NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
साहित्य-संस्कृति
स्वास्थ्य
भारत
राजनीति
कोरोना संकट और संडे टास्क : कुछ नहीं तो आइए सम्मान करें!
इस बार मोदी जी ने कोई टास्क नहीं दिया है। हमें लगा इस संडे को हम फ्री हैं। पर जनता ने कहा कि भई, संडे को फ्री रहने की कोई जरूरत नहीं है। तो जनता ने अपने आप ही अपने को काम दे दिया, मोदी जी को धन्यवाद देने का।
डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
12 Apr 2020
संडे टास्क
Image courtesy: Navodaya Times

कोरोना का कहर जारी है। जारी ही नहीं है बल्कि बढ़ भी रहा है। जहां शुरू हुआ था वहां सामान्य जीवन शुरू हो चुका है पर पूरा विश्व ठहरा हुआ है। हमारे देश में भी लॉकडाउन है। अभी लॉकडाउन के दो तीन दिन बाकी हैं पर पूरे आसार हैं कि इसे आगे बढ़ाया ही जायेगा। साथ ही उम्मीद है कि इससे हम कोरोना के प्रकोप पर काबू पा लेंगे।

tirchhi nazar_2.PNG_1.jpeg

लॉकडाउन में जब सब कुछ बंद है और हम सब बोर हो रहे हैं। करने के लिए कुछ है ही नहीं। हफ्ते में एक बार, रविवार को तो मोदी जी कुछ करने के लिए दे देते हैं पर इस बार मोदी जी ने भी अभी तक कुछ भी कार्य नहीं दिया है करने के लिए। जब मोदी जी कुछ कार्य (टास्क) दे देते हैं करने के लिए तो तीन चार दिन अच्छी तरह गुजर जाते हैं। रविवार तक तो उस कार्य की तैयारी में और उसका औचित्य सोचने में। उसके बाद उसका असर देखने में।

इस बार मोदी जी ने कोई टास्क नहीं दिया है। हमें लगा इस संडे को हम फ्री हैं। पर जनता ने कहा कि भई, संडे को फ्री रहने की कोई जरूरत नहीं है। तो जनता ने अपने आप ही अपने को काम दे दिया, मोदी जी को धन्यवाद देने का। आखिर हमें एक अभूतपूर्व प्रधानमंत्री मिला है। उसने हमें कोरोना से बचा लिया। उसी की वजह से कोरोना को भारत में पैर पसारने के लिए लोहे के चने चबाने पड़ रहे हैं।

देश में प्रधानमंत्री जी देश की जनता का बहुत ही अच्छी तरह खयाल रखते हैं। जब लॉकडाउन किया तो देश की जनता को पूरे चार घंटे का टाइम दिया। कि भई, जो जहां है, वहां से अपने अपने ठिकाने पर लग जाये। चाहते तो उसी क्षण से, या फिर घंटे भर बाद से भी लॉकडाउन लगा सकते थे। कि भई, जो जहां है, वहीं खडा़ रहे। कोई बस स्टेंड पर खड़ा है तो वहीं खड़ा रहे। सरकार आयेगी और वहीं उसकी रिहायश बना देगी। वहीं खाने पीने का इंतजाम कर देगी और हाजत का भी। पर मोदी जी ने पूरे चार घंटे दिये। आखिर मोदी जी जनता द्वारा लोकतांत्रिक तरीके से चुने गए प्रधानमंत्री हैं, कोई तानाशाह थोड़ी न हैं।

मोदी जी आम जनता को चार घंटे ही देते हैं। नोटबंदी के समय भी चार घंटे ही दिये थे। इस बार भी सीधी गणना थी। अगर अधिक समय दे दिया जाता, मसलन चार की बजाय चौबीस घंटे या चौरासी घंटे, तो वो जो जनता कर्फ्यू और थाली ढोल नगाड़ों से जो कोरोना की कमर मोदी जी ने तोड़ी थी, वह फिर खड़ा हो उठता। और अधिक ताकत से उठता और अधिक ताकत से लड़ता।

