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वास्तव में चमगादड़ जैसा होने के क्या मायने हैं?
इस स्तनपायी जीव की जटिल शारीरिक बनावट की खासियत इसके उपहार में मिले उड़ान भरने की क्षमता के साथ वायरसों के साथ इसके अनूठे रिश्ते में छिपी है।
प्रफुल्ल कुमार सिंह
13 May 2020
चमगादड़

वर्तमान में जारी वैश्विक महामारी ने दुनिया को झकझोर कर रख डाला है, और सभी को कोरोना वायरस के खिलाफ चिकित्सा और वैक्सीन के बारे में सोचने के लिए मजबूर कर दिया है, जो कि अब तक ज्ञात SARS-COV-2 वायरस से मनुष्यों में होने वाली एक बीमारी रही है। अब जाकर यह स्थापित हो चुका है कि इस वायरस का मूल मेजबान चमगादड़ ही था, जिससे यह संक्रमण इंसानों के बीच पहुँचा। SARS-COV-2 के अलावा सार्स (SARS), मेर्स (MERS), रेबीज़ (Rabies), मारबर्ग (Marburg), निपा (Nipah) और हेंड्रा वायरस (Hendra viruses) की मेजबानी भी चमगादड़ों द्वारा की गई थी, जहाँ से कूदकर इन्होंने मनुष्यों को संक्रमित किया।

हालाँकि चमगादड़ों की जीव विज्ञान संबंधी विशेषताओं के चलते इस प्रकार के वायरसों के लिए इनका शरीर किसी स्वर्ग से कम नहीं है, जिसके बारे में अभी तक पूरी तरह से खुलासा नहीं हो सका है। वैज्ञानिकों के लिए अभी भी यह एक अबूझ पहेली बनी हुई है कि इन वायरसों से चमगादड़ों के बीच कोई गंभीर बीमारियाँ क्यों नहीं पनपतीं, जैसा कि इंसानों में देखने को मिलता है। चमगादड़ों के शरीर विज्ञान पर यदि अंतर्दृष्टि डालें तो ऐसा लगता है मानो यह इंसान के शरीर की रक्षा प्रणाली के खिलाफ जीवित रहने के लिए वायरस को प्रशिक्षित करने में सक्षम बनाने में मदद करता है।  यदि इसे समझा जा सके तो इसके जरिये लड़ने में मदद मिल सकेगी और भविष्य में होने वाली महामारियों से बचा जा सकता है। चमगादड़ों और वायरस के बीच के अंतरसंबंधों से भी वैज्ञानिकों को कुछ परेशान कर रहे प्राणीजन्य रोगों में उछाल वाले प्रश्नों के जवाब मिल सकते हैं, ताकि हम अगली वायरल महामारी से बेहतर तरीके से निपट सकें।

चमगादड़ एक बेहद उच्च प्रजाति वाले विविधता लिए हुए स्तनपायी जीवों का एक विविध समूह है। चमगादड़ों की कुल 1,300 से अधिक प्रजातियां हैं, जो स्तनधारियों की कुल मान्यता प्राप्त प्रजातियों के 20% से भी अधिक हैं। भौगोलिक तौर पर देखें तो ये व्यापक स्तर पर हर तरफ फैले हुए हैं और आर्कटिक सर्कल और अंटार्कटिका को छोड़ करीब-करीब हर जगह पाए जाते हैं, और इनका अपेक्षाकृत लंबा जीवनकाल होता है। इन कारकों के साथ-साथ चमगादड़ों के सामाजिक व्यवहार और भोजन की आदतों की वजह से वायरस के संपर्क में आने की सीमा और संभावना तय होती है।

