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पश्चिम बंगाल : महामारी, अंफन की तबाही के बीच शुरू हो रही हैं चुनाव की तैयारियाँ
भाजपा ने टीएमसी सरकार के ख़िलाफ़ नौ सूत्री आरोप पत्र तैयार करने के साथ आक्रामकता के साथ एक आभासी अभियान शुरू कर दिया है, जबकि चुनाव में अभी 10 महीने बाक़ी हैं।
रबींद्र नाथ सिन्हा
20 Jun 2020
Translated by महेश कुमार
West Bengal Assembly
Image Courtesy: Wikipedia

कोलकाता: हालांकि पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव अभी 10 महीने के अधिक समय से दूर है, लेकिन भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने आक्रामक नोट के साथ अपना 'आभासी' चुनाव अभियान शुरू कर दिया है वह भी इस बात की परवाह किए बिना कि राज्य सरकार और जनता को महामारी और विनाशकारी चक्रवात अम्फान का सामना करना मुश्किल हो रहा है 

पिछले दो हफ्तों में बीजेपी ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उनकी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के खिलाफ हमले तेज कर दिए हैं। इसकी शुरुवात नौ-सूत्री आरोप-पत्र से हुई- नौ-बिंदु इसलिए कि तृणमूल सरकार नौ वर्षों से कार्यालय में है - और यह अभियान, अभी के लिए तो, मुखर भाषणों के साथ समाप्त हो गया; इस कड़ी में पहले केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और फिर बाद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाषण दिया था।

सरकार के ख़िलाफ़ चार्जशीट बताती है कि प्रशासन के हर क्षेत्र में गलत हो रहा है। शाह और मोदी ने जो कहा, उसे इन शब्दों में व्यक्त किया जा सकता है: हमे बंगाल चाहीये (बंगाल हमारे लिए महत्वपूर्ण है)। इस प्रकार, भाजपा ने पहले से ही बंगाल को पाने का स्वर तय कर दिया है।

आम तौर पर जुझारू ममता ने खुद को बीजेपी और केंद्र पर "त्रासदी" की राजनीति करने का आरोप लगाने तक सीमित रखा है जबकि उनके वित्त मंत्री अमित मित्रा ने कहा कि नई दिल्ली राज्य के 53,000 करोड़ रुपये के बकाए को दबाए बैठी है और वह राज्य की योजनाओं की कॉपी कर उन्हें फिर से लागू करने की कोशिश कर रही है। 9 जून को शाह के आभासी बंगाल के भाषण के बाद, यह बहस कुछ समय के लिए अमित बनाम अमित के रूप में बदल गई थी। बनर्जी ने संकेत दिया है कि वह नियमित रूप से अपने 'अमित-दा' को केंद्र के "वित्तीय झांसे" को उजागर करने में लगाएगी। 

पिछले कुछ दिनों में ऐसे संकेत मिले हैं कि खुद सीएम और उनकी पार्टी के नेता केंद्र और मोदी-शाह की जोड़ी के खिलाफ आक्रामक तेवर अपना रहे हैं। चूंकि चुनाव दरवाजे पर दस्तक नहीं दे रहा है, वे अभियान के प्रारूप को अंतिम रूप देने के लिए राजनीतिक सलाहकार और चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर (पीके) की प्रतीक्षा करना चाहेंगे। पीके को बनर्जी और उनके राजनीतिक रूप से शक्तिशाली भतीजे और सांसद अभिषेक बनर्जी से काफी महत्व मिला है और उनका सुझाव हैं कि पीके की नियम पुस्तिका का सख्ती से पालन किया जाएगा। इस बीच, राज्य सरकार अंफन पुनर्वास और पुनर्निर्माण तथा महामारी के प्रबंधन को बढ़ावा देगी।

वाम मोर्चा, राष्ट्रीय कार्ययोजना के हिस्से के तौर पर, अपनी मांगों के समर्थन में 16 जून को सड़कों पर उतरेगा, जिसमें प्रवासियों के लिए विस्तारित अवधि के लिए जॉब कार्ड, नकद सहायता और मुफ्त राशन की मांग शामिल है। यह एक मुश्किल आहवान था क्योंकि "हमें शारीरिक दूरी के नियमों का पालन भी करना था, लेकिन हम कामयाब रहे", वाम मोर्चा के नेताओं ने न्यूज़क्लिक से बात की, जिन्होंने यह भी संकेत दिया कि कुछ और कार्यक्रम अभी आने वाले हैं।