तो मित्रों....., ये जो मोदी जी हैं न, सब कुछ आपके भले के लिए ही करते हैं। कोरोना से लड़ भी रहे हैं न तो आपके लिए ही। मोदी जी का क्या है। न कोई आगे है न पीछे। फकीर आदमी हैं। कोरोना हो भी गया तो क्या, झोला लेकर निकल जायेंगे। उन्हें तो सिर्फ आपकी चिंता है। तो उनका अभिनंदन बनता ही है, और बीच लड़ाई में ही बनता है।

और मोदी जी में मानवता भी कूट कूट कर भरी है। अब एक दवा है, हाईड्रोक्सीक्लोरोक्वीन। कोरोना के इलाज में काम आ सकती है। मोदी जी ने मानवता के नाते अमेरिका को निर्यात कर दी है। हमारी मानवता भी हड़काने पर ही जागती है। सो जिसने हड़काया और जो आगे भी हड़का सकता है, उसके लिए मानवता जागी। जिन्हें हम हड़का सकते हैं, हड़काते रहते हैं और आगे भी हड़कायेंगे, उनके लिए मानवता जगाने का क्या लाभ। मानवता जागनी भी उनके लिए ही चाहिए जो हमें हड़का सकें।

पर यह सिर्फ मानवता का ही मामला नहीं था। पता यह भी चला है कि भारत को अमेरिका का कर्ज भी उतारना था। अरे वही, सत्तर साल पुराना गेहूं का कर्ज, जो नेहरू ने लिया था। अब क्या करें, बेचारे मोदी जी तो नेहरू के कर्ज उतारते उतारते ही मर जायेंगे। नेहरू ने न जाने कितनी गलतियां की सत्रह साल के शासन में। सब मोदी जी को ही सुधारनी पड़ रही हैं।

ऐसे समय में मोदी जी का अभिनंदन तो किया ही जाना चाहिए। भले ही लड़ाई बाकी है, अभिनंदन करने में क्या बुराई है। हालांकि मोदी जी ने इसे एक खुराफात बताया है। उन्होंने कहा है कि ये उन्हें विवादों में घसीटने की एक खुराफात लगती है। वैसे ऐसा कहना उनका बड़प्पन ही है। अब प्रभु अपने मुंह से थोड़ी कहते हैं कि मेरी पूजा करो, सम्मान करो। ये तो भक्त खुद समझ लेते हैं। जो प्रभु के मन की बात समझे वही तो है सच्चा भक्त।

वैसे मोदी जी ने यह भी कहा है, 'हो सकता है कि यह किसी की सदिच्छा हो, तो भी मेरा आग्रह है कि यदि सचमुच में आपके मन में इतना प्यार है और मोदी को सम्मानित ही करना है तो एक गरीब परिवार की जिम्मेदारी कम से कम तब तक उठाइए, जब तक कोरोना वायरस का संकट है। मेरे लिए इससे बड़ा सम्मान कोई हो ही नहीं सकता।'

लेकिन भक्त अब प्रभु के मन की इतनी थाह भी नहीं रखता कि हर बात सुन और समझ सके।

जैसे पहले हमने ताली और थाली बजा डाक्टरों, नर्सों और अस्पताल के अन्य स्टाफ का अभिनंदन किया था और फिर उन्हें दसियों जगह दौड़ा दौड़ा कर मारा। उसके बाद एकता, सामूहिकता, भाईचारा दिखाने के लिए दीये जलाये, पटाखे फोड़े। पर साथ ही साथ खबरिया चैनलों पर, व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी में मुसलमानों की धज्जियां उड़ाते रहे। तो हम प्रधानमंत्री जी का अभिनंदन भी कर देंगें पर आदेशों का उल्लंघन भी करते रहेंगे।

तो भक्तों और आम जनता, इस 12 अप्रैल को, इसी रविवार को शाम पांच बजे सब लोग अपनी बॉलकनी में आ कर मोदी जी के अभिनंदन में तालियां बजायेंगे। जिनके पास तालियां न हों वे कुछ और भी बजा सकते हैं। क्योंकि बॉलकनी का विजन और विजुअल पश्चिम से आया है, और हमारे देश में अस्सी प्रतिशत घरों में बॉलकनी होती ही नहीं है। तो जिनके यहां बॉलकनी नहीं है, वे सड़कों पर आ सकते हैं और लॉकडाउन की धज्जियां भी उड़ा सकते हैं।

