NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
पश्चिम बंगाल चुनाव: प्रमुख दलों के घोषणापत्रों में सीएए, एनआरसी का मुद्दा
नागरिकता का अधिकार दिलाने के नाम पर टीएमसी सरकार और भाजपा की बंगाल इकाई राज्य में मतुआ और बाकी के सभी लोगों को दिग्भ्रमित कर रही हैं।
बुद्धदेव हलदर
26 Mar 2021
पश्चिम बंगाल चुनाव: प्रमुख दलों के घोषणापत्रों में सीएए, एनआरसी का मुद्दा
फाइल फोटो।

भारतीय जनता पार्टी ने पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों के लिए अपने घोषणापत्र में शरणार्थियों के कल्याण की योजना के मद्देनजर तीन प्रमुख चुनावी वायदे किए हैं। भाजपा राज्य इकाई ने “बंगलादेशी हिन्दू ‘शरणार्थियों’ की नागरिकता को स्थायी बनाने के लिए नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए), 2019 को अपनी पहली कैबिनेट की बैठक में लागू करने का वादा किया है।

घोषणापत्र में मुख्यमंत्री शरणार्थी कल्याण योजना में 100 करोड़ रूपये के कोष के जरिये उन शरणार्थियों के कल्याण का वादा किया गया है, जो नागरिकता संशोधन अधिनियम के तहत नागरिकता हासिल कर लेंगे। इसमें “भारतीय नागरिकता हासिल कर लेने के बाद 5 साल तक प्रत्येक शरणार्थी परिवार को 10,000 रूपये प्रति वर्ष” हस्तांतरण का वादा भी किया गया है। भले ही भाजपा ने “आधार कार्ड, राशन कार्ड और मतदाता पहचान पत्र जैसे दस्तावेजों को हासिल करने के लिए “एकल खिड़की निस्तारण” का वायदा किया हो, लेकिन पश्चिम बंगाल में रह रहे अधिकांश बांग्लादेशी “प्रवासियों” के पास एक या उससे अधिक पहचान पत्र पहले से ही मौजूद हैं।

बीजेपी ने कभी भी इस बात के संकेत नहीं दिए हैं कि सीएए को लागू कराने के जरिये कुल कितनी संख्या में “मतुआ शरणार्थी” इससे लाभान्वित होने जा रहे हैं। हालाँकि संयुक्त संसदीय कमेटी की रिपोर्ट के मुताबिक कुल 31,313 लोग अल्पसंख्यक समुदायों से सम्बद्ध हैं, जिन्हें भारतीय नागरिकता प्रदान की जानी है। इनमें से “25,447 हिन्दू, 5,807 सिख, 55 ईसाई, 2 बौद्ध और 2 पारसी” समुदाय से हैं, और भारत में स्थाई वीजा के आधार पर रह रहे हैं, जिनमें उनका दावा है कि उनके संबंधित देशों में वे धार्मिक उत्पीड़न का शिकार थे, और उन्हें भारतीय नागरिकता की दरकार है।

प्रचलित मानदंडों के मुताबिक, सम्बद्ध मंत्रालय द्वारा नियमों को जल्द से जल्द एक कानून के तहत निर्धारित और अधिसूचित किया जाना चाहिए, और उक्त कानून के प्रभावी होने वाले दिन से छह महीनों के भीतर उसे लागू करना होता है। भारतीय संसद द्वारा नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 2019 को पारित किये हुए और भारतीय राष्ट्रपति द्वारा हस्ताक्षर किये हुए 16 महीने बीत चुके हैं। लेकिन गृह मंत्रालय द्वारा अभी तक सीएए नियमों को तय नहीं किया जा सका है। मंत्रालय द्वारा अधीनस्थ विधाई समिति को चार मौकों पर इसकी तारीख को आगे बढ़ाए जाने का अनुरोध किया जा चुका है, और अब मंत्रालय के पास नियमों को तय करने के लिए 9 जुलाई 2021 तक का समय है।

यद्यपि पूर्व में गृह मंत्रालय ने इसके लिए कोविड-19 महामारी का हवाला दिया था, लेकिन यह अभी भी रहस्य बना हुआ है कि मंत्रालय ने बाकी के तीन दफे समय सीमा बढ़ाए जाने की मांग क्यों की थी। दिलचस्प बात यह है कि सरकार को 20 सितम्बर 2020 को पारित किये गए तीन कृषि कानूनों के लिए नियमों को तय करने और अधिसूचित करने में मात्र एक महीने का वक्त ही लगा। यह विसंगति साबित करती है कि केंद्र की मंशा, सीएए कानून को पश्चिम बंगाल और असम के विधानसभा चुनावों के संपन्न हो जाने के बाद लागू करने की है।

