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आरसीईपी क्या है और एशिया-पैसिफ़िक की ट्रेड यूनियनें इसके बारे में चिंतित क्यों हैं?
जबकि एशियन देशों और उसके मुक्त व्यापार साझेदारों के बीच हुए नए समझौते से यह दुनिया का सबसे बड़ा व्यापारिक ब्लॉक बनने जा रहा है, लेकिन ट्रेड यूनियनों, ट्रेड जस्टिस समूहों और महिलाओं के आंदोलनों द्वारा इसका मज़बूत विरोध किया जा रहा है।
पीपल्स डिस्पैच
17 Nov 2020
Translated by महेश कुमार
आरसीईपी

एशिया-पैसिफ़िक के 15 देशों ने रविवार, 15 नवंबर को दुनिया के सबसे बड़े व्यापारिक ब्लॉक के रूप में उभरे समझौते पर हस्ताक्षर कर दिए हैं। क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) पर दक्षिण-पूर्व एशियाई राष्ट्रों के 10 सदस्य देशों के साथ ऑस्ट्रेलिया, चीन, जापान, न्यूजीलैंड और दक्षिण कोरिया ने मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किए है। इस समझौते पर आसियान देशों ने अपने एफटीए (फ्री ट्रेड एग्रीमेंट) भागीदारों के साथ वियतनाम में आयोजित एक आभासी आसियान बैठक में हस्ताक्षर किए, लेकिन भारत इसका हिस्सा नहीं है। 

आरसीईपी को लागू करने से पहले प्रत्येक सदस्यों द्वारा इसकी पुष्टि की जानी है। शिखर सम्मेलन के नेताओं को उम्मीद है कि पुष्टि की प्रक्रिया दो साल के भीतर पूरी हो जाएगी। जब यह सम्झौता पूरी तरह लागू हो जाएगा तो यह वैश्विक आबादी और वैश्विक जीडीपी का 30 प्रतिशत हिस्सा बैठेगा जो दुनिया के नक्शे पर सबसे बड़े मुक्त व्यापार ब्लॉक के रूप में उभरेगा। भारत, जो आठ साल से चल रही लंबी वार्ता का हिस्सा था, घरेलू दबाव के कारण चल रही बातचीत के दौरान से एक साल पहले पीछे हट गया था और तभी इसे अंतिम रूप दिया गया था।

इस समझौते को पूर्वी एशिया में एक सफल व्यापक आर्थिक साझेदारी (सीईपीईए) के रूप में देखा जा रहा है जिसका प्रस्ताव सबसे पहले जापान ने किया था, और इसमें भारत के भी शामिल होने की उम्मीद थी। आरसीईपी को पहली बार 2011 के एक आसियान शिखर सम्मेलन में प्रस्तावित किया गया था और 2012 में इस पर आधिकारिक वार्ता शुरू हुई थी।

एक क्षेत्रीय उद्देश्य को सामने रखते हुए विस्तृत समझौते को उसी दिन जारी कर दिया गया था, जो अंततः एक क्षेत्रीय ब्लॉक की स्थापना करेगा, और जो व्यापार और प्रतिस्पर्धा पर "टैरिफ और गैर-टैरिफ बाधाओं और प्रतिबंधों साथ ही भेदभावपूर्ण उपायों को खत्म करेगा। आरसीईपी व्यापारिक वस्तुओं की उत्पत्ति के नियमों को मानकीकृत करने की वकालत करता है और विवादों को एक सुपरनैशनल स्तर पर निपटाने की भी वकालत करता है। 

ट्रेड यूनियनों, हेल्थकेयर एक्टिविस्ट्स और ट्रेड जस्टिस ग्रुप्स ने आरसीईपी समझौता की व्यापक आलोचना की है। हस्ताक्षर के दिन, कई सामाजिक आंदोलनों और ट्रेड जस्टिस समूहों ने सौदे का विरोध करते हुए बयान जारी किए, इसे एक नव-उदारवादी निज़ाम का विस्तारित कार्यक्रम बताया है। 

