NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
सोशल मीडिया
भारत
राजनीति
उत्तराखंड: आपदा में प्रतिरोध के स्वर कुचलने के अवसर
पत्रकार हों या सामाजिक कार्यकर्ता, या फिर सोशल मीडिया पर लिखने वाले इन दिनों सबको नोटिस थमाए जा रहे हैं। फोन की घंटी घनघनाती है कि ऊपर से कुछ आदेश आया है, नज़दीकी थाने में दर्शन दे दो। ऊपर से किसका आदेश है, ये नोटिस देने वाले को भी नहीं पता या वो बताता नहीं।
वर्षा सिंह
13 Jul 2020
 आपदा में प्रतिरोध के स्वर कुचलने के अवसर
'प्रतीकात्मक तस्वीर' साभार : ट्विटर

फूल के खिलने का डर है सो पहले फूल का खिलना बर्ख़ास्त, फिर फूल बर्ख़ास्त

हवा के चलने का डर है सो हवा का चलना बर्ख़ास्त, फिर हवा बर्ख़ास्त

डर है पानी के बहने का, सीधी सी बात, पानी का बहना बर्ख़ास्त, न काबू आए तो पानी बर्ख़ास्त

कवि मनमोहन की ये पंक्तियां उत्तराखंड के पत्रकारों, एक्टिविस्ट जैसे लोगों पर इस समय खूब फिट बैठ रही हैं। 'कोरोना काल में  उत्तराखंड ने खूब विकास किया लेकिन राज्य के पत्रकार इस विकास को दिखा नहीं पाए!' सामाजिक कार्यकर्ताओं को भी ये विकास नहीं दिखा। बात-बात पर सरकार का विरोध ठीक है क्या? तो फिर क्या, सब पर बर्ख़ास्तगी की तलवार लटकी है। सबको नोटिस थमाए जा रहे हैं। फोन की घंटी घनघनाती है कि ऊपर से कुछ आदेश आया है, नज़दीकी थाने में दर्शन दे दो। ऊपर से किसका आदेश है, ये नोटिस देने वाले को भी नहीं पता या वो बताता नहीं।

स्थानीय पत्रकारों पर केस

उत्तराखंड की एक प्रमुख मासिक पत्रिका के पत्रकार ए (पहले ही मुसीबत झेल रहे, नाम लेकर और मुश्किल न बढ़े) इन दिनों देहरादून के थानों के चक्कर काट रहे हैं। कहते हैं कि अनावश्यक तौर पर मुझ पर दबाव बनाने के लिए ऐसा किया जा रहा है। उन पर राज्य के एक प्रमुख अधिकारी ने मानहानि का केस दर्ज कराया है। मानहानि के मामलों में भी पहले कानूनी नोटिस आता था कि आपने ये गलत लिखा है, इसका खंडन कीजिए। लेकिन यहां तो सीधे केस दर्ज किया जा रहा है। थोड़ी निराशा का भाव भी है कि मुख्यधारा का मीडिया तो जरूरी मुद्दों पर कुछ बोल नहीं रहा। जो पत्रकारिता बची हुई है वो कुछ स्थानीय पत्र-पत्रिकाओं, वेब पोर्टल और सोशल मीडिया पर है। वह कहते हैं कि हर दूसरे दिन थाने जाऊं या अपना काम करूं। उनके मुताबिक पिछले दो-तीन महीनों में उन्हें मिलाकर आठ पत्रकार हो गए हैं जिन पर केस दर्ज किए गए हैं। इनमें मसूरी के पत्रकार शूरवीर भंडारी और पौड़ी के पत्रकार अद्वैत बहुगुणा शामिल हैं।

राजधानी के ही एक अन्य पत्रकार ने बताया कि हिंदी पत्रकारिता के शीर्ष अखबारों ने अपने यहां काम करने वाले पत्रकारों से ये लिखवाया है कि आप सोशल मीडिया पर सरकार विरोधी कुछ भी नहीं लिखेंगे। ऐसा न करने पर कार्रवाई होगी।

राजनीतिक-सामाजिक कार्यकर्ता भी रडार पर!