चमगादड़ों से जुड़े वायरसों के डेटाबेस DbatVir पर नजर डालें तो अभी तक इनके 28 परिवारों में 11,000 से अधिक वायरस की मौजूदगी दर्ज है, जिनमें से बेहद छोटा सा अंश ऐसा है जो इंसानों को संक्रमित करने के लिए जाना जाता है। हैरानी की बात तो ये है कि 80% से अधिक ज्ञात चमगादड़ों में पाए जाने वाले वायरसों में मौजूद RNA उनकी आनुवंशिक सामग्री के तौर पर उपस्थित है। हालांकि इतनी भारी संख्या में वायरस को शरण देने की चमगादड़ों में जो क्षमता है, वो भी बिना किसी महत्वपूर्ण रोगगत परिणाम के उससे पता चलता है कि उन्होंने एंटीवायरल प्रतिरक्षा प्रतिक्रियाओं के लिए खुद को ढाल लिया है या उनके प्रति सहनशीलता विकसित कर ली है।

स्तनपायी जीव एक "जन्मजात प्रतिरक्षा प्रणाली" को उपयोग में लाते हैं जैसे कि पैटर्न रिकॉग्निशन रिसेप्टर्स या पीआरआर (PRRs), जो मूलतः प्रोटीन होते हैं जिनके भीतर रोगजनकों की पहचान करने की क्षमता होती है। जब PRRs एक रोगज़नक़-विशिष्ट आणविक संरचना या क्षतिग्रस्त-सेल से पैदा होने वाले अणुओं का पता लगा लेते हैं, तो वे शरीर की कोशिकाओं को एंटी-माइक्रोबियल या कहें कि दाहक मध्यस्थों को उत्पादित करने के सिग्नल भेजते हैं। जबकि चमगादड़ों में यह प्रक्रिया बेहद अच्छे तौर पर समायोजित होती है, जिसमें पीआरआर वायरस के खिलाफ प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया पैदा करते हैं जो वायरस के प्रतिकृति पैदा करने की क्षमता को सीमित करके रख देते हैं।

और ठीक इसी वक्त में यह भी पाया गया है कि चमगादड़ों में जो दाहक प्रतिक्रिया है वह बेहद प्रतिबंधित या नियंत्रित चलती रहती है, जिससे कि चमगादड़ के अपने टिश्यू नष्ट न होते चले जाएँ। जबकि अन्य स्तनपायी जीवों में दाहक प्रणाली के अचानक से तेजी से अति सक्रिय हो जाने की वजह से उनके भीतर के सेल नष्ट होते चले जाने की संभावना होती है।

चमगादड़ों में हल्के स्तर पर दाहक प्रणाली के बारे में वैज्ञानिकों का मत है कि यह उनके लंबे जीवन काल (उनके आकार और मेटाबोलिक गतिविधि को ध्यान में रखते हुए) से भी सम्बन्धित है और इसी वजह से उनके अंदर कैंसर की अपेक्षाकृत कम घटनाएं देखने को मिलती हैं।

जबकि इसके विपरीत यदि इंसानी शरीर वायरस से मुकाबले में खड़ा होता है तो इसमें बढ़चढ़कर दाहक प्रतिक्रिया देखने को मिल सकती है। ऐसी प्रतिक्रिया के चलते इंसानों में कोरोना वायरस सहित कुछ अन्य संक्रामक रोगों को गंभीरता से बढाने में योगदान के रूप में जाना जाता है। इसी वजह से वैज्ञानिकों ने इस बात को महत्वपूर्ण समझा कि चमगादड़ों सहित सभी स्तनपायी जीवों में दाहक प्रतिक्रियाओं और वायरल मैसेजिंग सिस्टम की बेहतर समझ विकसित हो। यदि ऐसा संभव हुआ तो इससे वायरल संक्रमणों को रोकने के लिए नई उपचार पद्धति विकसित करने में मदद मिल सकती है।

