भीषण ठंड के बावजूद उत्तर प्रदेश में चुनावों के कारण सियासी तापमान बहुत ज्यादा बढ़ा हुआ है। इस बढ़े हुए तापमान को अपने पक्ष में करने के लिए हर राजनीतिक दल ने अपने-अपने दिग्गजों को मैदान में उतार दिया हैं, यानी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में बहुत कुछ पहली बार होने जा रहा है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जहां पहली बार विधानसभा के चुनावी मैदान में खुद अपने प्रतिद्वंदी को टक्कर देते नज़र आएंगे, तो वहीं अपने जनाधार को और ज़्यादा मज़बूत करने के लिए अखिलेश यादव ने भी पहली बार अपने लिए विधानसभा की एक सीट तय कर ली है। वहीं दूसरी ओर कई दलों के पार्टी अदला-बदली के कारण सीटों का समीकरण भी इस बार बदल चुका है। ऐसे में प्रदेश की किन-किन सीटों पर लोगों की नज़र रहेगी।
सबसे पहले बात करेंगे गोरखपुर की...
यहां कुल 9 विधानसभा सीटें हैं- कैम्पियरगंज, पिपराइच, गोरखपुर शहर, गोरखपुर ग्रामीण, सहजनवा, चौरी-चौरा, खजनी, बांसगांव, चिल्लूपार।
साल 2017 के विधानसभा चुनावों में यहां की आठ सीटों पर बीजेपी ने जीत दर्ज की थी जबकि एक विधानसभा सीट चिल्लूपार पर बीएसपी ने बाजी मारी थी। बीएसपी के उम्मीदवार विनय शंकर तिवारी ने बीजेपी के प्रत्याशी राजेश त्रिपाठी को 3359 वोटों के अंतर से हराया था। इसके अलावा यहां की गोरखपुर ग्रामीण विधानसभा सीट और चौरी-चौरा पर कड़ी टक्कर देखने को मिली थी।
बात गोरखपुर ग्रामीण की करें तो यहां बीजेपी के विपिन सिंह ने समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार को सिर्फ चार हज़ार वोटों से हराया था, जिसका कारण निषाद पार्टी को माना जाता है। इस विधानसभा क्षेत्र में चार लाख से ज्यादा मतदाता हैं, इनमें दलित-निषाद की कुल तादाद 1 लाख 55 हज़ार के करीब है।
वहीं अगर बात चौरी-चौरा की करें तो ये विधानसभा सीट साल 2012 में अस्तित्व में आई थी, इससे पहले ये आरक्षित सीट थी जिसका नाम मुंडेरा बाज़ार था। यहां बीजेपी की उम्मीदवार संगीता यादव ने समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार को 45,660 वोटों से हराया था। यहां करीब 3 लाख 40 हज़ार मतदाता हैं, जिसमें सबसे ज्यादा आबादी अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की है।
इस बार गोरखपुर की लड़ाई और ज्यादा दिलचस्प होने वाली है, क्योंकि खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ गोरखपुर शहर विधानसभा सीट से अपने प्रतिद्वंदी को चुनौती देते नज़र आएंगे, वहीं दूसरी ओर आज़ाद समाज पार्टी के प्रमुख चंद्रशेखर आज़ाद ने भी योगी आदित्यनाथ के खिलाफ इसी विधानसभा सीट से ताल ठोक दी हैं। यानी प्रतिष्ठा और विरासत की यह लड़ाई काफी दिलचस्प होने जा रही है।
मैनपुरी की करहल सीट से लड़ेंगे अखिलेश
गोरखपुर शहर के बाद अब मैनपुरी की करहल सीट भी बेहद दिलचस्प हो चली है, क्योंकि सपा प्रमुख अखिलेश यादव खुद यहां से चुनावी मैदान में उतरेंगे, आपको बताते चलें कि साल 2002 के बाद से इस सीट पर सिर्फ समाजवादी पार्टी का ही कब्ज़ा रहा है। करहल सीट से लगातार चार बार के विधायक सोबरन सिंह ने खुद अखिलेश के लिए वो सीट छोड़ दी है, और उन्होंने कहा है कि अखिलेश सिर्फ नामांकन कर जाएं हम उन्हें रिकॉर्ड मतों से जिताकर लखनऊ भेजेंगे। करहल विधानसभा सीट से मुलायम सिंह यादव का बेहद करीबी लगाव रहा है, मुलायम सिंह यादव ने यहां के जैन इंटर कॉलेज से ही शिक्षा ग्रहण की है, इसके अलावा इस सीट पर 38 फीसदी यादव आबादी भी इसे समाजवादी पार्टी के मुफीद बनाती है। यही कारण है कि अखिलेश यादव ने रिकॉर्ड जीत के लिए इस सीट का चुनाव किया है।