सीपीआई-एमएल के गढ़वाल सचिव इंद्रेश मैखुरी कहते हैं कि आपदा में प्रतिरोध के सभी छोटे-बड़े स्वर कुचलने का अवसर मिल गया है। ज़रूरी मुद्दों को उठाने वाले राजनीतिक-सामाजिक कार्यकर्ताओं पर भी लगातार दबाव बनाया जा रहा है। उन्होंने बताया कि हल्द्वानी में साथी केके बोरा ने अपने फेसबुक पोस्ट पर एक राष्ट्रीय हड़ताल में शामिल मज़दूरों की तस्वीर लगाई। तो केके बोरा को ये नोटिस दिया गया कि आपकी तस्वीर में सोशल डिस्टेंसिंग दिखाई नहीं दे रही है। उन्हें एक सब-इंस्पेक्टर का फोन आया कि ऊपर से जांच आयी है, तुम थाने आओ, नहीं तो मैं तुम्हारे घर आता हूं। वह थाने नहीं गए। ऊपर से कौन जांच भेज रहा है, इसका जवाब नहीं मिला।

इंद्रेश मैखुरी दूसरा उदाहरण देहरादून के एक्टिविस्ट भार्गव चंदोला का देते हैं। जिन्हें लॉकडाउन के समय राशन बांटने पर पहला नोटिस दिया गया था। दूसरी बार इनके घर दो पुलिस वाले आए कि आपको थाने में बुलाया गया है। ये नहीं बताया गया कि थाने क्यों बुलाया गया। भार्गव चंदोला ने मार्च के महीने में कुछ इस तरह की फेसबुक पोस्ट लिखी थी कि यदि अयोध्या में मंदिर-मस्जिद की जगह अस्पताल बने तो कैसा रहेगा। इस मामले में भी बताया गया कि ऊपर से जांच आयी है।

इंद्रेश मैखुरी कहते हैं कि ये बड़ा अजीब है। ऊपर कौन है जो जांच भेज रहा है।

इसी समय में पेट्रोल-डीज़ल की बढ़ती कीमतों पर प्रदर्शन कर रही उत्तराखंड कांग्रेस, पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत और आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं को बिना अनुमति के प्रदर्शन और सोशल डिस्टेन्सिंग का पालन न करने पर केस दर्ज किया गया। वहीं भाजपा के कुछ नेताओं पर भी सोशल डिस्टेंसिंग का पालन न करने जैसी तस्वीरें आईं लेकिन क्या कोई उन पर कोई केस दर्ज हुआ?

शिकायत कौन करेगा, किससे करेगा

इन मामलों के बाद उत्तराखंड के बहुत से पत्रकारों की फेसबुक पोस्ट ख़ामोशी के दौर से गुज़र रही है। कुछ ऐसे हैं जो पहले बोला करते थे लेकिन अभी चुप्पी साध गए हैं। कुछ एक दूसरे को सावधान कर रहे हैं - सरकार के ख़िलाफ़ मत लिखो। ये आवाज़ें भी उठ रही है कि ये अघोषित आपातकाल सरीखा है।

बेल्जियम के ब्रसेल्स में इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ जर्नलिस्ट से संबद्ध नेशनल यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स (इंडिया) ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को 30 जून को पत्र लिखा है। जिसमें उत्तराखंड के पत्रकारों की समुचित सुरक्षा की मांग की गई है ताकि वे बिना किसी डर के अपना कार्य कर सकें। पत्र में लिखा गया है कि पत्रकार अपना काम कर रहे हैं और प्रशासन-सरकार की कमियों को उजागर कर रहे हैं, ऐसे में कई जिलों में मीडिया से जुड़े लोगों, पत्रकारों पर खबर दिखाने को लेकर केस दर्ज किये जा रहे हैं।

अमित शाह को भेजा गया पत्र.jpg

उत्तराखंड में पत्रकारों से जुड़ी संस्थाएं इन मुद्दों पर अब तक ख़ामोश हैं। कोरोना के कठिन समय में बहुत से वेब पोर्टल और स्थानीय समाचार पत्र-पत्रिकाएं भी मुश्किल दौर से गुज़र रही हैं। बाहरी विज्ञापन नहीं मिल रहे और सरकार से मिलने वाले विज्ञापनों पर निर्भरता बढ़ी है। सरकारी विज्ञापनों के बांटने में भी भेदभाव के आरोप लगे हैं। अस्तित्व बचाए रखने का ये मुश्किल दौर है।

