NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
नज़रिया
भारत
राजनीति
भाजपा की हिंदुत्ववादी राजनीति और दिल्ली चुनाव 
भाजपा का दिल्ली चुनाव अभियान कोई संयोग नहीं था। यह उनका प्रयोग था जिसे वो अन्य चुनावों में ले जाएगी।
सुभाष गाताडे
19 Feb 2020
Translated by महेश कुमार
bjp

कितने आदमी थे?

सत्तर के दशक की शुरुआत में बनी सबसे अधिक सफल और लोकप्रिय फ़िल्म ‘शोले’ के मोनोलोग पर आधारित एक मीम उस वक़्त ट्रेंड हुआ जब दिल्ली के हालिया विधानसभा चुनावों में "डेविड" केजरीवाल, आम आदमी पार्टी (आप) के नेता ने "गोलियथ" भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को हरा दिया था। 

इसमें कोई संदेह नहीं है कि इस चुनाव परिणाम की वजह से गृह मंत्री अमित शाह को कम से कम अभी के लिए भारतीय राजनीति के "चाणक्य" की इमेज बनाए रखने के प्रयासों को नुकसान हुआ है। नतीजा यह है कि दिल्ली में अपनी जीत के लिए बेताब बीजेपी की पुरज़ोर कोशिशों के बावजूद, जिसके लिए मुख्यमंत्रियों, पूर्व मुख्यमंत्रियों, कैबिनेट मंत्रियों और संसद के 240 से अधिक सदस्यों ने शहर भर में प्रचार किया था, ख़ासी विफलता हाथ लगी। इस हार के लिए उनके उस ऊंचे दांव को दोष देना होगा जिसके तहत उन पर चुनाव से ठीक पहले नकदी और शराब बांटने का आरोप लगा था।

अब परिणाम सबके सामने हैं

इस तरह का विषैला चुनाव अभियान, शायद ही कभी देखा गया जिसमें सत्तारूढ़ दल के नेताओं ने नफ़रत भरे भाषणों के माध्यम से हिंसा को उकसाया, फिर भी उसने काम नहीं किया। भाजपा की केवल पांच सीट बढ़ी वह भी कटी नाक के साथ।

भाजपा राज्यों के चुनाव हार रही है और इसे क्षेत्रीय पार्टियों से सहयोग लेने के लिए मजबूर होना पड़ा है, इनमें वे पार्टियां भी शामिल हैं जिन्होंने भाजपा विरोधी मंच से (जैसा कि हरियाणा में हुआ था) चुनाव लड़ा था। यह सब तब हो रहा है जब इसने नौ महीने पहले ही केंद्र में लगातार दूसरी बार सरकार बनाई है।

एक अखिल भारतीय पैमाने का विशाल प्रतिरोध देश में चल रहा है जो विवादास्पद सीएए-एनआरसी-एनपीआर (नागरिकता संशोधन विधेयक, राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर, राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर) के ख़िलाफ़ है और अभी भी थमने का नाम नहीं ले रहा है। इस आंदोलन की गूंज विदेशों में भी सुनाई दे रही है, जिसने निश्चित रूप से भाजपा को रक्षात्मक बना दिया है। इन विवादास्पद नीतियों को अपनाने से पहले, भाजपा ने संसद में एक कानून पारित किया था जो ट्रिपल तालक को आपराधिक अपराध बनाता है। इसने जम्मू और कश्मीर के विशेष दर्जे को भी निरस्त कर दिया था। इन कदमों के ख़िलाफ़ मोदी सरकार को ज्यादा प्रतिरोध का सामना नहीं करना पड़ा।

फिर भाजपा को अयोध्या मामले में अनुकूल फैसला आने से एक मौका मिला था। इन नए उपजे हालात  ने पार्टी को सीएए के तहत संविधान की मूल संरचना को बदलने के लिए प्रेरित किया और सरकार को ऐसा करने की अनुमति दे दी। बेशक, भाजपा के विश्व दृष्टिकोण के मामले में सीएए और एनआरसी भारत के दो सबसे बड़े समुदायों को विभाजित करने से अधिक कुछ नहीं है। उन्हौने सोचा कि फिर से  इन कदमों का भी कोई विरोध नहीं करेगा। लेकिन वास्तविकता इससे बिल्कुल उलट निकली।

अगर भाजपा दिल्ली का चुनाव जीत जाती, तो उनका विभाजनकारी बयानबाजी करने का औचित्य साबित हो जाता। इसके नेताऑ और समर्थकों ने शाहीन बाग प्रदर्शनकारियों को 'पाकिस्तान-समर्थक' और 'आतंकवादियों से हमदर्दी रखने” वाले बताया था। उनकी इस एक जीत से पार्टी को उनकी नीतियों के लिए जनता का समर्थन माना जाता और वह इस संदेश को बिहार और बंगाल तक ले जाती, जहां आगे विधानसभा चुनाव होने हैं।

