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चुनाव निपट गए अब तो जंगल की आग पर ध्यान दीजिए मुख्यमंत्री जी!
उत्तराखंड के जंगल भीषण आग की चपेट में हैं। 25 मई तक राज्य के जंगलों में आग की कुल 1257 घटनाएं सामने आ चुकी हैं। वन विभाग आग पर काबू पाने में पूरी तरह नाकाम रहा है और अब आग से निपटने के लिए बारिश का इंतज़ार हो रहा है।
वर्षा सिंह
27 May 2019
नैनीताल के जंगलों में आग

उत्तराखंड के जंगलों में उठ रहीं आग की लपटें थमने का नाम नहीं ले रही हैं। वन महकमा एक हिस्से में आग पर नियंत्रण की कोशिश करता है, तब तक दूसरे हिस्से से आग की नई घटना सामने आ जाती है। अप्रैल के आखिरी हफ्ते से तेज़ हुई जंगल की आग मई के अंतिम हफ्ते तक पहुंचते-पहुंचते कई हेक्टेअर क्षेत्र में जंगल को प्रभावित कर चुकी है। लाखों का नुकसान हो चुका है। लेकिन इस दौरान सरकार चुनाव कार्यक्रमों में व्यस्त रही और वन महकमे के आला अधिकारी स्टडी टूर पर।

forest fire uttarakhand (2).jpg

अब चुनाव निपट चुके हैं। 'प्रचंड' बहुमत वाली सरकार अपना कामकाज संभालने की प्रक्रिया में है। इसलिए उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत अब ज़रा राज्य के धधकते जंगल की आग पर भी ध्यान दे देते तो कुछ जंगल बच जाएंगे, पर्यावरण के नुकसान को कुछ कम किया जा सकेगा और आग में झुलसते वन्यजीवों की रक्षा हो सकेगी।

25 मई तक राज्य के जंगलों में आग की कुल 1257 घटनाएं सामने आ चुकी हैं। जिससे 1590 हेक्टेअर से अधिक जंगल प्रभावित हो चुके हैं। इस आग से वन विभाग ने 28,02,130.5 लाख रुपये नुकसान का आंकलन किया है। जो अब तक का सबसे अधिक है।

forest fire uttarakhand.jpg

कुमाऊं मंडल में आग ज्यादा विकराल स्थिति में है। इस फायर सीज़न में यहां अब तक आगजनी की 800 घटनाएं सामने आ चुकी हैं। जिसमें से 156 घटनाएं वन पंचायतों और रिहायशी क्षेत्र के नज़दीक के जंगल की हैं। जिसस कुमाऊं के 866.665 हेक्टेअर जंगल प्रभावित हुए हैं। कुमाऊं में आग से 21 लाख से 21,12,492 रुपये नुकसान का आंकलन किया गया है। कुमाऊं के नैनीताल ज़िले में आग ने सबसे ज्यादा तबाही मचायी है। यहां आग लगने की 270 घटनाएं सामने आ चुकी हैं। जबकि अल्मोड़ा में आगजनी की 173 घटनाएं हो चुकी हैं।

25 मई तक गढ़वाल मंडल में आग लगने की 401 घटनाएं दर्ज की गईं। जिसमें 282 घटनाएं रिजर्व फॉरेस्ट में हैं, जबकि 119 घटनाएं रिहायशी क्षेत्र और वन पंचायतों में दर्ज की गईं। आग से गढ़वाल में 159.23 हेक्टेअर जंगल प्रभावित हुआ है। जिससे 6,10,581.5 रुपये नुकसान का आंकलन किया गया है। इसके अलावा वन्यजीव एडमिनिस्ट्रेशन में आग से करीब 80 हजार रुपये का नुकसान हो चुका है।

pauri fire.jpg

वनों की आग पर नियंत्रण का जिम्मा संभाल रहे मुख्य वन संरक्षक पीके सिंह के मुताबिक तापमान में इजाफा होने की वजह से आग पर काबू पाना मुश्किल हो रहा है। लेकिन जहां भी सूचना मिलती है, वन विभाग की टीम ग्रामीणों की मदद से आग पर नियंत्रण के प्रयास करती है। वे उम्मीद जताते हैं कि बारिश के बाद स्थिति कुछ संभलेगी और जंगल शांत होंगे। लेकिन जंगल की आग पर काबू पाने के लिए किये गये वन विभाग के इंतज़ाम नाकाफी साबित हुए। पीके सिंह बताते हैं कि आग लगने की स्थिति में वन विभाग की टीम आग के दायरे से कुछ आगे फायर लाइन को साफ करती है ताकि जो आग लगी है वो आगे न फैल सके और वहीं खत्म हो जाए। घने जंगलों में आग बुझाने का कोई उपाय नहीं होता। इसलिए आग को फैलने से रोकने के प्रयास किये जाते हैं। यदि आग रिहायशी इलाकों के नज़दीक लगती है तो ग्रामीणों की मदद से आग बुझाने की कोशिश की जाती है।

