NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
मज़दूर-किसान
भारत
राजनीति
किसान आंदोलन के समर्थन में एनडीए से क्यों अलग हुई आरएलपी? 
कृषि कानूनों को लेकर किसानों विशेषकर जाट वर्ग में काफी नाराज़गी है, ऐसे में माना जा रहा है कि जाटों के बीच अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए हनुमान बेनीवाल को एनडीए से अलग होने की घोषणा करनी पड़ी।
सोनिया यादव
28 Dec 2020
किसान आंदोलन के समर्थन में एनडीए से क्यों अलग हुई आरएलपी? 

सड़क से सोशल मीडिया तक किसान आंदोलन अपने चरम पर है, तो वहीं शिरोमणि अकाली दल के बाद अब राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (आरएलपी) भी नए कृषि कानूनों के विरोध में भाजपा नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन यानी एनडीए से अलग हो गई है। 2019 आम चुनावों के बाद से आरएलपी एनडीए का साथ छोड़ने वाला तीसरा घटक दल है।

बता दें कि आरएलपी संयोजक हनुमान बेनीवाल एक हफ़्ते पहले भी सरकार को इस संबंध में अल्टीमेटम दे चुके थे, लेकिन सरकार की ओर से कोई रुझान नहीं मिलने पर उन्होंने शनिवार 26 दिसंबर को राजस्थान-हरियाणा बॉर्डर पर पहुंचकर विरोध करने और फिर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को छोड़ने की घोषणा कर दी।

आरएलपी एनडीए गठबंधन से अलग

पार्टी संयोजक और नागौर से सांसद हनुमान बेनीवाल ने केंद्र के तीनों कृषि कानूनों को किसानों के खिलाफ बताते हुए कहा, “भारत सरकार द्वारा लाए गए कृषि विरोधी कानूनों के कारण आज आरएलपी एनडीए गठबंधन से अलग होने की घोषणा करती है।”

बेनीवाल ने आगे कहा, “मैं एनडीए के साथ ‘फेविकोल’ से नहीं चिपका हुआ हूं। आज मैं खुद को एनडीए से अलग करता हूं।”

जनहित मामलों को उठाया, लेकिन कार्रवाई नहीं हुई: बेनीवील

बता दें कि बेनीवाल ने इससे पहले 19 दिसंबर को किसान आंदोलन के समर्थन में संसद की तीन समितियों, उद्योग संबंधी स्थायी समिति, याचिका समिति व पेट्रो‍लियम व गैस मंत्रालय की परामर्शदात्री समिति के सदस्य पद से त्यागपत्र देने की घोषणा की थी और कहा था कि वे 26 दिसंबर दो लाख किसानों के साथ दिल्ली की ओर कूच करेंगे।

तब बेनीवाल ने कहा था कि उन्होंने सदस्य के रूप में जनहित से जुड़े अनेक मामलों को उठाया, लेकिन उन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई, इसलिए वह किसान आंदोलन के समर्थन में और लोकहित के मुद्दों को लेकर संसद की तीन समितियों के सदस्य पद से इस्तीफ़ा दे रहे हैं।

बेनीवाल ने यह भी कहा था, “दिल्ली में सरकार को किसानों के विरोध को हल्के में नहीं लेना चाहिए। अगर आंदोलन पूरे देश में फैल गया तो बीजेपी को उस पर काबू पाना मुश्किल हो जाएगा।”

क्या बेनीवाल किसानों के आंदोलन को डैमेज करने गए थे?

हालांकि शनिवार, 26 दिसंबर को हनुमान बेनीवाल ने राजस्थान-हरियाणा सीमा पर अपने समर्थकों के साथ पहुंचकर किसान आंदोलन में थोड़ी हलचल तो पैदा कर दी लेकिन दो हफ़्ते से डटे किसानों से उनकी दूरी भी चर्चा में रही। बेनीवील का दावा था कि उनके साथ क़रीब एक लाख समर्थक आए हैं, लेकिन ऐसा दिखाई नहीं दिया।

दूसरी ओर, हनुमान बेनीवाल और उनके समर्थकों के वहां पहुंचने और अलग-थलग रहने को लेकर कई किसान संगठनों में भी नाराज़गी देखने को मिली और कुछ लोगों ने तो यहां तक कहना शुरू कर दिया कि ये लोग आंदोलन को 'ख़राब' करने के मक़सद से यहां आए हैं।

