NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
नज़रिया
मज़दूर-किसान
भारत
राजनीति
अर्थव्यवस्था
क्या आज बेरोज़गारी पर बात न करना देश के 135 करोड़ लोगों की अवमानना नहीं है!
वे सुशांत की मौत को राष्ट्रीय मुद्दा बना सकते हैं। वे ‘रसोड़े में कौन था’ को राष्ट्रीय सवाल की तरह पेश कर सकते हैं। वे ‘बिनोद’ को टॉप ट्रेंड करा सकते हैं। वे ऐसे नाज़ुक समय में भी 6 जोड़ी कपड़े बदलकर निरपेक्ष भाव से मोर को दाना खिला सकते हैं और आप, और हम...। हम और आप अपने रोज़ी-रोटी के सवालों को ठीक ढंग से नहीं उठा सकते।
मुकुल सरल
27 Aug 2020
UNEMPLOYMENT

दुहाई है, दुहाई है, मी लॉर्ड!, लोकतंत्र की अवमानना हो रही है और आप स्वत: संज्ञान ही नहीं लेते।

135 करोड़ जनता की ज़िंदगी और मौत का सवाल है और आप तनिक भी चिंतित नहीं हैं।

और आप ही क्या, हमारे महान नेता, हमारे शासक, हमारा विपक्ष, हमारा मीडिया और हम...हम कहां चिंतित हैं, अपने सवालों को लेकर!

आज देश का मुद्दा क्या होना चाहिए, आज 135 करोड़ भारतीयों का सवाल क्या होना चाहिए, आज ‘नेशन वांट्स टू नो (Nation wants to know)’ क्या होना चाहिए....

यही कि हमारी रोज़ी-रोटी का क्या होगा? हमारी नौकरी कहां गई?

हमारे बच्चों का भविष्य क्या होगा?

कोरोना कैसे कंट्रोल होगा?

वैक्सीन कब तक बनेगी, हमारे अस्पताल कब तक सुधरेंगे?

यही सब सवाल है जो आज पूछे जानें चाहिए

लेकिन नहीं, सवाल तो कुछ और पूछे और बनाए जा रहे हैं।

आप जानते हैं कि बेरोज़गारी का इस समय क्या आलम है!

सिर्फ़ जुलाई महीने में 50 लाख वेतनभोगियों की नौकरी चली गई। पिछले चार महीनों में करीब 2 करोड़ लोग बेरोज़गार हो गए।

CMIE (Centre for Monitoring Indian Economy) की ताज़ा रिपोर्ट में बताया गया कि मार्च से जुलाई के बीच देश में 1.9 करोड़ वेतनभोगियों की नौकरी चली गयी है और बेरोजगारी दर 9.1% पहुँच गयी है।

रोज़गार और बेरोज़गारी का क्या अनुपात है, इसे इस एक उदाहरण से जाना जा सकता है कि केंद्र सरकार के जॉब पोर्टल ASEEM ( Atmnirbhar Skilled Employee Employer Mapping) पर पिछले 40 दिनों में 69 लाख बेरोजगारों ने रजिस्टर किया जिसमें काम मिला 7700 को अर्थात 0.1% लोगों को यानी 1000 में 1 आदमी को। इसी तरह केवल 14 से 21 अगस्त के बीच 1 सप्ताह में 7 लाख लोगों ने रजिस्टर किया जिसमें मात्र 691 लोगों को काम मिला, जो 0.1% यानी 1000 में 1 से भी कम है। अपनी अति महत्वाकांक्षी आत्मनिर्भर योजना के तहत प्रधानमंत्री ने 11 जुलाई को यह पोर्टल लांच किया था।

इसे पढ़ें : क्या बेरोज़गारी की महा आपदा से ऐसे ही निपटा जाएगा ?