भारतीय वन अनुसंधान संस्थान से पिछले वर्ष रिटायर हुए डॉ वी के धवन कहते हैं कि हमारे यहां के जंगलों में सरफेस फायर ज्यादा लगती है जो जानबूझ कर लगायी जाती है। अपने आप बमुश्किल ही लगती है। ज्यादातर मामलों में लोग ही आग लगाते हैं। वे बताते हैं कि चीड़ की पत्तियां और पीरूल ज्वलनशील होते हैं। इनमें भरपूर मात्रा में रेजिन पायी जाती है। ये पेट्रोलियम पदार्थ होता है जिससे जूते की पॉलिश तैयार की जाती है और तारपीन का तेल निकाला जाता है। इसीलिए जरा सी चिंगारी मिलने पर इसमें आग भड़क जाती है। इसके साथ ही मवेशी पुरानी घास नहीं खाते। उनके लिए चारे का इंतज़ाम करने की खातिर ग्रामीण पुरानी घास को जलाते हैं।

डॉ वीके धवन फायर लाइन को लेकर भी सवाल उठाते हैं। वे कहते हैं कि एफ.आर.आई ने जंगल में फायर लाइन बनायी थी ताकि आग लगे तो वो फायर लाइन के दूसरी ओर न फैल सके। हर साल फायर लाइन को साफ करना होता है  और वहां पड़े फ्यूल को हटाना होता है। वे कहते हैं कि फायर लाइन को दिसंबर जनवरी के महीने में कंट्रोल बर्निंग के ज़रिये साफ किया जाता है। ताकि गर्मियों में आग को रोकने का कार्य कर सकें। लेकिन वन विभाग पैसों की कमी का हवाला देकर फायर लाइन क्लीयर नहीं करता। डॉ. धवन कहते हैं कि देहरादून के शिवालिक रेंज के जंगलों में जहां फायर लाइन तैयार की गई थी, वहां चीड़ और साल के पेड़ खड़े हो गये हैं। इसके उलट गर्मियों में कंट्रोल बर्निंग की जा रही है, जबकि इस समय तो आग उलटा फैल जाएगी।

pauri forest fire- srinagar road.jpeg

डॉ. धवन कहते हैं कि हर साल जंगल की आग में हो रहे इजाफे के पीछे सरकार का ढीला-ढाला रवैया जिम्मेदार है। वे इसे गंभीरता से नहीं लेते और सोचते हैं कि दस-पंद्रह दिन ही तो आग लगती है और फिर बारिश हो जाती है। जिससे लोग आग को भूल जाएंगे। वे कहते हैं कि नई तकनीक के ज़रिये आग लगने की स्थिति में हमें सूचना तो तत्काल मिल जा रही है। लेकिन आग न लगे इसके इंतज़ाम नहीं किये जा रहे हैं। आग न फैले इसकी कोई तैयारी नहीं की जाती।

इसके साथ ही जब फायर सीजन चरम पर था, उसी समय वन विभाग के प्रमुख मुख्य वन संरक्षक जय राज समेत चार आला अधिकारी स्टडी टूर पर विदेश दौरे पर निकल गये। खुद मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने जय राज की छुट्टी स्वीकृत की, जिस पर वन मंत्री हरक सिंह रावत ने ऐतराज जताया। हरक सिंह रावत ने कहा कि पीसीसीएफ जयराज की छुट्टी देने या न देने का फैसला उन्हें करना था, उन्हें साइड करके मुख्यमंत्री ने छुट्टी मंजूर की, जबकि राज्यभर के जंगल आग से धधक रहे थे।

मौसम विभाग के मुताबिक अगले कुछ दिनों तक मौसम जंगल की आग के लिहाज से बेहद संवेदनशील है। तापमान में सामान्य से 4 से 6 डिग्री तक अधिक इजाफा होगा। उम्मीद की जाए कि प्रदेश के मुखिया अपने जंगलों की पुकार सुनें। सत्ता की जंग पूरी हो चुकी है अब कुछ काम की बात हो जाए।

UTTARAKHAND
uttarakhand govt.
Forest fire
Fire in the forests of Uttarakhand
Trivendra Singh Rawat

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