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कोरोना के बारे में बड़े-बड़े शोध और 'एक्ट ऑफ गॉड!'
अभी तक सारा विश्व मानता था कि यह एक वायरस जनित रोग है पर अब हमने खोज ही लिया है कि यह ईश्वर जनित रोग है। नोबेल पुरस्कार कमेटी को इस बार चिकित्सा शास्त्र में नोबेल पुरस्कार के लिए हमारी वित्त मंत्री जी का नाम भी ध्यान में रखना चाहिए। उन्हें अर्थशास्त्र में तो नोबेल मिलने से रहा।
डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
30 Aug 2020
satire
प्रतीकात्मक तस्वीर। साभार : times free press

हमारे देश में, और देश में ही नहीं, पूरे विश्व में कोरोना कहर बरपा रहा है लेकिन हम भी चुपचाप नहीं बैठे हैं। हमारे देश में हर कोई कुछ न कुछ शोध कर ही रहा है। सच कहें तो देश में आजकल शोध करने का जो माहौल है वैसा पहले कभी नहीं रहा है, प्राचीन काल के सिवाय। यह बात अलग है कि जो लोग बहुत मेहनत कर शोध कर रहे हैं, उनके पीछे हम हाथ धो कर पड़ जाते हैं।

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अभी हाल ही में हमारी वित्त मंत्री जी ने राज्यों का जीएसटी न देने के बहानों पर खोज करते हुए अचानक ही एक खोज की है। वह खोज है कि कोरोना 'एक्ट ऑफ गॉड' है। 'एक्ट ऑफ गॉड' मतलब ईश्वरीय कार्य। हम जानते ही हैं कि बड़ी बड़ी खोजें अचानक ही की जाती हैं, कुछ और ही खोजते हुए आप कुछ और ही खोज बैठते हैं। अभी तक सारा विश्व मानता था कि यह एक वायरस जनित रोग है पर अब हमने खोज ही लिया है कि यह ईश्वर जनित रोग है। नोबेल पुरस्कार कमेटी को इस बार चिकित्सा शास्त्र में नोबेल पुरस्कार के लिए हमारी वित्त मंत्री जी का नाम भी ध्यान में रखना चाहिए। उन्हें अर्थशास्त्र में तो नोबेल मिलने से रहा।

कोरोना को लेकर हमारे देश में किया गया यह पहला शोध नहीं है। सबसे पहले, जब कोविड के बहुत ही कम मरीज ही देश में थे तो हमने खोजा कि कोरोना से बचाव का सबसे अच्छा साधन है गौमूत्र। वैसे एक बात मुझे आज तक समझ नहीं आई है कि जो भी गौभक्त हैं वे गौमूत्र की ही बात क्यों करते हैं। या फिर गोबर की बात करेंगे। वैसे गौमाता तो कुछ अच्छे स्वादिष्ट पदार्थ भी देती है। गाय का दूध, उसकी दही, घी, मक्खन, पनीर और उनसे बनने वाले ढेर सारे मिष्ठान। पर गौभक्तों के दिमाग में गौमूत्र और गोबर ही आता है। ठीक ही तो है, जिसके दिमाग में जो भरा होगा, वही तो आयेगा न! 

फिर खोज खोज कर कर बहुत सारे टोटके अपनाये गए। जनता कर्फ्यू, एक्सटेंडेबल लॉकडाउन, सामूहिक रूप से किये गए ताली-थाली, दिया-बाती, हेलीकॉप्टर से पुष्प वर्षा। सब कुछ किया पर कोरोना बढ़ता ही गया। उधर एक मंत्री जी भी हैं, भला सा नाम है उनका, दिमाग से जरा उतर रहा है। वही जिन्होंने चायना को बॉयकॉट करने के लिए चायनीज खाने को बॉयकॉट करने की सलाह दी थी। तो उन्होंने फरवरी के महीने में ही कोरोना को भगाने के लिए ‘गो कोरोना गो’ यानी 'कोरोना जा,जा,जा' का जाप किया। पर कोरोना ने आ,आ,आ सुन लिया। फरवरी से अब अगस्त समाप्त होने को आया, कोरोना बढ़ता ही जा रहा है। 

कोरोना पर की गई शुरूआती खोजों को छोड़ भी दें तो  कोरोना पर बाद में भी खोज होती ही रहीं। बाबा रामदेव ने कोविड की दवा क्या बनाई कि लोग उनके पीछे ही पड़ गए। बाबा रामदेव ने आयुर्वेदिक दवा बनाई है, जड़ी बूटियों से। लोग पीछे पड़े हुए हैं कि इसका क्लीनिकल ट्रायल नहीं किया गया, इसके साइड इफेक्ट नहीं खोजे गए। अरे भई, ये आयुर्वेदिक दवा है, इसका कोई साइड इफेक्ट नहीं होता है और न ही कोई क्लीनिकल ट्रायल। बस दवा बनाई और मरीज को खिला दी। मरीज ही आ कर बताता है कि इसका असर हुआ या नहीं। वैसे भी आयुर्वेदिक दवा का इफेक्ट, साइड इफेक्ट कोई नहीं होता है।

