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यूपी: क्या चुनाव नज़दीक आते ही भाजपा को बाबा साहेब की याद आ गई है?
गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में चुनाव करीब हैं और ये स्पष्ट है कि हर पार्टी और हर गठजोड़ अपने समीकरणों पर दोबारा ग़ौर करने में जुटा है।
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
01 Jul 2021
यूपी: क्या चुनाव नज़दीक आते ही भाजपा को बाबा साहेब की याद आ गई है?
फोटो साभार : अमर उजाला

चुनाव से ठीक पहले डॉक्टर भीमराव आंबेडकर सांस्कृतिक केन्द्र के शिलान्यास को लेकर मायावती और बीजेपी के पुराने सहयोगी रहे सुलेहदेव, भारतीय समाज पार्टी के नेता ओम प्रकाश राजभर ने बीजेपी सरकार की मंशा पर सवाल  खड़े किए हैं। साथ ही सत्तधारी पार्टी पर बाबा साहेब के अनुयायियों की उपेक्षा और उत्पीड़न का आरोप भी लगाया है।

"अब विधानसभा चुनाव के नज़दीक यूपी भाजपा सरकार द्वारा बाबा साहेब के नाम पर 'सांस्कृतिक केन्द्र' का शिलान्यास करना यह सब नाटकबाज़ी नहीं तो और क्या है?"

ये सवाल बहुजन समाज पार्टी प्रमुख मायावती ने उत्तर प्रदेश की योगी सरकार पर उठाया है। मायावती ने आरोप लगाया कि बीजेपी सरकार ने अपने कार्यकाल में डॉक्टर आंबेडकर के 'अनुयायियों की उपेक्षा और उत्पीड़न किया।' इसके साथ ही मायावती ने ये भी साफ किया कि बीएसपी परमपूज्य बाबा साहेब डा. अम्बेडकर के नाम पर कोई केन्द्र आदि बनाने के खिलाफ नहीं है। लेकिन अब चुनावी स्वार्थ के लिए यह सब करना घोर छलावा है।

2. बीएसपी परमपूज्य बाबा साहेब डा. अम्बेडकर के नाम पर कोई केन्द्र आदि बनाने के खिलाफ नहीं है, परन्तु अब चुनावी स्वार्थ के लिए यह सब करना घोर छलावा। यूपी सरकार अगर यह काम पहले कर लेती तो मा. राष्ट्रपति जी आज इस केन्द्र का शिलान्यास नहीं बल्कि उदघाटन कर रहे होते तो यह बेहतर होता।

— Mayawati (@Mayawati) June 29, 2021

बता दें कि बीते दिनों लंबे समय तक 'निष्क्रीय होने' का आरोप झेलती रहीं बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती हाल के कुछ दिनों से यूपी की योगी आदित्यनाथ की अगुवाई वाली बीजेपी पर सरकार पर प्रेस कॉन्फ्रेंस और सोशल मीडिया के माध्यम से लगातार हमला बोल रही हैं। और इसका सबसे बड़ा कारण प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में दलित राजनीति का सियासी समीकरण बताया जा रहा है।

मायावती की पार्टी के 'वोट बैंक' में सेंध

ज्ञात हो कि उत्तर प्रदेश में दलित वोटरों की संख्या 21 फ़ीसदी के करीब है। बीते करीब दो दशकों से दलितों की बड़ी आबादी बहुजन समाज पार्टी का समर्थन करती रही है। लेकिन, 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद से मायावती की पार्टी के 'वोट बैंक' में सेंध लगती गई। साल 2014 के लोकसभा चुनाव में बीएसपी को सीट नहीं मिली तो वहीं साल 2017 के विधानसभा चुनाव में बीएसपी के हिस्से में सिर्फ़ 19 सीटें आईं।

लखनऊ विश्विलिद्यालय में राजनीति शास्त्र की प्रोफेसर रहीं आस्था सिन्हा बताती हैं कि यूपी में चुनाव चाहें लोकसभा का हो या विधानसभा का हर पार्टी की नज़र हर बार दलित वोटों पर होती ही है। मायावती की बसपा खुद को दलितों की पार्टी और उनका प्रतिनीधि मानती है और इसलिए अपने परंपरागत वोटबैंक को कहीं और खिसकने नहीं देना चाहती तो वहीं सत्ताधारी पार्टी बीजेपी खुद पर लगातार दलित विरोधी होने के आरोपो को इस चुनाव से पहले झुठलाना चाहती है।

राष्ट्रपति के हाथों केंद्र का शिलान्यास संयोग या प्रयोग

प्रोफेसर आस्था के मुताबिक, “दलित वोटबैंक के जरिए ही साल 2007 के विधानसभा चुनाव में मायावती की पार्टी अकेले दम पर सरकार बनाने में कामयाब रही थी हालांकि बीते चुनावों में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के गठजोड़ के बाद भी बीजेपी उत्तर प्रदेश में 60 से ज़्यादा सीटें जीतने में सफल रही। राष्ट्रपति चुनाव में जब बीजेपी ने रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया और जब वो निर्वाचित हुए तो कई विशेषज्ञों का कहना था कि बीजेपी को इसका फ़ायदा आगे मिल सकता है। अब इसे संयोग कहे या प्रयोग कि अब जब उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव करीब हैं बतौर राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने डॉक्टर आंबेडकर के नाम पर केंद्र का शिलान्यास किया है।“