यह प्रश्न अभी भी अनुत्तरित बना हुआ है कि चमगादड़ों की प्रतिरक्षा प्रणाली में दाहक प्रतिक्रिया का स्तर अपेक्षाकृत निम्न क्यों बना रहता है। कुछ का मानना है कि चमगादड़ों में उड़ान भर सकने की क्षमता इस विशिष्ट अनुकूलन की जड़ में है। उड़ान से जुड़ी मांसपेशियों की गतिविधि को मदद पहुँचाने के लिए चमगादड़ को उच्च मेटोबोलिक रेट  की आवश्यकता पड़ती है। उच्च मेटाबोलिज्म की दर के साथ चमगादड़ों के शरीर का तापमान (इंसानों में 37 डिग्री की तुलना में, चमगादड़ों में 41 डिग्री सेंटीग्रेड) जुड़ा है। उड़ान और उच्च मेटाबोलिज्म का संबंध प्रतिक्रियाशील ऑक्सीजन प्रजाति या ROS के संचय से भी है, जो अपनेआप में अत्यधिक प्रतिक्रियाशील ऑक्सीजन युक्त अणु होते हैं।

उच्च तापमान और ROS का संचय, ये दोनों कारक डीएनए की क्षति को काफी हद तक बढ़ा देते हैं। इस क्षतिग्रस्त डीएनए के टुकड़े उनकी आम लोकेशन की प्रत्येक कोशिका के केन्द्रक के अंदर से साइटोसोल में जारी किए जाते हैं, जहां अन्य सेलुलर बायोमॉलेक्यूल और ऑर्गेनेल द्रव्य स्थिति में निलंबित पड़े होते हैं। जब बैक्टीरिया या वायरस कोशिका पर हमला करता है, तो PRRs इस व्यवधान की शिनाख्त कर लेते हैं: वे विभिन्न बाहरी अणुओं का पता लगाकर हमलावर के खिलाफ रक्षा प्रतिक्रिया को तेजी से चालू कर देते हैं। हालाँकि दुर्घटना की स्थिति में भी यही प्रतिक्रिया को सक्रिय होते देखा जा सकता है, जब केन्द्रक से कोशिकाओं के खुद के डीएनए  साइटोप्लाज्म में लीक होने लगते हैं।

चमगादड़ों में उड़ान की क्षमता में विकास के साथ-साथ दो और अनुकूलन विकसित हुए: जारी डीएनए टुकड़ों के प्रति बढ़-चढ़कर दाहक प्रतिक्रिया के हानिकारक प्रभावों को कम करने के लिए, जीन जो डीएनए की रिपेयर करते हैं वे सकारात्मक चयन करते हैं। क्योंकि डीएनए रिपेयर का काम कहीं अधिक प्रभावी है, जिसके चलते इम्यून प्रतिक्रिया के ट्रिगर होने की संभावना कम हो जाती है। इस बीच चमगादड़ों में डीएनए के महत्वपूर्ण साइटोसोलिक सेंसर  भी क्षीण होने लगते हैं, अर्थात जब कोशिकाएं को पता चलता है कि डीएनए नाभिक के बाहर चारों ओर तैर रहे हैं तो वह अतिरिक्त प्रतिक्रिया नहीं देते।

आगे के अध्ययनों पता चला है कि इंसानों की तुलना में चमगादड़ों में अपेक्षाकृत कम इम्युनिटी संबंधी जीन हैं। उदाहरण के लिए एक समूचा जीन परिवार (the PYHIN), जो एंटीवायरल प्रतिक्रियाओं और दाहक प्रतिक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, कई चमगादड़ों की प्रजातियों में ये मौजूद ही नहीं हैं। स्तनधारियों में इम्यून प्रतिक्रिया के अन्य महत्वपूर्ण मध्यस्थों में NLRP3 inflammasome, cGAS-STING और NFkB pathways भी चमगादड़ में सुषुप्तावस्था में होते हैं।

वायरस और इम्यून सिस्टम के प्रति चमगादड़ों में सहनशीलता के स्तर को समझने के लिए एक और परत है। जैसा कि ऊपर चर्चा की जा चुकी है कि अधिकांश स्तनपायी जीवों की तुलना में चमगादड़ के शरीर को अक्सर उच्च तापमान के बीच रहना होता है। दूसरे शब्दों में कहें तो अपनी उड़ान के दौरान वे अक्सर "बुखार" जैसी हालत होते हैं, यह एक ऐसी अवस्था है जिसे अन्य स्तनधारियों में तब देखने को मिलता है जब वे संक्रमित होते हैं।