स्पष्ट कहा जाए तो चुनावी नुकसान का मतलब यह नहीं है कि बीजेपी को हिंदूवादी मतदाताओं को  रणनीतिक रूप से किए लक्ष्य से कोई लाभ नहीं हुआ है। उनका वोट शेयर 8 प्रतिशत बढ़ा है और उनकी  मुख्य प्रतिद्वंद्वी यानि कांग्रेस पार्टी का सफाया हो गया है। चुनाव जीतना भाजपा के लिए महत्वपूर्ण है, लेकिन इसका एजेंडा चुनावों से परे है, जैसा कि कई लोग बताते हैं और हाल ही में प्रमुख बुद्धिजीवी  प्रताप भानु मेहता ने कहा है। यह एजेंडा सांस्कृतिक रूप से भारत को बदलने का है। जैसा कि मेहता ने हाल ही में लिखा है, “चुनाव आएंगे और जाएंगे। लेकिन भाजपा एक दीर्घकालिक सांस्कृतिक परिवर्तन द्वारा ही अपनी सफलता को मापेगी। इस सांस्कृतिक परिवर्तन का लक्ष्य दोहरा है। एक तो हिंदू बहुमतवाद/अधिनायकवाद को मुखर करना है। लेकिन साथ ही हिंदू धर्म को विभिन्न धार्मिक प्रथाओं से एक समेकित जातीय पहचान में बदलने का भी है।"

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ या आरएसएस, संघ परिवार (जिसमें भाजपा भी शामिल है) ने 1984 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद चुनावों के दौरान कांग्रेस पार्टी का समर्थन किया था। भाजपा  उस लोकसभा चुनाव में केवल दो सीटें ही जीत पाई थीं, लेकिन चुनाव से लगभग एक महीने पहले आरएसएस के विचारक नानाजी देशमुख ने हिंदी पत्रिका, प्रतिपक्ष में लिखा था कि उनके अनुयायियों को राजीव गांधी, इंदिरा के बेटे और भविष्य के प्रधानमंत्री को "आशीर्वाद और सहयोग" देना चाहिए।

इसलिए, यह कोई संयोग नहीं था कि भाजपा का दिल्ली चुनावी अभियान विभाजनकारी और ध्रुवीकरण करने वाला प्रयोग था। यह भाजपा द्वारा तैयार किया गया खाका है और जिसे अन्य चुनावों में भी इस्तेमाल किया जाएगा।

बिहार और बंगाल की संकुचित और सांप्रदायिक संघर्ष के लंबे इतिहास को देखते हुए, भाजपा की कोशिश होगी कि उसके विषाक्त चुनाव प्रचार से दोनों राज्यों में खून बहने की संभावना के अलावा सामाजिक ताने-बाने को भी नुकसान हो।

कुछ विश्लेषकों का कहना है कि ‘आप’ की चुनावी जीत भाजपा द्वारा प्रायोजित नफरत की राजनीति की हार है। राजनीति की सीमित समझ रखने वालों के लिए यह सही विश्लेषण है: जबकि संघ-भाजपा की रणनीति के व्यापक ढांचे में देखी जाने वाली घृणा की राजनीति एक पूरी तरह से अलग कहानी कहती है।

पिछले चुनावों के बाद से भाजपा के पक्ष में 8 प्रतिशत वोटों का बढ़ना कोई छोटी बात नहीं है क्योंकि  यह हाल के दिनों में उनके जहरीले अभियान का नतीजा है। इससे पहले कभी भी कैबिनेट मंत्रियों और पार्टी नेताओं ने ‘अन्य’ के खिलाफ हिंसा के लिए प्रत्यक्ष रूप से उकसाया नहीं था। इससे पहले कभी भी चुने हुए सांसदों ने अल्पसंख्यकों को कलंकित नहीं किया और खुले तौर पर सांप्रदायिक बयानबाजी के जरिए बहुमत समुदाय की भावनाऑ को उकसाया नहीं था।

इस तरह की जहरीली बयानबाजी को बड़े पैमाने पर संगठित, योजनाबद्ध और व्यवस्थित तरीके से इस्तेमाल किया गया था। इसके पीछे के तर्क का मूल तत्व यह था कि "हिंदू खतरे में हैं" - यह मत पूछो कि 85 प्रतिशत आबादी 15 प्रतिशत अल्पसंख्यक से कैसे खतरे की कल्पना कर सकती है।

सोशल मीडिया- व्हाट्सएप, फेसबुक - ने सांप्रदायिक प्रचार फैलाया, जिससे भाजपा को झूठ को हथियार बनाने के उद्देश्य में सफलता मिली। एक सम्झौतापरस्त मीडिया के साथ, संवैधानिक मूल्यों को बरकरार रखने में असफल नौकरशाही और प्रमुख संस्थान की वजह से विभाजनकारी बयानबाजी को दिल्ली चुनाव अभियान में जगह मिल गई।

