NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
पाकिस्तान
सिद्धू क्यों पंजाब के इमरान ख़ान नहीं बन सकते?
सिद्धू को ईमानदार माना जाता है और पंजाबियों को उन पर गर्व है, लेकिन उन्होंने मतदाताओं को यह समझाने के लिए कड़ी मेहनत नहीं की है कि वे अपने दम पर व्यवस्था को बदल सकते हैं।
एजाज़ अशरफ़
25 Jun 2021
Translated by महेश कुमार
सिद्धू क्यों पंजाब के इमरान ख़ान नहीं बन सकते?

पूर्व टेस्ट क्रिकेटर इमरान ख़ान ने अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा को साकार बनाने के लिए पाकिस्तान में 1996 में तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी या पाकिस्तान मूवमेंट फॉर जस्टिस की शुरुआत की थी। इमरान ख़ान ने 1997 के चुनावों में दो निर्वाचन क्षेत्रों से नेशनल असेंबली का चुनाव लड़ा था, पाकिस्तान की असेंबली भारत की लोकसभा के समान है।

वे दोनों सीट पर चुनाव हार गए थे। पांच साल बाद, 2002 में, वे तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी से नेशनल असेंबली में प्रवेश करने वाले अकेले उम्मीदवार/सांसद थे। 2011 तक, ऐसा लगने लगा था कि ख़ान पाकिस्तानी राजनीति में एक छोटे से खिलाड़ी बन कर बर्बाद हो गए हैं, फिर उनका  देश का प्रधानमंत्री बनना तो बहुत ही दूर की बात थी।

संघर्ष के उन वर्षों में या दौर में, इमरान ख़ान की तत्कालीन पत्नी, जेमिमा ख़ान, राजनीति में मिल रही बार-बार विफलताओं से अक्सर निराश हो जाती थीं। ख़ान ने अपनी पुस्तक पाकिस्तान: ए पर्सनल हिस्ट्री में लिखा है: जेमिमा “मुझसे बार-बार पूछती थीं कि मैं कब तक बिना किसी खास सफलता के राजनीति करता रहूँगा, वह कौनसा वक़्त होगा जा  मैं यह तय करूंगा कि यह सब व्यर्थ है। लेकिन मैं जवाब नहीं दे पाया, सिर्फ इसलिए कि किसी ख़्वाब की कोई समय-सीमा नहीं होती है।"

ख़ान की इस कहानी में पूर्व भारतीय क्रिकेटर और कांग्रेस नेता नवजोत सिंह सिद्धू जिन्होंने पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के खिलाफ अपने विद्रोह की आवाज उठाने का फैसला किया है, के लिए दो महत्वपूर्ण सबक हैं। एक, कोई भी ऐसा ख़्वाब देखने वाला जिसका दावा है कि वह व्यवस्था को बदलना चाहता है, तो उसकी अपनी खुद की एक राजनीतिक पार्टी होनी चाहिए। दूसरा, यहां तक कि एक प्रसिद्ध क्रिकेटर जो विधायक या सांसद या मंत्री से अधिक कुछ बनने की इच्छा रखता है, उसे लोगों को व्यवस्था बदलने और शासन करने की अपनी क्षमता के बारे में विश्वास दिलाने के लिए लंबे समय तक, वर्षों तक अकेले दृढ़ होकर काम करने की जरूरत होती है।

सिद्धू पंजाब के इमरान ख़ान हैं। या वह, कम से कम, इमरान ख़ान बनना चाहते हैं।

सिद्धू कोई राष्ट्रीय क्रिकेट आइकन नहीं हैं, जैसा कि ख़ान के बारे में पाकिस्तान में या सचिन तेंदुलकर के बारे में भारत में कहा जाता है। फिर भी सिद्धू के पंजाब के लिए कई मायने हैं। कभी स्ट्रोक न लगाने वाले क्रिकेटर के रूप में पहचाने जाने वाले, सिद्धू ने छक्के मारने की कला में महारत हासिल करने के लिए अपनी बल्लेबाजी पर कड़ी मेहनत की थी। उनमें बदलाव भारत में केबल टेलीविजन के तेजी से विस्तार और एक दिवसीय क्रिकेट की बढ़ती लोकप्रियता के साथ हुआ। सिद्धू की फॉलोइंग बढ़ी।

