NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
घटना-दुर्घटना
पर्यावरण
भारत
उत्तराखंड: बारिश ने तोड़े पिछले सारे रिकॉर्ड, जगह-जगह भूस्खलन से मुश्किल हालात, आई 2013 आपदा की याद
बारिश-बाढ़-भूस्खलन से घिरे उत्तराखंड में जो हो रहा है, यही जलवायु परिवर्तन है, आपदा के बाद हम सिर्फ प्रतिक्रिया में कदम उठाते हैं। लेकिन हमें शार्ट टर्म, मिडिल टर्म और लॉन्ग टर्म के लिहाज से तैयारी करनी होगी। ऐसा नैनीताल और समूचे हिमालयी क्षेत्र की स्थिरता के लिए जरूरी है।
वर्षा सिंह
20 Oct 2021
Chamoli
चमोली में हुआ भूस्खलन

कई दिन से उत्तराखंड में बारिश का प्रकोप है, 17,18 और 19 अक्टूबर की रिकॉर्ड बारिश में बर्बादी के मंजरों के साथ खड़ा उत्तराखंड क्या जलवायु परिवर्तन की मार नहीं झेल रहा है? जून से सितंबर तक मानसून के सीजन में उत्तराखंड ने वो आपदा नहीं देखी जो अक्टूबर की दो दिन की बारिश में देखने को मिली। मौसम विभाग के मुताबिक एक दिन की बारिश का पिछले 100 वर्षों का रिकॉर्ड टूटा है। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक आज सुबह तक 46 लोगों की मौत और 12 लोग लापता हैं। असल आंकड़ा इससे अधिक हो सकता है। नेशनल हाईवे, स्टेट हाईवे, ग्रामीण मोटर मार्ग जगह-जगह भूस्खलन और मलबे से पट गए हैं। एसडीआरएफ, एनडीआरएफ के साथ सेना के हेलिकॉप्टर रेस्क्यू में जुटे हुए हैं।

सबसे ज्यादा मुश्किल हालात नैनीताल में देखने को मिल रहे हैं। यहां सबसे ज्यादा 28 मौतें और 5 लोग लापता हैं। अल्मोड़ा में 6 मौतें, चंपावत-5, पौड़ी-3, ऊधमसिंहनगर-2 पिथौरागढ़-1, बागेश्वर-1 मौतें हुई हैं। राज्य सरकार ने आपदा में मारे गए लोगों के परिजनों को 4 लाख रुपये मुआवजा देने की घोषणा की है।

18, 19 अक्टूबर को लगातार बारिश के बाद की स्थिति, केदारनाथ आपदा के दौरान की यादें ताज़ा करने को मजबूर कर रही है। जब राज्य की ज्यादातर नदियां, झीलें, जल-धाराएं रौद्र रूप में खतरे के निशान के नज़दीक पहुंच गई थीं। अलकनंदा, मंदाकिनी समेत कई नदियां खतरे के निशान को पार कर चुकी थीं। हल्द्वानी में गौला नदी का जलस्तर बढ़ने से नदी पर बना पुल बीच से टूट गया। टूटते पुल पर आते लोगों को डायवर्ट करने का वीडियो सोशल मीडिया पर छाया। जिसे देखकर ही रोंगटे खड़े हो रहे थे। यहां गौला और कोसी बैराज से डिस्चार्ज, खतरे के स्तर को पार कर चुका था।

rain
हल्द्वानी में गौला नदी के किनारे ट्रेन की पटरियां पानी में डूबीं (Photo- Social Media)

बारिश ने तोड़ा रिकॉर्ड

देहरादून मौसम विज्ञान केंद्र के मुताबिक कुमाऊं में ये उत्तराखंड की अब तक की सबसे ज्यादा बारिश है। मुक्तेश्वर में लगे वेदर स्टेशन पर 19 अक्टूबर को 24 घंटे के दौरान 340.8 मिमी बारिश रिकॉर्ड की गई। इससे पहले वर्ष 1914 में 254.5 मिमी. बारिश रिकॉर्ड की गई थी। पंतनगर में 403.9 मिमी बारिश रिकॉर्ड हुई। इससे पहले वर्ष 1990 को यहां 228 मिमी. बारिश दर्ज की गई थी।

rescue नैनीताल में भूस्खलन के बीच रास्ते में फंसे पर्यटकों को सेना ने सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया

18 अक्टूबर की शाम 08:30 से 19 अक्टूबर 08:30 तक चंपावत में 579 मिमी बारिश, पंचेश्वर में 508 मिमी, नैनीताल- 535 मिमी, रुद्रपुर-484 मिमी, पिथौरागढ़ के गंगोली में 325 मिमी, बागेश्वर के शामा में 308 मिमी, अल्मोड़ा के तकुला में 282 मिमी, पौड़ी के लैंसडोन में 238 मिमी, चमोली के जोशीमठ में 185.6 मिमी, रुद्रप्रयाग के केदारनाथ में 154 मिमी., टिहरी के देवप्रयाग में 121.4 मिमी बारिश रिकॉर्ड की गई। आमतौर पर 24 घंटे में 100 मिमी बारिश से अधिक मात्रा बादल फटने की स्थिति मानी जाती है। मौसम केंद्र के मुताबिक ज्यादातर वेदर स्टेशन्स पर अत्यंत भारी बारिश यानी 200 मिमी से अधिक बारिश रिकॉर्ड की गई।

फंसे पर्यटक 

कोरोना का कहर थमने के बाद से राज्य में पर्यटकों की संख्या बढ़ी है। चारधाम यात्रा के लिए रोजाना हज़ारों की संख्या में पर्यटक आ रहे हैं। मौसम विभाग की ओर से दो दिन पहले ही भारी बारिश का रेड अलर्ट जारी कर दिया गया था। लेकिन पर्यटक जगह-जगह रास्तों में फंसे थे। जिन्हें सुरक्षित निकालना राज्य सरकार के लिए बड़ी चुनौती रही।

एसडीआरएफ के साथ भारतीय सेना के जवानों ने पर्यटकों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाने का ज़िम्मा संभाला। मीडिया में आई खबरों के मुताबिक सिर्फ कुमाऊं से 3600 लोगों को रेस्क्यू किया गया। नैनीताल ज़िला प्रशासन के मुताबिक रानीखेत से 14 डोगरा रेजीमेंट के 100 जवानों ने नैनीताल में अलग-अलग मार्गों पर फंसे 500 लोगों को सुरक्षित स्थान पहुंचाया। इसके अलावा कई जगह जलभराव में फंसे लोगों को निकाला गया।

उधर, केदारनाथ और गंगोत्री में यात्रा मार्ग पर फंसे लोगों को मुश्किलें झेलनी पड़ी। होटल-रेस्तरां में जगह न मिलने पर मनमाने पैसे वसूलने की शिकायतें मीडिया में आईं।

Uttarakhand आमतौर पर सूखा रहने वाले सूखाताल पानी से लबालब हुआ (Photo-विशाल सिंह)

नैनीताल में दहशत

मौसम विज्ञान के निदेशक बिक्रम सिंह के मुताबिक बीते दो दिनों की बारिश का सबसे अधिक असर कुमाऊं में रहा। नदियां-झीलें अपने किनारों से कहीं आगे बढ़ गईं थीं। झीलों के बीच बसा शहर नैनीताल किसी टापू सरीखा हो गया था। टूटते पहाड़ यहां लोगों में डर और दहशत पैदा कर रहे थे। नैनी झील का पानी दुकानों, बाजार, घरों तक पहुंच गया था। नैनीताल को बाकी दुनिया से जोड़ने वाले तीन प्रमुख मार्ग भूस्खलन से बाधित हो गए थे।

हिमालयी क्षेत्र में कार्य कर रही गैर-सरकारी संस्था सेंटर फॉर इकोलॉजी डेवलपमेंट एंड रिसर्च के एग्जक्यूटिव डायरेक्टर डॉ. विशाल सिंह कहते हैं जलवायु परिवर्तन और अवैज्ञानिक तरीके से किया गया निर्माण कार्य प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले नुकसान को बढ़ा रहा है।

