हिंदुस्तान के बहुत सारे आम लोगों को जब पेट्रोल डीजल का दाम बढ़ता है, तब पता चलता है कि सरकार उनसे भी टैक्स वसूलती है। अबकी बार टैक्स वाली इस बात पर जब खूब बहस होने लगी तब जाकर बहुत लोगों को यह पता चला कि जीएसटी नाम की भी कोई चीज है और चौक-चौराहे, चाय, पनवाड़ी की दुकान से होते हुए इनाम लोगों तक यह बात पहुंच चुकी है कि जब जीएसटी लगेगी तो पेट्रोल और डीजल की कीमत कम हो जाएगी।
लेकिन असली सवाल तो यह है कि लोगों को मिले इस ब्रह्मज्ञान को सरकार क्यों नहीं अपना रही है? तो चलिए इस पर चर्चा करते हैं कि सरकार डीजल पेट्रोल को जीएसटी के अंदर क्यों नहीं ला रही है?
इस समय देशभर में चुनावी माहौल की बयार बह रही है। इसलिए पिछले 20 दिनों से देश में पेट्रोल और डीजल के दाम न बढ़े हैं न घटे हैं। पिछली बार 27 फरवरी को कीमतों में बढ़ोतरी हुई थी। उसकी वजह से देशभर के कई इलाकों में कीमतें 100 रुपए के आसपास पहुंच गए थी। लेकिन इसी दौरान कच्चे तेल की कीमतों में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। जानकारों की माने तो जस का तस कीमतें रखने की वजह से तेल बेचने वाली कंपनियों की शिकायत है कि उन्हें प्रति लीटर पेट्रोल पर 4 रुपए और डीजल पर 2 रुपए का घाटा सहना पड़ रहा है।
इस खबरिया जानकारी के बाद मूल मुद्दे पर आते हैं कि पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के अंतर्गत लाने से सरकार क्यों कतरा रही है?
भारत के संविधान के मुताबिक एक जीएसटी काउंसिल होगी। उस जीएसटी काउंसिल में भारत के केंद्रीय वित्त मंत्री के साथ सभी राज्यों के वित्त मंत्री मिलकर यह फैसला करेंगे कि किन वस्तुओं और सेवाओं पर जीएसटी लगानी है या नहीं। इसी आधार अनुच्छेद 275 (A) में लिखा गया है कि जीएसटी काउंसिल जब पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के अंतर्गत लाने का फैसला कर लेगी तब पेट्रोल और डीजल की कीमतों पर लगने वाला कर जीएसटी के अंतर्गत निर्धारित होने लगेगा।
जहां तक इस जीएसटी काउंसिल की बात है तो वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने संसद के पटल पर यह कहा है कि किसी भी राज्य ने पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के अंतर्गत लाने की मांग नहीं की है। यानी कि अभी तक सरे बाजार लोगों के बीच पेट्रोल और डीजल की कीमत बढ़ने की वजह से टैक्स और जीएसटी पर चर्चा हो रही है, लोग इस उम्मीद में बैठे हैं कि जीएसटी लगा देने पर पेट्रोल और डीजल की कीमत कम हो जाएगी। लेकिन हकीकत तो यह है कि न ही केंद्र सरकार और न ही राज्य की सरकारें चाहती हैं कि जीएसटी के अंतर्गत पेट्रोल और डीजल को भी रखा जाए।
आखिरकार ऐसा क्यों है? पेट्रोल और डीजल की खुदरा कीमतों में चार तरह का हिस्सा होता है। पहला हिस्सा होता है, बेस प्राइस का। यानी एक लीटर पेट्रोल की कीमत जिसका भुगतान दूसरे देशों से कच्चा तेल खरीदने और ट्रांसपोर्टेशन कॉस्ट के चलते करना पड़ता है। दूसरा हिस्सा केंद्र सरकार की एक्साइज ड्यूटी यानी उत्पादन शुल्क का होता है। तीसरा हिस्सा राज्य द्वारा पेट्रोल और डीजल पर लगने वाली वैल्यू ऐडेड टैक्स का होता है। जो अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग होता है। और चौथा हिस्सा डीलर का कमीशन होता है।