प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र पर रहेगी नज़र
उत्तर प्रदेश चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को फिर से सत्ता में लाने के लिए ताबड़तोड़ रैलियां कर चुके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र वाराणसी भी बेहद चर्चा में हैं, यहां 8 विधानसभा सीटें हैं- वाराणसी उत्तरी, वाराणसी कैंटोनमेंट, रोहनिया, शिवपुर, सबरी, पिंडरा, अजगरा(आरक्षित सीट), और वाराणसी दक्षिणी
सबसे पहले बात करते हैं वाराणसी उत्तरी विधानसभा सीट की- इस सीट पर 1951 से 2017 तक 19 विधानसभा चुनावों में तीन बार भारतीय जनसंघ ने जीत दर्ज की है और बाद में उसके नए संस्करण बीजेपी ने पांच बार परचम लहराया, जबकि पांच बार कांग्रेस ने यहां जीत दर्ज की। वहीं 1996 से 2007 तक लगातार चार बार समाजवादी पार्टी ने सीट पर कब्ज़ा किया। हालांकि पिछले दो चुनावों में यानी 2012 और 2017 से ये सीट बीजेपी जीत रही है। दोनों ही बार बीजेपी के रवींद्र जायसवाल जीते जो योगी सरकार के मंत्रिमंडल में भी शामिल हैं।
अब बात वाराणसी कैंट की- जो आठों सीट में सबसे अहम है, ये सीट 1991 यानी 20 सालों से भारतीय जनता पार्टी के पास ही रही है। जिसमें सबसे ख़ास बात ये है कि एक ही परिवार इससे जीतता रहा है, यहां कायस्थों की भूमिका महत्वपूर्ण होने के कारण हरिशचंद्र श्रीवास्तव, उनकी पत्नी और उनका बेटा, तीनों विधायक रह चुके हैं। यहां करीब 4,38,249 मतदाता हैं।
वाराणसी की सभी सीटों में इस बार अजगरा भी काफी चर्चा में है, क्योंकि साल 2017 में बीजेपी की सहयोगी पार्टी ओमप्रकाश राजभर की सुभासपा ने इसे बीएसपी से छीना था, हालांकि अब राजभर भी अखिलेश यादव के साथ हैं। यानी बीजेपी जहां इसे दोबारा हासिल करने की कोशिश करेगी, तो बीएसपी भी पूरे दम से लड़ेगी।
अमेठी पर भी रहेंगी निगाहें
लोकसभा चुनाव हो या विधानसभा चुनाव, अमेठी में ख़ास निगाहें रहती हैं, अमेठी को हमेशा से नेहरू-गांधी परिवार का गढ़ माना जाता रहा है, लेकिन समय के साथ ये क्षेत्र कांग्रेस के हाथ से निकलता गया। अमेठी लोकसभा सीट पर 2019 में बीजेपी की स्मृति ईरानी ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी को हरा दिया था।
अमेठी ज़िले में चार विधानसभा सीटें हैं- तिलोई, जगदीशपुर (एससी), गौरीगंज, अमेठी। 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में तीन सीटों पर बीजेपी ने जीत दर्ज की थी जबकि एक पर समाजवादी पार्टी ने बाजी मारी थी।
इस जिले की अमेठी विधानसभा सीट पर 2017 के चुनाव में बीजेपी के उम्मीदवार गरिमा सिंह ने सपा उम्मीदवार को 5065 वोट से हराया था, ऐसे में इस बार के विधानसभा चुनाव में भी दिलचस्पी रहेगी।
इटावा में कौन दिखाएगा दम?
अब बात करेंगे इटावा की.. यहां की सीटों पर भी कभी समाजवादी पार्टी का दबदबा रहा है, जिसमें सबसे महत्वपूर्ण इटावा सदर में साल 2017 के चुनावों में सांसद रामशंकर कठेरिया ने जीत हासिल की थी। उन्होंने समाजवादी पार्टी के कमलेश कुमार को 64,437 वोटों के भी अंतर से हराया था। लेकिन इस बार इटावा सदर सीट पर चुनावी मुकाबला रोचक रहने की संभावना है।
कन्नौज में वापसी कर पाएगी सपा?