कांग्रेस आंतरिक विचार-विमर्श कर रही है और भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के दृष्टिकोण पर भी चर्चा चल रही है। नियत समय में, अन्य वाम मोर्चा साझेदार सक्रिय रूप से इसमें शामिल होंगे। टीएमसी और बीजेपी कार्यक्रताओं/नेताओं के कांग्रेस में आने के उल्टे दलबदल के मामले सामने आ रहे हैं।

इस समय उपलब्ध संबंधित अभियान रणनीतियों की एक विस्तृत रूपरेखा इस प्रकार है:

ममता सरकार के खिलाफ राज्य भाजपा इकाई द्वारा लगाए गए मुफ्त राशन वितरण में गड़बड़ी और भ्रष्टाचार के आरोपों के अलावा, शाह ने नागरिकता के मुद्दे को फिर से जीवित कर दिया है, जो यह दर्शाता है कि पार्टी ध्रुवीकरण का साहारा चाहती है जबकि ममता बनर्जी पर मुस्लिम तुष्टिकरण में लिप्त होने का आरोप लग रहा है। और इस तरह, भाजपा ने हिंदू वोट के बड़े हिस्से को पाने को लक्ष्य बनाया है। साथ ही, शाह और मोदी भाजपा को सत्ता में आने पर मतदाताओं के सर्वांगीण विकास का आश्वासन देंगे। उनका समर्थन करने वाले राज्यपाल जगदीप धनखड़ होंगे, जो भाजपा के वफादार हैं, जो जानते हैं कैसे मामले को गरम रखा जाए। 

बनर्जी के अभियान का जोर महामारी में लाखों प्रवासी कामगारों के दुख को उजागर करना होगा, और कैसे मोदी संविधान में निहित संघवाद की अवधारणा को नष्ट कर रहे हैं और किस तरह से केंद्र, केंद्रीय धन का उचित हिस्सा जारी न करके राज्यों को कमजोर कर रहा है। यह मुद्दा बंगाल के-अमित-दा’ के हवाले होगा कि वे मोदी के दोहरे दुस्साहस और अध पके जीएसटी और नोटबंदी पर कैसे हमला करें – जिन्होने अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया है।

जबकि वाम-कांग्रेस गठबंधन के निशाने पर, स्पष्ट रूप से राज्य में टीएमसी सरकार और केंद्र में भाजपा नीत राजग सरकार दोनों हैं। जहां तक केंद्र सरकार का सवाल है, इसकी गलत आर्थिक प्राथमिकताएँ – जिसमें सार्वजनिक क्षेत्र की भूमिका को निरंतर कम किया जा रहा है, श्रम विरोधी कानून को लाना, कृषि गतिविधि के बड़े क्षेत्रों का निजीकरण करने, निजी क्षेत्र को बढ़ावा देना आदि पर अभियान में ध्यान दिया जाएगा। सभी प्रकार की वित्तीय रियायतें - जनविरोधी साबित हो रही हैं। एक चमकता हुआ उदाहरण बढ़ती बेरोजगारी का वक्र है।

राज्य स्तर पर, वाम मोर्चा-कांग्रेस गठबंधन मौजूदा सीएम को उनकी निरंकुश कार्यशैली, विपक्ष की लगातार उपेक्षा और यहां तक कि उस राज्य की विधायिका की उपेक्षा को निशाना बनाएगा, जहां वह अपने विभागों के कामकाज पर चर्चा करने से हमेशा बड़ी चतुराई से बचती रही हैं। मोर्चे का ध्यान उनकी पार्टी के नेताओं के भ्रष्ट आचरण, राज्य के औद्योगिकीकरण में विफलता और रोजगार के अवसर पैदा न कर पाने पर होगा।

न्यूज़क्लिक ने भाजपा के आक्रामक रुख और राज्य में विकसित होती राजनीतिक स्थिति पर उनके विचार जानने के लिए कई राजनीतिक नेताओं के साथ बात की।

