NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
स्वास्थ्य
भारत
राजनीति
लॉकडाउन असंवैधानिक नहीं है तो सरकार का संवैधानिक कर्तव्य क्या है?  
सरकार का संवैधानिक कर्तव्य सामजिक और नैतिक कर्तव्य से अलग क़िस्म की बात है। सरकार के संवैधानिक कर्तव्य में सरकार को क़ानूनन भी ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है। कोरोना वायरस के संकट में सरकार का संवैधानिक कर्तव्य है कि वह लोगों को वह सुविधायें दे जो उसकी मूलभूत ज़रूरतों को पूरा करने के लिए ज]रूरी है।
अजय कुमार
20 Apr 2020
लॉकडाउन

नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट के तहत देश भर में लॉकडाउन लगाया गया है। जरूरी सामानों के खरीद बिक्री के सिवाय किसी भी तरह की आवाजाही पर पूरी तरह से रोक लगा दिया गया है। ठीक इसी तरह साल 1867 के एपिडेमिक एक्ट का इस्तेमाल कर कई राज्यों ने भी कोरोना वायरस से लड़ने के लिए पूरी तरह से तालाबंदी की है। इस तालाबंदी की वजह से बहुत ने जीविका के साधन को गंवा दिया है।  

इसलिए नागरिकों के मूल अधिकार से जुड़े सवाल भी उठ रहे हैं। पहली नजर में सोचने पर लगता है कि कोरोना एक तरह की आपदा है, जिससे लड़ने के लिए सबकी भागीदारी की जरूरत है। अगर नागरिकों के मूल अधिकार का हनन होता भी हो तो 'इसे कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है' वाली कहावत मानकर अपना लेना चाहिए। फिर भी एक बार सिलसिलेवार तरीके से उन पहलुओं को भी समझने की कोशिश करते हैं जो लॉकडाउन की वजह से  संवैधानिक सवाल बनकर खड़ा हो रहा है। शायद कुछ निकलकर आए।  

भारत में डिजास्टर मैनजेमेंट एक्ट और एपिडेमिक एक्ट जैसे कानून हैं। जो आपदा से बचाव के लिए बिना किसी भेदभाव के निष्पक्ष तरीके से सभी लोगों पर लागू होते हैं। साथ में कार्यकालिका को बड़े स्तर पर पावर देते हैं कि आपदा से लड़ने के लिए कुछ भी करे। लेकिन कानून को लागू करवा देना ही सबकुछ नहीं होता है। यह भी कानून का जरूरी हिस्सा होता है कि कानून का प्रभाव क्या पड़ रहा है?

समानता की बहुत सारी बहसों से एक सिद्धांत यह भी निकल कर आया कि ऐसा कानून नहीं बनाया जाएगा जो सब पर बिना किसी भेदभाव के लागू होने के बावजूद भी असर ऐसा डालता हो जिसमें बहुत बड़े समुदाय पर भेदभाव साफ-साफ़ दिखता हो। जैसे कोरोना के मामले में दिख रहा है। कुछ मुठ्ठी भर लोगों के सिवाय भारत का बहुत बड़ा समूह वर्क फ्रॉम होम नहीं कर सकता है। उस की जीविका के साधन ने उसका साथ छोड़ दिया है। उसे अपनी रोजाना की जिंदगी चलाने में परेशानी हो रही है।  

संविधान के अनुच्छेद 14 की भाषा समझिये। अनुच्छेद 14 कहता है कि 'भारत के राज्य में किसी भी व्यक्ति को विधि के समक्ष समता से या विधियों के समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा ' विधियों के समान संरक्षण का मतलब है कि ऐसा कानून नहीं लागू हो जिससे सब पर अलग-अलग प्रभाव पड़े।  