भाजपा के अन्य वादे में मतुआ दलपतियों, अर्थात मतुआ नेताओं को 3,000 रुपये की मासिक पेंशन देने का वादा है। यह बताने की जरूरत नहीं कि यह वादा सिर्फ मतुआ समुदाय के सदस्यों को भाजपा उम्मीदवारों के पक्ष में वोटिंग कराने को सुनिश्चित करने के लिए किया गया है।

11 फरवरी 2021 को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सीएए के तहत शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता प्रदान करने के लिए योजना तैयार की है, जिसमें बांग्लादेश से पश्चिम बंगाल पहुंचे मतुआ समुदाय के लोग भी शामिल हैं। कोविड-19 टीकाकरण की प्रक्रिया संपन्न होते ही यह प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। अब भाजपा की बंगाल इकाई ने अपने चुनावी घोषणापत्र में वादा किया है कि यदि वह सत्ता में आती है तो अपनी पहली कैबिनेट बैठक में इसे लागू कर दिया जाएगा। पहली कैबिनेट बैठक की संभावित तारीख 15 मई होनी चाहिए, लेकिन किसी को भी इस बात का भरोसा नहीं है कि तब तक टीकाकरण पूरा हो जाने वाला है!

इन विरोधाभासों ने मतुआ समुदाय को और भी अधिक चिंता में डाल दिया है, जिनके पास अपनी नागरिकता को साबित करने के लिए कोई दस्तावेज नहीं हैं। जबकि उनकी मांग एक सरल और बिना शर्त वाली नागरिकता की रही है, किंतु सीएए में इसके लिए कोई प्रावधान नहीं है। सीएए के अनुसार “पंजीकरण का प्रमाण पत्र” उन लोगों को दिया जायेगा जिन्हें नागरिकता प्रदान की जानी है। हालांकि, सीएए के तहत नागरिकता तभी दी जायेगी, यदि शरण की मांग करने वाले ने इसके लिए आवेदन दायर किया हुआ हो, और कुछ पूर्व-निर्धारित शर्तों को पूरा करता हो। जहाँ एक तरफ ऐसे प्रावधान नागरिकता कानून में मौजूद हों, वहां पर सरकार कैसे नागरिकता की बाट जोह रहे लोगों में से सिर्फ मतुआ को ही “बिना शर्त नागरिकता” प्रदान कर सकती है?

नागरिकता प्रदान किये जाने के नाम पर इस प्रकार की विरोधाभासी प्रवित्तियों और असंबद्धताओं को देखते हुए सरकार और बंगाल की भाजपा इकाई मतुआ और राज्य के अन्य लोगों को और भी अधिक संशय में डाल रही है।

अपने घोषणापत्र में वाम मोर्चे ने वादा किया है कि नागरिकता संशोधन अधिनियम और एनआरसी को राज्य में लागू नहीं किया जायेगा। वाम मोर्चे ने यह भी प्रतिज्ञा ली है कि 1971 के बाद जो लोग पश्चिम बंगाल में आये हैं, उन “शरणार्थियों” और “नागरिकों” के लिए समुचित पुनर्वासन को महत्व दिया जाएगा। यदि वाम मोर्चा सत्ता में आता है तो वह राज्य में शरणार्थी समस्या के समाधान के लिए केन्द्रीय सरकार से समर्थन मांगेगी। 

राज्य में सत्ता पर काबिज दल, आल इंडिया तृणमूल कांग्रेस ने 17 मार्च को अपना चुनावी घोषणापत्र जारी किया। पश्चिम बंगाल उन राज्यों में से एक है जिसने सीएए के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया था। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, सीएए और नागरिकों के राष्ट्रीय रजिस्टर (एनआरसी) की धुर विरोधी रही हैं। उन्होंने घोषणा की थी कि सीएए और एनआरसी नागरिकता सत्यापन की मुहिम को बंगाल में “मेरी लाश के ऊपर से” ही लागू किया जा सकता है। उन्होंने सीएए, एनआरसी और एनपीआर के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों का नेतृत्व किया था। 

टीएमसी का घोषणापत्र कहता है कि राज्य सरकार ने राज्य में 244 शरणार्थी बस्तियों को नियमित करने का काम किया है। इन बस्तियों के निवासियों को जमीन का फ्रीहोल्ड टाइटल डीड दिया गया है, जिससे करीब 45,000 परिवार लाभान्वित हुए हैं और 3.5 लाख परिवारों के बीच पट्टे आवंटित किये गए हैं। लेकिन इस सबके बावजूद, आश्चर्यजनक ढंग से एआईटीएमसी ने अपने 66 पेज के घोषणापत्र में सीएए, एनआरसी या एनपीआर का उल्लेख करने से परहेज किया है। 