पंजाब को सिद्धू की सफलता पर गर्व था, खासकर जब राज्य उग्रवाद की वजह से पूरी तरह तबाह हो गया था। सिद्धू ने सामान्य हालात का प्रतिनिधित्व किया। वे उन सभी लोगों के खिलाफ एक तर्क या जवाब थे, जिन्हें सिख समुदाय की भारत के प्रति वफादारी पर संदेह था। 1999 में सिद्धू के अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद, वह अपने ट्रेडमार्क सिद्धूवाद या वन-लाइनर्स के साथ एक लोकप्रिय क्रिकेट कमेंटेटर बन गए। इसके बाद, वे कॉमेडी शो में एक स्थायी भागीदार बन गए, कभी-कभी उन कारणों से चूक जाते जिनकी कोई थाह नहीं ले सकता था।

2004 में, वे अमृतसर से भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर लोकसभा के लिए चुने गए, एक उपलब्धि जिसे उन्होंने 2009 में भी दोहराया था, भले ही उनकी जीत का अंतर कम हो गया था। फिर भी, उन वर्षों में, सिद्धू एक राजनेता के रूप में मीडिया की सुर्खियां नहीं बटोर पाए थे। 2014 में, अमृतसर लोकसभा क्षेत्र सिद्धू से छीन लिया गया और अरुण जेटली को सौंपा दिया गया था, जो वहां से जीतने में विफल रहे। सिद्धू नाराज हो गए थे। 

उन्हें मनाने और पार्टी छोड़ने से रोकने के लिए, 2016 में, भाजपा ने उन्हें राज्यसभा में ले आई, जहां से उन्होंने महीनों बाद इस्तीफा दे दिया। कयास लगाए जा रहे थे कि वे आम आदमी पार्टी में शामिल होंगे, फिर वे पंजाब में लोकप्रियता की लहर पर सवार थे, और वे कांग्रेस में शामिल हो गए। 

सिद्धू ने पूरे राज्य में प्रचार किया और जैसा कि पिछले कुछ दिनों में कई साक्षात्कारों से स्पष्ट हुआ है और उनका सोचना है कि 2017 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की जीत काफी हद तक उनके कारण हुई थी। मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने सिद्धू को मंत्री बनाया, लेकिन कहा जाता है कि उन्हें उपमुख्यमंत्री का पद चाहिए था। क्योंकि वह पद उन्हें भविष्य के मुख्यमंत्री के रूप में उम्मीदवार बना देता। 2019 में एक मंत्रिस्तरीय फेरबदल में, सिद्धू के विभागों को बदल दिया गया। हैरान होकर, उन्होंने सिंह के मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया।

यही वह पटकथा है जिसमें एक विद्रोही का जन्म हुआ, यद्यपि वह मौन रहे। 

लेकिन, पिछले कुछ दिनों से सिद्धू भ्रष्ट व्यवस्था के खिलाफ आवाज बुलंद कर रहे हैं। उनका कहना है कि वे पंजाब के खोए गौरव को फिर से जीवित करना चाहते हैं। वे राजनीति पर माफिया की पकड़ को तोड़ना चाहते हैं। उनका कहना है कि वे किसी पद के लिए लालायित नहीं हैं और उनका एकमात्र एजेंडा पंजाब का कल्याण करना है।

मौजूदा नेतृत्व को चुनौती देने से पहले महत्वाकांक्षी नेता अक्सर यही दावा करते हैं।

सिद्धू की कौरी बयानबाजी, उल्लेखनीय रूप से, ख़ान की ही एक प्रतिध्वनि है। अप्रैल 1915 में, अपनी पार्टी बनाने से एक साल पहले, ख़ान ने कहा था, "यह धारणा कि मैं प्रधानमंत्री बनना चाहता हूं, पूरी तरह से बकवास है। मैं राजनीति में नहीं पड़ना चाहता।" ठीक एक महीने बाद, ख़ान ने कहा, “ देश के राजनेता मूल रूप से भ्रष्ट हैं। उन्होंने राष्ट्र की संपत्ति को निगल लिया है और अभी भी उनकी प्यास नहीं बुझी है।”