वह बताते हैं “नैनीताल में ड्रैनेज सिस्टम ब्रिटिश काल में तैयार किया गया था। जो इस समय पूरी तरह फंक्शनल नहीं है। अत्यधिक निर्माण कार्यों के चलते ड्रैनेज सिस्टम की क्षमता इतनी नहीं रह गई कि ये अतिरिक्त पानी को बहाकर झील तक ले जाए। खराब ड्रैनेज सिस्टम, बेतरतीब निर्माण के साथ रिचार्ज जोन में आ रही गिरावट भी इस मुश्किल को बढ़ा रही है”।

“रिचार्ज ज़ोन अतिरिक्त पानी को समा लेता है। नैनीताल का सबसे रिचार्ज ज़ोन सूखाताल है। लेकिन इस पर  लगातार अतिक्रमण और निर्माण कार्य किया जा रहा है। ज़िला प्रशासन सूखाताल को कृत्रिम झील बनाने की तैयारी कर रहा है। ऐसा करना इस क्षेत्र के आंतरिक जल प्रवाह (हाइड्रोलॉजिकल सिस्टम) को बुरी तरह प्रभावित करेगा। जिसका सीधा असर नैनी झील पर भी पड़ेगा”।

“नैनीताल की पहाड़ियों की ढाल बेहद कमज़ोर और संवेदनशील हैं। वर्ष 1880 में नैनीताल की पहाड़ी पर बड़ा भूस्खलन आया था, जिसमें 151 लोगों की मौत हुई थी। उसी पहाड़ी की ढाल पर इस समय तकरीबन 10 हजार लोग रह रहे हैं। नैनीताल की मौजूदा हालत उस बीते दौर की याद दिला रही थी”।

भविष्य की तैयारी

डॉ. विशाल कहते हैं अवैज्ञानिक तरीके से किये जा रहे विकास कार्य और जलवायु परिवर्तन के मिलेजुले असर के लिए हम खुद को कैसे तैयार करें, इस पर सोचना होगा। “मौसम विभाग ने बारिश को लेकर पहले ही रेड अलर्ट जारी कर दिया था। इसके बावजूद रास्ते खाली नहीं कराए गए। पर्यटकों को नहीं हटाया गया। आपदा के बाद हम सिर्फ प्रतिक्रिया में कदम उठाते हैं। लेकिन हमें शार्ट टर्म, मिडिल टर्म और लॉन्ग टर्म के लिहाज से तैयारी करनी होगी। ऐसा नैनीताल और समूचे हिमालयी क्षेत्र की स्थिरता के लिए जरूरी है”।

cmआपदा प्रभावित क्षेत्रों तक पहुंचे मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी (फोटो- सूचना विभाग)

वह कहते हैं  “जलवायु परिवर्तन के चलते इस तरह की घटनाएं भविष्य में बढ़ेंगी। इसके लिए हमें खुद को जल्द तैयार होना होगा”।

रिएक्शन के साथ क्लाइमेट एक्शन भी जरूरी

मौसम की चेतावनी पर राज्य सरकार ने एसडीआरएफ, पुलिस और प्रशासन को चौकस कर दिया था। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस दौरान हवाई निरीक्षण किया। तो ट्रैक्टर पर बैठकर ऊधमसिंह नगर में ग्राउंड जीरो का मुआयना करने पहुंचे। रुद्रप्रयाग, नैनीताल का भी दौरा किया। मंगलवार देररात तक वे पीड़ितों से मिल रहे थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी फोन पर मुख्यमंत्री से बातकर जानकारी ली।

लेकिन हमारा क्लाइमेट एक्शन प्लान क्या कर रहा है। विकास परियोजनाओं के नाम पर राज्य में लगातार पेड़-पहाड़ काटे जा रहे हैं। स्थानीय स्तर पर इसका तेज़ विरोध भी हो रहा है। लेकिन सारे विरोध की अनदेखी की जा रही है। देहरादून-दिल्ली राजमार्ग को चौड़ा करने के लिए इस समय 11 हज़ार पेड़ों के काटने का काम चल रहा है। ऑलवेदर जैसी सड़क परियोजनाओं पर वैज्ञानिकों की राय की अनदेखी की जा रही है।

