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चुनाव 2022
भारत
राजनीति
यूपी चुनाव: पिछले 5 साल के वे मुद्दे, जो योगी सरकार को पलट सकते हैं! 
यूपी की जनता में इस सरकार का एक अजीब ही डर का माहौल है, लोग डर के मारे खुलकर अपना मत ज़ाहिर नहीं कर रहे हैं लेकिन अंदर ही अंदर एक अलग ही लहर जन्म ले रही है, जो दिखाई नहीं देती। 
रश्मि सहगल
29 Jan 2022
Yogi

क्या समाजवादी पार्टी की अगुवाई में उत्तर प्रदेश लाल रंग में रंग जाने जाने के लिए मतदान करेगा? जहां चुनावी सर्वेक्षणों में योगी आदित्यनाथ की बहुत ही कम अंतर से जीत की भविष्यवाणी की जा रही है, वहीं लगता है कि उन सर्वेक्षणों में मौजूदा शासन के ख़िलाफ़ भीतर ही भीतर चल रही और नहीं दिखायी पड़ने वाली धारा का अनुमान नहीं लगाया जा सका है। ऐसा कहा जा रहा है कि जनता बदला लिये जाने के डर के चलते बोलने से डरती है, जबकि सर्पेक्षण करने वाले स्वीकार करते हैं कि आम लोग निजी बातचीत में बताते हैं कि वे बदलाव के लिए मतदान करने का मन बना रहे हैं। लोगों का यह विरोध सोशल मीडिया पर दिख रही सहज नाराज़गी वाले छोटे-छोटे वीडियो में नज़र आता है, लेकिन मुख्यधारा के टेलीविज़न चैनलों पर इस नाराज़गी को नहीं दिखाया जा रहा है।

पिछले हफ़्ते मुज़फ़्फ़रनगर के पास खतौली से भारतीय जनता पार्टी (BJP) के विधायक विक्रम सिंह सैनी को उन ग़ुस्साए ग्रामीणों ने खदेड़ दिया था, जिन्होंने उन्हें एक सभा को संबोधित करने से रोक दिया था। शामली ज़िले के ल्योन गांव में ग्रामीणों ने यह कहते हुए अपने ग़ुस्से का इज़हार किया है कि किसी भी भाजपा नेता को गाँव के भीतर दाखिल होने की इजाज़त नहीं है। एक स्थानीय किसान ने शिकायत करते हुए कहा कि स्थानीय भाजपा विधायक पांच साल के दौरान उनके पास कभी नहीं आये, तो फिर वह उनका वोट लेने क्यों आयेंगे?

एक और हालिया वायरल वीडियो में उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य को सिराथू में महिलाओं से घिरा हुआ दिखाया गया है, जहां से वह चुनाव लड़ रहे हैं। महिलाओं ने उन पर "धोखा देने" का आरोप लगाया और कहा कि वे भाजपा को उस "10 मार्च को सबक़ सिखायेंगी, जिस दिन राज्य में हो रहे चुनाव के नतीजे घोषित किये जायेंगे।”

उत्तर प्रदेश के कई हिस्सों में भाजपा विरोधी इस भावना के फ़ैलने की कई वजह हैं। 2017 में भाजपा इसलिए जीत हासिल कर पायी थी, क्योंकि उसने पिछड़े वर्गों के बीच समाजवादी पार्टी का आधार रहे यादव और "ग़ैर-यादव" की दरार पैदा कर दी थी। इसके अलावा, योगी आदित्यनाथ सरकार ने अपने ही तरीक़े से कार्यक्रमों और विकास कार्यों को पेश करने के लिए मीडिया और विज्ञापन एजेंसियों को मोटी रक़म देते हुए प्रचार अभियान शुरू कर दिया है। उत्तर प्रदेश में उस पैमाने पर नौकरियों का सृजन नहीं हो पाया है, जिसकी उत्तर प्रदेश के नौजवानों को ज़रूरत है। केंद्र और राज्य में पिछले तीन चुनावों में सरकार स्वच्छ भारत अभियान और प्रधानमंत्री आवास योजना जैसी योजनाओं पर पहले से ही बढ़ा-चढ़ाकर बातें होती रही हैं। हाल फिलहाल में उज्जवला योजना भी कई तरह की बाधाओं का शिकार रही है।

