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अमेरिका
अमेरिका में मोदी का क्यों हुआ विरोध?
अमेरिका व अन्य देशों में किसान आंदोलन के हक में तथा मोदी सरकार की नीतियों को लेकर पहले भी प्रदर्शन होते रहे हैं। इसी कारण से भारतीय मूल के कई अमेरिकी नेताओं ने भी समय-समय पर मोदी सरकार के कामों और अल्पसंख्यकों के प्रति उसके रवैये पर ऐतराज़ जताया है।
शिव इंदर सिंह
28 Sep 2021
US

जब देश के मुख्यधारा के मीडिया का एक बड़ा हिस्सा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चार दिवसीय अमेरिका यात्रा को दिखाते हुए बड़े जोर-शोर से प्रचार कर रहा था कि अमेरिका में रहने वाले भारतीय मूल के लोग उनका ज़ोरदार स्वागत कर रहे हैं। तभी मैंने 24 सितंबर को भारतीय समयानुसार रात 11:47 बजे अमेरिका में रहने वाले पंजाबी पत्रकार अमरवीर सिंह को फ़ोन किया। उनके फ़ोन उठाते ही बहुत शोर सुनाई देने लगा और ऊंची-ऊंची आवाजें सुनाई देने लगीं, “मोदी वापस जाओ! काले खेती कानून वापस लो! अल्पसंख्यकों की दुश्मन मोदी सरकार हाय हाय! लोकतंत्र के दुश्मन मुर्दाबाद!” अमरवीर शोर-शराबे से थोड़ा दूर होकर मुझे बताते हैं कि वे मोदी विरोधी प्रदर्शनों को कवर करने के लिए वाशिंगटन डीसी आए हुए हैं।

पूछने पर अमरवीर ने बताया, "यह प्रदर्शन 24  और 25 सितंबर को निर्धारित किए गए थे। मोदी आज अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन से मुलाकात करने जा रहे हैं। इसलिए यह रोष प्रदर्शन वाशिंगटन डीसी में हो रहे हैं। मोदी कल संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित करेंगे, इसलिए 25 तारीख को न्यूयॉर्क में प्रदर्शन होंगे। नरेंद्र मोदी के इस अमेरिका दौरे के विरोध में हो रहे प्रदर्शनों में हर वर्ग और विचारधारा के लोग शामिल हैं। इसमें खालिस्तानी विचारधारा वाले भी हैं, उदार सिख संगठन भी हैं, अमेरिका में रहने वाले पंजाबियों की बड़ी संख्या के अलावा, दक्षिण भारतीय, दलित संगठन, कश्मीरी, विश्वविद्यालयों के छात्र, उदारवादी, वामपंथी विचारक, किसान आंदोलन के हिमायती, कुछ हिंदू संगठनों के इलावा सामाजिक और धार्मिक संगठन भी शामिल हैं। प्रदर्शनकारियों में खालिस्तानी विचारधारा वाले संगठन दूसरों से अलग प्रदर्शन कर रहे हैं।" 

खालिस्तानियों से अलग हो कर संयुक्त रूप में प्रदर्शन करने वाले संगठनों ने सख्ती से निर्देश जारी किये हुए थे कि उनके रोष-प्रदर्शनों में कोई खालिस्तानी या अलगाववादी झंडा नहीं लाया जाये न ही कोई अलगाववादी बयानबाजी होगी। प्रदर्शनकारियों ने किसानी झंडे, भारतीय तिरंगा, 'मोदी गो बैक', मोदी मुर्दाबाद और मोदी की हिटलर से तुलना करते   पोस्टर / तख्तियां प्रदर्शित की हुई थीं और `नो फार्मर्स नो फूड` के बैनर पकड़े हुए थे। 

