NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
मज़दूर-किसान
साहित्य-संस्कृति
भारत
राजनीति
कोरोना काल: मज़दूरों की तपस्या और त्याग
तिरछी नज़र : अरे भाई, यहां हम मिडिल क्लास को तो कोरोना की चिंता के कारण मुलायम गद्दों पर भी नींद नहीं आ रही है और तुम हो निश्चिंत हो सो रहे हो रेल की पटरी पर। कटोगे नहीं तो और क्या होगा!
डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
17 May 2020
मज़दूरों की तपस्या और त्याग
Image Courtesy: The Hindu

कोरोना में अगर असलियत में मुश्किल में हैं तो हम मिडिल क्लास के लोग हैं। लेकिन सारे के सारे लोग मज़दूरों की मुसीबतों का रोना रो रहे हैं। अरे, उनको  मुसीबत है ही क्या, जो सारे राजनेता और मीडिया उनकी मुसीबतें सुन और सुना रहे हैं। मोदी जी तो 12 मई के बाद मज़दूरों के असली रहनुमा बन कर उभरे हैं। क्या क्या नहीं कर रहे हैं, मज़दूरों के लिए।

tirchi nazar.JPG

इन मज़दूरों को ऐसी क्या दिक्कत आन पड़ी है कि अपने गांव जाने की ज़िद पकड़े हुए हैं। अरे भई! हम भी प्रवासी हैं। अपना घर गांव, देस छोड़ पहले पढ़ाई के लिए निकले और फिर अब यहां नौकरी मिलने के बाद बीवी बच्चों के साथ सोसायटी के फ्लैट में बंद पड़े हैं। न कहीं आने के और न कहीं जाने के। करीब दो महीने हो गए फ्लैट में बंद। न बाहर किसी मॉल में गये और न ही किसी रेस्तरां में। हॉल में फिल्म देखे भी जैसे ज़माना बीत गया। वर्क फ्रॉम होम करते करते बोर हो गए। पर लॉकडाउन का जरा सा भी उल्लंघन नहीं किया। कभी मन किया तो दूध लेने के बहाने से निकले तो थोड़ा आगे तक हो आये, बस। पर इन्हें तो अपने गांव जाने की पड़ी है, जैसे लॉकडाउन का कोई मतलब ही नहीं है।

एक हम हैं। कम्पनी कह रही है, ऑफिस नहीं आ रहे हो, घर से ही काम कर रहे हो, तो वाहन भत्ता नहीं देंगे। वेतन भी काट कर कम देंगे। उस पर भी घर का किराया वेतन में से ही कट जाता है। फिर बिजली का बिल, पानी का बिल, इंटरनेट कनैक्शन का बिल, सभी देना है। और तो और कार की, पचास इंच वाले टीवी सैट की, होम थिएटर सिस्टम की, सबकी ईएमआई देनी है। सरकार ने बैंकों से सहूलियत दिलवा दी कि थोड़ा लेट दे दें, पर देनी तो पड़ेगी ही न। वो भी ब्याज के साथ। बच्चों की फीस भी जमा करनी है, नहीं तो स्कूल से नाम कट जायेगा। फिर भी हम हैं, कहीं जाने की बात नहीं कर रहे हैं।

और एक तुम हो, सरकारी जमीन घेर कर झुग्गी डाल ली। न उसका किराया। न बिजली का बिल। पानी भी म्यूनिसिपलटी के नल से भरते हो तो उसका भी बिल नहीं। न कोई ईएमआई, न ही इंटरनेट का बिल। न बच्चों की फीस की चिंता। फिर भी एक ही ज़िद। ज़िद है कि घर जाना है, गांव जाना है। अपने देस जाना है। अगर बस या रेल नहीं मिलेगी तो पैदल ही निकल पड़ना है। उस पर भी सरकारें समझा रही हैं कि भइया, खाना, राशन, सब मुफ्त देंगे। बस रुक जाओ। पर तुम हो कि मान ही नहीं रहे हो।

लेकिन यह जो मोदी जी की सरकार है न, बहुत ही होशियार है। उसे पता था, तुम जाये बिना मानोगे नहीं। सो, पुलिस को हुक्म दे दिया, जो भी सड़़कों पर पैदल दिखाई दे, पीट डालो। रास्ते में जो भी ढाबे थे, बंद करा दिये। रास्ते में पीने का पानी तक नहीं। जाओ, कैसे जाओगे। सैकड़ों-हजारों किलोमीटर, वो भी पैदल। पर तुम भी ठहरे हठ के पक्के। चल पड़े, साईकिल से, रिक्शा से, ठेले पर, इंतजाम हो गया तो किसी भी ट्रक या कंटेनर से। जो मिला उसी से। नहीं तो पैदल ही। भूखे प्यासे चल दिये।

