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यूपी की कानून व्यवस्था: विवेक तिवारी से लेकर विकास दुबे एनकाउंटर तक एक विश्लेषण
सरकार की “एनकाउंटर नीति” सवालों के घेरे में है। यही नहीं सरकार पर सांप्रदायिक तत्वों और महिला उत्पीड़न के अभियुक्तों को शरण देने के आरोप भी लगे हैं।
असद रिज़वी
15 Jul 2020
up crime

उत्तर प्रदेश के कानपुर में आठ पुलिसकर्मी की हत्या करने का आरोपी शातिर बदमाश विकास दुबे एनकाउंटर में मार दिया गया है, लेकिन कानून और व्यवस्था को लेकर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार लगातार चुनौतियों और आरोपों का सामना कर रही है। सरकार की “एनकाउंटर नीति” सवालों के घेरे में है और उस पर सांप्रदायिक तत्वों के अलावा महिला उत्पीड़न के अभियुक्तों को शरण देने के आरोप भी लगे हैं।

गोरखपुर से पांच बार सांसद रहे योगी आदित्यनाथ ने मार्च 2017 में, प्रदेश की सत्ता की कमान संभाली और कानून और व्यवस्था को बनाए रखने के लिए “एनकाउंटर नीति” का सहारा लिया। उन्होंने कहा कि अपराधियों को “ठोक दो”, लेकिन उनके इस बयान की बहुत निंदा हुई। विपक्ष ने कहा कि एक तो मुख्यमंत्री स्वयं कई गंभीर मामलों में अभियुक्त हैं और दूसरे “एनकाउंटर“ का अर्थ न्याय व्यवस्था पर विश्वास कम होना है।

विवेक तिवारी की हत्या

देश के सबसे बड़े राज्य में योगी सरकार बने अब तीन वर्ष से ज़्यादा हो गए हैं। इन तीन वर्ष के समय में कानून और व्यवस्था को लेकर कई बार भाजपा सरकार निशाने पर आ चुकी है। एनकाउंटर के नाम पर पुलिस को अधिक स्वतंत्रता मिल गई। बदमाशों के साथ आम नागरिक भी निशाने पर आ गये। राजधानी लखनऊ के गोमतीनगर इलाक़े के निवासी विवेक तिवारी भी पुलिस की गोली का निशाना बना। 

अपने ऑफ़िस से घर जा रहे विवेक तिवारी जो “ऐपल” कम्पनी में काम करते थे, को राजधानी पुलिस ने 28-29 सितंबर, 2018 की रात कार चेकिंग के नाम पर गोली मार दी। विवेक तिवारी का कोई आपराधिक इतिहास नहीं था। इस घटाना के बाद योगी सरकार की “एनकाउंटर नीति” की चारों तरफ़ निंदा हुई। अंत में सरकार ने मुआवज़ा और उनकी पत्नी को नौकरी देकर मामला शांत किया।

सांप्रदायिकता के शिकार इंस्पेक्टर सुबोध सिंह 

वहीं प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने के बाद से हिंदुवादी संगठन भी सक्रिय हो गए। बुलंदशहर में 3 दिसंबर 2018 को गौ हत्या की ख़बर फैलने के बाद हालात तनावग्रस्त थे। गौ हत्या से नाराज़ लोग जिसमें कथित तौर से बजरंग दल के कार्यकर्ता भी शामिल थे,सड़क पर उतर आये और तोड़-फोड़ व आगज़नी करने लगे। हालत को बेक़ाबू होता देख स्थानीय पुलिस सक्रिय हुई। लेकिन भीड़ ने मौक़े पर मौजूद पुलिस की कमान संभाले इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह की हत्या कर डाली। सुबोध कुमार सिंह का शव उनकी ही गाड़ी से लटका हुआ एक खेत में मिला।

बुलंदशहर में हुई हिंसा के बाद बुलंदशहर के हालत की समीक्षा के लिए मुख्यमंत्री ने शासन और पुलिस के आला अधिकारियों के साथ एक मीटिंग की। लेकिन मीटिंग के बाद जारी सरकारी प्रेस नोट में इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह की हत्या का कोई ज़िक्र ही नहीं था। सरकार का केंद्र-बिंदु गौ-हत्या था। इस घटना के बाद सरकार पर सांप्रदायिकता को बढ़ाने के ख़ूब आरोप लगे।

महिला उत्पीड़न के आरोपियों को समर्थन का आरोप

उत्तर प्रदेश सरकार की योगी आदित्यनाथ सरकार को महिला संगठनों के आंदोलनों का सामना भी करना पड़ा है। महिला संगठनों ने आरोप लगाया कि उत्तर प्रदेश सरकार ने यौन उत्पीड़न के आरोपियों कुलदीप सिंह सेंगर और पूर्व केंद्रीय मंत्री चिन्मयानंद को राजनीतिक शरण दी।