पश्चिम बंगाल के शिक्षा मंत्री और टीएमसी के महासचिव पार्थ चटर्जी से सरकार के खिलाफ राज्य भाजपा इकाई की चार्जशीट और शाह के आरोप के बारे में पूछे जाने पर कहा, "हम सभी महामारी से निपटने और अंफन के बाद के पुनर्निर्माण पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। हमारे पास बहुत सारे काम हैं। विवाद से बचने का कोई सवाल ही नहीं है।”

भाजपा के महासचिव सायंतन बसु से पुंछा गया कि जब सरकार संकट के दौर से गुजर रही है तो सरकार के खिलाफ इस तरह का आक्रामक आभासी अभियान शुरू करने के का क्या मक़सद है, जवाब में उन्होने कहा,“ हमें लगता है कि यह सही समय है, क्योंकि लोग नाराज हैं, प्रशासन से निराश हैं। विपक्ष के प्रति सरकार का रवैया दुर्भाग्यपूर्ण है; फिर चाहे वह कोविड़-19 या अंफन के कारण तबाही हो। हम डोर-टू-डोर अभियान को मजबूती दे रहे हैं।”

शाह की ’आभासी’ बंगाल और बिहार की रैलियों की पृष्ठभूमि के बारे में, सीपीआई (एम) के वरिष्ठ नेता मोहम्मद सलीम ने कहा, “भारी धन वर्षा के साथ, भाजपा एक चुनाव केंद्रित राजनीतिक खेल खेल रही है। आप देखें कि राज्यसभा चुनावों में पार्टी विधायकों की कैसे खरीद-फरोख्त कर रही है। क्या आप लोगों की रोज़ी-रोटी के मुद्दों को उजागर करने के लिए भाजपा के कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं? लोग बहुत दुख का सामना कर रहे हैं, लेकिन पार्टी कभी भी गैर-भाजपा शासित राज्यों में भी कार्यक्रम आयोजित नहीं करती है या लोगों की मांगों पर कभी आवाज़ नहीं उठाती है।”

माकपा किस तरह से संगठनात्मक रूप से इस अभियान में कमर कस रही है, इस विषय पर, सलीम ने कहा कि जमीनी वास्तविकताओं को ध्यान में रखते हुए, पार्टी ने युवाओं के आगे बढ़े संगठनों के नेटवर्किंग कार्यक्रम को आगे बढ़ाया है। ट्रेड यूनियन और किसान इकाइयां अपनी गतिविधि को आगे बढ़ा रही हैं।

आने वाले महीनों में राजनीतिक स्थिति कैसी होगी, इसका आकलन देते हुए, एक अन्य माकपा नेता और राज्यसभा सदस्य बिकाश रंजन भट्टाचार्य ने न्यूज़क्लिक को बताया कि उन्होंने स्थिति को तेजी से बदलते देखा है जो टीएमसी और भाजपा विरोधी लहर में बदल रही है। “लोगों का रवैया और अधिक स्पष्ट होता जाएगा; वे खुद के बारे में सोच रहे हैं और जानते हैं कि वाम मोर्चा हमेशा उनके अस्तित्व संबंधी मुद्दों को उजागर करता रहा है और रचनात्मक भूमिका भी निभा रहा है।

नागरिकता के मुद्दे को केंद्रीय गृहमंत्री द्वारा आगे बढ़ाने के बारे में पूछे जाने पर, माकपा नेता, जो एक प्रतिष्ठित वकील भी हैं, ने कहा कि अगर मतदाता पहचान पत्र, पासपोर्ट और आधार को अप्रासंगिक बना दिया जाता है, तो मोदी और शाह को भी देश का नागरिक नहीं माना जाएगा, खासकर जब दशकों से जन्मपत्री  प्रूफ की कोई बाध्यता नहीं थी और यह इसलिए था क्योंकि आज भी गांवों में झुग्गियों या कच्चे घरों में बच्चों की डिलीवरी होती है। इसे लागू करना इतना आसान नहीं है।”

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सदस्य प्रदीप भट्टाचार्य ने कहा कि पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों में भाजपा के जोर लगाने के कई कारण हैं। पार्टी ने केवल चार राज्यों - यूपी, उत्तराखंड, असम और हिमाचल में स्पष्ट बहुमत हासिल किया है। कई अन्य राज्यों में यह असफल रही है और नतीजों के बाद जोड़ तोड़ की राजनीति की हैं।

