NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
नज़रिया
समाज
भारत
राजनीति
विशेष: प्रेम ही तो किया, क्या गुनाह कर दिया
कहते हैं कि भारत युवाओं का देश है। यानी युवा आबादी सबसे अधिक है। पर हमारी सोच युवा और आधुनिक नहीं है।  
राज वाल्मीकि
14 Feb 2021
प्रेम
प्रतीकात्कम तस्वीर

हाल ही में मेरी रिश्तेदारी में ही दो ऐसी घटनाएं घटीं जिसने सोचने पर विवश कर दिया। दूर के रिश्ते की एक भतीजी की कॉलेज की फर्स्ट ईअर की पढ़ाई इसलिए बंद करवा दी कि उसे कॉलेज के ही किसी सहपाठी से प्रेम हो गया। अब उसके परिवार वाले उसके लिए कोई लड़का देख रहे हैं जिससे जल्दी से उसकी शादी करवा सकें। कारण यह कि एक तो उसने प्रेम करके ही गुनाह कर दिया। दूसरे उसने प्रेम किया गैर-जाति के लड़के से। लड़की को समझ नहीं आ रहा है कि उसने प्रेम करके क्या गुनाह कर दिया।

दूसरे मामले में एक भांजे ने राजपूत लड़की से प्रेम करने का साहस किया। लड़की वाले उसे उसके दुस्साहस की सजा उसकी जान लेकर देना चाहते थे। इस कारण उसे दूर किसी रिश्तेदारी में भेज दिया गया। वह बी.कॉम फाइनल ईयर में पढ़ रहा था। राजपूत लड़की के घर वालों ने न केवल लड़की को बुरी तरह पीटा बल्कि  उसकी पढ़ाई छुड़वा दी। 

दोनों ही मामलों में लड़के– लड़कियों का करियर बर्बाद हो गया। जिन बच्चों को हम इतने लाड-प्यार से पालते-पोसते हैं। पढ़ाते-लिखाते हैं। उनकी इतनी चिंता करते हैं। उन्हें ज़रा भी कष्ट में देखना नहीं चाहते हैं। प्रेम-प्यार के मामले में हम इतने निष्ठुर कैसे हो जाते हैं।

दरअसल हमारे देश में पितृसत्ता और जातिवाद इसकी जड़ में होता है। पितृसत्तात्मक सोच कहती है कि आखिर लड़की ने किसी से प्रेम की जुर्रत कैसे की। हमारी तो नाक कटा दी। खानदान की इज्जत मिट्टी में मिला दी। पर लड़का यदि प्रेम करे तो परिवार और खानदान की न नाक कटती है और न इज्जत मिट्टी में मिलती है। लड़के तो जवानी में ऐसा करते ही हैं। इसी प्रकार जातिवादी सोच कहती है कि किसी छोटी जाति का लड़का किसी बनिए, ब्राहमण या राजपूत की लड़की से प्रेम कैसे कर सकता है। उसकी ये हिम्मत! औकात भूल गया अपनी! उसे तो सजा-ए-मौत मिलनी ही चाहिए। और उसे सरेआम गोली मार दी जाती है।

हमारे समाज में लड़की को ये आजादी नहीं दी जाती कि वह किसी से प्रेम करे। अपनी पसंद का जीवनसाथी चुने। भले ही हमारे देश का क़ानून और संविधान कहे कि बालिग़  लड़की को अपनी पसंद का जीवनसाथी चुनने का हक़ है। लेकिन ये हक़ हमारे समाज की लड़कियों को नहीं मिलता बल्कि ऐसे फैसले लेने पर उन्हें परिवार के लोगों से ही प्रताड़ित किया जाता है। कभी-कभी तो उनकी जान भी परिवार के लोगों द्वारा ले ली जाती है।

जिस देश में “बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ” का नारा दिया जाता है वहां प्रेम करने वाली लड़कियों की अपनी झूठी शान के लिए हत्या कर दी जाती है। उनकी पढाई छुड़ा दी जाती है। आखिर क्यों?