CMIE के अनुसार वेतन भोगी जॉब लंबे समय से बढ़ नहीं रहे थे। पिछले 3 साल से वह 8 से 9 करोड़ के बीच रुके थे। 2019-20 में यह आंकड़ा 8.6 करोड़ था जो लॉकडाउन के बाद 21% गिरकर अप्रैल में 6.8 करोड़ पर आ गया और अब जुलाई के अंत तक और गिरकर 6.72 करोड़ तक आ गया है। इस तरह पिछले 4 महीने में 1 करोड़ 89 लाख नौकरियाँ चली गईं। दिहाड़ी मजदूरी के 68 लाख काम वापस नहीं आ पाए और बिजनेस में 1 लाख।

इसे भी पढ़ें: दूसरी महामारी- बेरोज़गारी

इस कोरोना महामारी के दौर में यही अहम सवाल हैं जो जीवन-मरण के सवाल हैं। कृषि ने लोगों को थोड़ा बहुत सहारा दिया लेकिन वो भी अल्पकालिक। वहां न पैसा है न इतने सरप्लस लोगों के लिए काम।

इसे देखें : रोज़गार में छिपी बेरोज़गारी की असलियत

देश का औद्योगिक उत्पादन इस बार जून में सालाना आधार पर 16.6 प्रतिशत घट गया। सरकारी आंकड़े के अनुसार मुख्य रूप से विनिर्माण, खनन और बिजली उत्पादन कम रहने से औद्योगिक उत्पादन में गिरावट आयी।

औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआई) आंकड़े के अनुसार जून महीने में विनिर्माण क्षेत्र के उत्पादन में 17.1 प्रतिशत जबकि खनन और बिजली उत्पादन में क्रमश: 19.8 प्रतिशत और 10 प्रतिशत की गिरावट आयी।

हम कितने बड़े संकट में फंस गए हैं इसका आपको शायद अंदाज़ा भी नहीं है। साल 1979-80 के बाद भारत पहली बार नेगेटिव इकोनामिक ग्रोथ की तरफ बढ़ रहा है।

इसे पढ़ें : 10 पॉइंट जो आपको मौजूदा समय की बदहाल अर्थव्यवस्था की पूरी कहानी बता देंगे!

इसे भी देखें : आज़ाद भारत के सबसे बुरे दिन

संकट बड़ा है लेकिन हम क्या देख रहे हैं कि इस पर बात नहीं हो रही।

सरकार या तो मंदिर पर बात करेगी या मोर पर।

सरकार के मुखिया और हमारे ‘प्रधानसेवक’ इस नाज़ुक समय में निरपेक्ष भाव से 6 परिधान बदलकर मोर को दाना खिलाते हुए वीडियो अपलोड करेंगे और हम सब उसपर बहस।

आप पूछेंगे रोज़गार कहां है? वे कहेंगे चुप्प...........देख नहीं रहे साहेब मोर को दाना खिला रहे हैं। तुम बीच में व्यवधान डाल रहे हो, पता है ये राजद्रोह/देशद्रोह की श्रेणी में आता है। राष्ट्र के प्रधान, राष्ट्रीय पक्षी को भोजन करा रहे हैं और तुम रोटी-रोटी कहकर शोर मचा रहे हो। यूएपीए में बंद कर दिए जाओगे, नहीं तो एनएसए तो है ही।

सरकार से निराश होकर आप किसके पास जाओगे, अपनी व्यथा लेकर- मीडिया के पास। लेकिन मीडिया के पास आप का दुख-दर्द सुनने का समय ही नहीं है। वो तो इस साल की सबसे बड़ी मिस्ट्री सुशांत आत्महत्या बनाम हत्या का केस सुलझाने में व्यस्त है। सीबीआई से पहले 24 घंटे की सतत कवरेज़ ने ये तो लगभग साबित ही कर दिया है कि सुशांत ने आत्महत्या नहीं की बल्कि उसकी हत्या की गई है। पहले हत्या का दोषी कंगना रनौत के कहने पर नेपटिज़म यानी भाई-भतीजावाद को मान लिया गया, अब सूत्रों और परिवार के कहने पर उनकी महिला दोस्त रिया चक्रवर्ती को। चैनल के स्टूडियो में इसपर 24 घंटे बहस हो रही है। और रिया को लगभग न सिर्फ़ एक हत्यारिन, षड्यंत्रकारी साबित कर दिया गया है, बल्कि एक ‘डायन’ के रूप में प्रस्तुत कर दिया गया है।

