NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
चुनाव 2022
विधानसभा चुनाव
भारत
यूपी चुनाव: नतीजे जो भी आयें, चुनाव के दौरान उभरे मुद्दे अपने समाधान के लिए दस्तक देते रहेंगे
जो चैनल भाजपा गठबंधन को बहुमत से 20-25 सीट अधिक दे रहे हैं, उनके निष्कर्ष को भी स्वयं उनके द्वारा दिये गए 3 से 5 % error margin के साथ एडजस्ट करके देखा जाए तो मामला बेहद नज़दीकी हो सकता है।
लाल बहादुर सिंह
09 Mar 2022
यूपी चुनाव: नतीजे जो भी आयें, चुनाव के दौरान उभरे मुद्दे अपने समाधान के लिए दस्तक देते रहेंगे

पांच राज्यों ख़ासकर उत्तर प्रदेश के संदर्भ में आए एग्जिट पोल ने भारी उहापोह का माहौल बनाया है। कुछ एग्जिट पोल में भाजपा को 300 के आसपास तक सीटें मिली हैं। अर्थात उनके अनुसार 2017 से 2022 के चुनाव के बीच UP में कुछ बदला ही नहीं हैं। यह अतार्किक है और जमीनी हकीकत से इसका कोई लेना देना नहीं है।  

जो चैनल भाजपा गठबंधन को बहुमत से 20-25 सीट अधिक दे रहे हैं, उनके निष्कर्ष को भी स्वयं उनके द्वारा दिये गए 3 से 5 % error margin के साथ एडजस्ट करके देखा जाय तो मामला बेहद नजदीकी हो सकता है। जाहिर है 10 मार्च को आने जा रहे असल आंकड़ों का सबको बेसब्री से इंतज़ार है। 

बहरहाल, इस चुनाव के कुछ salient features इस प्रकार रहे :

पहली बात तो यह कि मोदी जी के इस दावे के विपरीत कि यह pro-incumbency का चुनाव है, इस चुनाव में एन्टी इंकम्बेंसी की current बिल्कुल साफ थी।

मोदी जी के बहुप्रचारित जुमले डबल इंजन सरकार के अनुरूप ही एन्टी इंकम्बेंसी भी डबल थी, केवल योगी सरकार ही नहीं, मोदी सरकार के भी खिलाफ है। सत्ता प्रतिष्ठान के बुद्धिजीवी और गोदी मीडिया इस सच को छिपाने की कोशिश करते रहे, ताकि मोदी की लोकप्रियता के कायम रहने का भ्रम ( illusion ) बना रहे। योगी राज के दमन और चौतरफा नाकामियों के साथ  चुनाव में जो तीन मुद्दे सबसे प्रमुखता से उभरे- किसान प्रश्न, रोजगार और महंगाई का सवाल-ये तीनों मोदी सरकार से सीधे जुड़े हैं। 

चुनाव में जनता के बड़े हिस्से की मौजूदा सरकार से निजात पाने और बदलाव की आकांक्षा निश्चित तौर पर प्रमुखता से उभरी। भाजपा के खिलाफ viable विकल्प के रूप में सपा-गठबंधन बदलाव की आकांक्षा को स्वर देने का माध्यम बना।

यह 10 मार्च को पता लगेगा कि  गठबंधन बेहतरी और बदलाव चाहने वाले तमाम  तबकों की चिंताओं को एड्रेस करने और उनका विश्वास जीत पाने में सफल रहा अथवा वे ताकतें विभिन्न विपक्षी खेमों में बिखर गईं या फिर भाजपा उन्हें अपने पाले में खींच लाने में सफल रही। 

यह भी बहुत स्पष्ट था कि चुनाव में संघ-भाजपा का time-tested ध्रुवीकरण का कार्ड नहीं चला और चुनाव में  जनता के जीवन से जुड़े मुद्दे हावी रहे। सच तो यह है कि शुरू के 2 चरणों में मोदी-योगी-शाह तिकड़ी द्वारा ध्रुवीकरण के आक्रामक अभियान से भाजपा के विरुद्ध counter-polarisation हुआ। यह समझ में आने के बाद बीच चुनाव में मोदी ने ट्रैक change किया। उन्हें आवारा जानवरों से लेकर अपने कथित लोककल्याण व विकास के मुद्दों की ओर लौटना पड़ा। 

लोकतन्त्र और संवैधानिक अधिकारों की रक्षा की चिंता  भी इस चुनाव में एक महत्वपूर्ण मुद्दा रही। इसकी अभिव्यक्ति विभिन्न रूपों में हुई। बुलडोजर और सांड इसका सबसे बड़ा प्रतीक बन गए। किसानों, छात्र-युवाओं, मेहनतकशों, नागरिक समाज समेत सभी तबकों के लोकतांत्रिक आंदोलनों, असहमति के स्वरों का दमन, आरक्षण के संवैधानिक अधिकार पर डाकाज़नी तथा SC-ST Act के dilution के खिलाफ उठे प्रतिरोध पर हमला, अल्पसंख्यकों के नागरिक अधिकारों को छीनने की कोशिश, CAA-NRC आंदोलन के विरुद्ध बर्बरता इसके चंद नमूने हैं। 

