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भारत
राजनीति
PMAY में बढ़ा हुआ आवंटन योजना की असफलता दिखाता है
एक अपारदर्शी, अपर्याप्त और गलत लक्ष्य जैसी दिक्कतें इस योजना के साथ जुड़ी हुई हैं।
एविता दास
04 Mar 2020
PMAY

पिछले बारह महीनों में अगर सरकार के किसी मंत्री को सबसे ज़्यादा निशाना बनाया गया है, तो वो वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण हैं। इसकी मुख्य वजह अर्थव्यवस्था पर दिए गए उनके अस्पष्ट बयान रहे हैं।

सीतारमण और उनके समर्थकों को उम्मीद थी कि इस साल के बजट से निवेशकों की उम्मीद और भावनाओं को पर लगेंगे। ''इनकम टैक्स स्लैब'' में दी गई ढील एक ऐसा ही एक प्रोत्साहन था। इसके ज़रिये आख़िरी वक़्त में सबकुछ ठीक जताने की कोशिश की गई।

पर ''शहरी आवास'' एक ऐसा क्षेत्र रहा, जिस पर न तो मीडिया का ध्यान गया, न ही 2020-21 के लिए दिए गए बजट भाषण में इसका ज़िक्र हुआ। नरेंद्र मोदी ने सत्ता में आने के बाद ''प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) मिशन (PMAY-U)'', AMRUT, स्मार्ट सिटी स्कीम और स्वच्छ भारत मिशन जैसी कई योजनाएं शहरी क्षेत्रों के लिए शुरू की थीं।

मौजूदा सरकार के पास शहरी भारत में एक बड़ा समर्थक वर्ग है। यह योजनाएं बीजेपी के ''सबका साथ सबका विकास'' नारे के मूल में थीं। बीजेपी शहरी क्षेत्रों में पसंद की जाने वाली पार्टी है। इन योजनाओं से  पार्टी शहरी भारत को विकास की दमकती-चमकती तस्वीर के तौर पर पेश करना चाहती थी। लेकिन ऐसा लगता है कि आवास और शहरी विकास मंत्रालय को न तो कोई मेमो मिला और न ही इसे ''सबका साथ सबका विकास'' को लागू करने के तरीके की कोई जानकारी है।

बजट में आवास एवम् शहरी विकास मंत्रालय के लिए आवंटित धन में 4.17 फ़ीसदी की बढ़ोत्तरी की गई। कुल मिलाकर मंत्रालय को 50,036 करोड़ रुपये मिले। पहली नज़र में यह प्रोत्साहन दिखाई पड़ता है। लेकिन जैसे ही हम गहराई में जाना शुरू करते हैं, तब पाते हैं कि चीजें इतनी भी ठीक नहीं हैं। ख़ासकर सामाजिक योजनाओं के मामल में।

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प्रधानमंत्री आवास योजना (A)

PMAY को 2015 के जून महीने में शुरू किया गया था। इसके ज़रिये 2022 तक शहरी क्षेत्रों में सबके लिए आवास की व्यवस्था करना था। इस साल योजना के लिए 8,000 करोड़ रुपये का प्रावधान हुआ है, जबकि पिछले साल यह आंकड़ा 6,853.26 करोड़ रुपये था। लेकिन असली कहानी आंकड़ों से आगे की है। सरकार का दावा है कि योजना की शुरुआत से अब तक 1.03 करोड़ घरों का आवंटन हो चुका है। हालांकि अभी तक 32.08 लाख घर ही बनाकर ज़रूरतमंदों को सौंपे गए हैं।

देशभर में महज़ 7 साल में लाखों घर बना देने का विचार एक सामाजिक योजना के तौर पर काफी आकर्षित करता है। लेकिन इसकी अपनी आलोचनाएं भी हैं। विश्लेषकों का कमाना है कि ''मिशन मोड'' में काम करते वक्त दूसरे सामाजिक आयामों को नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है। उदाहरण के लिए, उद्योग क्षेत्र में चल रहे तनाव और कृषि संकट की वजह से लगातार शहरी क्षेत्रों में प्रवास होता है। इन इलाकों में आवास की मांग कभी कम ही नहीं होती।

2001 की जनगणना के मुताबिक़ 1.02 अरब लोगों में करीब 5 करोड़ 20 लाख लोगों ने ग्रामीण से शहरी इलाकों में प्रवास किया।

2011 में इन लोगों का आंकड़ा बढ़कर 7 करोड़ 80 लाख पहुंच गया। मतलब करीब 51 फ़ीसदी की बढ़ोत्तरी। गांवो से शहर में आने वाली प्रवासी आबादी का हिस्सा 2001 में 5.06 फ़ीसदी था, जो 2011 में बढ़कर 6.5 फ़ीसदी पहुंच गया। PMAY इस समस्या से कैसे निपटेगी? हम नहीं जानते, क्योंकि इस बारे में PMAY कोई जानकारी नहीं देती।

PMAY के लिए हुआ बजट आवंटन चुनौतियों से निपटने के बजाए, मौजूदा परेशानी से निपटने (जो तारीफ के लायक है) वाले स्तर पर महसूस होता है। सवाल यह भी है कि सरकार 1.12 करोड़ घर बनाने के आंकड़े पर कैसे पहुंची। PMAY की योजनागत् खामियां दिखाती हैं कि इसमें आंकड़ों को दिखाने पर ज़्यादा जोर है। न कि किसी दीर्घावधि समाधान पर ध्यान है।