ख़ुफ़िया विभाग के रडार पर सोशल मीडिया

4 जुलाई को मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि राज्य में सोशल मीडिया की गतिविधियां खुफिया विभाग के रडार पर रहेंगी। खुफिया तंत्र से जुड़ी एजेंसियों को सोशल मीडिया पर निगाह रखने के निर्देश दिए गए हैं। मुख्यमंत्री ने कहा कि सोशल मीडिया कई बार असामाजिक हो जाता है। यहां ऐसे लोग आ गए हैं, जो सोशल मीडिया के नाम पर कलंक लगते हैं। वे अपराध कर रहे हैं। इसलिए खुफिया विभाग को सोशल मीडिया पर निगाह रखने को कहा गया है। ये देखा जाएगा कि कहीं कोई खास एजेंडे पर काम तो नहीं कर है। साथ ही जो अच्छे लोग हैं,  उन्हें शाबाशी मिलनी चाहिए।

उत्तराखंड में सोशल मीडिया पर खुफिया विभाग की नजर.jpg

लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पर दबाव

भाजपा के प्रगतिशील नेता रविंद्र जुगरान कहते हैं कि पूरे देश में बड़ी तादाद में मीडिया प्लेटफॉर्म्स सरकार के प्रभाव में, सरकार की भाषा बोलते हुए दिखाई देते हैं। मीडिया का एक बड़ा वर्ग सरकार से सवाल करता नहीं दिखाई दे रहा। इस दौर में सोशल मीडिया की प्रासंगिकता बढ़ गई। यहां हर व्यक्ति सिटीजन जर्नलिस्ट की भूमिका निभा सकता है। साथ ही स्थानीय पत्र-पत्रिकाएं, वेबपोर्टल भी थोड़ी बहुत पत्रकारिता बचा रहे हैं। रविंद्र कहते हैं कि ऐसे में लोगों पर मुकदमे दर्ज कर डराने की कोशिश करना, हतोत्साहित करना, निंदनीय प्रयास है।

रविंद्र कहते हैं कि अगर किसी खबर से कानून व्यवस्था पर समस्या आती है, समाज में विघटन होता है, या खबर देने वाली की मंशा गलत है, वह किसी को दबाव में लाना चाहता है, तो अलग बात है। लेकिन जनहित के मुद्दों की गई बात, सरकार की कार्यशैली पर सवाल उठाए जाएं, उस पर मुकदमे दर्ज कर दबाव बनाना और दूसरों को संदेश देना कि ऐसा किया तो तुम्हारे साथ भी यही होगा, ये बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए।

आपत्तिजनक पोस्ट पर केस होगा

देहरादून में साइबर सेल के सीओ नरेंद्र पंत कहते हैं कि सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक पोस्ट करने वाले वाले लोगों पर केस दर्ज किया जाता है। लेकिन हम अभिव्यक्ति की आजादी से नहीं रोकते। सरकार के खिलाफ लिखने या नीतियों की आलोचना करने पर केस नहीं करते। वह उदाहरण देते हैं कि एक वेब पोर्टल ने आईपीसी की धारा 354 की पीड़ित का वीडियो वायरल किया। पैरा-लीगल वालंटियर ने इस मामले का संज्ञान लिया और उस वेब पोर्टल पर केस दर्ज किया गया। इसी तरह कोरोना काल में ही मुख्यमंत्री की निधन की झूठी खबर वायरल करने वाले पर कार्रवाई की गई। वह बताते हैं कि जून महीने में सोशल मीडिया और साइबर क्राइम से जुड़े 370 मामले सामने आए। कई बार किसी पोस्ट को लेकर शिकायत आती है तो उसे हटाने को कहते हैं। ऐसे लोगों की काउंसिलिंग भी की जाती है। कितने पत्रकारों पर केस दर्ज हुए हैं, इस पर नरेंद्र पंत कहते हैं कि हमारे लिए पत्रकार, आम नागरिक बराबर हैं।