एशिया पैसिफिक फोरम ऑन वूमेन, लॉ एंड डेवलपमेंट (APWLD) द्वारा जारी एक बयान में, महिला अधिकार समूहों ने सौदे पर हस्ताक्षर करने के खिलाफ अपने गुस्से का इज़हार किया। बयान में कहा गया है कि आरसीईपी “जीवन रक्षक दवाओं के अधिक किफायती जेनेरिक संस्करणों के उत्पादन, किसानों और देशज तबकों के बीज और खाद्य संप्रभुता के अधिकारों को नकारात्मक रूप से प्रभावित करेगा, सार्वजनिक सेवाओं का निजीकरण, श्रमिकों के वेतन को कम करेगा और बेहतर नौकरियों के अवसर पैदा करने में बाधा डालेगा, साथ ही यह सम्झौता जनहित में सुरक्षा और विनियमन के लिए आवश्यक औद्योगिक और राजकोषीय नीतियों को लागू करने में सरकारों की क्षमता को सीमित करेगा। 

ट्रेड जस्टिस पिलिपिनास, एक ऐसा समूह है जो वैश्विक दक्षिण देशों के ट्रेड जस्टिस के काम को  समर्पित है, ने कोविड-19 महामारी के दौरान इस सौदे को आगे बढ़ाने की आलोचना की है, और नेताओं की बुद्धिमत्ता पर सवाल उठाया है कि वे नव-उदारवादी मॉडल को तब भी आगे बढ़ा रहे है जब पूरी दुनिया इसके असर पर सवाल उठा रही है ।

उनके बयान के मुताबिक "आरसीईपी एक टूटे हुए आर्थिक मॉडल को आगे बढ़ाने का माध्यम है जो हमें अधिक लचीला बनाने के मौलिक बदलाव की जरूरत पर ज़ोर देता है,"। कोविड-19 महामारी और वैश्विक आर्थिक मंदी के कारण बजाय वार्ता को तेज़ करने के इसे विराम देने की जरूरत थी। इस समझौते के तहत दिए गए नए दायित्वों के चलते सभी देशों को जवाबदेह होना होगा जो सार्वजनिक हित के लिए हानिकारक होगा। यह एक ऐसा समझौता है जिसे सरकारों द्वारा लोगों की सहमति के बिना लागू किया जाएगा।।"

संधि पर हस्ताक्षर करने के कुछ ही दिन पहले, 12 नवंबर को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस का आयोजन  सार्वजनिक सेवा इंटरनेशनल (पीएसआई) ने किया था, जिसमें एक ही चिंता को उठाया गया था। पीएसआई के एशिया-पैसिफिक आर्म के क्षेत्रीय सचिव केट लॅपिन ने ट्रेड यूनियनों की चिंताओं को रेखांकित करते हुए कहा कि "दशकों से इन ट्रेड एग्रीमेंट के बारे में यूनियनों की मुख्य चिंता यह रही है कि वे बहुराष्ट्रीय निगमों के हितों को साधते हैं।"

“वे स्पष्ट रूप से विदेशी निवेशकों के लाभ के लिए काम करेंगी यहां तक कि घरेलू व्यवसायों के लिए भी वे फायदेमंद नहीं है। ऐसा करने से, मजदूरी और मजदूरों की काम स्थिति खराब हो  जाएंगे।”

लॅपिन का बयान बिना किसी वजह के नहीं है, क्योंकि आरसीईपी का एक बड़ा हिस्सा,  साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट के एक विश्लेषक के अनुसार, "आर्थिक गुरुत्वाकर्षण के केंद्र को खींचने के लिए है", जिसका मतलब अधिक से अधिक अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और निवेश को आकर्षित करने पर केंद्रित है। 

लॅपिन आगे कहते हैं कि आरसीईपी जैसे व्यापार समझौतों का रिश्ता व्यापार के साथ बहुत कम है, जबकि वे सरकारों पर नए नियम लागू करते हैं और वे नए नियमों को इस तरह से लागू करते हैं कि वे पर्यावरण और श्रम के संबंध में सार्वजनिक नीतियों को पारित कर सकते हैं, सार्वजनिक सेवाओं और सरकारों के संबंध में अर्थव्यवस्था का प्रबंधन कर सकते हैं।"

वार्ता की अत्यंत गोपनीय प्रकृति के कारण यह मुद्दा और भी जटिल हो गया था। संबंधित सदस्यों के हस्ताक्षर किए बिना समझौते का विवरण जारी नहीं किया गया था। संबंधित राष्ट्रीय संसदों के सदस्यों को रविवार तक भी सूचित नहीं किया गया था कि आखिर समझौता क्या होगा और इसमें प्रवेश करने के लिए सदस्यों के लिए निर्धारित आवश्यकताओं को पूरा करना होगा।