तृणमूल कांग्रेस की तरह ही कांग्रेस पार्टी ने भी 22 मार्च को जारी किये गए अपने पश्चिम बंगाल के घोषणापत्र में सीएए और एनआरसी के बारे में एक शब्द नहीं कहा है। वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस पार्टी ने अपने असम के चुनावी घोषणापत्र में एनआरसी प्रकिया को दोबारा से शुरू करने और सीएए को निरस्त करने का वादा किया है। 

2001 की जनगणना के मुताबिक 55 लाख से अधिक लोग, जो कि पश्चिम बंगाल की जनसंख्या का 7% हिस्सा हैं, वे अन्य भारतीय राज्यों या विदेशों से आने वाले अप्रवासी थे। 31 दिसंबर 2020 को पश्चिम बंगाल की कुल आबादी 9,96,09,303 थी, और 2021 में इसके 10 करोड़ तक पहुँचने का अनुमान है। यह हमें बताता है कि 2021 में पश्चिम बंगाल में अन्य राज्यों या विदेशों से आने वाले आप्रवासियों की स्थिति लगभग 70 लाख लोगों [कुल नई जनसंख्या के 7%] की होनी चाहिए। 

पश्चिम बंगाल में रह रहे मुस्लिम, मतुआ, दलित एवं आदिवासियों समेत अधिकांश प्रवासी/अप्रवासी आबादी और अन्य कमजोर समूह इस एनआरसी, एनपीआर एवं सीएए की प्रक्रिया के बीच में फंसकर रह जाने वाले हैं। यही वजह है कि इस बात की पूरी-पूरी संभावना है कि असम की तुलना में पश्चिम बंगाल में नागरिकता का संकट कहीं ज्यादा विकराल रूप धारण कर सकता है! इसलिए, एनआरसी राज्य के मतदाताओं के लिए एक गंभीर चिंता का विषय बना हुआ है। लेकिन इसके बावजूद बंगाल भाजपा, टीएमसी और कांग्रेस ने अपने-अपने घोषणापत्रों में एनआरसी प्रक्रिया के बारे में कुछ भी जिक्र करने की जहमत नहीं उठाई है।

हाल ही में यह भी सुनने में आया था कि भारत के रजिस्ट्रार जनरल (आरजीआई) जनगणना और एनपीआर के लिए पहले चरण के फील्ड ट्रायल की योजना बना रहे हैं। पहले इसे 1 अप्रैल 2020 से शुरू किया जाना था, लेकिन महामारी के कारण इसे अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर देना पड़ा था। हालाँकि कई लोगों का इस बारे में कहना है कि एनपीआर का अर्थ एनआरसी नहीं है, लेकिन कानून इन दोनों को एक साथ संचालित करने की अनुमति देता है। इस प्रकार पश्चिम बंगाल के मतदाता एनपीआर, एनआरसी और सीएए के बीच में एक स्पष्ट लिंक को पाते हैं – जिसकी गृह मंत्री अमित शाह ने अपने विशिष्ट अंदाज में पुष्टि की थी, जिसमें उन्होंने इसके कार्यान्वयन को एक अंतर्संबंधित “क्रोनोलोजी” का हिस्सा करार दिया था।

सीएए कानून न सिर्फ नागरिकता के दावे में धार्मिक आधार पर अलग करने को लागू करता है, बल्कि यह भारत के गरीबों, महिलाओं, आदिवासियों एवं अन्य वंचित समूहों की नागरिकता के छिने जाने के जोखिम को भी उजागर करता है। जैसा कि गृह मंत्री ने दावा किया है कि जल्द ही एनआरसी को लागू किया जायेगा, ऐसे में पश्चिम बंगाल के निवासियों सहित करोड़ों भारतीय जल्द ही अपनी राष्ट्रीयता साबित करने के लिए लाइनों में कतारबद्ध खड़े नजर आने वाले हैं।

इस माह की शुरुआत में सीएए, एनआरसी और एनपीआर का विरोध करने वाले विभिन्न संगठनों के एक समूह, जॉइंट फोरम अगेंस्ट एनआरसी ने पश्चिम बंगाल में मतुआ एवं अन्य नागरिकों के बीच में जागरूकता पैदा करने के लिए अपनी आठ-दिवसीय यात्रा पूरी की और उनके साथ 25 बैठकें आयोजित की। राज्य के लोग जहाँ सीएए और एनआरसी को निरस्त करने की मांग कर रहे हैं, वहीं यह पूरी तरह से स्पष्ट नहीं हो सका है कि टीएमसी और कांग्रेस के चुनावी मुद्दों में यह अजेंडा सबसे ऊपर क्यों नहीं है। पश्चिम बंगाल में न सिर्फ मतुआ मतदाताओं के लिए ये बेहद अहम चुनावी मुद्दे हैं, बल्कि मुस्लिम, दलित एवं आदिवासी मतदाताओं के लिए भी ये मुद्दे बेहद महत्वपूर्ण हैं।