प्रदर्शनकारियों के ऐसा करने के कारणों बारे पूछने पर अमरवीर ने बताया कि मोटे रूप में प्रदर्शनकारियों की मांगे व उद्देश्य लगभग एक हैं। ये लोग किसान आंदोलन के हक में तथा काले कृषि कानूनों के विरोध में आवाज़ बुलंद कर रहे हैं। इसके आलावा ये लोग नागरिकता संशोधन क़ानून, मोदी सरकार की अल्पसंख्यकों, दलितों, आदिवासी विरोधी नीतियों, कश्मीरियों पर हो रहे जुल्म, मोदी सरकार की लोकतंत्र विरोधी फासीवादी नीतियों के विरुद्ध अपना रोष प्रकट कर रहे हैं। खालिस्तानी संगठन इन सब मांगों के साथ-साथ केंद्र द्वारा पंजाब के साथ होते लगातार धक्के और अपने कुछ अलगाववादी मुद्दों को लेकर मोदी की यात्रा का विरोध कर रहे हैं।

अमेरिका व अन्य देशों में किसान आंदोलन के हक में तथा मोदी सरकार की नीतियों को लेकर पहले भी प्रदर्शन होते रहे हैं। इसी कारण से भारतीय मूल के कई अमरीकी नेताओं ने भी समय-समय पर मोदी सरकार के कामों और अल्पसंख्यकों के प्रति उसके रवैये पर एतराज जताया है। जानकार तो मोदी की इस यात्रा के दौरान अमरीकी उपराष्ट्रपति कमला हैरिस के द्वारा मोदी को लोकतंत्र बचाने की कही बात को भी इसी नुक्ता-ए-नज़र से देख रहे हैं। 

मोदी की अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडन के साथ मुलाकात से एक दिन पहले ही अमेरिका की संस्था ‘यूनाइटेड स्टेट कमीशन ऑन इंटरनेशनल रिलीजियस फ्रीडम’ ने बाईडन से मांग की थी कि वह भारत के प्रधानमंत्री के साथ मुलाकात के दौरान भारत में हो रहे मानव अधिकारों की उल्लंघनों व अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचारों का मुद्दा उठायें। मोदी के इससे पहले अमरीकी दौरों के दौरान भी तीखे रोष-प्रदर्शन हुए हैं जो भारत के मुख्यधारा के मीडिया के बड़े हिस्से द्वारा या तो दिखाये नहीं गये या उन्हें खालिस्तानी या भारत विरोधी ताकतों का नाम देकर दबा दिया गया।

यहाँ यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि सोशल मीडिया पर किसान आंदोलन को प्रवासी भारतीयों द्वारा बड़े स्तर पर समर्थन मिलता रहा है। संयुक्त किसान मोर्चा के नेता डॉक्टर दर्शनपाल का कहना है कि संयुक राज्य अमेरिका व अन्य देशों में प्रवासी भारतीयों के द्वारा किसान आंदोलन का खुलकर समर्थन किया जा रहा है। पिछले कई महीनों से प्रवासी भारतीय अपने स्तर पर खुद ही रैलियां और रोष-प्रदर्शन कर रहे हैं। किसान नेता ने आगे कहा कि हम संयुक्त राष्ट्र के माध्यम से इस तथ्य को उजागर करते हुए पहले भी कई बार कह चुके हैं कि भारत संयुक्त राष्ट्र द्वारा 2018 में अपनाये गये ‘देहाती क्षेत्रों में काम करने वाले किसानों व अन्य लोगों के अधिकारों बारे संयुक्त राष्ट्र घोषणापत्र’ के कई नियमों का उल्लंघन कर रहा है। किसान नेता राकेश टिकैत ने भी अमेरिका बस रहे भारतीयों को मोदी के अमरीकी दौरे का विरोध करने की अपील की थी और अमरीकी राष्ट्रपति जोअ बाईडन को भारतीय किसानों का मुद्दा प्रधानमंत्री के सामने उठाने की गुजारिश की थी।