हम सोचते हैं कि देश के कई इलाकों में आज भी लोग कैसे महिलाओं को डायन कहकर/समझकर मार डालते हैं। हम ऐसी सोच और लोगों को पिछड़े समाज का मानते हैं लेकिन हमारे आधुनिक समाज में क्या हो रहा है। टीवी चैनलों की 24 घंटे की सतत बहस ने रिया चक्रवर्ती को एक तरह से डायन ही तो साबित कर दिया है। इन चैनलों में बैठे हमारे कथित सभ्य, आधुनिक एंकर, जिसमें महिला, पुरुष दोनों शामिल हैं ने एक महिला को इस तरह से पेश किया है कि किसी दिन उनकी मॉब लिंचिंग हो जाए तो हैरत मत कीजिएगा।

यही सब तबलीग़ी जमात को लेकर किया गया था। आपको याद होगा मार्च से अप्रैल का वह समय जब चैनलों पर 24 घंटें इसी पर बहस हो रही थी और तबलीगी जमात को कोरोना का विलेन, कोरोना कैरियर और कोरोना जेहादी तक ठहरा दिया गया था। और अब जब बोम्बे हाईकोर्ट ने सरकार समेत मीडिया की फटकार लगाई है तो सबने चुप्पी साध ली।

आपको जानना चाहिए कि बोम्बे हाईकोर्ट ने क्या कहा। बोम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद पीठ ने कहा है कि इस साल मार्च में दिल्ली में तबलीग़ी जमात के एक कार्यक्रम में भाग लेने वाले विदेशी नागरिकों को ‘‘बलि का बकरा’’ बनाया गया और उनपर आरोप लगाया गया कि देश में कोविड-19 को फैलाने के लिए वे जिम्मेदार थे। पीठ ने अपने आदेश में रेखांकित किया कि दिल्ली में मरकज में आए विदेशी लोगों के खिलाफ बड़ा दुष्प्रचार किया गया था।

अदालत ने अपने आदेश में कहा, ‘‘महामारी या विपत्ति आने पर राजनीतिक सरकार बलि का बकरा ढूंढने की कोशिश करती है और हालात बताते हैं कि संभावना है कि इन विदेशी लोगों को बलि का बकरा बनाने के लिए चुना गया था।’’

इससे थोड़ा पीछे चलें तो आज जो मीडिया सुशांत मामले में बौराया है, उसने यही सब लगभग 2008 में आरुषि हत्याकांड और 2006 में निठारी मामले में किया था। इन दोनों ही मामलों की जांच भी सीबीआई ने की थी और उसका क्या हश्र हुआ हम सब जानते हैं।

आपने और हमने सबने देखा कि उस समय भी क्या भयंकर पागलपन था। सीबीआई से आगे बढ़कर मीडिया रोज़ नये एंगल निकाल रहा था। किसे-किसे नहीं आरोपी ठहराया गया और फिर क्या हुआ।

आरुषि कांड में पहले उनके नौकर हेमराज जो खुद मारे जा चुके थे, उन्हें दोषी ठहराया गया, फिर उनकी लाश मिलते ही न जाने कहां से रोज़ नए किरदार ढू्ंढे जा रहे थे। पुलिस ने कैसे जांच की, सीबीआई ने किस तरह केस हैंडल किया।

सीबीआई की दो-दो बार जांच हुई और एक-दूसरे से उलट परिणाम आया। और अंतत: आरुषि के मां-बाप को ही दोषी ठहराकर, जिसका शक पहले दिन ही जताया गया था, केस बंद कर दिया गया।

इसी तरह 2006 में सामने आए निठारी कांड में हुआ। आपने देखा होगा कि कैसे आदमख़ोर की स्टोरी चलाईं गई, कैसे नए-नए एंगल निकाले गए और अंत में एक नौकर सुरेंद्र कोली को नरपिशाच ठहराए जाने के बाद कहानी बंद हो गई। इस मामले में मालिक मनिंदर सिंह पंढेर को भी सज़ा मिली। लेकिन पूरी असलियत आज तक सामने नहीं आई।

कुल मिलाकर इन दोनों केसों की जांच से लोग आज तक संतुष्ट नहीं हैं और सीबीआई ने किसी तरह अपना पीछा छुड़ा लिया। और मीडिया भी नई कहानी (शिकार) की तलाश में आगे निकल गया।