कहते हैं कि भारत युवाओं का देश है। यानी युवा आबादी सबसे अधिक है। पर हमारी सोच युवा और आधुनिक नहीं है। जिस भतीजी के प्रेम प्रसंग का जिक्र मैंने किया उनके पिता का कहना था-“ये बच्चे क्या जाने प्रेम-व्रेम। बस अपोजिट सेक्स का आकर्षण होता है। बीस-इक्कीस  साल की उम्र में परिपक्वता कहाँ होती है। ये पढाई-लिखाई की उम्र होती है। कुछ बनने की उम्र होती है ना कि ऐश करने की। अरे प्रेम और सेक्स तो शादी के बाद पूरी जिंदगी करना है। हमारी अरेंज मैरिज हुई तो क्या हम पति-पत्नी में प्रेम नहीं हुआ। ये सब शादी के बाद ही शोभा देता है।...” 

इसी प्रकार जीजाजी मेरे भांजे के बारे में कह रहे थे –“ये हो क्या गया है युवा पीढ़ी को। न जाति देखेंगे न धर्म। बस प्यार-व्यार के चक्कर में पड़ जायेंगे। ये नहीं जानते कि हम दलितों को किसी बड़ी जाति की लड़की से प्यार करने की कितनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है। अब कर लिया उसने अपना करियर बर्बाद। माँ-बाप को जो परेशानी हो रही है वह अलग से। जवानी में दीवाने हो रहे हैं। कुछ होश तो है नहीं...।”

पर सच्चाई तो ये है कि प्यार जाति-धर्म को कहाँ देखता है। ये तो होना होता है तो किसी से भी हो जाता है। पर असली समस्या तो तब उत्पन्न होती है जब प्रेमी-प्रेमिका अपने प्यार को अंजाम तक यानी शादी तक पहुंचाना चाहते हैं। तब जाति और धर्म उनके प्रेम के बीच दीवार बनकर खड़े हो जाते हैं। इन बड़ी चुनौतियों को पार करना आसन नहीं होता। कई प्रेम गाथाएं तो इन दीवारों के तले दफ़न हो जाती हैं। कुछ इन्हें पार करके अपने अंजाम तक भी पहुँचती हैं।

कर्नाटक के एक प्रेमी युगल जो कि अलग-अलग धर्मों से थे उन्होंने अपने प्रेम को अंजाम तक पहुंचाया। उन्होंने शादी कर ली। लड़की हिन्दू और लड़का मुस्लिम। बस हमारी सरकारों की नजर में तो ये ‘लव जिहाद’ का मामला बन गया और उन उस नव दम्पति की परेशानी का सबब। लड़की अध्यापिका थी और उसने मुस्लिम इंजीनियर लड़के से शादी की थी। जाहिर है लड़की के परिवार को यह पसंद नहीं आया। लड़की के पिता ने थाने में लड़की की गुमशुदी की रिपोर्ट लिखा दी। परिणाम यह हुआ की पुलिस उस दम्पति को परेशान करने लगी। हालांकि लड़की और लड़का दोनों बालिग़ थे। उन्होंने कोर्ट मैरिज की थी। उनके पास शादी का प्रमाण पत्र था। फिर भी पुलिसवाले उन्हें परेशान कर रहे थे। उन्हें बयान देने के लिए थाने बुला रहे थे। उन्हें धमकी दे रहे थे। लड़की को कह रहे थे कि वह लड़के के खिलाफ मामला दर्ज करेंगे। पुलिस वाले उसे लव जिहाद की नजर से देख रहे थे। उनका मानना था कि मुस्लिम लड़के ने हिन्दू लड़की को बहला फुसलाकर शादी की है। इससे परेशान होकर दम्पति ने शीर्ष कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

उच्चतम न्यायालय ने कहा कि दो वयस्क यदि विवाह के लिए राजी होते हैं तो पुलिस उनसे कोई सवाल नहीं कर सकती। न ही यह कह सकती है कि उन्होंने अपने माता-पिता, परिवार या कुटुंब से इसकी अनुमति नहीं ली थी। अदालत ने कहा कि इस मामले में वयस्कों की रजामंदी सर्वोपरि है। विवाह करने का अधिकार या इच्छा किसी वर्ग, सम्मान या सामूहिक सोच की अवधारणा के अधीन नहीं है।

अदालत ने कहा कि जब उन्होंने विवाह का प्रमाण पत्र दिखा दिया था तो पुलिस वालों को केस बंद कर देना चाहिए था। पीठ ने भीमराव आंबेडकर की पुस्तक – जाति का विनाश  - से लिए शब्दों के साथ निर्णय का समापन किया –“मुझे विश्वास है कि असली उपाय अंतर धार्मिक विवाह है। रक्त का मिलन अकेले ही परिजनों और स्वजनों के होने का एहसास पैदा कर सकता है, और जब तक यह स्वजन की भावना, दयालु होने के लिए, सर्वोपरि नहीं हो जाती है, अलगाववादी भावना – जाति द्वारा बनाया गया पराया होने का एहसास खत्म नहीं होगा। असली उपाय जाति तोड़कर अंतर-विवाह है। बाकी कुछ भी जाति विनाश के रूप में काम नहीं करेगा।”