इस आधार पर 1 मार्च को दिल्ली के पेट्रोल की कीमत को आधार बनाकर पूरे मामले को समझते हैं। दिल्ली में 1 मार्च को पेट्रोल की बेस प्राइस तकरीबन 33 रुपए थी, इस पर केंद्र सरकार का 32 रुपए उत्पादन शुल्क लगा था, औसतन तकरीबन 3 रुपए डीलर का कमीशन बनता था और राज्य ने तकरीबन 21 रुपए का वैल्यू ऐडेड टैक्स लगाया था। इस तरह से 1 मार्च को दिल्ली में पेट्रोल की कीमत तकरीबन 91 रुपए प्रति लीटर थी। यानी केंद्र सरकार को टैक्स के तौर पर 33 रुपए और राज्य सरकार को टैक्स के तौर पर तकरीबन 21 रुपए मिल रहे हैं।
अब अगर जीएसटी के अंतर्गत पेट्रोल को रख दिया जाए और पेट्रोल को जीएसटी स्लैब के 28 फ़ीसदी की सबसे ऊंची कर की दर वाले हिस्से में रखा जाए तो जीएसटी के तहत तकरीबन 33 रुपए बेस प्राइस पेट्रोल पर सरकार को जीएसटी के तौर पर महज तकरीबन 10 रुपए का टैक्स मिल पाएगा। बेस प्राइस, डीलर कमीशन और जीएसटी की दर सब को जोड़कर पेट्रोल की प्रति लीटर खुदरा कीमत महज 47 रुपए रुपए बनेगी। यानी लोगों को तो बहुत बड़ा फायदा पहुंचेगा लेकिन सरकार को टैक्स के तौर पर मिलने वाली राशि पर बहुत बड़ा घाटा सहना पड़ेगा।
जैसा कि जीएसटी की अवधारणा है कि पूरे देश में एक ही टैक्स लगेगा। टैक्स का बंटवारा केंद्र और राज्यों के बीच किया जाएगा। तो जरा सोचिए कि अगर जीएसटी के तौर पर महज 10 रुपए मिलेंगे तो केंद्र और राज्य सरकार को कितना बड़ा नुकसान सहना पड़ेगा।
जब जीएसटी नहीं है, तब पेट्रोल की कीमत पर केंद्र सरकार उत्पाद शुल्क के तौर पर तकरीबन 32 रुपए वसूल रही है। राज्य सरकार वैल्यू ऐडेड टैक्स के तौर पर तकरीबन 21 रुपए वसूल रही है।
15वें वित्त आयोग के मुताबिक केंद्र सरकार को वसूले गए कर में से 41 फ़ीसदी हिस्सा राज्यों को देने का नियम है। राज्य सरकार को केंद्र सरकार की तरफ से मिलने वाली है राशि जोड़ ली जाए फिर भी यह जीएसटी लगने के बाद मिलने वाली राशि से बहुत ज्यादा है।
इसके अलावा केंद्र सरकार पेट्रोल और डीजल पर टैक्स के तौर पर उत्पाद शुल्क में ही सेस भी वसूलती है। साल 2021- 22 के बजट के अनुमान के मुताबिक केंद्र सरकार को पेट्रोल और डीजल की कीमत से तकरीबन 1.98 लाख करोड़ रुपए का उत्पाद शुल्क की वसूली का अनुमान है। जिसमें से तकरीबन 0.10 लाख करोड़ रुपए की वसूली सेस के तौर पर होगी।
लेकिन केंद्र सरकार सेस के तौर पर जिसकी वसूली करती है, उसका बंटवारा राज्यों के साथ नहीं होता है। इसका मतलब है कि अगर जीएसटी लगता है तो केंद्र सरकार को पेट्रोल और डीजल पर मिलने वाले सेस से भी हाथ धोना पड़ेगा।
इस तरह से देखा जाए तो बिना जीएसटी से केंद्र और राज्य सरकार को पेट्रोल और डीजल की कीमत पर जिस तरह की कमाई हो रही है उससे बहुत कम कमाई जीएसटी लगने के बाद होगी। भले जनता को इसका फायदा मिले लेकिन पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के अंतर्गत लाने से केवल केंद्र सरकार का ही नहीं बल्कि इसमें राज्य सरकार का भी घटा है।
पेट्रोल और डीजल जीएसटी के अंदर आएगा या नहीं इसका फैसला केंद्र और राज्य सरकार को मिलकर करने का नियम है। मतलब भले सरे बाजार यह चर्चा होती रहे कि जीएसटी लगने के बाद डीजल और पेट्रोल की कीमतें कम हो जाएंगे लेकिन हकीकत में जितना फायदा केंद्र और राज्य सरकार को पेट्रोल और डीजल की मौजूदा कीमतों की वजह से हो रहा है, उन फायदों को यूं ही नुकसान में बदल देने वाला नियम हाल फिलहाल तो कभी बनता नहीं दिख रहा है।