राष्ट्रव्यापी स्तर पर एनपीआर, सीएए और एनआरसी को लागू करने को लेकर वर्तमान सरकार की बेचैनी पहले से ही बंटे हुए समाज में और भी अधिक दुश्चिंताओं, विघटन और अनिश्चितताओं को पैदा करने का काम करेगी। इसलिए सभी मुख्य विपक्षी राजनीतिक दलों को पश्चिम बंगाल के आमजन के हितों को ध्यान में रखते हुए इस मुद्दे पर एकजुट होने की जरूरत है।

लेखक यॉर्क विश्वविद्यालय में कला एवं मानविकी अनुसंधान परिषद के वित्तपोषित प्रोजेक्ट- “नागरिकता की पुनर्कल्पना: भारत में नागरिकता संशोधन अधिनियम की राजनीति” के साथ पोस्ट डॉक्टोरल रिसर्च एसोसिएट के तौर पर सम्बद्ध हैं। व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें 

West Bengal Election: CAA, NRC and Manifestos of Major Parties

Matua
West Bengal election
CAA
NPR
NRC
Amit Shah
West Bengal manifetso
Left Front
mamata banerjee
Muslim
dalit
Adivasi
Bangladeshi Refugees
voters in West Bengal

Related Stories

बॉलीवुड को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है बीजेपी !

PM की इतनी बेअदबी क्यों कर रहे हैं CM? आख़िर कौन है ज़िम्मेदार?

विशेष: कौन लौटाएगा अब्दुल सुब्हान के आठ साल, कौन लौटाएगा वो पहली सी ज़िंदगी

शाहीन बाग़ : देखने हम भी गए थे प तमाशा न हुआ!

शाहीन बाग़ ग्राउंड रिपोर्ट : जनता के पुरज़ोर विरोध के आगे झुकी एमसीडी, नहीं कर पाई 'बुलडोज़र हमला'

क्या हिंदी को लेकर हठ देश की विविधता के विपरीत है ?

मोदी-शाह राज में तीन राज्यों की पुलिस आपस मे भिड़ी!

चुनावी वादे पूरे नहीं करने की नाकामी को छिपाने के लिए शाह सीएए का मुद्दा उठा रहे हैं: माकपा

CAA आंदोलनकारियों को फिर निशाना बनाती यूपी सरकार, प्रदर्शनकारी बोले- बिना दोषी साबित हुए अपराधियों सा सुलूक किया जा रहा

यूपी में संघ-भाजपा की बदलती रणनीति : लोकतांत्रिक ताकतों की बढ़ती चुनौती


बाकी खबरें

  • blast
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    हापुड़ अग्निकांड: कम से कम 13 लोगों की मौत, किसान-मजदूर संघ ने किया प्रदर्शन
    05 Jun 2022
    हापुड़ में एक ब्लायलर फैक्ट्री में ब्लास्ट के कारण करीब 13 मज़दूरों की मौत हो गई, जिसके बाद से लगातार किसान और मज़दूर संघ ग़ैर कानूनी फैक्ट्रियों को बंद कराने के लिए सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रही…
  • Adhar
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: आधार पर अब खुली सरकार की नींद
    05 Jun 2022
    हर हफ़्ते की तरह इस सप्ताह की जरूरी ख़बरों को लेकर फिर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन
  • डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
    तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष
    05 Jun 2022
    हमारे वर्तमान सरकार जी पिछले आठ वर्षों से हमारे सरकार जी हैं। ऐसा नहीं है कि सरकार जी भविष्य में सिर्फ अपने पहनावे और खान-पान को लेकर ही जाने जाएंगे। वे तो अपने कथनों (quotes) के लिए भी याद किए…
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' का तर्जुमा
    05 Jun 2022
    इतवार की कविता में आज पढ़िये ऑस्ट्रेलियाई कवयित्री एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' जिसका हिंदी तर्जुमा किया है योगेंद्र दत्त त्यागी ने।
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित
    04 Jun 2022
    देशभक्तों ने कहां सोचा था कि कश्मीरी पंडित इतने स्वार्थी हो जाएंगे। मोदी जी के डाइरेक्ट राज में भी कश्मीर में असुरक्षा का शोर मचाएंगे।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License