हमारे समाज में इंसानियत की भावना बढ़े। जाति और धर्म की दीवारें ध्वस्त हों इसके लिए प्रेम के बारे में आज हमें अपनी परम्परावादी सोच बदलने की जरूरत है। जाति और धर्म के बन्धनों से बाहर आने की जरूरत है। अगर हमारे बालिग़ बच्चे सोच-समझ कर प्रेम करते हैं। अपनी खुशियाँ तलाशते हैं तो समझदारी इसी में है कि उनकी ख़ुशी में ही अपनी ख़ुशी समझें। उनकी खुशियों में रोड़े न बने। सोच लें उन्होंने प्रेम ही तो किया कोई गुनाह तो नहीं किया।

(लेखक सफाई कर्मचारी आन्दोलन से जुड़े हैं। विचार निजी हैं।)

Love
Love Marriage
love and crime
Love vs Society
patriarchal society
Caste vs Love
Religion vs Love

Related Stories

क्या समाज और मीडिया में स्त्री-पुरुष की उम्र को लेकर दोहरी मानसिकता न्याय संगत है?

इंडियन मैचमेकिंग पर सवाल कीजिए लेकिन अपने गिरेबान में भी झांक लीजिए!

नज़रिया : बलात्कार महिला की नहीं पुरुष की समस्या है

अटेंशन प्लीज़!, वह सिर्फ़ देखा जाना नहीं, सुना जाना चाहती है

…अंधविश्वास का अंधेरा


बाकी खबरें

  • सोनिया यादव
    समलैंगिक साथ रहने के लिए 'आज़ाद’, केरल हाई कोर्ट का फैसला एक मिसाल
    02 Jun 2022
    साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के बाद भी एलजीबीटी कम्युनिटी के लोग देश में भेदभाव का सामना करते हैं, उन्हें एॉब्नार्मल माना जाता है। ऐसे में एक लेस्बियन कपल को एक साथ रहने की अनुमति…
  • समृद्धि साकुनिया
    कैसे चक्रवात 'असानी' ने बरपाया कहर और सालाना बाढ़ ने क्यों तबाह किया असम को
    02 Jun 2022
    'असानी' चक्रवात आने की संभावना आगामी मानसून में बतायी जा रही थी। लेकिन चक्रवात की वजह से खतरनाक किस्म की बाढ़ मानसून से पहले ही आ गयी। तकरीबन पांच लाख इस बाढ़ के शिकार बने। इनमें हरेक पांचवां पीड़ित एक…
  • बिजयानी मिश्रा
    2019 में हुआ हैदराबाद का एनकाउंटर और पुलिसिया ताक़त की मनमानी
    02 Jun 2022
    पुलिस एनकाउंटरों को रोकने के लिए हमें पुलिस द्वारा किए जाने वाले व्यवहार में बदलाव लाना होगा। इस तरह की हत्याएं न्याय और समता के अधिकार को ख़त्म कर सकती हैं और इनसे आपात ढंग से निपटने की ज़रूरत है।
  • रवि शंकर दुबे
    गुजरात: भाजपा के हुए हार्दिक पटेल… पाटीदार किसके होंगे?
    02 Jun 2022
    गुजरात में पाटीदार समाज के बड़े नेता हार्दिक पटेल ने भाजपा का दामन थाम लिया है। अब देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले चुनावों में पाटीदार किसका साथ देते हैं।
  • सरोजिनी बिष्ट
    उत्तर प्रदेश: "सरकार हमें नियुक्ति दे या मुक्ति दे"  इच्छामृत्यु की माँग करते हजारों बेरोजगार युवा
    02 Jun 2022
    "अब हमें नियुक्ति दो या मुक्ति दो " ऐसा कहने वाले ये आरक्षित वर्ग के वे 6800 अभ्यर्थी हैं जिनका नाम शिक्षक चयन सूची में आ चुका है, बस अब जरूरी है तो इतना कि इन्हे जिला अवंटित कर इनकी नियुक्ति कर दी…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License