एक कार्यक्रम में राज्यसभा सांसद जयराम रमेश ने कहा “जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर हम बड़े-बड़े मंचों पर बड़ी-बड़ी बातें कर रहे हैं। क्योंकि हमसे ऐसी बातों की अपेक्षा की जा रही है। लेकिन असल में हम कुछ भी नहीं कर रहे। सबसे ज्यादा जरूरी है, इसके प्रभाव को कम करने के लिए छोटे-छोटे कदम तत्काल उठाना”।

ये आकलन किया जाना अभी बाकी है कि आपदा लेकर आई बारिश कितना नुकसान करके गई। सड़कों, पुलों के साथ खेतों पर भी पानी बह गया। हरिद्वार, हल्द्वानी, उधमसिंह नगर में खेत पानी में घिर गए हैं। दो दिन की बारिश मैदानी क्षेत्र के किसानों को कई दिनों का जख्म दे गई है।

(वर्षा सिंह देहरादून स्थित स्वतंत्र पत्रकार हैं)

chamoli
UTTARAKHAND
uttarakhand govt.
Challenges of Uttarakhand

Related Stories

उत्तरकाशी हादसा: मध्य प्रदेश के 26 श्रद्धालुओं की मौत,  वायुसेना के विमान से पहुंचाए जाएंगे मृतकों के शव

चमोली के सुमना में हिम-स्खलन से 10 की मौत, रेस्क्यू जारी, जलवायु परिवर्तन का असर है असमय बर्फ़बारी

आपदा: चमोली में ग्लेशियर टूटने से निर्माणाधीन तपोवन-विष्णुगाड परियोजना का बांध टूटा, हरिद्वार तक अलर्ट

औली में शाही शादी से कोर्ट नाराज़, 3 करोड़ का जुर्माना लगाया

उत्तराखंड के जौनपुर में मासूम बच्ची के साथ हैवानियत, इंसाफ की मांग

चुनाव निपट गए अब तो जंगल की आग पर ध्यान दीजिए मुख्यमंत्री जी!


बाकी खबरें

  • विजय विनीत
    ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां
    04 Jun 2022
    बनारस के फुलवरिया स्थित कब्रिस्तान में बिंदर के कुनबे का स्थायी ठिकाना है। यहीं से गुजरता है एक विशाल नाला, जो बारिश के दिनों में फुंफकार मारने लगता है। कब्र और नाले में जहरीले सांप भी पलते हैं और…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 3,962 नए मामले, 26 लोगों की मौत
    04 Jun 2022
    केरल में कोरोना के मामलों में कमी आयी है, जबकि दूसरे राज्यों में कोरोना के मामले में बढ़ोतरी हुई है | केंद्र सरकार ने कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए पांच राज्यों को पत्र लिखकर सावधानी बरतने को कहा…
  • kanpur
    रवि शंकर दुबे
    कानपुर हिंसा: दोषियों पर गैंगस्टर के तहत मुकदमे का आदेश... नूपुर शर्मा पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं!
    04 Jun 2022
    उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था का सच तब सामने आ गया जब राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के दौरे के बावजूद पड़ोस में कानपुर शहर में बवाल हो गया।
  • अशोक कुमार पाण्डेय
    धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है
    04 Jun 2022
    केंद्र ने कश्मीरी पंडितों की वापसी को अपनी कश्मीर नीति का केंद्र बिंदु बना लिया था और इसलिए धारा 370 को समाप्त कर दिया गया था। अब इसके नतीजे सब भुगत रहे हैं।
  • अनिल अंशुमन
    बिहार : जीएनएम छात्राएं हॉस्टल और पढ़ाई की मांग को लेकर अनिश्चितकालीन धरने पर
    04 Jun 2022
    जीएनएम प्रशिक्षण संस्थान को अनिश्चितकाल के लिए बंद करने की घोषणा करते हुए सभी नर्सिंग छात्राओं को 24 घंटे के अंदर हॉस्टल ख़ाली कर वैशाली ज़िला स्थित राजापकड़ जाने का फ़रमान जारी किया गया, जिसके ख़िलाफ़…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License