व्हाइट हॉउस के बाहर प्रदर्शन में शामिल हुए एक शख्स से जब मैंने फोन पर पूछा कि बहुत सारे प्रवासी भारतीय पी. एम. मोदी का स्वागत भी कर रहे हैं तो उसका कहना था, “भारत का गोदी मीडिया खबरों को बढ़ा-चढ़ा कर पेश कर रहा है। ज्यादा लोग हमारे प्रदर्शनों में शामिल हैं। स्वागत करने वाले वे हैं जो इकट्ठा की हुई भीड़ है, इनमें ज्यादा गिनती गुजराती मूल के लोगों की है। हमारे प्रदर्शनों में लोग अपनी पहल पर आ रहे हैं।” 25 सितम्बर को जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संयुक्त राष्ट्र महासभा को सम्बोधित कर रहे थे तो बाहर चार अलग-अलग प्रदर्शन हो रहे थे। सुरक्षा कारणों के चलते खालिस्तान पक्षीय संगठन, नेशनल ओवरसीज कांग्रेस, किसानों की हिमायत में स्थानीय गुरुद्वारा कमेटी तथा हिन्दूस फॉर ह्यूमन राइट्स को अलग अलग स्थानों पर प्रदर्शन करने की इजाज़त दी गई। इंडियन नेशनल ओवरसीज कांग्रेस ने भारत में मानव अधिकारों के हनन का विरोध करते हुए प्रदर्शन किया। कृषि कानूनों के खिलाफ स्थानीय गुरुद्वारा कमेटी ने विरोध प्रदर्शन किया, उन्होंने अपने सिरों पर हरी पगड़िया पहनी हुई थी। हिन्दूस् फॉर ह्यूमन राइट्स के प्रबंधकों ने कहा कि वे नागरिकता संशोधन कानून, राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर, भारत में सामाजिक कार्यकर्ताओं को जेलों में ठूंसने के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं। इन प्रदर्शनों में न्यूयार्क के गिरजाघरों की परिषद के प्रतिनिधि भी शामिल थे। 

साझे तौर पर प्रदर्शन कर रही 16 सामाजिक व धार्मिक संस्थाओं के प्रतिनिधि डॉक्टर सुरेंदर गिल ने हमें बताया, “हम यहाँ नरेंद्र मोदी सरकार के मानवता विरोधी रवैये और किसान संघर्ष के पक्ष में प्रदर्शन करने आये हैं। हम इससे पहले किसानों के हक में तीन बार भारतीय दूतावास के सामने प्रदर्शन कर चुके हैं और पिछले 65 दिनों से व्हाइट हाउस के सामने सांकेतिक प्रदर्शन कर रहे हैं। हर रोज़ हमारे पांच लोग किसानी झंडे व तख्तियां लेकर व्हाइट हाउस के सामने खड़े हो जाते हैं। हम दुनिया को बताना चाहते हैं कि भारत की सरकार कितनी बेरहम है जो अपने किसानों व मजदूरों की बात सुनने को भी तैयार नहीं है।”

दूसरी तरफ़ अमेरिका के पड़ोसी देश कनाडा में भी भारतीय भाईचारे द्वारा मोदी के अमरीकी दौरे के विरुद्ध कुछ जगहों पर प्रदर्शन हुए हैं। कनाडा के सरी शहर में रहने वाले पंजाबी पत्रकार गुरविंदर सिंह धालीवाल बताते हैं, “कनाडा में भी भारतीय भाईचारे के बहुत सारे लोगों ने अमरीका में हो रहे प्रदर्शनों में शामिल होने जाना था पर कोविड-19 के प्रतिबंधों के चलते सरहदें बंद हैं इसीलिए लोगों ने अपने देश में ही सांकेतिक प्रदर्शन किये हैं।” कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया राज्य की सामाजिक कार्यकर्ता दुपेंदर कौर सरां बताती हैं, “हम कनाडा में किसान आंदोलन के हक में व भारत सरकार की गलत नीतियों का शुरू से विरोध करते रहे हैं। मोदी सरकार ने इस आंदोलन को बदनाम करने के लिए हर तरह की चाल चली है पर उसे मुंह की खानी पड़ी। इस आंदोलन ने लोगों को आपस में जोड़ा है।”

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