भारतीय किसान पार्टी के राजस्थान प्रदेश के अध्यक्ष सुभाष सिंह सोमरा ने मीडिया को बताया, “कृषि क़ानून किसानों के लिए डेथ वॉरंट है इसे वापस लेना ही होगा। बेनीवाल हों या कोई और, ये सिर्फ़ किसानों के आंदोलन को डैमेज करने के लिए यहां आ रहे हैं। इनका किसानों से कोई लेना-देना नहीं है और ये ज़्यादा दिन तक यहां रहेंगे भी नहीं। सिर्फ़ अपनी राजनीति चमकाने के मक़सद से आ रहे हैं और किसान इनके इरादों को समझता भी है।"

आरएलपी का बीजेपी से अलग होने के मायने क्या हैं?

गौरतलब है कि हनुमान बेनीवाल लंबे समय से वसुंधरा राजे के आलोचक रहे हैं और इसी कारण 2018 के विधानसभा चुनाव से पहले उन्होंने भाजपा छोड़कर आरएलपी बना ली थी। लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में आरएलपी और भाजपा फिर साथ आ गए और दोनों ने मिलकर चुनाव लड़ा। हनुमान बेनीवाल अपनी पार्टी यानी राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के इकलौते सांसद हैं और विधानसभा में उनके तीन विधायक हैं।

हालांकि हनुमान बेनीवाल एनडीए से अलग भले हो गए हैं लेकिन बीजेपी से उनका मोहभंग पूरी तरह से हो गया है, ऐसा अभी कहना मुश्किल है। जानकारों का मानना है कि बीजेपी जैसे बड़े दल का आरएलपी जैसी दो साल पुरानी पार्टी के साथ टूटे गठबंधन का असर फिलहाल तो नजर नहीं आ रहा। लेकिन आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनाव में गठबंधन टूटने का असर जरूर देखने को मिल सकता है।

गठबंधन टूटने का असर आगामी चुनावों में देखने को मिल सकता है

राजस्थान चुनावों पर दशकों से नज़र रखने वाली पत्रकार अमृता सिंह कहती हैं कि हनुमान बेनीवाल का जाट बहुल इलाकों खासकर नागौर, जोधपुर, बाड़मेर, जैसलमेर व बीकानेर जिलों में खासा प्रभाव है। जिसका असर आगे देखने को निश्चित ही मिल सकता है।

अमृता के अनुसार, बेनीवाल की जाट समाज के युवाओं के बीच अच्छी पकड़ है, जिसकी बदौलत बेनीवाल ने पिछले विधानसभा चुनाव में तीन सीटें जीतकर अपनी ताकत दिखाई थी। इसी ताकत के चलते लोकसभा चुनाव में भाजपा जैसी राष्ट्रीय पार्टी ने आरएलपी के साथ चुनावी गठबंधन किया, उसे एनडीए में शामिल किया। भाजपा ने नागौर सीट बेनीवाल के लिए छोड़ी, बदले में उन्होने आधा दर्जन जाट बहुल सीटों पर बीजेपी का प्रचार किया था। इस गठबंधन का दोनों को ही फायदा हुआ। लेकिन अब जब गठबंधन टूट गया है तो असर भी दोनों पार्टियों पर देखने को मिलेगा।

मजबूरी में एनडीए से अलग हुए बेनीवाल

राजस्थान की राजनीति को करीब से जानने वाले अजय जाखड़ कहते हैं, “लोकल स्तर पर देखें तो कृषि कानूनों को लेकर किसान विशेषकर जाट वर्ग में काफी नाराजगी है, बेनीवाल खुद को जाट नेता के रूप में प्रदर्शित करते हैं, ऐसे में जाटों के बीच अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए उन्हें मज़बूरी में पहले तो तीन संसदीय समितियों से इस्तीफा देना पड़ा और फिर एनडीए से अलग होने की घोषणा कर दी।”