और अंत में: कोरोना जैसी विश्वव्यापी बीमारी से लड़ाई सरकार और अन्य विभागों से सहयोग कर के ही लड़ी जा सकती है। अतः लॉकडाउन के निर्देशों का पालन करें। अनावश्यक रूप से घर से बाहर न निकलें। आपस में छह फीट की दूरी बनाये रखें। बार बार हाथ धोयें। हाथों को आंख, नाक और मूंह से दूर रखें। खांसी, जुकाम और बुखार के मरीज अन्य लोगों से अलग रहें। कोरोना से लडा़ई में ये कदम आवश्यक हैं।

(लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)

tirchi nazar
Satire
Political satire
Coronavirus
Corona Crisis
COVID-19
Sunday Task
Narendra modi

Related Stories

जनवादी साहित्य-संस्कृति सम्मेलन: वंचित तबकों की मुक्ति के लिए एक सांस्कृतिक हस्तक्षेप

लॉकडाउन-2020: यही तो दिन थे, जब राजा ने अचानक कह दिया था— स्टैचू!

तिरछी नज़र: सरकार-जी, बम केवल साइकिल में ही नहीं लगता

विज्ञापन की महिमा: अगर विज्ञापन न होते तो हमें विकास दिखाई ही न देता

तिरछी नज़र: बजट इस साल का; बात पच्चीस साल की

…सब कुछ ठीक-ठाक है

तिरछी नज़र: ‘ज़िंदा लौट आए’ मतलब लौट के...

बना रहे रस: वे बनारस से उसकी आत्मा छीनना चाहते हैं

तिरछी नज़र: ओमीक्रॉन आला रे...

कटाक्ष: नये साल के लक्षण अच्छे नजर नहीं आ रहे हैं...


बाकी खबरें

  • संदीपन तालुकदार
    वैज्ञानिकों ने कहा- धरती के 44% हिस्से को बायोडायवर्सिटी और इकोसिस्टम के की सुरक्षा के लिए संरक्षण की आवश्यकता है
    04 Jun 2022
    यह अध्ययन अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि दुनिया भर की सरकारें जैव विविधता संरक्षण के लिए अपने  लक्ष्य निर्धारित करना शुरू कर चुकी हैं, जो विशेषज्ञों को लगता है कि अगले दशक के लिए एजेंडा बनाएगा।
  • सोनिया यादव
    हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?
    04 Jun 2022
    17 साल की नाबालिग़ से कथित गैंगरेप का मामला हाई-प्रोफ़ाइल होने की वजह से प्रदेश में एक राजनीतिक विवाद का कारण बन गया है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    छत्तीसगढ़ : दो सूत्रीय मांगों को लेकर बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दिया
    04 Jun 2022
    राज्य में बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दे दिया है। दो दिन पहले इन कर्मियों के महासंघ की ओर से मांग न मानने पर सामूहिक इस्तीफ़े का ऐलान किया गया था।
  • bulldozer politics
    न्यूज़क्लिक टीम
    वे डरते हैं...तमाम गोला-बारूद पुलिस-फ़ौज और बुलडोज़र के बावजूद!
    04 Jun 2022
    बुलडोज़र क्या है? सत्ता का यंत्र… ताक़त का नशा, जो कुचल देता है ग़रीबों के आशियाने... और यह कोई यह ऐरा-गैरा बुलडोज़र नहीं यह हिंदुत्व फ़ासीवादी बुलडोज़र है, इस्लामोफ़ोबिया के मंत्र से यह चलता है……
  • आज का कार्टून
    कार्टून क्लिक: उनकी ‘शाखा’, उनके ‘पौधे’
    04 Jun 2022
    यूं तो आरएसएस पौधे नहीं ‘शाखा’ लगाता है, लेकिन उसके छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने एक करोड़ पौधे लगाने का ऐलान किया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License