समानता के अधिकार वाले अनुच्छेदों में इसके कुछ अपवाद भी हैं। लेकिन अपवाद का मकसद यह है कि ऐसा भेदभाव किया जाए जिसका असर समान हो। लेकिन लॉकडाउन का असर सब पर बराबर नहीं है। यहाँ पर साफ़ तौर पर क्लास का अंतर दिख जा रहा है। अमीर इससे निपट ले रहे हैं लेकिन गरीबों को परेशानी हो रही हो। यानी लॉकडाउन का असर भेदभाव से भरा हुआ है।  

संविधान का अनुच्छेद 21 गरिमापूर्ण जीवन जीने का अधिकार देता है। सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार कहा है कि गरिमा पूर्ण जीवन जीने का अधिकार का मतलब नहीं है कि लोगों को जानवरों की  तरह समझा जाए। जैसे कोरोना वायरस की लड़ाई में देखने को मिल रहा है झुंड में इकठ्ठा कर प्रवासी मजदूरों पर केमिकल का छिड़काव कर दिया गया। क्वारंटाइन के नाम पर स्कूलों में लोगों को जानवरों की तरह ठूंस कर रखा जा रहा है। खाने को लेकर दंगे तक की खबर आ रही है।  जेब में पैसे नहीं है कि लोग अपने घर पर बात कर पाए। ऐसी तमाम हाड़ कंपा देने वाली ख़बरें संविधान के अनुच्छेद 21 से सवाल-जवाब कर रही हैं।  

देश के जाने-माने कानून के स्कॉलर गौतम भाटिया हिंदुस्तान टाइम्स में लिखते हैं कि विश्व स्वास्थ्य संगठन से लेकर बहुत सारे विषेशज्ञों का कहना है कि लॉकडाउन जरूरी है। लोकहित को ध्यान रखकर ही यह कदम उठाया गया है इसलिए भले ही लॉकडाउन की वजह से कुछ संवैधानिक सवाल खड़े होते हैं लेकिन यह कहना गलत होगा कि लॉकडाउन असंवैधानिक है।

सरकार को पूरा हक़ है कि वह कोरोना से सुरक्षा के लिए जरूरी कदम उठाये। लेकिन हम यह भी देख रहे हैं कि कोरोना से लड़ने में सबकी सहभागिता एक जैसी नहीं है। भारत के एक बहुत बड़े हिस्से को जरूरत से ज्यादा बोझ सहन करना पड़ रहा है। इसलिए भले ही लॉकडाउन का फैसला भले ही असंवैधनिक न हो लेकिन सरकार जितनी मदद कर रही है, उससे अधिक मदद की जरूरत है।  यह सरकार का संवैधानिक कर्तव्य है।  

गौतम भाटिया आगे लिखते हैं कि सरकार का संवैधानिक कर्तव्य सरकार के सामजिक और नैतिक कर्तव्य से अलग किस्म की बात है। सरकार के संवैधानिक कर्त्तव्य में सरकार को कानूनन भी जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। कोरोना वायरस के संकट में सरकार का संवैधानिक कर्तव्य है कि वह लोगों को वह सुविधायें दे जो उसके मूलभूत जरूरतों को पूरा करने के लिए जरूरी है। जैसे ब्रिटेन में रोजाना के कामगारों को उनके रोजाना की कमाई का अस्सी फीसदी पैसा दिया जा रहा है। ऐसे बेसिक उपायों की जरूरत भारत में भी है, जिस तरफ बिल्कुल ध्यान नहीं दिया जा रहा है।  

डिजास्टर मैनजमेंट और एपिडेमिक एक्ट से महामारी रोकने के लिए कुछ भी करने की शक्ति कार्यपालिका को मिल जाती है। विधायिका यानी की संसद ठप्प है। इसलिए न्यायपालिका यानि की सुप्रीम कोर्ट की जिम्मेदारी बनती है कि जिनकी जिंदगियां लॉकडाउन की वजह से तंगहाली में गुजर रही हैं, उनकी उचित मदद करने के लिए हर संभव कोशिश करती रहे।

Constitution of India
GOVERNMENT OF INDIA
Lockdown
Coronavirus
Migrant workers
migration
Coronavirus Epidemic
Lockdown crisis
Corona Crisis
National Disaster Management Act