मालूम हो कि भारत रत्न डॉक्टर भीमराव आंबेडकर के नाम पर राष्ट्रपति ने लखनऊ में जिस 'सांस्कृतिक केंद्र' का शिलान्यास किया, उसे तैयार करने में प्रदेश सरकार 45.04 करोड़ रुपये खर्च करेगी। यहां 750 सीटों पर वाला एक ऑडिटोरियम, पुस्तकालय, पिक्चर गैलरी, संग्रहालय, बहुउद्देश्यीय हॉल और कैफेटेरिया होगा। सांस्कृतिक केंद्र में डॉक्टर आंबेडकर की एक बड़ी प्रतिमा भी लगाई जाएगी। उत्तर प्रदेश सरकार के मुताबिक ये केंद्र 'डॉक्टर आंबेडकर की यादों को जीवंत बनाए रखेगा।'

बीजेपी के इरादों पर सवाल

लेकिन चुनाव से एन पहले हुए इस शिलान्यास के साथ ही इस केंद्र को लेकर बीजेपी की मंशा पर सवाल खड़े होने लगे। प्रदेश की राजनीति में नई बहस शुरू हो चुकी है। मायावती के अलावा बीजेपी के पुराने सहयोगी और सुलेहदेव भारतीय समाज पार्टी के नेता ओम प्रकाश राजभर ने भी बीजेपी के इरादों पर सवाल उठाया और कहा कि इस केंद्र का शिलान्यास चुनावों को ध्यान में रखकर किया गया है।

Polls are coming & they're (BJP) erecting statues of Babasaheb Ambedkar. We don't oppose it but nobody had been able to put up his portrait at Vidhan Sabha so far. Why did they remember now? Because elections will be held after 6 months: OP Rajbhar, Suheldev Bharatiya Samaj Party pic.twitter.com/bqWLu58QtC

— ANI UP (@ANINewsUP) June 29, 2021

राजभर ने कहा, "चुनाव आ रहे हैं और वो (बीजेपी) बाबा साहेब आंबेडकर की मूर्ति बना रहे हैं। हम इसके विरोध में नहीं हैं लेकिन अब तक कोई विधानसभा में उनकी तस्वीर नहीं लगा सका है। अब उन्हें क्यों याद किया जा रहा है? क्योंकि छह महीने के बाद चुनाव होने हैं।"

हालांकि भारतीय जनता पार्टी ने बहुजन समाज पार्टी प्रमुख मायावती के तमाम आरोपों को ख़ारिज कर दिया है। उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने कहा कि हर बात को राजनीतिक चश्मे से देखना ठीक नहीं है।

Not right for her to oppose something that should be welcomed. She must stop wearing political glasses. BSP gave respect to Baba Saheb & others. We don't criticise it, BJP too respects them-especially Babasaheb who fought for neglected&Dalits: Dy CM KP Maurya on BSP chief's tweet pic.twitter.com/BIkYxsOYuC

— ANI UP (@ANINewsUP) June 29, 2021

केशव मौर्य ने कहा, "जिस बात का स्वागत होना चाहिए, उन्हें उसका विरोध नहीं करना चाहिए। उन्हें राजनीतिक चश्मा उतार देना चाहिए। बीएसपी बाबा साहेब और दूसरे नेताओं को सम्मान देती है। हम इसकी आलोचना नहीं करते। बीजेपी भी उनका सम्मान करती है। ख़ासकर बाबा साहेब का जिन्होंने वंचितों और उपेक्षितों के लिए संघर्ष किया।"

गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में चुनाव करीब हैं और ये स्पष्ट है कि हर पार्टी और हर गठजोड़ अपने समीकरणों पर दोबारा ग़ौर करने में जुटा है। राजभर कभी बीजेपी के साथ थे और अब उसे 'डूबती नाव' बता चुके हैं। राजभर की पार्टी ने चुनाव के लिए असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी से गठजोड़ किया है। तो वहीं दलितों में अपनी मजबूत पैठ बनाती जा रही चंद्रशेखर आजाद की भीम पार्टी के भी इस गठबंधन में शामिल होने की संभावना है। ओवैसी बिहार चुनाव में मायावती की पार्टी के साथ गठबंधन में थे, लेकिन उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी और ओवैसी की पार्टी के बीच तालमेल नहीं हुआ है। दोनों ही पार्टियां इसका ऐलान कर चुकी हैं। ऐसे में देखना दिलचस्प होगा की मायावती की ऐकला चलो की नीति दलित वोटरों को पसंद आती है या कोई और पार्टी मायावती के वोट बैंक का लाभ ले जाती है।

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