उन्नाव से बीजेपी के तत्कालीन विधायक कुलदीप सिंह सेंगर पर और केंद्र की बीजेपी सरकार के पूर्व मंत्री चिन्मयानंद दोनों पर बलात्कार का आरोप था। चिन्मयानंद पर एक छात्रा ने आरोप लगाया था। लेकिन दोनो के विरुद्ध करवाई और गिरफ़्तारी में उत्तर प्रदेश पुलिस ने ढिलाई बरती थी। महिला संगठनों और नागरिक समाज का आरोप था की सत्ता पक्ष के होने के कारण इनको बचाया जा रहा है।

अंत में इन दोनों मामलों में महिला संगठनों को अभियुक्तों की गिरफ़्तारी के लिए सड़क पर उतरना पड़ा। महिला संगठनों के आंदोलनो के दबाव में ही कुलदीप सिंह सेंगर और चिन्मयानंद की गिरफ़्तारियाँ हुई और उनको जेल भेजा गया।

इस तरह से अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति, साझी दुनिया और महिला फ़ेडरेशन आदि संगठनों को पिछले तीन वर्ष में कई बार महिला उत्पीड़न को लेकर सरकार के विरुद्ध मोर्चा खोलना पड़ा।

बता दें कि भाजपा ने कुलदीप सिंह सेंगर को पार्टी से भी नागरिक संगठनों के दबाव में निकाला। अब कुलदीप सिंह जेल में है और बलात्कार की सज़ा काट रहा है और चिन्मयानंद ज़मानत पर रिहा है।

सोनभद्र में आदिवासियों की हत्या

प्रदेश में क़ानून और व्यवस्था की धज्जियाँ उस समय भी उड़ीं जब सोनभद्र ज़िले में एक साथ 10 लोगों की हत्या कर दी गई। एक ज़मीन के विवाद को लेकर सोनभद्र में 17 जुलाई 2019 को 10 आदिवासियों की हत्या कर दी गई। इससे पूरे देश में उत्तर प्रदेश की ख़राब क़ानून और व्यवस्था पर चर्चा होने लगी। अंत में मुख्यमंत्री स्वयं सोनभद्र गए और पीड़ित परिवारों की मदद की घोषणा की।

उन्नाव में महिला को जलाया गया

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के नारा देकर सत्ता में आई भाजपा सरकार 5 दिसंबर 2019, को एक बार फिर “महिला सुरक्षा” के मुद्दे पर घिर गई। उन्नाव की 23 वर्षीय एक बलात्कार पीड़िता को पांच लोगों ने बीच सड़क आग के हवाले कर दिया। महिला केरोसीन से जलाए जाने के बाद अपनी जान बचाने के लिए एक किलोमीटर तक दौड़ी। जबकि वह 95 प्रतिशत जल गई थी, लेकिन उसने पुलिस को बायान दिया और अभियुक्तों के नाम बताये। जिसमें में से दो पीड़िता के साथ बलात्कार के आरोपी ही थे।

पीड़ित को इलाज के लिए लखनऊ लाया गया और फिर इलाज के लिए दिल्ली भेजा गया। लेकिन उसको बचाया नहीं जा सका। दिल्ली के सफ़दरजंग अस्पताल के अनुसार 6 दिसंबर की रात पीड़िता की मौत हो गई।

सीएए के विरुद्ध प्रदर्शन में 23 को मौत 

उत्तर प्रदेश में नागरिक समाज और कई राजनीतिक पार्टियों द्वारा 19 दिसंबर 2019, को नगरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के विरुद्ध प्रदर्शन का एलान किया गया। सरकार ने पूरे प्रदेश में धारा 144 लगा दी। इसके बावजूद लोग प्रदर्शन के लिए निकले। राजधानी लखनऊ समेत कई शहरों में पुलिस और प्रदर्शनकरियों में टकराव हो गया। जिसके बाद प्रदर्शन उग्र हो गया।

प्रदर्शन के दौरान प्रदेश भर में 23 लोगों की मौत हो गई। मरने वालों में ज़्यादातर अल्पसंख्यक समुदाय के थे। पुलिस पर प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने के आरोप लगे और बड़ी मात्रा में निजी व सार्वजनिक सम्पत्ति का नुक़सान हुआ। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 19 दिसंबर की घटना के बाद एक बायान में कहा कि प्रदर्शनकारियों से “बदला” लिया जायेगा। जिसकी काफ़ी निंदा हुई और बाद में कहा गया की बयान को मीडिया ने ग़लत तरीक़े से दिखाया।