सिद्धू इस बात को जानते हैं और काफी यथार्थवादी हैं कि वे राष्ट्रीय क्षेत्र को अपना राजनीतिक खेल का मैदान नहीं बना सकते हैं। उनका मैदान पंजाब है, जहां, लोकलुभावन ख़ान की तरह, वह अपने व्यंग्य की वजह से लोकप्रिय कल्पना को पकड़ने की उम्मीद कर रहे हैं। ख़ान के पास इस बात का पता लगाने की दूरदर्शिता थी कि अगर वे पाकिस्तान की मुख्यधारा के राजनीतिक दलों में से किसी एक में शामिल हो जाते हैं तो सिस्टम पर उनके हमलों में विश्वसनीयता कम हो जाएगी। इसी वजह से उन्होंने तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी की शुरुआत की थी।

एक ऐसे व्यक्ति के लिए जो या तो भाजपा या कांग्रेस में रहा हो, उसके लिए यह सब अविश्वसनीय लगता है कि सिद्धू को अपने राजनीतिक जीवन में इतनी देर से भ्रष्टाचार के खतरे को इतनी मुखरता से लेना चाहिए। इतिहास हमें बताता है कि भ्रष्टाचार-विरोधी धर्मयुद्ध उस पार्टी को छोड़ देते हैं जिससे वे संबंधित होते हैं - या उससे बेदखल हो जाते हैं। ज़रा सोचिए वीपी सिंह, जिन्होंने 1980 के दशक में बोफोर्स का मुद्दा उठाया था और हैरानी की बात नहीं थी, उन्होंने पार्टी छोड़नी पड़ी थी। 

संभव है कि सिद्धू को लगता हो कि वे पंजाब के इमरान ख़ान बन सकते हैं। ख़ान 44 साल के थे जब उन्होंने तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी की स्थापना की थी। उन्हें पाकिस्तान का प्रधानमंत्री बनने में 22 साल लगे थे। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि ख़ान ने दुनिया को दिखाया कि उनमें क्रिकेट के मैदान के बाहर अपने लक्ष्यों को हासिल करने का उत्साह और दम है।

उदाहरण के लिए, 1986 में अपनी मां की मृत्यु के बाद, ख़ान ने एक अत्याधुनिक कैंसर अस्पताल बनाने का संकल्प लिया था। उन्होंने कैंसर अस्पताल के लिए धन जुटाने के लिए देश के दौरे किए। 1992 में विश्व कप जीतने के बाद उन्होंने पाकिस्तान छोड़ दिया था। उन्होंने स्कूली बच्चों को प्रेरित किया, जो उन्हें एक देवता मानते थे और अस्पताल बनाने के अपने अभियान में उन्हे शामिल किया था। 1994 में शौकत ख़ानम मेमोरियल कैंसर हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर, जिसका नाम ख़ान की मां के नाम पर रखा गया, लाहौर में स्थापित हो गया। अब पेशावर में भी इसकी एक शाखा है। 2021 में, दोनों अस्पतालों को चलाने वाले ट्रस्ट के पास 19 अरब रुपये का बजट था, और उनकी स्थापना के बाद से, रोगियों के परोपकारी उपचार पर 53 अरब रुपये खर्च किए गए हैं।

1995 में, ख़ान को यह कहते हुए सुना गया था कि, "अभी, पाकिस्तानी को देश को बचाने वाले की तलाश हैं। चूंकि इसलिए कि मैंने एक अस्पताल बनवाया और पाकिस्तान को विश्व कप की जीत दिलाई है, उन्हें लगता है कि मैं ही वह पालनहार हूं। यह दिखाता है कि लोग कितने हताश हैं।" बावजूद इसके, पाकिस्तानियों को यह विश्वास दिलाने में दो दशक लग गए कि ख़ान उनके तकलीफ़ों को हर सकते हैं, शायद लोग उनके एक और कारनामे से खुश हो गए थे- कि उन्होने मियांवाली जिले में एक तकनीकी कॉलेज भी बनवाया था।