Related Stories

कोरोना अपडेट: देश में पिछले 24 घंटों में 2,745 नए मामले, 6 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: देश में आज फिर कोरोना के मामलों में क़रीब 27 फीसदी की बढ़ोतरी

कोरोना अपडेट: देश में कोरोना के घटते मामलों के बीच बढ़ रहा ओमिक्रॉन के सब स्ट्रेन BA.4, BA.5 का ख़तरा 

कोरोना अपडेट: देश में ओमिक्रॉन वैरिएंट के सब स्ट्रेन BA.4 और BA.5 का एक-एक मामला सामने आया

कोरोना अपडेट: देश में फिर से हो रही कोरोना के मामले बढ़ोतरी 

कोविड-19 महामारी स्वास्थ्य देखभाल के क्षेत्र में दुनिया का नज़रिया नहीं बदल पाई

कोरोना अपडेट: अभी नहीं चौथी लहर की संभावना, फिर भी सावधानी बरतने की ज़रूरत

कोरोना अपडेट: दुनियाभर के कई देशों में अब भी क़हर बरपा रहा कोरोना 

कोरोना अपडेट: देश में एक्टिव मामलों की संख्या 20 हज़ार के क़रीब पहुंची 

देश में कोरोना ने फिर पकड़ी रफ़्तार, PM मोदी आज मुख्यमंत्रियों संग लेंगे बैठक


बाकी खबरें

  • सोनिया यादव
    समलैंगिक साथ रहने के लिए 'आज़ाद’, केरल हाई कोर्ट का फैसला एक मिसाल
    02 Jun 2022
    साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के बाद भी एलजीबीटी कम्युनिटी के लोग देश में भेदभाव का सामना करते हैं, उन्हें एॉब्नार्मल माना जाता है। ऐसे में एक लेस्बियन कपल को एक साथ रहने की अनुमति…
  • समृद्धि साकुनिया
    कैसे चक्रवात 'असानी' ने बरपाया कहर और सालाना बाढ़ ने क्यों तबाह किया असम को
    02 Jun 2022
    'असानी' चक्रवात आने की संभावना आगामी मानसून में बतायी जा रही थी। लेकिन चक्रवात की वजह से खतरनाक किस्म की बाढ़ मानसून से पहले ही आ गयी। तकरीबन पांच लाख इस बाढ़ के शिकार बने। इनमें हरेक पांचवां पीड़ित एक…
  • बिजयानी मिश्रा
    2019 में हुआ हैदराबाद का एनकाउंटर और पुलिसिया ताक़त की मनमानी
    02 Jun 2022
    पुलिस एनकाउंटरों को रोकने के लिए हमें पुलिस द्वारा किए जाने वाले व्यवहार में बदलाव लाना होगा। इस तरह की हत्याएं न्याय और समता के अधिकार को ख़त्म कर सकती हैं और इनसे आपात ढंग से निपटने की ज़रूरत है।
  • रवि शंकर दुबे
    गुजरात: भाजपा के हुए हार्दिक पटेल… पाटीदार किसके होंगे?
    02 Jun 2022
    गुजरात में पाटीदार समाज के बड़े नेता हार्दिक पटेल ने भाजपा का दामन थाम लिया है। अब देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले चुनावों में पाटीदार किसका साथ देते हैं।
  • सरोजिनी बिष्ट
    उत्तर प्रदेश: "सरकार हमें नियुक्ति दे या मुक्ति दे"  इच्छामृत्यु की माँग करते हजारों बेरोजगार युवा
    02 Jun 2022
    "अब हमें नियुक्ति दो या मुक्ति दो " ऐसा कहने वाले ये आरक्षित वर्ग के वे 6800 अभ्यर्थी हैं जिनका नाम शिक्षक चयन सूची में आ चुका है, बस अब जरूरी है तो इतना कि इन्हे जिला अवंटित कर इनकी नियुक्ति कर दी…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License