिया यादव
    समलैंगिक साथ रहने के लिए 'आज़ाद’, केरल हाई कोर्ट का फैसला एक मिसाल
    02 Jun 2022
    साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के बाद भी एलजीबीटी कम्युनिटी के लोग देश में भेदभाव का सामना करते हैं, उन्हें एॉब्नार्मल माना जाता है। ऐसे में एक लेस्बियन कपल को एक साथ रहने की अनुमति…
  • समृद्धि साकुनिया
    कैसे चक्रवात 'असानी' ने बरपाया कहर और सालाना बाढ़ ने क्यों तबाह किया असम को
    02 Jun 2022
    'असानी' चक्रवात आने की संभावना आगामी मानसून में बतायी जा रही थी। लेकिन चक्रवात की वजह से खतरनाक किस्म की बाढ़ मानसून से पहले ही आ गयी। तकरीबन पांच लाख इस बाढ़ के शिकार बने। इनमें हरेक पांचवां पीड़ित एक…
  • बिजयानी मिश्रा
    2019 में हुआ हैदराबाद का एनकाउंटर और पुलिसिया ताक़त की मनमानी
    02 Jun 2022
    पुलिस एनकाउंटरों को रोकने के लिए हमें पुलिस द्वारा किए जाने वाले व्यवहार में बदलाव लाना होगा। इस तरह की हत्याएं न्याय और समता के अधिकार को ख़त्म कर सकती हैं और इनसे आपात ढंग से निपटने की ज़रूरत है।
  • रवि शंकर दुबे
    गुजरात: भाजपा के हुए हार्दिक पटेल… पाटीदार किसके होंगे?
    02 Jun 2022
    गुजरात में पाटीदार समाज के बड़े नेता हार्दिक पटेल ने भाजपा का दामन थाम लिया है। अब देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले चुनावों में पाटीदार किसका साथ देते हैं।
  • सरोजिनी बिष्ट
    उत्तर प्रदेश: "सरकार हमें नियुक्ति दे या मुक्ति दे"  इच्छामृत्यु की माँग करते हजारों बेरोजगार युवा
    02 Jun 2022
    "अब हमें नियुक्ति दो या मुक्ति दो " ऐसा कहने वाले ये आरक्षित वर्ग के वे 6800 अभ्यर्थी हैं जिनका नाम शिक्षक चयन सूची में आ चुका है, बस अब जरूरी है तो इतना कि इन्हे जिला अवंटित कर इनकी नियुक्ति कर दी…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License