इसके विपरीत, क्रिकेट से विदाई के बाद से, सिद्धू ने ज्यादातर क्रिकेट पर टिप्पणी की है और टीवी कॉमेडी शो के ज़रीए देश को गुदगुदाते/हँसाते रहे हैं। और हालांकि उन्हे लोकप्रिय रूप से एक ईमानदार राजनेता के रूप में माना जाता है, उनकी गतिविधियों ने लोगों को यह विश्वास नहीं दिलाया कि उनके पास सिस्टम को अपने दम पर बदलने का दम है। उनकी पसंदीदा रणनीति, जिसे यह भी कहा जा सकता है, पंजाब में कांग्रेस की बागडोर संभालना है और जो एक सदियों पुराना सपना रहा है- भारत को भ्रष्टाचार मुक्त बनाना है।

कैप्टन अमरिंदर सिंह या अन्य गुट के नेता, सिद्धू को बिना किसी मशक्कत के रास्ता क्यों देंगे, जबकि वह सिर्फ चार साल से ही पार्टी में हैं? वे एक ऐसे व्यक्ति की बात क्यों सुनेंगे, जिसने अभी तक यह साबित नहीं किया है कि वह कांग्रेस के चुनाव हारने और जीतने का कारण बन सकता है?

ख़ान को इस बात का कतई भ्रम नहीं था कि राजनीतिक दल उनकी बात सुनेंगे। वास्तव में, 2011 तक, ख़ान को एक सामान्य राजनीतिज्ञ माना जाता था। उस वर्ष, उन्होंने लाहौर में एक विशाल रैली की और पाकिस्तान में एक संभावित राजनीतिक ताकत के रूप में उभरे। उन्होंने अपने आधार को बड़ा करने के लिए अमेरिका विरोधी रुख अपनाया लेकिन साथ ही निराशाजनक बात यह रही कि उन्होने धार्मिक बयानबाजी को अपने भाषणों में जोड़ा। 2013 में, वोट के हिसाब से पीटीआई दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। 2018 में, वे प्रधानमंत्री बने, हालांकि, ऐसा कहा जाता है, वे ऐसा पाकिस्तानी सेना से थोड़ी अधिक मदद के साथ कर पाए।

यह अभी भी संभव है कि सिद्धू अपने आलोचकों को गलत साबित कर दें। उदाहरण के लिए, वे खुद का संगठन बना सकते हैं और पंजाब की आत्मा की लंबी लड़ाई लड़ सकते हैं। लेकिन उन्हे असफलताओं के लिए भी तैयार रहना होगा। विधानसभा चुनावों में करीब आठ महीने हैं, ऐसे में किसी नई राजनीतिक पार्टी के लिए पंख उगाना और ऊंची उड़ान भरना मुश्किल है। क्या उनके पास ख़ान के वाक्यांश, "कोई समय-सीमा नहीं" का इस्तेमाल करने के लिए एक सपने को साकार करने का धैर्य और साहस है?

जागीरदारी में पैदा हुए किसी व्यक्ति के लिए, जिसके लिए क्रिकेट आसानी से राजनीतिक और आर्थिक लाभ देती है, राजनीति में उसी किस्म की सफलता हासिल करना सिद्धू के लिए कठिन होगा, क्योंकि लोगों को संगठित करने के लिए गाँव-गाँव जाना, आंदोलन की उथल-पुथल में कूदना उनके लिए मुश्किल हो सकता है। सिद्धू ने अपनी बल्लेबाजी शैली को बदलने के लिए चार साल तक कड़ी मेहनत की, एक स्ट्रोकलेस खिलाड़ी से लेकर पामग्रोव हिटर बनने तक। राजनीति भी इससे कुछ कम नहीं मांगती है।