और आपने यह भी देखा है कि कैसे कई अहम मामलों में सीबीआई जांच ही नहीं करती और मीडिया भी कान नहीं धरता। चाहे वो तर्कवादी डॉ. नरेंद्र दाभोलकर का मामला हो या गोविंद पानसरे का। या फिर विद्वान और लेखक एम एम कलबुर्गी और पत्रकार गौरी लंकेश का। ख़ैर, इसकी लिस्ट बहुत लंबी है।

और अभी एनआईए भीमा कोरेगांव मामले को कैसा रंग दे रही है और दिल्ली पुलिस भी दिल्ली दंगों को किस तरह का मोड़ दे दिया गया है और इन मामलों में कैसे एक पक्षीय कार्रवाई और गिरफ़्तारियां हो रही हैं, वो आप सब देख ही रहे हैं।

लेकिन ये सिर्फ़ उनकी मजबूती ही नहीं, हमारी कमज़ोरी भी है। हमने ही एक मजबूत सरकार चाही थी, ऐसी और इतनी मजबूत कि उसके सामने सारा विपक्ष बौना हो जाए। तो अगर मजबूत विपक्ष नहीं होगा तो सरकार की मनमानियों पर लगाम कौन लगाएगा। और हमने भी क्या चाहा, विपक्ष ने खुद अपने को इतना कमज़ोर कर लिया कि सड़क पर आंदोलन के लिए उतरने में ही उसके पसीने छूट जाते हैं। कोई आंदोलन भी होता है तो रस्म अदायगी के लिए। उससे ज़्यादा तो सिविल सोसायटी वाले लोग आंदोलन कर लेते हैं। ‘वे’ कोरोना काल में चुनावी रैली भी कर लेते हैं, सरकार गिरा और बना भी लेते हैं और विपक्ष के सांकेतिक प्रदर्शन में भी होश उड़े जा रहे हैं।

ये हैरतअंगेज़ है कि वे ‘बिनोद’ और ‘रसोड़े में कौन था’ जैसी बकवास को राष्ट्रीय मुद्दा बनाकर टॉप पर ट्रेंड करा देते हैं। जब वे इस महामारी काल में मोर के साथ पोज़ बनाते हैं। छह बार कपड़े बदलकर वीडियो शूट कराते हैं। और ये सब करते ही नहीं बल्कि ऐसा करते दिखाते भी हैं- सोशल साइट्स पर वीडियो अपलोड करते हैं और जताते हैं कि तुम मचाते रहो शोर कि आज कोरोना के 70 हज़ार नए केस आए, 75 हज़ार नये केस आए। कहते रहो कि आज 1000 से ज़्यादा मौत हो गईं। कहते रहो कि कुल केस 33 लाख से ऊपर पहुंच गए हैं, कुल मौतें 60 हज़ार से ज़्यादा हो गईं हैं। कहते रहो कि नये मामलों में हम दुनिया में लगातार तीन हफ्ते से पहले नंबर पर है। ऐसा पहला नंबर तो नहीं चाहा था हमने, लेकिन नहीं। वे नहीं सुनेंगे। वे तो परम निरपेक्ष भाव से कभी जिम कार्बेट में शूटिंग करेंगे कभी अपने पीएम आवास में। उन्हें जो करना होगा वे करेंगे। वे राम मंदिर का शिलान्यास भी करेंगे और इसे नये भारत का उदय बता देंगे। लेकिन आप कुछ नहीं कह पाएंगे, कर पाएंगे।

कोर्ट को भी इस सब से लेना-देना नहीं है, उसके फ़ैसले किस आधार पर आ रहे हैं, वह नहीं देख रहा है। उसके फ़ैसलों का कैसा राजनीतिक प्रयोग हो रहा है, वह नहीं देख रहा है। वह बस देख रहा है कि किसी ने दो ट्वीट कर कोई सवाल उठा दिया तो कैसे उठा दिया। ये तो मानहानि हो गई। उसे माफ़ी मांगनी चाहिए। नहीं भी चाहता तब भी माफ़ी मांगनी होगी ताकि हमारा अहं संतुष्ट हो सके। लेकिन यह नहीं देख रहा कि इस लोकतंत्र की किस तरह अवमानना हो रही है, अवाम की किस तरह मानहानि हो रही है। इसके लिए कौन ज़िम्मेदार है, सवाल आपकी तरह सिर्फ़ माफ़ी का नहीं है मी लॉर्ड!, सवाल हमारी ज़िंदगी और मौत का है। देश की 135 करोड़ जनता की ज़िंदगी और मौत का सवाल। और ये सवाल आपसे है ‘साहेब’...मेरे सरकार

मुल्क मेरे तुझे हुआ क्या है ?