ये जो मज़दूर वर्ग है न, बिल्कुल ही नादान है। अपनी चिंता तो है ही नहीं, अपने बीवी बच्चों की चिंता भी नहीं है। पैदल चल पड़े, बीवी बच्चों के साथ। और तो और, कुछ तो अपनी गर्भवती पत्नी को भी लेकर चल दिये। होना क्या था। रास्ते में बच्चा पैदा हो गया। जब जरा सी भी समझ नहीं होगी तो ऐसा ही होगा। अब नवजात शिशु को लेकर चलोगे और कोई अनहोनी हुई तो सरकार को जिम्मेदार ठहरा दोगे। तुम्हारा कोई भी ठिकाना नहीं है।

अब सरकार ने सड़कों पर पुलिस लगा दी तो मज़दूर लोग इतने बेशर्म निकले कि रेल की पटरी के रास्ते ही अपने गांव देहात के लिए निकल पड़े। कोई इन बेवकूफों से पूछे कि भाई, कि रेल की पटरी क्या पैदल चलने के लिए बनाई गई है। इतने सारे पत्थर पड़े होते हैं रेल पटरी पर। पर तुम हो कि खुद तो रेल पटरी पर चलोगे ही, पत्नी और बच्चों को भी चलवाओगे। पटरी पर चलोगे और उस पर सो भी जाओगे। अरे भाई, यहां हम मिडिल क्लास को तो कोरोना की चिंता के कारण मुलायम गद्दों पर भी नींद नहीं आ रही है और तुम हो निश्चिंत हो सो रहे हो रेल की पटरी पर। कटोगे नहीं तो और क्या होगा।

एक तुम हो और एक मोदी जी हैं। तुम्हारे लिए, तुम्हारे लिए ही, मोदी जी ने अभी, हाल ही में, बीस लाख करोड़ रुपये, जी हां! पूरे बीस लाख करोड़ रुपये आपके लिए ही घोषित किये हैं। पता है बीस लाख करोड़ रुपये में बीस के बाद कितने शून्य होते हैं। ठहरो, तुम्हें क्या पता होगा, मुझे भी हिसाब लगाना पड़ रहा है। तो बीस लाख करोड़ में बीस के बाद बारह शून्य होंगे। तो इतना सारा रुपया मोदी जी ने आपके लिए, आप मज़दूरों के लिए ही, दिया है। पर आप हैं कि घर को भागे जा रहे हैं। अब तुम तो भाग गए गांव, तो तुम्हारे लिए दिया गया पैसा सेठ लोगों के पास रुका रह जायेगा। फिर मोदी पर तोहमत कि मोदी तो पैसे वालों का, सेठ लोगों का यार है। गलती आपकी कि घर भाग गए और बुराई करोगे मोदी जी की।

जब मोदी जी ने आपको बीस लाख करोड़ रुपये देने का ऐलान किया, उसी भाषण में मोदी जी ने आपकी तपस्या और त्याग की प्रशंसा भी की। मोदी जी आपकी तपस्या से बहुत ही प्रसन्न हैं। ये जो मोदी जी ने रास्ते बंद किये, आप लोगों पर पुलिस से लाठी चार्ज करवाया, रास्ते भर खाने पीने के ठिकाने बंद करवा दिये, आपके तप की परीक्षा लेने के लिए ही किया।  जिस प्रकार भगवान अपने भक्तों की परीक्षा लेते हैं, ठीक उसी तरह मोदी जी ने आप मज़दूरों की परीक्षा ली। आप बुरा मत मानना, अब पता चल गया है कि भगवान आपसे प्रसन्न हैं। अब श्रमिक ट्रेन चला दी गई हैं।