सोशल मीडिया पर मत-विमत, राजनीतिक चर्चाएं, बहसबाज़ियां खूब होती हैं। सभी राजनीतिक दलों के सोशल मीडिया मैनेजमेंट टीम हैं। बहुत से लोग हैं जो किसी टीम का हिस्सा नहीं है लेकिन वे अपने फेसबुक-ट्विटर और अन्य सोशल मीडिया हैंडल पर अपने मन की बात लिखते हैं। अब किसी के मन की बात किसी को पसंद न आए और ऊपर से जांच आ जाए तो नीचे बैठा व्यक्ति क्या करेगा। फिर सोशल मीडिया पर लोग क्या-क्या लिख रहे हैं इसकी निगरानी के लिए एक पूरी टीम को लगाना, जब राज्य में सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे जरूरी मोर्चे पर बहुत से काम निपटाने हैं। वैसे उत्तराखंड में वर्ष 2022 में विधानसभा चुनाव होने हैं। कवि राजेश जोशी की कविता है कि कठघरे में खड़े कर दिए जाएंगे, जो विरोध में बोलेंगे, जो सच-सच बोलेंगे, मारे जाएंगे।

(वर्षा सिंह स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

Coronavirus
Uttrakhand
Trivendra Singh Rawat
freedom of expression
Press freedom
journalist
social workers
Social Media

Related Stories

अफ़्रीका : तानाशाह सोशल मीडिया का इस्तेमाल अपनी सत्ता बनाए रखने के लिए कर रहे हैं

मृतक को अपमानित करने वालों का गिरोह!

छत्तीसगढ़ की वीडियो की सच्चाई और पितृसत्ता की अश्लील हंसी

उच्च न्यायालय ने फेसबुक, व्हाट्सऐप को दिए सीसीआई के नोटिस पर रोक लगाने से किया इंकार

विश्लेषण : मोदी सरकार और सोशल मीडिया कॉरपोरेट्स के बीच ‘जंग’ के मायने

कैसे बना सोशल मीडिया राजनीति का अभिन्न अंग?

नए आईटी कानून: सरकार की नीयत और नीति में फ़र्क़ क्यों लगता है?

महामारी की दूसरी लहर राष्ट्रीय संकट, इंटरनेट पर मदद मांगने पर रोक न लगाई जाए : उच्चतम न्यायालय

फेसबुक ने घंटो तक बाधित रखा मोदी के इस्तीफे संबंधी हैशटैग, बाद में कहा गलती से हुआ बाधित

कपूर, लौंग, अजवाइन और नीलगिरी तेल ऑक्सीजन लेवल नहीं बढ़ाते, केन्द्रीय मंत्री ने शेयर किया ग़लत दावा


बाकी खबरें

  • विजय विनीत
    ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां
    04 Jun 2022
    बनारस के फुलवरिया स्थित कब्रिस्तान में बिंदर के कुनबे का स्थायी ठिकाना है। यहीं से गुजरता है एक विशाल नाला, जो बारिश के दिनों में फुंफकार मारने लगता है। कब्र और नाले में जहरीले सांप भी पलते हैं और…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 3,962 नए मामले, 26 लोगों की मौत
    04 Jun 2022
    केरल में कोरोना के मामलों में कमी आयी है, जबकि दूसरे राज्यों में कोरोना के मामले में बढ़ोतरी हुई है | केंद्र सरकार ने कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए पांच राज्यों को पत्र लिखकर सावधानी बरतने को कहा…
  • kanpur
    रवि शंकर दुबे
    कानपुर हिंसा: दोषियों पर गैंगस्टर के तहत मुकदमे का आदेश... नूपुर शर्मा पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं!
    04 Jun 2022
    उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था का सच तब सामने आ गया जब राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के दौरे के बावजूद पड़ोस में कानपुर शहर में बवाल हो गया।
  • अशोक कुमार पाण्डेय
    धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है
    04 Jun 2022
    केंद्र ने कश्मीरी पंडितों की वापसी को अपनी कश्मीर नीति का केंद्र बिंदु बना लिया था और इसलिए धारा 370 को समाप्त कर दिया गया था। अब इसके नतीजे सब भुगत रहे हैं।
  • अनिल अंशुमन
    बिहार : जीएनएम छात्राएं हॉस्टल और पढ़ाई की मांग को लेकर अनिश्चितकालीन धरने पर
    04 Jun 2022
    जीएनएम प्रशिक्षण संस्थान को अनिश्चितकाल के लिए बंद करने की घोषणा करते हुए सभी नर्सिंग छात्राओं को 24 घंटे के अंदर हॉस्टल ख़ाली कर वैशाली ज़िला स्थित राजापकड़ जाने का फ़रमान जारी किया गया, जिसके ख़िलाफ़…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License