तमाम ग्राउंड रिपोर्ट्स से यह लग रहा था कि चुनाव में लाभार्थी कार्ड भाजपा की उम्मीद  के विपरीत बहुत नहीं चल रहा था। इसका सबसे बड़ा कारण तो यह है कि  politically polarised जनता किसी एक मुद्दे के आधार पर नहीं बल्कि अपने व्यापकतर हितों की दृष्टि से अपनी राजनीतिक पार्टी चुनती है और अपने electoral choice को तय करती है। इसके अतिरिक्त आसमान छूती महंगाई, बेकारी, सांडों से फसलों की बर्बादी की तुलना में मुफ्त अनाज की सौगात का खास महत्व नहीं बचता। माना जा रहा था कि इसका  असर सम्भवतः उन अत्यंत गरीब, छोटे-छोटे अतिदलित, अति पिछड़े समुदायों पर ही कुछ पड़ा होगा जो अभी तक संगठित राजनीतिक समुदाय नहीं बन पाए हैं, जिनके समुदाय के अपने राजनीतिक नेता और दल अभी नहीं हैं। 

क्या यह लाभार्थी कार्ड silently सबसे बड़ा मुद्दा बन गया था जिसने दलितों, पिछड़ों, महिलाओं के बड़े हिस्से को भाजपा के पक्ष में खड़ा कर दिया और सारे मुद्दों पर हावी हो गया? क्या एग्जिट पोल में लाभार्थियों के एक स्वतंत्र political ग्रुप के बतौर महिलाओं की भूमिका का input अतिरंजित है? 

क्या सपा अपने नए चेहरे, रणनीति और सामाजिक गठबंधन के बावजूद पिछड़े, दलित तबकों का विश्वास जीत पाने में नाकाम रही? क्या मुखर, उन्मादी साम्प्रदयिक माहौल न होने के बावजूद भाजपा के पक्ष में हिन्दू समाज के बड़े तबके का एक silent ध्रुवीकरण हो गया है? क्या दलित एजेंडा को गम्भीरतापूर्वक address न करने की सपा-गठबंधन को कीमत चुकानी होगी ? क्या युवाओं के रोजगार के प्रश्न को address करने में देरी और चूक हुई ?

क्या साढ़े चार वर्ष की निष्क्रियता और योगी सरकार के खिलाफ व्यापक जनअसंतोष को आंदोलन और राजनीतिक चेतना में न बदल पाने का विपक्ष को खामियाजा भुगतना पड़ेगा ? 

इन सवालों का जवाब 10 मार्च को मिलेगा।

इस बीच एग्जिट पोल से बने अपने जीत के माहौल का नाजायज फायदा उठाकर सरकार को काउंटिंग में किसी भी तरह की धाँधली  से जनादेश को बदलने से बाज आना चाहिए। सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल कर लोकतन्त्र के अपहरण की कोशिश हुई तो हमारे लोकतन्त्र के लिए इसके नतीजे अशुभ होंगे और यह अराजकता को आमंत्रण होगा।

बहरहाल, 10 मार्च को परिणाम जो भी आये, मोदी ने दिल्ली में 8 साल और योगी ने UP में 5 साल जो शासन किया है, उसने समाज के सचेत हिस्सों की नज़र में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की चाशनी में लिपटे संघ के हिंदुत्व की class-caste realty को, उसके essence को एक्सपोज़ कर दिया है। उसने इस सच को बेनकाब कर दिया है कि उनका शासन और कुछ नहीं कारपोरेट और सामंती-ब्राह्मणवादी ताकतों के गठजोड़ का राज है। चाहे वे समाज के उत्पीड़ित वर्ग हों-किसान, कर्मचारी-मेहनतकश, कारोबारी, छोटे-मंझोले व्यापारी या आम जन हों या समाज के हाशिये के समुदाय दलित-आदिवासी, अल्पसंख्यक, स्त्रियां हों, सब इसके निशाने पर हैं। अंधाधुंध महंगाई, बेरोजगारी ने इनके दरिद्रीकरण को तेज किया है। युवाओं का भविष्य अंधकारमय है। हाशिये के तबकों के लोकतांत्रिक नागरिक अधिकार, संविधान प्रदत्त सामाजिक न्याय-आरक्षण, उनका मान-सम्मान-मर्यादा-मानवीय गरिमा सब कुछ दांव पर है।

मोदी ने जहाँ वित्तीय पूँजी और कारपोरेट के प्रतिनिधि के बतौर शासन किया, वहीं योगी आदित्यनाथ ने उसके साथ दबंगों के प्रतिनिधि के बतौर घोर जातिवादी और निरंकुश शासन का नमूना पेश किया। 