पश्चिम बंगाल में, परिणामों के बाद हेरफेर करना बहुत मुश्किल होगा। इसलिए, पार्टी चुनाव पहले की जोड़-तोड़ करने पर लगी है, यानी उनकी इस जोड़-तोड़ का लक्ष्य तृणमूल है। कांग्रेस से दलबदल की बहुत गुंजाइश नहीं है। यह भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि बीजेपी वाम-कांग्रेस गठबंधन के खिलाफ एक शब्द नहीं कह रही है, जो यह इशारा करता है कि गठबंधन को फिर से लागू करना एक मजबूत कारक होगा, कांग्रेस नेता ने तर्क दिया।

रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी (आरएसपी) के राज्य सचिव मनोज भट्टाचार्य का मानना है कि जनता पश्चिम बंगाल में सत्ता हथियाने की भाजपा की कोशिश को खारिज कर देगी क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी विरोधी विचारों को चुप कराने और लोगों को डराने का देशद्रोही काम कर रहे हैं। वे “शासन की विकृत प्रणाली” चला रहा है और उनका गृह मंत्री लोगों को धोखा दे रहा है और नागरिकता कानून इस धोखे का बड़ा आधार है। उनके खेल को लोगों ने देखा है। यह दुख की बात है कि हमारे पास गरीबों और दलितों के लिए स्वास्थ्य सुविधाएं काफी न्यूनतम हैं और फिर भी स्वास्थ्य सेवा के लिए बजटीय प्रावधान जीडीपी का मात्र 2 प्रतिशत से कम है, जबकि यह कम से कम 5प्रतिशत होना चाहिए, आरएसपी नेता ने कहा। उन्होंने चुनाव अभियानों में ट्रेड यूनियन और किसान विंग के नेताओं की अधिक भागीदारी का भी संकेत दिया है।

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) के राज्य सचिव स्वपन बनर्जी ने न्यूज़क्लिक को बताया कि वाम मोर्चा-कांग्रेस गठबंधन को इस पर कड़ी मेहनत करनी होगी कि टीएमसी विरोधी और भाजपा विरोधी वोटों का विभाजन न हो। “हमारा काम टीएमसी को हराना और बीजेपी को अलग-थलग करना होगा; क्योंकि भाजपा अपनी धन बल का उपयोग करके हेरफेर करने की कड़ी कोशिश करेगा। आगे आने वाली चुनौतियों को देखते हुए, ऐसा लगता है कि धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक ताकतों को पश्चिम बंगाल में इस जटिल चुनावी दौर पर बातचीत करनी होगी, सीपीआई नेता ने देखा।

राज्य के फारवर्ड ब्लाक (एफबी) के महासचिव नरेन चटर्जी ने कहा कि लोग प्रतिरोध कर रहे हैं क्योंकि भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार मजदूर विरोधी और किसान विरोधी नीतियों को आगे बढ़ा रही है। “मजदूरों की नौकरियां खत्म हो रही हैं, कृषि का कॉर्पोरेटकरण किया जा रहा है और आवश्यक वस्तु अधिनियम को धता बताया जा रहा है। सरकार के रूप में, वे सार्वजनिक क्षेत्र की संपत्ति के ट्रस्टी हैं; उनके पास उन संपत्तियों को बेचने का जनादेश नहीं है। लेकिन, वे उसे बेचने पर तुले हुए हैं। लोग प्रतिरोध करने के लिए बाध्य हैं, ”एफबी नेता ने न्यूज़क्लिक को बताया।

हालांकि अगला विधानसभा चुनाव अभी से चर्चा का विषय बन गया है, यहाँ यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि अप्रैल-मई में होने वाले स्थामीय चुनावों को स्थगित कर दिया गया है और नागरिक निकायों को प्रशासकों की देखभाल पर छोड़ दिया गया है। इस मुद्दे पर अभी कोई स्पष्टता नहीं है। लेकिन, राजनीतिक रूप से जागरूक पश्चिम बंगाल में चुनाव कराना ही एकमात्र विकल्प है।

इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

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