विकास दुबे कांड से भी उठे प्रश्न

कानपुर का बदमाश विकास दुबे आठ पुलिसकर्मियों की हत्या करने के बाद भी आसानी से भाग निकला। वह कई प्रदेशों में गया। पहले वह फ़रीदाबाद हरियाणा में देखा गया और उज्जैन, मध्यप्रदेश से गिरफ़्तार हुआ। जिसके बाद इस प्रश्न ने जन्म लिया की वह प्रदेश की सीमा के बाहर कैसे निकल गया? जबकि पुलिस का दावा था की प्रदेश की सभी सीमाएँ सील थीं।

बाद में उज्जैन से कानपुर लाते समय विकास दुबे ने कथित तौर पर भागने की कोशिश कि तो उत्तर प्रदेश एसटीएफ़ एनकाउंटर कर दिया।

अब विकास के एनकाउंटर पर भी सवालिया निशान है। विकास की गाड़ी के पीछे चल रही मीडिया कि गाड़ियों को चेकिंग के नाम पर क्यों रोक दिया गया? ऐसे ही कई सवाल है जो सरकार और उत्तर प्रदेश पुलिस से किये जाने हैं।

 इसके अलवा यह भी कहा जा रहा है की विकास दुबे के एनकाउंटर में बाद यह राज़ भी मिट गए कि उसका आपराधिक राज्य स्थापित कारने में किन सफ़ेद कॉलर लोगों का हाथ था। विकास दुबे एनकाउंटर के बाद योगी सरकार की प्रशंसा कम, उस से सवाल ज़्यादा पूछे जा रहे हैं।

 इसे पढ़ें : अपराध की जाति और धर्म

एनकाउंटर पर पहले भी उठे हैं सवाल

 योगी आदित्यनाथ सरकार ने शुरू से एनकाउंटर को कानून और व्यवस्था दुरुस्त रखने के लिए एक हथियार रूप में देखा है। मुख्यमंत्री स्वयं अपनी सरकार की एनकाउंटर के लिए प्रशंसा करते रहे हैं। सरकार बनने के छह महीने बाद 19 सितंबर, 2017 सरकार द्वारा बताया गया था की छह महीने में कुल 430 एनकाउंटर किए गए हैं जिनमें 17 अपराधियों को मारा गया है। इसके अलावा छह दिसंबर 2019 को उत्तर प्रदेश ने दावा किया की पिछले दो वर्षों में उसने 5178 एनकाउंटर किए हैं, जिसमें 103 अपराधी मारे गए हैं और 1859 घायल हुए हैं।

 हालाँकि योगी आदित्यनाथ सरकार की एनकाउंटर नीति हमेशा से घेरे में रही है। राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग ने 2017-18 के बीच उत्तर प्रदेश में एनकाउंटर पर सरकार से जवाब तलब किया।

 उत्तर प्रदेश पुलिस के सूत्र बताते हैं पिछले तीन वर्षों में 6145 एनकाउंटर किए जा चुके हैं, जिसमें 119 अपराधी मारे गए हैं और 2258 घायल हुए हैं। विकास दुबे 119 वाँ अपराधी है जो एनकाउंटर में मारा गया है।

 इसे पढ़ें : बुनियादी मुद्दों के एनकाउंटर का दौर

वरिष्ठ पत्रकार नवीन जोशी कहते हैं कि मुख्यमंत्री योगी-आदित्यनाथ अपराध रोकने के नाम पर क़ानून का ग़लत इस्तेमाल कर रहे हैं। हिंदुस्तान अख़बार के पूर्व संपादक जोशी का कहना है कि एनकाउंटर से कानून और व्यवस्था को नहीं सुधारा जा सकता है। उत्तर प्रदेश में पिछले तीन वर्षों में इतने एनकाउंटर किये गये, लेकिन हत्या, लूट और महिला उत्पीड़न के मामले अब भी प्रकाश में आ रहे हैं।

 अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति के वरिष्ठ सदस्य मधु गर्ग का कहना है कि प्रदेश में महिला उत्पीड़न के मामलों की सुनवाई नहीं हो रही है। लॉकडाउन के चलते आंदोलन भी नहीं हो रहे हैं, सरकार इसका भी फ़ायदा उठा रही है। मधु गर्ग के अनुसार महिला संगठनों को सूचना मिली है कि चिन्मयानंद के विरुद्ध मुक़दमे वापस लेने की तैयारी हो रही है। उनके अनुसार प्रदेश में रहने वाले नागरिकों को पुलिस से सहयोग की उम्मीद ख़त्म हो गई है। मौजूदा समय में उत्तर प्रदेश में, जो सत्ता पक्ष के साथ है, वह अपराधी ही क्यों न हों वह सम्मानित है और सत्ता से सवाल करने वाले सम्मानित भी अपराधी है।

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