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बाबरी मस्जिद विध्वंस मामला: बाहर जो 'श्रेय' लेते हैं अदालत में क्यों मुकर जाते हैं!
ये दिलचस्प है कि राम मंदिर का श्रेय लेने वाली पार्टी और उसके नेता अदालत के सामने विध्वंस की ज़िम्मेदारी लेने से साफ़ मुकर गए। बार-बार मुकर गए।
मुकुल सरल
29 Sep 2020
babri masjid
अयोध्या में 6 दिसंबर, 1992 को विध्वंस से पहले बाबरी मस्जिद

बाबरी मस्जिद विध्वंस के फ़ैसले की घड़ी आख़िरकार आ ही गई। फ़ैसला क्या होगा ये नहीं कहा जा सकता, लेकिन ये दिलचस्प है कि राम मंदिर का श्रेय लेने वाली पार्टी और उसके नेता अदालत के सामने विध्वंस की ज़िम्मेदारी लेने से साफ़ मुकर गए। बार-बार मुकर गए।

28 साल पहले सन् 1992 में उत्तर प्रदेश के अयोध्या में स्थित प्राचीन बाबरी मस्जिद को दिन दहाड़े सबकी आंखों के सामने गिरा दिया गया था। उस समय प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की ही सरकार थी और मुख्यमंत्री थे कल्याण सिंह। जिन्होंने अदालत में हलफ़ उठाया था कि वे हर हालत में, किसी भी क़ीमत पर मस्जिद की सुरक्षा करेंगे, लेकिन इसके बाद भी अयोध्या में लाखों की भीड़ जमा होने दी गई और अंतत: भारी पुलिस और अर्द्धसैनिक बलों की मौजूदगी में मस्जिद ढहा दी गई।

कल्याण सिंह इस मामले में आज खुद को निर्दोष बता रहे हैं। समाचार एजेंसी भाषा के मुताबिक कल्याण सिंह ने गत 13 जुलाई को सीबीआई अदालत में बयान दर्ज कराते हुए कहा कि तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने सियासी बदले की भावना से प्रेरित होकर उनके ख़िलाफ़ मुकदमा दर्ज कराया है। उन्होंने दावा किया कि उनकी सरकार ने अयोध्या में मस्जिद की त्रिस्तरीय सुरक्षा सुनिश्चित की थी।

हालांकि यह वही कल्याण सिंह हैं जिनकी तस्वीर और नाम से अगले चुनाव में इस नारे के साथ बड़े बड़े पोस्टर लगाए गए कि “जो कहा, वो किया”। हालांकि उन्होंने अदालत से जो कहा था यानी मस्जिद की सुरक्षा का वादा उसे पूरा न करने के लिए अवमानना का भी दोषी माना गया था और एक दिन की सज़ा भी सुनाई गई थी। लेकिन “जो कहा, वो किया” का दावा अदालत से किए गए वादे या एक सूबे के मुख्यमंत्री जैसे संवैधानिक पद पर बैठे नेता के तौर पर उनके दायित्वों को लेकर नहीं था, बल्कि दूसरे संदर्भ में था, जिसको वो और उनकी पार्टी चुनाव और उसके बाद भी भुनाती रही। कल्याण सिंह को भी 2014 से 2019 तक राजस्थान का राज्यपाल बनाया गया।

कल्याण अब खुद को बेग़ुनाह बताते हुए कह रहे हैं कि तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने सियासी बदले की भावना से प्रेरित होकर उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया है, हालांकि मस्जिद विध्वंस के बाद वे कहते थे कि “पूरी ज़िम्मेदारी मेरी है, किसी को मुकदमा करना है तो मेरे ऊपर करे। जांच मेरे ऊपर बैठाओ।” ये सच है कि उन्हीं की ज़िम्मेदारी थी उस समय कार सेवा के नाम पर अयोध्या में इतना जमावड़ा न होने देने की। यह उन्हें अदालत में भी स्वीकार करना चाहिए था। यही नहीं मस्जिद के पास पंडाल लगाकर मंच भी सजाया गया और भजन कीर्तन किया गया। उसी दौरान तमाम उकसाने वाले भाषण भी हुए। उससे एक दिन पहले पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, जो आज नहीं रहे, ने लखनऊ में मंच से भाषण में ज़मीन समतल करने की बात कह ही दी थी। उन्होंने ये भी कहा था, "मैं नहीं जानता कि कल अयोध्या में क्या होगा। मैं वहाँ जाना चाहता था, लेकिन मुझसे दिल्ली वापस जाने के लिए कहा गया है।" उनका इशारा क्या था, ये सब जानते हैं। हालांकि बाद में उन्होंने सफ़ाई दी कि उनका उद्देश्य किसी को भड़काना नहीं था।

