NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
यूपी: छुट्टा पशुओं की समस्या क्या बनेगी इस बार चुनावी मुद्दा?
उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा मवेशी हैं। प्रदेश के क़रीब-क़रीब हर ज़िले में आवारा मवेशी किसानों, ख़ास तौर पर छोटे किसानों के लिए आफत बन गए हैं और जान-माल दोनों का नुकसान हो रहा है।
सोनिया यादव
17 Jan 2022
stray animals
फ़ोटो साभार: सोशल मीडिया

साल 2017 में करीब 15 साल बाद उत्तर प्रदेश की सत्ता में भारतीय जनता पार्टी यानी बीजेपी की सरकार बनी और योगी आदित्यनाथ ने मुख्यमंत्री पद संभाला। महज़ कुछ महीनों के भीतर ही सीएम योगी ने कुछ बड़े फ़ैसले लिए जिसमें प्रदेश में हज़ारों अवैध बूचड़खानों को बंद करना प्रमुख था।

एक जनसभा को संबोधित करते हुए योगी आदित्यनाथ ने कहा था, "ये पहली सरकार है, जिसने प्रदेश के अंदर अवैध बूचड़खानों को पूरी तरह प्रतिबंधित करके गो-तस्करी को भी उत्तर प्रदेश में पूरी तरह प्रतिबंधित किया है। जो व्यक्ति उत्तर प्रदेश के अंदर, गो-हत्या की बात तो दूर, जो भी गाय से क्रूरता करेगा उसकी जगह जेल में होगी।"

इस संदर्भ में विवादास्पद कानून के बाद, 'गोरक्षा' के नाम पर मवेशियों को ले जाने वाले लोगों पर भीड़ ने हमला करना शुरू कर दिया। अवैध बूचड़खानो के बंद होने के साथ कथित गोमांस खाने और गाय की तस्करी के नाम पर कई हिंसक वारदातें भी हुईं। थानों में गो-तस्करी के मामले दर्ज होने बढ़े और मुज़फ़्फ़रनगर, अलीगढ़, बलरामपुर, बाराबंकी, हमीरपुर जैसे कई अन्य ज़िलों में गोहत्या के मामले दर्ज किए गए।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में तो 2018 में कथित गो-हत्या के मामले की छानबीन कर रहे एक पुलिस इंस्पेक्टर सुबोध सिंह की एक गुस्साई भीड़ के साथ झड़प के दौरान गोली मार कर हत्या कर दी गई थी। उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में हुई ये घटना पहली नहीं थी। बीते सालों में दर्जनों ऐसी घटनाएं सामने आई हैं, जिसमें कई लोगों को मॉब लिंचिंग का शिकार होना पड़ा है।

आवारा मवेशी और किसानों की समस्या

भारत में क़रीब 20 करोड़ मवेशी हैं, जिनमें से सबसे ज़्यादा उत्तर प्रदेश में हैं। सरकारी आंकड़ों को खंगालने पर पता चलता है कि औसतन जहां देश में आवारा और लावारिस मवेशियों की आबादी कम हुई है, वहीं उत्तर प्रदेश जैसे कुछ राज्यों में ये बढ़ी है। 

'दूसरी पशुधन जनगणना-2019 अखिल भारतीय रिपोर्ट' के आंकड़ों के मुताबिक इस साल राज्य में 11.8 लाख से ज्यादा आवारा मवेशी थे और प्रदेश में इनकी संख्या 15 प्रतिशत से ज्यादा बढ़ी। जहां पूरे देश में 2012 से 2019 तक देश में आवारा पशुओं की कुल संख्या में 3.2 प्रतिशत की कमी आई है, वहीं इस दौरान उत्तर प्रदेश में उनकी आबादी में 17.34 प्रतिशत की भारी वृद्धि दर्ज की गई है।

हालांकि आवारा पशुओं की बढ़ती समस्या के समाधान के लिए राज्य सरकार ने कई योजनाएं और परियोजनाएं शुरू की हैं। इनमें गौशालाओं की स्थापना, आवारा गायों को गोद लेना, कर लगाना, कुपोषित परिवारों को आवारा गाय देना, गौ संरक्षण केंद्र और भी बहुत कुछ शामिल हैं। उत्तर प्रदेश के पशुपालन विभाग द्वारा उपलब्ध कराए गए आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, राज्य में 545 पंजीकृत गौशालाएं हैं। इस साल 7 जनवरी तक राज्य में आवारा पशुओं के लिए 5,515 'गौ संरक्षण केंद्र' भी बनाए गए हैं। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, राज्य में 56,853 लोगों ने 103,000 से ज्यादा आवारा और लावारिस गायों को गोद लिया है। लेकिन इन सब के बावजूद किसानों की समस्या कम नहीं हो पाई है। प्रदेश के क़रीब-क़रीब हर ज़िले में आवारा मवेशियों ने किसानों, ख़ास तौर पर छोटे किसानों की नाक में दम कर रखा है और जान-माल दोनों के नुकसान हो रहा है।