यही अच्छा है तो बुरा क्या है ! 

सारे रहज़न करें तेरी जय-जय

मेरे ‘रहबर’ ये माजरा क्या है !

 

 

unemployment
UNEMPLOYMENT IN INDIA
health care facilities
COVID-19
Lockdown
India Lockdown
economic crises
Modi government
modi sarkar
Indian media
Godi Media
sushant singh rajput
binod
rasode me kon tha

Related Stories

PM की इतनी बेअदबी क्यों कर रहे हैं CM? आख़िर कौन है ज़िम्मेदार?

भारत को मध्ययुग में ले जाने का राष्ट्रीय अभियान चल रहा है!

17वीं लोकसभा की दो सालों की उपलब्धियां: एक भ्रामक दस्तावेज़

कार्टून क्लिक: चुनाव ख़तम-खेल शुरू...

कश्मीर फाइल्स: आपके आंसू सेलेक्टिव हैं संघी महाराज, कभी बहते हैं, और अक्सर नहीं बहते

जनादेश-2022: रोटी बनाम स्वाधीनता या रोटी और स्वाधीनता

हम भारत के लोग: समृद्धि ने बांटा मगर संकट ने किया एक

हम भारत के लोगों की असली चुनौती आज़ादी के आंदोलन के सपने को बचाने की है

हम भारत के लोग : इंडिया@75 और देश का बदलता माहौल

हम भारत के लोग : हम कहां-से-कहां पहुंच गये हैं


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    दिल्ली उच्च न्यायालय ने क़ुतुब मीनार परिसर के पास मस्जिद में नमाज़ रोकने के ख़िलाफ़ याचिका को तत्काल सूचीबद्ध करने से इनकार किया
    06 Jun 2022
    वक्फ की ओर से प्रस्तुत अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि यह एक जीवंत मस्जिद है, जो कि एक राजपत्रित वक्फ संपत्ति भी है, जहां लोग नियमित रूप से नमाज अदा कर रहे थे। हालांकि, अचानक 15 मई को भारतीय पुरातत्व…
  • भाषा
    उत्तरकाशी हादसा: मध्य प्रदेश के 26 श्रद्धालुओं की मौत,  वायुसेना के विमान से पहुंचाए जाएंगे मृतकों के शव
    06 Jun 2022
    घटनास्थल का निरीक्षण करने के बाद शिवराज ने कहा कि मृतकों के शव जल्दी उनके घर पहुंचाने के लिए उन्होंने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से वायुसेना का विमान उपलब्ध कराने का अनुरोध किया था, जो स्वीकार कर लिया…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    आजमगढ़ उप-चुनाव: भाजपा के निरहुआ के सामने होंगे धर्मेंद्र यादव
    06 Jun 2022
    23 जून को उपचुनाव होने हैं, ऐसे में तमाम नामों की अटकलों के बाद समाजवादी पार्टी ने धर्मेंद्र यादव पर फाइनल मुहर लगा दी है। वहीं धर्मेंद्र के सामने भोजपुरी सुपरस्टार भाजपा के टिकट पर मैदान में हैं।
  • भाषा
    ब्रिटेन के प्रधानमंत्री जॉनसन ‘पार्टीगेट’ मामले को लेकर अविश्वास प्रस्ताव का करेंगे सामना
    06 Jun 2022
    समिति द्वारा प्राप्त अविश्वास संबंधी पत्रों के प्रभारी सर ग्राहम ब्रैडी ने बताया कि ‘टोरी’ संसदीय दल के 54 सांसद (15 प्रतिशत) इसकी मांग कर रहे हैं और सोमवार शाम ‘हाउस ऑफ कॉमन्स’ में इसे रखा जाएगा।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में कोरोना ने फिर पकड़ी रफ़्तार, 24 घंटों में 4,518 दर्ज़ किए गए 
    06 Jun 2022
    देश में कोरोना के मामलों में आज क़रीब 6 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है और क़रीब ढाई महीने बाद एक्टिव मामलों की संख्या बढ़कर 25 हज़ार से ज़्यादा 25,782 हो गयी है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License