2017 के सितंबर में सरकार ने किफ़ायती आवास बनाने के लिए 8 पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP) मॉडल लॉन्च किए। इसके ज़रिए निजी खिलाड़ियों के लिए दरवाजे खोले गए। इसका नतीज़ा यह हुआ कि अब PMAY-U की गैर-बजटीय धन पर बड़ी निर्भरता हो गई, जबकि यह धन आने वाला नहीं है। एक आम PPP मॉडल की तरह PMAY-U भी निजी निवेशकों को खींचने में नाकामयाब रही है, क्योंकि इसमें उन्हें बहुत मुनाफ़ा नज़र नहीं आता। 

2018 में आवास एवम् शहरी विकास मंत्रालय ने लोकसभा में बताया कि अब तक महज़ 2.1 लाख यूनिट घरों का प्रावधान किया गया है, जिसमें से 67,000 पूरे हुए हैं। इनमें भी केवल 43,574 घरों में लोग रहने के लिए पहुंचे है। इसलिए PMAY-U की शुरूआत धीमी रही और अब भी चीजें वैसी ही हैं।

फिर खुद ''आवंटित धन'' एक समस्या है। यह बहुत कम ही होता है कि किसी सामाजिक योजना के लिए बढ़ाई गई धनराशि पर हमें शिकायत हो। लेकिन PMAY को अपवाद मानना होगा। यह 2020 चल रहा है, जो योजना का पांचवा साल है। अगर पुराने सालों में दिए गए पैसे से काम पूरा हुआ होता, तो अब तक इसके लिए आवंटित किए जाने वाले पैसे की मात्रा ढलान पर होती। क्योंकि हम अपने लक्ष्य की ओर पहुंच रहे होते। संक्षिप्त में कहें तो अबतक ज़्यादातर काम हो जाना चाहिए था। लेकिन फिलहाल सरकार एक तिहाई काम ही कर पाई है।

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32 लाख घर बनाने में पांच साल लग गए। अगले दो साल में सरकार 80 लाख घर कैसे बनाएगी? इन बातों को ध्यान में रखते हुए कहा जा सकता है कि इसके लिए बढ़ा हुआ आवंटन चिंता का विषय है, जिस पर कई सवाल खड़े होते हैं।

अबतक राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से जो प्रस्ताव मिले हैं, उनके मुताबिक़ इस योजना के तहत 1,03,22,560 घर बनाए जाने का प्रावधान हुआ है। इनमें से 60,50,991 घरों का निर्माण अलग-अलग चरण में है। वहीं 32,07,573 घर बन चुके हैं, जिन्हें लोगों को दिया जा चुका है।

इन 32 लाख घरों के लिए PMAY के ''चार हिस्सों'' से संबंधित कोई सार्वजनिक आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। PMAY के यह चार हिस्से (योजनाएं) हैं-

BLC (बेनेफिशियरी लेड इंडीविजुअल हाउस कंसट्रक्शन)

CLSS (क्रेडिट लिंकड सब्सिडी स्कीम)

AHP (अफॉर्डेबल हाउसिंग इन पार्टनरशिप विथ पब्लिक ऑर प्राइवेट सेक्टर

ISSR (इन-सिटु स्लम रिडिवेल्पमेंट)

इस बात की भी कोई जानकारी नहीं है कि शहर के किस्से हिस्से में यह घर बनाए गए हैं।

बजट के बारे में एक और दिलचस्प चीज है। यह जानबूझकर ISSR,BLC,AHP के तहत हुए आवंटन को छुपाता है, जो केंद्र प्रायोजित योजनाएं हैं।

आवंटन सिर्फ CLSS को मिला है। यह भी एक केंद्रीय क्षेत्र की योजना है। दूसरे शब्दों में कहें तो पैसे को केंद्र सरकार ने जारी किया और प्रोजेक्ट का काम भी केंद्र सरकार ने ही अंजाम दिया।

क्रेडिट-लिंक सब्सिडी मुख्य एजेंडे पर रही है, लेकिन केंद्र इसमें भी नाकामयाब रहा है।

केवल 8,02,732 परिवारों को ही CLSS सब्सिडी का फायदा मिला है। इसके लिए 18,358 करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं। केंद्र सभी लोगों को पैसे का आवंटन करने में नाकामयाब रहा है: अब बजट में ब्याज सब्सिडी के लिए महज़ 5,300 करोड़ रुपये का प्रावधान है। केंद्र बचे हुए पैसे के आवंटन और दूसरे संसाधनों से सब्सिडी का पैसा चुकाने की कोशिश कर रहा है। बेहद कम बजटीय आवंटन के चलते भी सब्सिडी देने में देर हो रही है। यह चिंता का विषय है।

कागजों पर PMAY एक बहुत शानदार योजना नज़र आती है। लेकिन खर्चों और कार्यान्वयन से जुड़ी जानकारी के आभाव, क्षेत्र विशेष पर आधारित मांग को ध्यान में रखते हुए फैसलों में आपरदर्शिता और नतीज़ों तक पहुंचने में होने वाली लेट-लतीफी जैसी कई समस्याएं इस योजना का हिस्सा हैं।

इसलिए बजट आवंटन का बढ़ाया जाना वैसा ही है, जैसे गैंगरीन पर बैंडऐड लगाया जाना।

लेखक शहरी शोधार्थी हैं, जो जाति और आवास के मुद्दे पर काम करती हैं। वे ''नेशनल अलायंस पीपल्स मूवमेंट्स एंड नेशनल कोलिशन फॉर इंक्लूशिव एंड सस्टेनेबिल अर्बनाइज़ेशन'' से जुड़ी रही हैं। यह उनके निजी विचार हैं।

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