कन्नौज ज़िले को भी समाजवादी पार्टी का गढ़ कहा जाता था, लेकिन अब यहां भी बीजेपी का कब्ज़ा है। यहां की छिबरामऊ विधानसभा सीट पर 2017 के चुनाव में बीजेपी उम्मीदवार अर्चना पांडे ने बीएसपी के उम्मीदवार को 37,224 वोटों से हराया था। वहीं समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार तीसरे नंबर पर रहे थे।
इस बार के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी यहां फिर ज़ोर ज़रूर लगाएगी। हालांकि छिबरामऊ विधानसभा सीट को लेकर सभी राजनीतिक पार्टियां भी पूरा ज़ोर लगाती देखी जा सकती हैं। यहां कुल मतदाताओं की संख्या साढ़े चार लाख के क़रीब है।
आज़मगढ़ में अखिलेश के साख की बात
सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव के सांसद होने के कारण इस सीट पर भी काफी ज़ोर बना हुआ है, ऐसे में विधानसभा चुनाव में यहां के परिणाम उनकी साख का सवाल बनेंगे। आज़मगढ़ में 10 विधानसभा सीटें हैं- गोपालपुर, सगड़ी, मुबारकपुर, आजमगढ़ और मेहनगर अतरौलिया, निज़ामाबाद, फूलपुर-पवई, दीदारगंज और लालगंज।
आज़मगढ़ विधानसभा सीट की बात करें तो यहां से 2017 में समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी दुर्गा प्रसाद ने जीत हासिल की थी। लेकिन लालगंज विधानसभा सीट पर मुक़ाबला ज़्यादा दिलचस्प दिख सकता है, क्योंकि 2017 में इस एससी सीट से बीएसपी के उम्मीदवार आज़ाद अरी मर्दन ने बीजेपी को हराकर जीत हासिल की थी।
राजधानी लखनऊ में होगी कांटे की टक्कर
लखनऊ में 9 विधानसभा सीटें आती हैं, लखनऊ पश्चिम, लखनऊ उत्तर, लखनऊ पूर्व, लखनऊ मध्य, लखनऊ कैंट, मलिहाबाद, सरोजनीनगर, मोहनलालगंज और बख्शी का तालाब।
हालांकि इन सभी सीटों में सबसे ज्यादा लखनऊ कैंट विधानसभा सीट की चर्चा है, एक ओर जहां रीता बहुगुणा जोशी अपने बेटे को लड़ाने के लिए टिकट की मांग कर रही हैं, वहीं सपा से बीजेपी में गईं अपर्णा यादव को भी इसी सीट से लड़ना है, इसके अलावा डिप्टी सीएम दिनेश शर्मा को भी यही सीट पसंद आती है। ऐसे में इस सीट पर उम्मीदवार भी पार्टी के दिग्गज ही होंगे।
वहीं लखनऊ मध्य यानी लखनऊ सेंट्रल विधानसभा सीट की बात करें तो ये बहुत ही अहम सीट मानी जाता है, फिलहाल ये सीट बीजेपी के पास है। इस सीट पर 1989 से बीजेपी का कब्ज़ा था, जिसपर 2012 में समाजवादी पार्टी ने ब्रेक लगाया। लेकिन 2017 में बीजेपी ने फिर से इस सीट को हासिल कर लिया।
साल 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के उम्मीदवार बृजेश पाठक ने समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार रविदास मेहरोत्रा को 5,094 वोट से हराया था। इस विधानसभा क्षेत्र में करीब 3,66,305 मतदाता हैं।
जहानाबाद बनेगा बड़ा फैक्टर
जहानाबाद विधानसभा सीट उत्तर प्रदेश की महत्वपूर्ण विधानसभा सीट है, जहां 2017 में अपना दल (सोनेलाल) ने जीत दर्ज की थी। जहानाबाद विधानसभा सीट उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले में आती है। 2017 में जहानाबाद में कुल 44.87 प्रतिशत वोट पड़े। 2017 में अपना दल (सोनेलाल) से जय कुमार सिंह जैकी ने समाजवादी पार्टी के मदनगोपाल वर्मा को 47606 वोटों के मार्जिन से हराया था।