 

जैसे-जैसे नफरत की राजनीति का पर्दाफाश हुआ क्या किसी भी राजनीतिक दल की यह ज़िम्मेदारी नहीं थी कि वह - विशेष कर सत्ता पक्ष के दल को जिसे सत्ता भोगने का अनुभव है, और जो ऐसी राजनीतिक को नहीं मानता है जो सांप्रदायिकता पर आधारित है- इस तरह की नफ़रत फैलाने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई सुनिश्चित कर सकते थे? ‘आप’ इसमें बुरी तरह विफल रही, क्योंकि उसने इन बहसों में शामिल होने से इंकार कर दिया। इसने चुप रहना और केवल अपने काम पर ध्यान केंद्रित करने की रणनीति को सार्थक समझा।

जब भाजपा और उसके नेता खुलेआम सांप्रदायिक जहर उगल रहे थे और चुनाव आयोग जैसी संस्था  भड़काऊ भाषण के लिए सीमित अवधि के लिए प्रतिबंध लगा रही थी, और इस तरह के घृणित भाषण के खिलाफ कड़े क़ानूनों को लागू करने को नजरअंदाज कर रही थी – तो चुनाव आयोग पर अधिक दबाव बनाने के लिए कोई भी नहीं था जो उसे पेशेवर अंदाज़ में कदम उठाने के लिए कहता।

मोदी-शाह जोड़ी की हिंदू-मुस्लिम की राजनीति के जाल में न पड़ने के लिए मीडिया के एक तबके ने केजरीवाल की काफी सराहना की है। इसमें कोई संदेह नहीं कि अगर राष्ट्रीय विवादों को नजरअंदाज करते हुए राजनीति को केवल वोट इकट्ठा करने तक सीमित रखना है, तो यह वाकई एक स्मार्ट कदम था। लेकिन संविधान की मूल भावना को समाप्त करने के लिए एक सचेत प्रयास किया जा रहा है। इस खुली बहस पर मौन अत्यधिक संदिग्ध बात है।

सबसे अधिक परेशान करने वाली बात यह है कि लंबे समय तक केजरीवाल ने शाहीन बाग पर कोई स्टैंड ही नहीं लिया, लेकिन जब एक बहस में घिर गए तो उन्होंने प्रदर्शनकारियों से रास्ता साफ करने में शाह की विफलता पर सवाल उठाया। और उन्हौने कहा कि "अगर दिल्ली पुलिस राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में होती, तो दो घंटे के भीतर शाहीन बाग रोड को खोल दिया जाता।" इस प्रकार, अनजाने में या गैर-अनजाने में सही लेकिन वे अल्पसंख्यकों के खिलाफ प्रमुख पूर्वाग्रह से ग्रस्त हो गए थे।

केजरीवाल का अचानक से हनुमान भक्त बन जाना और हनुमान मंदिर जाकर हनुमान चालीसा का पाठ करना मूल रूप से इसी तरह की भावनाओं को पूरा करता है। सवाल यह उठता है कि क्या केजरीवाल का रवैया हाल की घटी ताज़ी घटना है या यह हमेशा से उनके व्यक्तित्व का हिस्सा है। यहाँ यह याद रखें, कि उन्होंने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने का समर्थन किया था; और जब ‘आप’ की कांग्रेस के साथ गठबंधन की संभावना पिछले चुनाव से पहले ख़त्म हो गई थी, तब उन्होंने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में दावा किया था कि उनकी पार्टी के सर्वेक्षणों के अनुसार, “कोई भी हिंदू वैसे भी कांग्रेस को वोट नहीं देगा। मुसलमान शुरू में भ्रमित थे, लेकिन अब वे हमें वोट देंगे। स्पष्ट रूप से यह दावा ”मतदाताओं का ध्रुवीकरण करने के लिए किया गया था।

विश्लेषकों ने नोट किया है कि केजरीवाल ने अपनी हिंदू के रूप में पहचान को मजबूत करने का प्रयास किया है। लोकसभा परिणामों के बारह दिन बाद, 4 जून को, केजरीवाल ने एक तस्वीर, “स्वामीनारायण भगवान का अभिषेक” करते हुए और चार अन्य तस्वीरें ‘आप’ के आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर साझा की थी। उन्होंने ईद की शुभकामनाएं देते हुए भी ट्वीट किया- "आप सब को ईद मुबारक", लेकिन बिना किसी तस्वीर के साथ।