आवारा मवेशियों से जान-माल दोनों का नुकसान

बलिया जिले के पास रेवती के किसान रामनाथ चौधरी कहते हैं कि पहले फ़सल को नुक़सान सिर्फ़ नीलगाय से होता था, लेकिन अब आवारा मवेशियों ने इस समस्या को दोगुनी कर दिया है।

वे न्यूज़क्लिक से बातचीत में बताते हैं, “अब सिर्फ नीलगाय परेशानी नहीं है, अब कई और परेशानी हो गई हैं। जो मवेशी दूध नहीं देते, बूढ़े हो चले हैं अब इनके रखरखाव की समस्या भी है। पहले जानवर को आसानी से बेच देते थे और घर चला लेते थे। अब ये सब बहुत मुश्किल हो गया है।

फसल की रखवाली के लिए कंटीली तार लगाने का खर्चा अलग बढ़ गया है। इतनी न तो किसान की ताकत है और न ही पैसा।"

सुल्तानपुर की महिला किसान कमला देवी के अनुसार किसानों को रात में रखवाली के लिए पाँच से आठ फ़ीट ऊँची मचान बनानी पड़ती हैं। दिन में खेती का काम और रात में पशुओं का ध्यान बहुत बोझिल और कष्टकारी हो गया है।

कमला कहती हैं, “पहले हमारे पति खेत रखवाली को जाते थे, लेकिन एक रात खेत में घुसे जानवर ने उन्हें दौड़ा लिया। वो भागते-भागते तार में उलझ गए फिर जैसे-तैसे जान तो बच गई लेकिन हाथ-पैर में चोट लग गई। तब से हम जाते हैं खेत मे रखवाली को। मचान पर बैठ कर बस शोर मचाते हैं और पत्थर फेंक देते हैं, आधी फसल पहले ही खराब हो गई है, अब आधी भी न बचे तो हम क्या खाएंगे।"

सियासत और आवारा पशुओं की राजनीति

उत्तर प्रदेश चुनाव के मुहाने पर खड़ा है ऐसे में सभी राजनीतिक दलों के अपने-अपने दावे हैं। जाति, धर्म और विकास की राजनीति से इतर इस चुनावी समर में गाय को लेकर भी सियासत गर्म है। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने डेढ़ साल पहले गोहत्या क़ानून को सख़्त करते हुए 10 साल तक की सज़ा तय कर दी थी। सरकार का कहना है कि प्रदेश में 5,300 से ज़्यादा गो आश्रय हैं, जिनमें लाखों मवेशियों को रखा गया है।

हाल ही प्रदेश में चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था, "गाय कुछ लोगों के लिए गुनाह हो सकती है, हमारे लिए गाय माता है, पूजनीय है। गाय-भैंस का मज़ाक़ उड़ाने वाले लोग ये भूल जाते हैं कि देश के आठ करोड़ परिवारों की आजीविका ऐसे ही पशुधन से चलती है।"

वहीं समाजवादी पार्टी नेता अखिलेश यादव का दावा है कि 'बीजेपी की नीतियों की वजह से प्रदेश में लाखों आवारा मवेशियों ने किसानों के सपनों को तोड़ दिया है।'

और कांग्रेस पार्टी नेता प्रियंका गांधी को लगता है कि 'पिछले साढ़े चार सालों में भाजपा सरकार ने सिर्फ़ मुसीबतें बढ़ाईं हैं, काम कुछ नहीं किया है।'

बहराल, प्रदेश में किसानों की एक बड़ी तादाद है, जो आवारा मवेशियों के मुद्दे पर साफ़ तौर से असहज दिख रही है। पिछले कुछ वर्षों में आवारा मवेशियो के बढ़ते प्रकोप से परेशान किसान दिन में खेती करते हैं लेकिन रात में भी फ़सल बचाने के डर से चैन से सो भी नहीं पाते। बड़े शहर हों या छोटे गांव, यूपी ने मवेशियों का ऐसा आतंक पहले शायद ही देखा हो।