बीजेपी द्वारा बेनीवील को मनाने का प्रयास नहीं किए जाने पर अजय का मानना है कि राज्य के शीर्ष बीजेपी नेता बेनीवाल से खुश नहीं थे। जिसकी वजह पिछले दिनों सम्पन्न हुए जिला परिषद का चुनाव है, जिसमें आरएलपी अपने गढ़ नागौर में ही कोई खास सफलता हासिल नहीं कर सकी। स्थानीय निकाय चुनाव में तो और भी बुरा हाल हुआ। इसी कारण बीजेपी नेतृत्व ने उन्हें मनाने में दिलचस्पी नहीं दिखाई।

हालांकि जाखड़ ये भी कहते हैं कि बेनीवाल की राजनीति को समझना इतना आसान नहीं है, वो सियासत के शतरंज में कोई भी चाल कभी भी चल सकते हैं। बेनीवाल जाट युवाओं पर अपने प्रभाव की बदौलत बीजेपी और कांग्रेस दोनों को नुकसान पहुंचा सकते हैं।

farmers protest
RLP
NDA
RLP-NDA
Rashtriya Loktantrik Party
Hanuman Beniwal
BJP
Narendra modi
Amit Shah
Farm bills 2020

Related Stories

किसानों और सत्ता-प्रतिष्ठान के बीच जंग जारी है

छोटे-मझोले किसानों पर लू की मार, प्रति क्विंटल गेंहू के लिए यूनियनों ने मांगा 500 रुपये बोनस

तमिलनाडु: छोटे बागानों के श्रमिकों को न्यूनतम मज़दूरी और कल्याणकारी योजनाओं से वंचित रखा जा रहा है

ज़रूरी है दलित आदिवासी मज़दूरों के हालात पर भी ग़ौर करना

मई दिवस: मज़दूर—किसान एकता का संदेश

ब्लैक राइस की खेती से तबाह चंदौली के किसानों के ज़ख़्म पर बार-बार क्यों नमक छिड़क रहे मोदी?

आख़िर किसानों की जायज़ मांगों के आगे झुकी शिवराज सरकार

किसान-आंदोलन के पुनर्जीवन की तैयारियां तेज़

ग्राउंड रिपोर्टः डीज़ल-पेट्रोल की महंगी डोज से मुश्किल में पूर्वांचल के किसानों की ज़िंदगी

सार्वजनिक संपदा को बचाने के लिए पूर्वांचल में दूसरे दिन भी सड़क पर उतरे श्रमिक और बैंक-बीमा कर्मचारी


बाकी खबरें

  • संदीपन तालुकदार
    वैज्ञानिकों ने कहा- धरती के 44% हिस्से को बायोडायवर्सिटी और इकोसिस्टम के की सुरक्षा के लिए संरक्षण की आवश्यकता है
    04 Jun 2022
    यह अध्ययन अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि दुनिया भर की सरकारें जैव विविधता संरक्षण के लिए अपने  लक्ष्य निर्धारित करना शुरू कर चुकी हैं, जो विशेषज्ञों को लगता है कि अगले दशक के लिए एजेंडा बनाएगा।
  • सोनिया यादव
    हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?
    04 Jun 2022
    17 साल की नाबालिग़ से कथित गैंगरेप का मामला हाई-प्रोफ़ाइल होने की वजह से प्रदेश में एक राजनीतिक विवाद का कारण बन गया है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    छत्तीसगढ़ : दो सूत्रीय मांगों को लेकर बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दिया
    04 Jun 2022
    राज्य में बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दे दिया है। दो दिन पहले इन कर्मियों के महासंघ की ओर से मांग न मानने पर सामूहिक इस्तीफ़े का ऐलान किया गया था।
  • bulldozer politics
    न्यूज़क्लिक टीम
    वे डरते हैं...तमाम गोला-बारूद पुलिस-फ़ौज और बुलडोज़र के बावजूद!
    04 Jun 2022
    बुलडोज़र क्या है? सत्ता का यंत्र… ताक़त का नशा, जो कुचल देता है ग़रीबों के आशियाने... और यह कोई यह ऐरा-गैरा बुलडोज़र नहीं यह हिंदुत्व फ़ासीवादी बुलडोज़र है, इस्लामोफ़ोबिया के मंत्र से यह चलता है……
  • आज का कार्टून
    कार्टून क्लिक: उनकी ‘शाखा’, उनके ‘पौधे’
    04 Jun 2022
    यूं तो आरएसएस पौधे नहीं ‘शाखा’ लगाता है, लेकिन उसके छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने एक करोड़ पौधे लगाने का ऐलान किया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License