इससे पहले भी कभी शिलापूजन, कभी राम ज्योति यात्रा आदि के माध्यम से पूरे देश में ऐसी उग्रता जगाई गई जिसकी परिणिति मस्जिद के विध्वंस के तौर पर होनी तय थी।

वे लालकृष्ण आडवाणी ही थे जो आज मोदी के बरअक्स हाशिये पर हैं, लेकिन वही उस समय पार्टी के प्रमुख चेहरा थे। आज जैसे भाजपा के शीर्ष पर नरेंद्र मोदी और अमित शाह काबिज़ हैं उसी तरह 90 के दशक में भाजपा के शीर्ष पर लालकृष्ण आडवाणी और अटल बिहारी वाजपेयी की जोड़ी थी। आज आडवाणी, मोदी की अपेक्षा नरमपंथी दिखाई देते हैं लेकिन उस समय यही उग्रपंथी नेता थे। और भाजपा वाले उन्हें छोटा सरदार और लौह पुरुष न जाने क्या-क्या नाम और उपाधि से नवाज़ते थे।

आडवाणी ने ही सन् 90 में तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह के मंडल कमीशन की सिफारिशें लागू करने पर मंडल की काट के तौर पर कमंडल को पेश किया और अयोध्या में मंदिर के नाम पर सोमनाथ से देशभर में रथयात्रा निकाली। रथयात्रा जहां-जहां से गुज़री उन ज़्यादातर स्थानों पर दंगे हुए। इस रथयात्रा को उस समय बिहार में तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रासद यादव ने बिहार की सीमा में प्रवेश के साथ ही रोक दिया, लेकिन उसके परिणाम स्वरूप भाजपा ने वीपी सिंह सरकार को दिया अपना समर्थन वापस ले लिया और सरकार गिर गई। 

इसी सबके परिणाम स्वरूप देश में वह माहौल बना जिसमें आगे जाकर बाबरी मस्जिद का विध्वंस और बड़े पैमाने पर हिंसा हुई।

आज वही बीजेपी के नेता और पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी कह रहे हैं कि उन्होंने तो कुछ किया ही नहीं। बीती 24 जुलाई को सीबीआई अदालत में दर्ज कराए गए बयान में तमाम आरोपों से इनकार करते हुए उन्होंने कहा कि वह पूरी तरह से निर्दोष हैं और उन्हें राजनीतिक कारणों से इस मामले में घसीटा गया है।

इससे एक दिन पहले अदालत में अपना बयान दर्ज कराने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री मुरली मनोहर जोशी ने भी लगभग ऐसा ही बयान देते हुए खुद को निर्दोष बताया था।

अटल-आडवाणी की जोड़ी के साथ मिलकर भाजपा में मुरली मनोहर जोशी ही त्रिमूर्ति का निर्माण करते थे।
इसके अलावा पूर्व केंद्रीय मंत्री उमा भारती भी इस मामले में आरोपी हैं, जो 6 दिसंबर के दिन अयोध्या में मौजूद थीं और मस्जिद के गुंबद गिराये जाते समय उत्साहित होकर आडवाणी और जोशी से गले मिल रहीं थीं।

और ऋतंभरा, उनकी कैसेट तो घर-घर बजी है। उमा भारती और ऋतंभरा ही दो ऐसी महिला नेता थीं जिनके उत्तेजक भाषणों की वीडियो और ऑडियो कैसेट चोरी-छुपे घर-घर में बजाई गई। जिसमें हर हिन्दु युवा के लिए एक चुनौती थी, कि वे अगर मंदिर के काम नहीं आए तो उनकी जवानी बेकार है।

इसी तरह बीजेपी और बजरंग दल के नेता विनय कटियार फायर ब्रांड नेता कहलाते थे। और मस्जिद विध्वंस के बाद राजनीतिक तौर पर उन्होंने काफी तरक्की की। वह फ़ैज़ाबाद (अयोध्या) से तीन बार लोकसभा के लिए चुने गए।