लेखक एक स्वतंत्र पत्रकार हैं। व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं।

navjot singh sidhu
Capt Amarinder Singh
Imran Khan
Pakistan
Tehreek-e-Insaf
Congress party
crusade against corruption
politics
cricket

Related Stories

कपिल सिब्बल ने छोड़ी कांग्रेस, सपा के समर्थन से दाखिल किया राज्यसभा चुनाव के लिए नामांकन

कांग्रेस का संकट लोगों से जुड़ाव का नुक़सान भर नहीं, संगठनात्मक भी है

जम्मू-कश्मीर के भीतर आरक्षित सीटों का एक संक्षिप्त इतिहास

रूस पर बाइडेन के युद्ध की एशियाई दोष रेखाएं

कार्टून क्लिक: इमरान को हिन्दुस्तान पसंद है...

गुजरात दंगे और मोदी के कट्टर आलोचक होने के कारण देवगौड़ा की पत्नी को आयकर का नोटिस?

मानवाधिकार के असल मुद्दों से क्यों बच रहे हैं अमित शाह?

2024 में बढ़त हासिल करने के लिए अखिलेश यादव को खड़ा करना होगा ओबीसी आंदोलन

कश्मीरी माहौल की वे प्रवृत्तियां जिनकी वजह से साल 1990 में कश्मीरी पंडितों का पलायन हुआ

फ़ेसबुक पर 23 अज्ञात विज्ञापनदाताओं ने बीजेपी को प्रोत्साहित करने के लिए जमा किये 5 करोड़ रुपये


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    दिल्ली उच्च न्यायालय ने क़ुतुब मीनार परिसर के पास मस्जिद में नमाज़ रोकने के ख़िलाफ़ याचिका को तत्काल सूचीबद्ध करने से इनकार किया
    06 Jun 2022
    वक्फ की ओर से प्रस्तुत अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि यह एक जीवंत मस्जिद है, जो कि एक राजपत्रित वक्फ संपत्ति भी है, जहां लोग नियमित रूप से नमाज अदा कर रहे थे। हालांकि, अचानक 15 मई को भारतीय पुरातत्व…
  • भाषा
    उत्तरकाशी हादसा: मध्य प्रदेश के 26 श्रद्धालुओं की मौत,  वायुसेना के विमान से पहुंचाए जाएंगे मृतकों के शव
    06 Jun 2022
    घटनास्थल का निरीक्षण करने के बाद शिवराज ने कहा कि मृतकों के शव जल्दी उनके घर पहुंचाने के लिए उन्होंने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से वायुसेना का विमान उपलब्ध कराने का अनुरोध किया था, जो स्वीकार कर लिया…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    आजमगढ़ उप-चुनाव: भाजपा के निरहुआ के सामने होंगे धर्मेंद्र यादव
    06 Jun 2022
    23 जून को उपचुनाव होने हैं, ऐसे में तमाम नामों की अटकलों के बाद समाजवादी पार्टी ने धर्मेंद्र यादव पर फाइनल मुहर लगा दी है। वहीं धर्मेंद्र के सामने भोजपुरी सुपरस्टार भाजपा के टिकट पर मैदान में हैं।
  • भाषा
    ब्रिटेन के प्रधानमंत्री जॉनसन ‘पार्टीगेट’ मामले को लेकर अविश्वास प्रस्ताव का करेंगे सामना
    06 Jun 2022
    समिति द्वारा प्राप्त अविश्वास संबंधी पत्रों के प्रभारी सर ग्राहम ब्रैडी ने बताया कि ‘टोरी’ संसदीय दल के 54 सांसद (15 प्रतिशत) इसकी मांग कर रहे हैं और सोमवार शाम ‘हाउस ऑफ कॉमन्स’ में इसे रखा जाएगा।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में कोरोना ने फिर पकड़ी रफ़्तार, 24 घंटों में 4,518 दर्ज़ किए गए 
    06 Jun 2022
    देश में कोरोना के मामलों में आज क़रीब 6 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है और क़रीब ढाई महीने बाद एक्टिव मामलों की संख्या बढ़कर 25 हज़ार से ज़्यादा 25,782 हो गयी है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License