चुपके से: मोदी जी, सर, मेरा छोटा भाई एच-1बी1 वीसा पर अमेरिका में नौकरी कर रहा था। ये कोरोना के चक्कर में उसकी नौकरी छूट गई है। अब उसे अमेरिका से आना है। आप तो लाने के लिए तैयार हैं। पर दिक्कत यह है कि सर, आप हवाई जहाज भेज भी रहे हैं और मेरे भाई और भाभी को ले भी आयेंगे। पर उनकी एक दूध पीती बच्ची है। वह वहीं पैदा हुई थी। वहीं पैदा हुई थी तो वहीं की नागरिक है। सर, अमरीका भारत नहीं है न और न ही वहां एनआरसी लागू हुआ है, तो इसलिए अभी तक अमेरिका में, जो भी वहां पैदा होता है, वहीं का नागरिक हो जाता है। तो सर जी, भारतीय अधिकारी उस बच्चे को भारत लाने की इजाजत नहीं दे रहे हैं। कह रहे हैं, कोविड 19 के कारण किसी भी विदेशी को भारत आने की इजाजत नहीं है। सर, आप मानवता के नाते ही कुछ कीजिए। वह तो वहां से पैदल भी नहीं आ सकता। सर जी, प्लीज। सर जी, उसने ट्वीट भी किया है।

(इस व्यंग्य स्तंभ के लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)

tirchi nazar
Satire
Political satire
Lockdown
Migrant workers
migrants
modi sarkar
Central Government
State Government

Related Stories

कर्नाटक: मलूर में दो-तरफा पलायन बन रही है मज़दूरों की बेबसी की वजह

हैदराबाद: कबाड़ गोदाम में आग लगने से बिहार के 11 प्रवासी मज़दूरों की दर्दनाक मौत

यूपी: महामारी ने बुनकरों किया तबाह, छिने रोज़गार, सरकार से नहीं मिली कोई मदद! 

यूपी चुनावों को लेकर चूड़ी बनाने वालों में क्यों नहीं है उत्साह!

पश्चिम बंगाल में मनरेगा का क्रियान्वयन खराब, केंद्र के रवैये पर भी सामाजिक कार्यकर्ताओं ने उठाए सवाल

ओये किसान, तू तो बड़ा चीटिंगबाज़ निकला!

मंत्रिमंडल ने तीन कृषि क़ानून को निरस्त करने संबंधी विधेयक को मंज़ूरी दी

मौत के आंकड़े बताते हैं किसान आंदोलन बड़े किसानों का नहीं है - अर्थशास्त्री लखविंदर सिंह

महामारी का दर्द: साल 2020 में दिहाड़ी मज़दूरों ने  की सबसे ज़्यादा आत्महत्या

दिल्ली: ट्रेड यूनियन के साइकिल अभियान ने कामगारों के ज्वलंत मुद्दों पर चर्चा शुरू करवाई


बाकी खबरें

  • संदीपन तालुकदार
    वैज्ञानिकों ने कहा- धरती के 44% हिस्से को बायोडायवर्सिटी और इकोसिस्टम के की सुरक्षा के लिए संरक्षण की आवश्यकता है
    04 Jun 2022
    यह अध्ययन अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि दुनिया भर की सरकारें जैव विविधता संरक्षण के लिए अपने  लक्ष्य निर्धारित करना शुरू कर चुकी हैं, जो विशेषज्ञों को लगता है कि अगले दशक के लिए एजेंडा बनाएगा।
  • सोनिया यादव
    हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?
    04 Jun 2022
    17 साल की नाबालिग़ से कथित गैंगरेप का मामला हाई-प्रोफ़ाइल होने की वजह से प्रदेश में एक राजनीतिक विवाद का कारण बन गया है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    छत्तीसगढ़ : दो सूत्रीय मांगों को लेकर बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दिया
    04 Jun 2022
    राज्य में बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दे दिया है। दो दिन पहले इन कर्मियों के महासंघ की ओर से मांग न मानने पर सामूहिक इस्तीफ़े का ऐलान किया गया था।
  • bulldozer politics
    न्यूज़क्लिक टीम
    वे डरते हैं...तमाम गोला-बारूद पुलिस-फ़ौज और बुलडोज़र के बावजूद!
    04 Jun 2022
    बुलडोज़र क्या है? सत्ता का यंत्र… ताक़त का नशा, जो कुचल देता है ग़रीबों के आशियाने... और यह कोई यह ऐरा-गैरा बुलडोज़र नहीं यह हिंदुत्व फ़ासीवादी बुलडोज़र है, इस्लामोफ़ोबिया के मंत्र से यह चलता है……
  • आज का कार्टून
    कार्टून क्लिक: उनकी ‘शाखा’, उनके ‘पौधे’
    04 Jun 2022
    यूं तो आरएसएस पौधे नहीं ‘शाखा’ लगाता है, लेकिन उसके छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने एक करोड़ पौधे लगाने का ऐलान किया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License