उधर सरकार ने भी रामदेव की दवा के प्रचार प्रसार और विज्ञापन पर प्रतिबंध लगा दिया पर बिक्री पर नहीं लगाया। मतलब दवा, दवा की कसौटी पर खरी नहीं उतरी है पर बाबा जी बेच सकते हैं, मुनाफा कमा सकते हैं। सरकार को साथ ही यह भी साफ कर देना चाहिए था कि जिन्होंने यह दवा खरीदी है वे दवा खा भी सकते हैं या सिर्फ दवा खरीदनी भर है।

इधर सरकार के निर्देश पर पंद्रह अगस्त से पहले कोरोना की वैक्सीन बनाने के निर्देश वैज्ञानिकों को दे दिये गए तो कुछ बेसमझ, नासमझ, देश की उन्नति से परेशान लोगों ने बवाल काट दिया। आखिरकार आलोचना होने पर विज्ञान और तकनीकी विभाग को कहना ही पड़ा कि यह काम इतने कम समय में नहीं हो सकता है। पर इन बेसमझ, नासमझ, देश की उन्नति से परेशान लोगों को कौन समझाये कि विदेशी दवा कंपनियाँ जाने अनजाने या जानबूझ कर चुपचाप देश के लोगों पर अपनी दवाईयों का परीक्षण करती रहती हैं। अब देशी वैज्ञानिक भी गुपचुप ऐसा कोई परीक्षण कर ही लेते तो सरकार पंद्रह अगस्त को एक ऐतिहासिक ऐलान तो कर ही देती। वैसे वैक्सीन अभी दूर है पर यह ऐलान जरूर कर दिया गया है कि वैक्सीन पहले लगाई किसे जायेगी।

एक गोडसे भक्त साध्वी सांसद हैं। इस कोविड काल में उनकी शोध प्रवृत्ति ने भी जोर मारा। नहीं जी, उन्होंने गौमूत्र नहीं, हनुमान चालीसा का महत्व बताया। गौमूत्र, गोबर आदि तो वे कैंसर के इलाज में प्रयोग कर चुकी थीं। अतः उन्हें कुछ नई खोज करनी थी, तो उन्होंने बताया कि हनुमान चालीसा कोरोना से बचाव करता है। मुझे लगता है कि वाट्सएप यूनिवर्सिटी के तहत नासा ने जैसे यह खोज की है कि सूर्य भगवान हर समय ओउम का उच्चारण करते रहते हैं उसी तरह से नासा को यह भी खोज करनी चाहिए कि राम भक्त हनुमान जी की चालीसा का कितनी बार और कितने दिन सुस्वर पाठ करने से कोरोना भाग जाता है। भारत सरकार को इस बारे में अमरीकी सरकार से विधिवत रूप से अनुरोध करना चाहिए। मोदी जी की बात ट्रम्प जी मान ही जायेंगे, उन्हें राष्ट्रपति के चुनाव में भारतवंशियों के वोट चाहियें या नहीं।

इधर सब लोग कोरोना का कठिन, कठोर, कड़वा उपाय बता रहे थे, काढ़ा बनाकर पीओ, योग करो। उधर एक मंत्री जी ने स्वादिष्ट उपाय बता दिया। पापड़ खाओ और कोरोना दूर भगाओ। इतना स्वादिष्ट उपाय, वह भी कोरोना जैसी विश्वव्यापी बीमारी से बचाव का। धन्य हैं, धन्य! देश के मंत्री, देश के सांसद। इन पर ही देश के विज्ञान और वैज्ञानिक सोच को बचाने का दारोमदार है।

अब तो मंत्री और सांसद भी बीमार पड़ने लगे हैं। अब कहाँ जायें। ये सब जादू टोटके तो आम जनता को बरगलाने के लिए हैं। जब बडे़ लोग बीमार पड़ते हैं तो मेदांता में भर्ती हो जाते हैं। जनता के लिए सरकार ने सरकारी अस्पताल बनवाये ही हुए हैं। ये बात अलग है कि वहाँ बिस्तर मिल जाये तो गनीमत है। बिस्तर अगर मिल भी गया तो ऑक्सीजन मिलनी मुश्किल है। और वेंटिलेटर, उसकी तो सोचिये भी मत। वैसे भी सरकार पहले से ही जानती है और समझती है कि अस्पताल से अधिक आवश्यक मंदिर हैं। यह बात वित्त मंत्री जी के हालिया शोध, कि कोरोना 'एक्ट ऑफ गॉड' है, ने और अधिक स्पष्ट कर दी है।

अब तो बहुत दिनों से केस बढ़ते ही जा रहे हैं। अब सत्तर पचहत्तर हजार मरीज रोज आने लगे हैं। कुल मरीज भी पैंतीस लाख हो गये हैं। पर देश में इतने मंत्री हैं, सांसद हैं, सब के सब चुप बैठे हैं। जैसे सबको सांप सूंघ गया हो। जरा भी नहीं शोध कर रहे कि अब कोरोना भगाने के लिए क्या किया जाये। आखिर अब वित्त मंत्री जी ने शोध कर बता ही दिया है कि यह कोरोना एक ईश्वरीय प्रकोप है। अरे! अब तो कोई मंत्री, सांसद आओ, अपनी खोजी प्रवृत्ति जगाओ। कोई आरती कीर्तन गाओ और प्रसाद में कोई ऐसी बर्फी, पेड़ा या कलाकंद खोजो जिसके खाने से यह मुआ कोरोना भाग जाये।

(इस व्यंग्य स्तंभ ‘तिरछी नज़र’ के लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)

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Political satire
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