बुखार रोगजनकों के खिलाफ एक सुरक्षात्मक प्रतिक्रिया है। इसके लाभकारी प्रभाव यह है कि यह इम्यून कोशिकाओं की गतिविधि को मजबूत करता है। जबकि इसका दूसरा लाभ यह है कि यदि उच्च तापमान बना रहता है तो यह सीधे संक्रमण पैदा करने वाले एजेंट के प्रति अवरोधक का काम करता है। अब इसकी वजह से होता यह है कि लगातार उच्च तापमान के संपर्क में रहने के कारण चमगादड़ की इम्यून कोशिकाएं संभवतः संक्रमण के दौरान उसी हद तक सक्रिय नहीं रहती, जैसा कि इंसानों में देखने को मिलता है।

यह भी संभव है कि चमगादड़ों पर जो वायरस आक्रमण होते हैं वे उनके शरीर के अपेक्षाकृत उच्च तापमान के आदी हो चुके हों। इंसानों में भी बुखार के रूप में वायरस से लड़ने वाले गुण होते हैं, लेकिन जब एक वायरस किसी चमगादड़ से इंसान में प्रविष्ठ करता है तो काफी हद तक यह संभव है कि यहाँ पहले से ही वायरस उच्च तापमान से निपटने के लिए प्रशिक्षित हो। यह एक कारण हो सकता है जब किसी चमगादड़ से पैदा हुए वायरस का किसी अन्य स्तनपायी जीवों में संक्रमण होता है तो इनके जरिये बीमार पड़ने की घटनाएं कहीं अधिक होती हैं।

कुल मिलाकर चमगादड़ की कमजोर दाहक प्रणाली इसके स्वयं के टिश्यू को नुकसान से बचाने के काम आती है। लेकिन इसने चमगादड़ में एक विशिष्ट मेजबान-वायरस संबंध को भी जन्म दे डाला है। कभी-कभार इन चमगादड़ के वायरसों से होने वाली आकस्मिक मुठभेड़ से इन वायरसों को इनके नए मेजबानों के पास जाने का मौका मिल जाता है। प्राणीजन्य रोगों के लिए RNA वायरस विशेष रूप से महत्वपूर्ण हैं क्योंकि इनमें जीनोम की प्रतिकृति में त्रुटियों की उच्च दर की वजह से म्युटेशन (जीन के ढाँचे में बदलाव) की उच्च आवृत्ति होती है। ये म्युटेशन RNA वायरसों को उनके नए मेजबान लिए अनुकूलक बनाने और बीमार करने में मदद करते हैं।

स्तनपायियों में एंटीवायरल प्रतिक्रियाओं के विकास को बेहतर ढंग से समझने के लिए चमगादड़-वायरस की पारस्परिक क्रिया पर और अधिक अध्ययन की आवश्यकता है। इनसे इंसानों में वायरस-प्रेरित इम्यून प्रणाली प्रतिक्रियाओं पर रोकथाम लगाने सम्बंधी रणनीति को लागू करने में मदद मिलेगी। यह काफी महत्वपूर्ण होगा कि इस ज्ञान को उन लक्षणों के बारे में जानकारी के साथ जोड़ दिया जाय जो वायरस को अन्य प्रजातियों में प्रविष्ठ करने और नए मेजबानों में खुद को बनाए रखने की अनुमति देते हैं। भविष्य में होने वाले किसी प्रकोप के जोखिम को कम करने के लिए मजबूत निगरानी कार्यक्रमों के विकास का दारोमदार इस बात पर निर्भर करता है।

(लेखक के पास पशु चिकित्सा की डिग्री और आपने जीव विज्ञान से पीएचडी की है। विचार व्यक्तिगत हैं।)

अंग्रेज़ी में लिखा मूल आलेख आप नीचे लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

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