गौरतलब है कि चुनावी मौसम में तमाम वादों, दावों और मेनिफेस्टो से दूर ज़मीनी स्तर पर आम किसान का दर्द आवारा पशुओं को लेकर कुछ ज्यादा ही है। उत्तर प्रदेश में आवारा मवेशियों के मुद्दे पर चुनाव में पड़ने वाले वोट पर कितना असर पड़ेगा, इसका पता नतीजों में ही चलेगा। मगर ज्यादातर किसान ऐसे भी हैं जो इस समस्या के समाधान से अब नाउम्मीद हो चुके हैं और चुनावों में इस मुद्दे को लेकर उनकी दिलचस्पी अब ख़त्म सी हो चुकी है।

Uttar pradesh
UP Assembly Elections 2022
UP election 2022
stray animals
Stray Cattle
Cattle ban
Yogi Adityanath

Related Stories

आजमगढ़ उप-चुनाव: भाजपा के निरहुआ के सामने होंगे धर्मेंद्र यादव

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

उत्तर प्रदेश: "सरकार हमें नियुक्ति दे या मुक्ति दे"  इच्छामृत्यु की माँग करते हजारों बेरोजगार युवा

यूपी : आज़मगढ़ और रामपुर लोकसभा उपचुनाव में सपा की साख़ बचेगी या बीजेपी सेंध मारेगी?

श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही मस्जिद ईदगाह प्रकरण में दो अलग-अलग याचिकाएं दाखिल

ग्राउंड रिपोर्ट: चंदौली पुलिस की बर्बरता की शिकार निशा यादव की मौत का हिसाब मांग रहे जनवादी संगठन

जौनपुर: कालेज प्रबंधक पर प्रोफ़ेसर को जूते से पीटने का आरोप, लीपापोती में जुटी पुलिस

यूपी में  पुरानी पेंशन बहाली व अन्य मांगों को लेकर राज्य कर्मचारियों का प्रदर्शन

उपचुनाव:  6 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश में 23 जून को मतदान

UPSI भर्ती: 15-15 लाख में दरोगा बनने की स्कीम का ऐसे हो गया पर्दाफ़ाश


बाकी खबरें

  • सरोजिनी बिष्ट
    विधानसभा घेरने की तैयारी में उत्तर प्रदेश की आशाएं, जानिये क्या हैं इनके मुद्दे? 
    17 May 2022
    ये आशायें लखनऊ में "उत्तर प्रदेश आशा वर्कर्स यूनियन- (AICCTU, ऐक्टू) के बैनर तले एकत्रित हुईं थीं।
  • जितेन्द्र कुमार
    बिहार में विकास की जाति क्या है? क्या ख़ास जातियों वाले ज़िलों में ही किया जा रहा विकास? 
    17 May 2022
    बिहार में एक कहावत बड़ी प्रसिद्ध है, इसे लगभग हर बार चुनाव के समय दुहराया जाता है: ‘रोम पोप का, मधेपुरा गोप का और दरभंगा ठोप का’ (मतलब रोम में पोप का वर्चस्व है, मधेपुरा में यादवों का वर्चस्व है और…
  • असद रिज़वी
    लखनऊः नफ़रत के ख़िलाफ़ प्रेम और सद्भावना का महिलाएं दे रहीं संदेश
    17 May 2022
    एडवा से जुड़ी महिलाएं घर-घर जाकर सांप्रदायिकता और नफ़रत से दूर रहने की लोगों से अपील कर रही हैं।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में 43 फ़ीसदी से ज़्यादा नए मामले दिल्ली एनसीआर से सामने आए 
    17 May 2022
    देश में क़रीब एक महीने बाद कोरोना के 2 हज़ार से कम यानी 1,569 नए मामले सामने आए हैं | इसमें से 43 फीसदी से ज्यादा यानी 663 मामले दिल्ली एनसीआर से सामने आए हैं। 
  • एम. के. भद्रकुमार
    श्रीलंका की मौजूदा स्थिति ख़तरे से भरी
    17 May 2022
    यहां ख़तरा इस बात को लेकर है कि जिस तरह के राजनीतिक परिदृश्य सामने आ रहे हैं, उनसे आर्थिक बहाली की संभावनाएं कमज़ोर होंगी।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License