रिपोर्ट्स बताती हैं कि उन्होंने कठुआ गैंगरेप और हत्या के मामले में अदालत के फैसले का स्वागत किया था, लेकिन पहलू खान लिंचिंग मामले पर वे चुप रहे – और परिवार को न्याय नहीं मिलने पर पूरी तरह से मूक रहे। बाद वाले मामले में केवल उनके डिप्टी मनीष सिसोदिया ने ट्वीट किया, लेकिन केजरीवाल चर्चा में नहीं रहे।

केजरीवाल के नेतृत्व में ‘आप’ चुनाव जीत गई है, लेकिन जैसा कि स्तंभकार स्वाति चतुर्वेदी ने सही कहा है, कि "जो कोई भी यह कहता है कि दिल्ली के परिणाम ने हठधर्मिता पर पर्दा डाल दिया है वह भ्रम में है।"

(लेखक एक स्वतंत्र पत्रकार हैं और व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं।)

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

Towards BJP’s Hindutva Lite Template

Hanuman
pehlu khan
Arvind Kejriwal
Amit Shah
Narendra modi
Communalism
Bigotry

Related Stories

PM की इतनी बेअदबी क्यों कर रहे हैं CM? आख़िर कौन है ज़िम्मेदार?

ख़बरों के आगे-पीछे: MCD के बाद क्या ख़त्म हो सकती है दिल्ली विधानसभा?

विचार: सांप्रदायिकता से संघर्ष को स्थगित रखना घातक

ख़बरों के आगे-पीछे: मोदी और शी जिनपिंग के “निज़ी” रिश्तों से लेकर विदेशी कंपनियों के भारत छोड़ने तक

ख़बरों के आगे-पीछे: राष्ट्रपति के नाम पर चर्चा से लेकर ख़ाली होते विदेशी मुद्रा भंडार तक

यूपी में संघ-भाजपा की बदलती रणनीति : लोकतांत्रिक ताकतों की बढ़ती चुनौती

बात बोलेगी: मुंह को लगा नफ़रत का ख़ून

ख़बरों के आगे-पीछे: पंजाब पुलिस का दिल्ली में इस्तेमाल करते केजरीवाल

ख़बरों के आगे-पीछे: क्या अब दोबारा आ गया है LIC बेचने का वक्त?

बढ़ती हिंसा व घृणा के ख़िलाफ़ क्यों गायब है विपक्ष की आवाज़?


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    दिल्ली उच्च न्यायालय ने क़ुतुब मीनार परिसर के पास मस्जिद में नमाज़ रोकने के ख़िलाफ़ याचिका को तत्काल सूचीबद्ध करने से इनकार किया
    06 Jun 2022
    वक्फ की ओर से प्रस्तुत अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि यह एक जीवंत मस्जिद है, जो कि एक राजपत्रित वक्फ संपत्ति भी है, जहां लोग नियमित रूप से नमाज अदा कर रहे थे। हालांकि, अचानक 15 मई को भारतीय पुरातत्व…
  • भाषा
    उत्तरकाशी हादसा: मध्य प्रदेश के 26 श्रद्धालुओं की मौत,  वायुसेना के विमान से पहुंचाए जाएंगे मृतकों के शव
    06 Jun 2022
    घटनास्थल का निरीक्षण करने के बाद शिवराज ने कहा कि मृतकों के शव जल्दी उनके घर पहुंचाने के लिए उन्होंने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से वायुसेना का विमान उपलब्ध कराने का अनुरोध किया था, जो स्वीकार कर लिया…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    आजमगढ़ उप-चुनाव: भाजपा के निरहुआ के सामने होंगे धर्मेंद्र यादव
    06 Jun 2022
    23 जून को उपचुनाव होने हैं, ऐसे में तमाम नामों की अटकलों के बाद समाजवादी पार्टी ने धर्मेंद्र यादव पर फाइनल मुहर लगा दी है। वहीं धर्मेंद्र के सामने भोजपुरी सुपरस्टार भाजपा के टिकट पर मैदान में हैं।
  • भाषा
    ब्रिटेन के प्रधानमंत्री जॉनसन ‘पार्टीगेट’ मामले को लेकर अविश्वास प्रस्ताव का करेंगे सामना
    06 Jun 2022
    समिति द्वारा प्राप्त अविश्वास संबंधी पत्रों के प्रभारी सर ग्राहम ब्रैडी ने बताया कि ‘टोरी’ संसदीय दल के 54 सांसद (15 प्रतिशत) इसकी मांग कर रहे हैं और सोमवार शाम ‘हाउस ऑफ कॉमन्स’ में इसे रखा जाएगा।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में कोरोना ने फिर पकड़ी रफ़्तार, 24 घंटों में 4,518 दर्ज़ किए गए 
    06 Jun 2022
    देश में कोरोना के मामलों में आज क़रीब 6 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है और क़रीब ढाई महीने बाद एक्टिव मामलों की संख्या बढ़कर 25 हज़ार से ज़्यादा 25,782 हो गयी है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License