उस समय इस मामले के एक सूत्रधार विश्व हिंदू परिषद के अशोक सिंघल भी थे। जो आज दिवंगत हो चुके हैं। विहिप के अन्य नेता भी आज बाबरी मस्जिद ध्वंस में अपनी भूमिका नकारते हैं। आपको बता दें कि विहिप यानी विश्व हिंदू परिषद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का ही अनुषांगिक संगठन है। एक अकेले शिवसेना नेता बाल ठाकरे थे जो बाबरी मस्जिद गिराने की ज़िम्मेदारी खुले तौर पर लेते थे और कहते थे कि शिवसैनिकों ने मस्जिद गिराई। हालांकि अगर उन्हें भी अदालत में तलब किया जाता तब शायद उनके भी बोल बदल सकते थे।

बाबरी मस्जिद विध्वंस की जांच करने वाले जस्टिस लिब्रहान आयोग ने 17 साल चली लंबी तफ़्तीश के बाद 2009 में अपनी रिपोर्ट पेश की थी जिसमें बताया गया था कि मस्जिद को एक गहरी साज़िश के तहत गिराया गया था।

इस प्रकरण में पहले दो मामले चल रहे थे। एक रायबरेली अदालत में और एक लखनऊ अदालत में, जिसे बाद में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद एक कर दिया गया। 

इस मामले में कुल 48 लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया था। जिसमें से इस समय कुल 32 जीवित आरोपी हैं।

राम मंदिर निर्माण ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय भी इस मामले के आरोपियों में से एक हैं। 

समाचार एजेंसी भाषा के मुताबिक विशेष सीबीआई अदालत के न्यायाधीश एस के यादव ने 16 सितंबर को इस मामले के सभी 32 आरोपियों को फैसले के दिन अदालत में मौजूद रहने को कहा था।

बताया जाता है कि उमा भारती और कल्याण सिंह कोरोना संक्रमण की चपेट में आकर दो अलग अलग अस्पतालों में भर्ती हैं। अभी यह सूचना नहीं है कि फैसले के समय वे अदालत में मौजूद रहेंगे या नहीं।

आपको बता दें कि उच्चतम न्यायालय ने सीबीआई अदालत को मामले का निपटारा 31 अगस्त तक करने के निर्देश दिए थे लेकिन बीती 22 अगस्त को यह अवधि एक महीने के लिए और बढ़ा कर 30 सितंबर कर दी गई थी।

सीबीआई की विशेष अदालत ने इस मामले की रोजाना सुनवाई की थी। केंद्रीय एजेंसी सीबीआई ने इस मामले में 351 गवाह और करीब 600 दस्तावेजी सुबूत अदालत में पेश किए।

इस मामले में अदालत में पेश हुए सभी अभियुक्तों ने अपने ऊपर लगे तमाम आरोपों को गलत और बेबुनियाद बताते हुए केंद्र की तत्कालीन कांग्रेस सरकार पर दुर्भावना से मुकदमे दर्ज कराने का आरोप लगाया है।

सभी 32 आरोपियों के नाम

इस मामले में लालकुष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, कल्याण सिंह, उमा भारती, विनय कटियार, साध्वी ऋतंभरा, महंत नृत्य गोपाल दास, डॉ. राम विलास वेदांती, चंपत राय, महंत धर्मदास, सतीश प्रधान, पवन कुमार पांडेय, लल्लू सिंह, प्रकाश शर्मा, विजय बहादुर सिंह, संतोष दूबे, गांधी यादव, रामजी गुप्ता, ब्रज भूषण शरण सिंह, कमलेश त्रिपाठी, रामचंद्र खत्री, जय भगवान गोयल, ओम प्रकाश पांडेय, अमर नाथ गोयल, जयभान सिंह पवैया, महाराज स्वामी साक्षी, विनय कुमार राय, नवीन भाई शुक्ला, आरएन श्रीवास्तव, आचार्य धमेंद्र देव, सुधीर कुमार कक्कड़ व धर्मेंद्र सिंह गुर्जर आरोपी हैं।

अब सबकी निगाहें लखनऊ में सीबीआई की विशेष अदालत की तरफ़ हैं कि वो इस मामले में क्या फ़ैसला देती है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट इसे पहले ही आपराधिक कृत्य करार दे चुका है। बाबरी मस्जिद-रामजन्मभूमि विवाद में 9 नवंबर, 2019 को अपना निर्णय देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि “यह एकदम स्पष्ट है कि 16वीं शताब्दी का तीन गुंबदों वाला ढांचा हिंदू कारसेवकों ने ढहाया था, जो वहां राम मंदिर बनाना चाहते थे। यह ऐसी गलती थी, जिसे सुधारा जाना चाहिए था।”

(कुछ इनपुट समाचार एजेंसी भाषा से)

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