उत्तर प्रदेश पुलिस ने 2017 से योगी की हुक़ूमत से मिल रहे समर्थन से "मुठभेड़ों" में 39 से ज़्यादा कथित अपराधियों को मार गिराया है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने इन हत्याओं के बाद एक जांच का आदेश दिया था, इसलिए पुलिस आधे-अधूरे मुठभेड़ों पर उतर आयी। इस तरह की मुठभेड़ों में लोगों को गोली तो मारी जाती है, लेकिन इससे किसी तरह की घातक चोटें नहीं आती हैं। अतिरिक्त सचिव अविनाश कुमार अवस्थी ने मीडिया को बताया कि इन मुठभेड़ों में 1,329 से ज़्यादा "कथित अपराधी" शारीरिक रूप से अक्षम बना दिये गये, और उनमें से ज़्यादातर मुस्लिम या दलित हैं।

राज्य में 21.5% दलित और 19.3% मुस्लिम (जनगणना 2011) आबादी है और ये हुक़ूमत के बदलाव के मूड में हैं। इलाहाबाद हाई कोर्ट में नागरिक अधिकार अधिवक्ता कमल कृष्ण रॉय कहते हैं, “व्यावहारिक रूप से उत्तर प्रदेश के हर बड़े शहर, चाहे वह ग़ाज़ियाबाद, मेरठ, मुज़फ़्फ़रनगर, कानपुर और इलाहाबाद हो, सबके सब इस तरह के मुठभेड़ के गवाह रहे हैं। लोग इसे माफ़ करने और भूलने को तैयार नहीं हैं।"

इस ग़ुस्से का एक अन्य स्रोत वह मनमाना तरीक़ा है, जिसमें सरकार ने उत्तर प्रदेश गैंगस्टर्स और असामाजिक गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम 1986 में संशोधन करके एक डिप्टी कमिश्नर रैंक के अधिकारी को संपत्ति की कुर्की और ध्वस्त करने के फ़रमान जारी किये जाने की इजाज़त दे दी। इस क़ानून ने राज्य के अधिकारियों को कथित गैंगस्टरों से जुड़े 1,500 करोड़ रुपये से ज़्यादा की संपत्ति को ज़ब्त करने और नष्ट करने की इजाज़त दे दी है। लेकिन, इस क़ानून का इस्तेमाल उन लोगों के ख़िलाफ़ किया गया, जिन्होंने दिसंबर 2019 में पूरे उत्तर प्रदेश में नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन किया था।

राज्य सरकार ने होर्डिंग्स पर प्रदर्शनकारियों के नाम, फ़ोटो, पते और फ़ोन नंबर के साथ उन्हें “सार्वजनिक रूप से शर्मसार" किया।

ग़ाज़ीपुर के एक पूर्व समाजवादी नेता अशोक राय इस बात से क्षुब्ध हैं कि "योगी ने एक डर पैदा करने वाली मनोविकृति पैदा की है।" वह कहते हैं, "जनता भाजपा के कोपभाजन होने से डरती है।"  

योगी प्रशासन ने उत्तर प्रदेश सार्वजनिक और निजी संपत्ति नुक़सान वसूली अध्यादेश, 2020 भी जारी कर दिया, जिसके तहत राज्य सरकार प्रदर्शनकारियों की संपत्ति को "अशांति भड़काने और सार्वजनिक संपत्ति को नुक़सान पहुंचाने" के आरोप में ज़ब्त करने का आदेश दे सकती है। इन दोनों अध्यादेशों ने ऐसा डर पैदा कर दिया है कि कई जगहों पर तो चिंतित मुस्लिम नागरिकों ने कथित नुक़सान का वाजिब आकलन किये बिना ही ज़िला अधिकारियों को चेक सौंप दिये।

समाजवादी जन परिषद का नेतृत्व करने वाले वाराणसी के एक सामाजिक कार्यकर्ता अफ़लातून का कहना है कि वह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री की ओर से सीएए का विरोध करने वालों से "बदला लेने" के आह्वान से डर हुए थे। वे कहते हैं, “आख़िर कोई मुख्यमंत्री 'ठोक दो' और 'बदला' लेने की बात भला कैसे कर सकता है? लोगों ने पिछले पांच सालों का समय बहुत ही सब्र से काटा है।”