दिल्ली की सीमाओं पर चला किसान आंदोलन मोदी द्वारा कृषि के इसी कारपोरेटीकरण के ख़िलाफ़ बगावत था। इसके साथ मोदी-योगी राज की देन भयानक बेरोजगारी के खिलाफ शिक्षित-प्रशिक्षित प्रतियोगी छात्रों से लेकर आम युवाओं का आक्रोश जुड़ता चला गया, जो 5 साल लगातार लड़ते रहे और योगी राज के दमन का शिकार होते रहे।  

समाज के सबसे कमजोर वंचित हाशिये के तबके भाजपा के इस class-caste दमन उत्पीड़न के सबसे भयानक शिकार हुए-वह चाहे कोरोना काल में प्रवासी मजदूरों की त्रासदी हो, बेकारी की मार ही या गाँव मे दबंगों और बुलडोजर राज का पुलिसिया जुल्म हो, चाहे उनके आरक्षण में घोटाला हो।

10 मार्च को नतीजे जो भी आएं, जो सवाल उभर कर इस चुनाव में आये हैं, वे आंदोलनों की शक्ल में अपने समाधान के लिए दस्तक देते रहेंगे। 

एक साल पहले अर्थशास्त्री कौशिक बसु ने कहा था, "करीब करीब सारे भारतीय, निश्चय ही वे सारे लोग जिन्हें देश की चिंता है, 2024 का उसी तरह इन्तज़ार कर रहे हैं, जैसे हिंदुस्तान की जनता ने कभी 1947 का इंतज़ार किया था। "

यह बात उत्तरप्रदेश के लिए भी हूबहू लागू होती है। प्रदेशवासी और अधिकांश भारतीय 2022 के UP चुनाव का भी उसी शिद्दत के साथ इंतज़ार कर रहे थे।  

10 मार्च को पता लगेगा कि उनका इंतजार खत्म होगा या उनकी तकदीर मोदी के साथ नत्थी है और अभी 2024 तक इंतजार करना पड़ेगा।

 

(लेखक, इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

 

UP Assembly Elections 2022
Yogi
akhilesh
Result
Farmer protest
EXIT Poll

Related Stories

BJP से हार के बाद बढ़ी Akhilesh और Priyanka की चुनौती !

यूपी चुनाव : पूर्वांचल में हर दांव रहा नाकाम, न गठबंधन-न गोलबंदी आया काम !

कार्टून क्लिक: महंगाई-बेरोज़गारी पर हावी रहा लाभार्थी कार्ड

गोवा : रुझानों में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं

5 राज्यों की जंग: ज़मीनी हक़ीक़त, रिपोर्टर्स का EXIT POLL

उत्तर प्रदेश का चुनाव कौन जीत रहा है? एक अहम पड़ताल!

यूपी का रण: आख़िरी चरण में भी नहीं दिखा उत्साह, मोदी का बनारस और अखिलेश का आज़मगढ़ रहे काफ़ी सुस्त

यूपी चुनाव : काशी का माँझी समाज योगी-मोदी के खिलाफ

बनारस का रण: मोदी का ग्रैंड मेगा शो बनाम अखिलेश की विजय यात्रा, भीड़ के मामले में किसने मारी बाज़ी?

चुनाव चक्र: यूपी की लड़ाई का आख़िरी दांव, जो जीता वही सिकंदर


बाकी खबरें

  • blast
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    हापुड़ अग्निकांड: कम से कम 13 लोगों की मौत, किसान-मजदूर संघ ने किया प्रदर्शन
    05 Jun 2022
    हापुड़ में एक ब्लायलर फैक्ट्री में ब्लास्ट के कारण करीब 13 मज़दूरों की मौत हो गई, जिसके बाद से लगातार किसान और मज़दूर संघ ग़ैर कानूनी फैक्ट्रियों को बंद कराने के लिए सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रही…
  • Adhar
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: आधार पर अब खुली सरकार की नींद
    05 Jun 2022
    हर हफ़्ते की तरह इस सप्ताह की जरूरी ख़बरों को लेकर फिर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन
  • डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
    तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष
    05 Jun 2022
    हमारे वर्तमान सरकार जी पिछले आठ वर्षों से हमारे सरकार जी हैं। ऐसा नहीं है कि सरकार जी भविष्य में सिर्फ अपने पहनावे और खान-पान को लेकर ही जाने जाएंगे। वे तो अपने कथनों (quotes) के लिए भी याद किए…
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' का तर्जुमा
    05 Jun 2022
    इतवार की कविता में आज पढ़िये ऑस्ट्रेलियाई कवयित्री एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' जिसका हिंदी तर्जुमा किया है योगेंद्र दत्त त्यागी ने।
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित
    04 Jun 2022
    देशभक्तों ने कहां सोचा था कि कश्मीरी पंडित इतने स्वार्थी हो जाएंगे। मोदी जी के डाइरेक्ट राज में भी कश्मीर में असुरक्षा का शोर मचाएंगे।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License