लेकिन दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करने से बहुत पहले, एक्टविस्ट्स को 2017 तक हुई बातचीत का संकेत मिला, उस वक़्त के लीक हुए दस्तावेजों से पता चला कि अंतिम सौदा किस दिशा में ले जाया जा रहा है। उनमें सदस्यों पर राजकोषीय संप्रभुता को सीमित करने की चर्चा थी, जिसके तहत बड़े निगम को अनिवार्य ट्रिब्यूनल के माध्यम से सरकारों पर मुकदमा चलाने का प्रावधान था, और जापान के इशारे पर बौद्धिक संपदा अधिकारों के प्रावधानों को अत्यंत कठोर बनाने की वकालत करना था। 

भारत में, इन दस्तावेजों ने घरेलू निर्माताओं, विशेष रूप से व्यापक जेनेरिक दवा निर्माताओं,  ट्रेड यूनियनों और किसानों के आंदोलनों को हिला कर रख दिया। इन सबके दबाव से भारत को आखिरकार इस वार्ता के अंतिम चरण में बाहर आना पड़ा। 

अंतिम समझौते के तहत कुछ अपवादों को छोड़ दें तो पूंजी के प्रवाह को सरकारों के नियंत्रण से महत्वपूर्ण रूप से सीमित कर दिया जाएगा। सौदे के हस्ताक्षरकर्ताओं के आपसी विवाद के लिए एक समाधान तंत्र बनाया जाएगा जिसके तहत समझौते के हस्ताक्षरकर्ताओं या बहुराष्ट्रीय कंपनियों को नीतिगत बदलावों के लिए सरकारों पर मुकदमा करने के लिए एक सुपरनैशनल ट्रिब्यूनल बनाया जाएगा। यद्द्पि समझौते में श्रम सुरक्षा या पर्यावरण नियमों का कोई उल्लेख नहीं है, इसलिए यह राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं में थोक दर से उदारीकरण की गुंजाइश को खोल देता है।

नीचे लुढ़कने की लॅपिन की चिंताओं पर विस्तार से बोलते हुए फिलिपिंस की सीनेटर रीसा होन्टिवरोस ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया कि फिलीपींस पहले से ही महामारी के कारण खतरनाक मंदी के दौर से गुजर रहा है।

उन्होंने कहा कि आरसीईपी "व्यापार संतुलन को बिगड़ता है" क्योंकि यह उनके देश में लक्जरी वस्तुओं और यहां तक कि चावल के आयात को प्रोत्साहित करेगा, जिससे राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था प्रभावित होगी। ट्रेड जस्टिस पिलिपिनास के बयान में यह भी कहा गया है कि इसके चलते अनुमान है कि व्यापार घाटा 900 बिलियन अमरीकी डालर तक बढ़ सकता है। कंबोडिया और इंडोनेशिया जैसे अन्य गरीब देशों में भी इसी तरह की चिंताओं को उठाया गया है, जहां देखा जा सकता हैं कि व्यापार घाटा इन देशों को आस्तरिटी के घेरे से भी नीचे धकेल सकता है।

भले ही समझौते का अंतिम प्रारूप गरीब देशों को अपनी राजकोषीय और नीति-निर्माण स्वायत्तता बनाए रखने की अनुमति देता है, लेकिन लॅपिन ने समझाया कि एक मुक्त व्यापार समझौते के ढांचे के भीतर इसका अर्थ कैसे बहुत कम हो जाता है। “एफटीए… सरकारों पर निजीकरण के लिए दबाव बढ़ाती हैं, क्योंकि सार्वजनिक सेवाओं को व्यापार करने और बाजार में प्रतिस्पर्धा करने की जरूरत है। इससे समानता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा, जिसमें लैंगिक समानता पर विपरीत प्रभाव पड़ना शामिल हैं।”

उन्होने कहा कि “(महामारी के दौरान) देशों को कई ऐसे उपायों का सहारा लेना पड़ा, जिन्हें आरसीईपी और अन्य मुक्त व्यापार सौदों के तहत व्यापार नियमों के उल्लंघन के रूप में देखा जा सकता था। भविष्य की सरकारों की नीतिगत क्षमता को कम करने के इस तरह के सौदे से भविष्य की मजदूर-समर्थक सरकारों को आर्थिक नियमों को बदलने की ताक़त कम हो जाएगी।

Courtesy: Peoples Dispatch

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें

What is RCEP and why are Trade Unions in the Asia-Pacific Region Concerned About It?

Asia Pacific Forum on Women
Free Trade Agreements
Law and Development
Public Services International
RCEP
RCEP Negotiations
Regional Comprehensive economic partnership
Risa Hontiveros
Trade Justice Pilipinas

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