योगी सरकार ने बेवजह के विवादों को छेड़कर एक हिस्से के लोगों को अलग-थलग कर दिया है। मसलन, एक मंत्री ने लखनऊ में स्थानीय मीडिया को बताया कि पिछले साल उत्तर प्रदेश में हुए पंचायत चुनाव में महज़ तीन शिक्षकों की ही मौत हुई थी। उन चुनावों में 52,000 ग्राम पंचायत, 61,000 ब्लॉक सदस्य, 821 ब्लॉक प्रमुख, 3,000 ज़िला पंचायत सदस्य और 75 ज़िला पंचायत प्रमुख शामिल थे और ये चुनाव 8,50,000 पदों के लिए हुए थे। उत्तर प्रदेश प्राथमिक शिक्षा संघ के अध्यक्ष दिनेश चंद शर्मा ने जो आंकड़े इकट्ठे किये हैं, उन आंकड़ों के मुताबिक़, कोविड-19 दूसरी लहर के बीच बड़े पैमाने पर चली उस क़वायद की निगरानी के लिए तीन लाख प्राथमिक विद्यालय के शिक्षकों को आदेश दिया गया था, जिसका नतीजा यह हुआ था कि कथित तौर पर तक़रीबन 1,621 शिक्षकों की मौत हो गयी थी। यह भी चुनावी मुद्दा बन गया है। शर्मा के संघ ने मृत शिक्षकों के परिजनों को पर्याप्त मुआवज़ा दिलाने के लिए एक अभियान चलाया है। यह मांग करते हुए वह अब सक्रिय रूप से समाजवादी पार्टी के लिए प्रचार करते हैं कि ऐसे हर एक परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी मिलेगी।

जब मई 2021 में महामारी के चरम पर थी, तब गंगा में सैकड़ों शव पाये गये थे, तो उत्तर प्रदेश के मंत्री महेंद्र सिंह ने फिर से कहा था कि वह इसे लेकर बहुत कुछ नहीं कर सकते हैं। अन्य मंत्रियों ने इस घटना पर रौशनी डालते हुए दावा किया था कि यह तो जल समाधि की पुरानी हिंदू परंपरा है। आख़िरकार, राज्य के स्वास्थ्य मंत्री जय प्रताप सिंह ने भी विधानसभा को सूचित किया कि उत्तर प्रदेश में "ऑक्सीज़न की कमी के चलते" किसी की भी मौत नहीं हुई है।

यह सब तब कहा गया, जब सैकड़ों नर्सिंग होम और लोगों ने सोशल मीडिया पर ऑक्सीज़न की आपूर्ति के लिए गुहार लगायी थी। अपनी मांगों या शिकायतों को सार्वजनिक करने वाले कई डॉक्टरों और अन्य लोगों को ख़ुद के ख़िलाफ़ प्राथमिकी दर्ज किये जाने का सामना करना पड़ा था या उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के तहत गिरफ़्तार कर लिया गया था।

कांग्रेस विधायक प्रताप सिंह के मुताबिक़, सरकार ने उन 22,915 रोगियों के मृत्यु प्रमाण पत्र में ऑक्सीज़न की कमी के चलते हुई मौत का ज़िक़्र नहीं किया था, जिनकी मौत कोविड-19 (राज्य में) के कारण हुई थी। इसका मतलब यह नहीं था कि ऑक्सीज़न कोई कमी नहीं थी। वह कहते हैं, “उनके अपने मंत्रियों और सांसदों ने चिट्ठी लिखकर ऑक्सीज़न की उस कमी को उजागर किया था। क्या वे झूठ बोल रहे थे? कांग्रेस के हमारे प्रत्याशी घर-घर जाकर इन सभी मुद्दों को उठा रहे हैं।'

इतिहासकार प्रोफ़ेसर महेश विक्रम ने बताया, “साफ़ तौर पर कोई लहर तो नहीं है, लेकिन सत्ताधारी दल से दूर हो चुकी जातियों का एक ख़ामोश लामबंदी तो चल ही रही है। सत्ता विरोधी भावना भी मौजूदा उत्तर प्रदेश सरकार के ख़िलाफ़ जायेगी।”

मोदी शासन की ओर से पारित तीन क़ानूनों के ख़िलाफ़ पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में किसानों के आंदोलन के साथ जिस तरह सरकार ने ग़लत तरीक़े से बर्ताव किया था, उसके ख़िलाफ़ नाराज़गी यहां से ज़्यादा कहीं और केंद्रित नहीं है। मामला आमने-सामने का तब हो गया था, जब 3 अक्टूबर 2021 को लखीमपुर खीरी में वाहनों के एक काफ़िले ने विरोध स्थल से लौट रहे किसानों को कुचल दिया था, इन वाहनों में से दो वाहन कथित रूप से गृह राज्य मंत्री, अजय मिश्रा 'टेनी' और उनके बेटे आशीष के स्वामित्व वाली थी। आशीष मिश्रा की गिरफ़्तारी में काफ़ी समय लिया गया। संयुक्त किसान मोर्चा भी सीनियर मिश्रा के इस्तीफ़े की मांग करता रहा है, लेकिन मोदी सरकार ने शायद इस डर से इसका विरोध किया है कि इससे पार्टी के ब्राह्मण मतदाता उनसे बिदक जायेंगे।

हाल ही में समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भरोसा जताया है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाटों और मुसलमानों के एकजुट होने से इस इलाक़े में भाजपा का हिंदुत्व कार्ड फ्लॉप हो जायेगा और ये लोग उनकी पार्टी को वोट करेंगे। भाजपा ने 2017 में इस क्षेत्र की 103 विधानसभा सीटों में से 80 सीट पर जीत हासिल की थी। शनिवार को गृह मंत्री अमित शाह कैराना शहर में घर-घर जाकर प्रचार करने गये और ज़ोर देकर कहा कि योगी सरकार ने यह सुनिश्चित कर दिया है कि उत्तर प्रदेश में अब कोई "बाहुबली" नहीं, बल्कि सिर्फ़ "बजरंगबली" ही हों।

बीजेपी मुस्लिम-जाट की लामबंदी को रोकने की पूरी कोशिश कर रही है और चुनाव से पहले या बाद में बीजेपी के साथ "शामिल" होने के लिए उस राष्ट्रीय लोक दल(RLD) से संपर्क साधने की कोशिश कर रही है, जो समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन में है। आरएलडी नेता जयंत चौधरी ने इस आमंत्रण को भाजपा की तरफ़ से मतदाताओं को गुमराह करने की एक और कोशिश के तौर पर खारिज कर दिया है। चौधरी ने ट्वीट किया, "जिन 700 किसान परिवारों के घर आपने तबाह किये हैं, उनके परिवारों को यह दावत दें।" चौधरी ने न्यूज़क्लिक को बताया, “उत्तर प्रदेश के मतदाता कोविड-19 के आघात को नहीं भूल सकते। दूसरी लहर में उत्तर प्रदेश का हर परिवार बुरी तरह प्रभावित हुआ था। मगर, निवर्तमान मुख्यमंत्री की ओर से इस सच को लगातार नाकारा जाता रहा है।”

सोशलिस्ट पार्टी के अशोक राय के मुताबिक़, आने वाले चुनाव में अहम मुद्दा तो यही है कि समाजवादी पार्टी लोगों को वोट देने के लिए संगठित कर पाती है या नहीं। वह कहते हैं, “मोदी के अलावा, भाजपा के पास कोई नेता नहीं है। भाजपा ने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को प्रचार करने की इजाज़त नहीं दी है, हालांकि वह उत्तर प्रदेश से ही हैं।” उनके मुताबिक़, मुख्यमंत्री को अयोध्या से नहीं,बल्कि गोरखपुर से चुनाव लड़ने के लिए कहा गया है, ऐसा इसलिए, क्योंकि गोरखपुर को पार्टी के लिए एक सुरक्षित सीट के तौर पर देखा जाता है।

सिराहू में उपमुख्यमंत्री मौर्य का घेराव करने वाली महिलायें उस समय दिल से बोलती नज़र आयीं, जब चिल्लाते हुए उन्होंने कहा था कि वे 10 मार्च को माकूल जवाब देंगी।

25 जनवरी को प्रयागराज में प्रदर्शन कर रहे छात्रों के ख़िलाफ़ पुलिस की बर्बरता से जनता का ग़ुस्सा और तेज़ हो गया है। तक़रीबन 1.24 करोड़ छात्रों ने तीन साल पहले भारतीय रेलवे में नौकरियों के लिए आवेदन किया था, लेकिन नियुक्तियों को तीन साल के लिए निलंबित कर दिया गया था। 

प्रयागराज से कांग्रेस प्रत्याशी अनुग्रह नारायण सिंह कहते हैं, ''नौकरी चाहने वालों का यह आंदोलन पूरे राज्य में फैलेगा। नौजवानों की बेरोज़गारी और पसरी हुई महंगाई ऐसे अहम चुनावी मुद्दे हैं, जिन्हें भाजपा हिंदुत्व के मुद्दे को उठाकर दरकिनार करने की कोशिश कर रही है।

उत्तर प्रदेश में भाजपा के लिए मार्च महीने का पहला पखवाड़ा चौंकाने वाला हो सकता है।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। इनके विचार निजी हैं।)

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें:-

UP Election: How Yogi Rule Alienated People in Five Years in Power

Uttar Pradesh Assembly election
UP election 2022
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