NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
स्वास्थ्य
भारत
राजनीति
जलसंकट की ओर बढ़ते पंजाब में, पानी क्यों नहीं है चुनावी मुद्दा?
इन दिनों पंजाब में विधानसभा चुनाव प्रचार चल रहा है, वहीं, तीन करोड़ आबादी वाला पंजाब जल संकट में है, जिसे सुरक्षित और पीने योग्य पेयजल पर ध्यान देने की सख्त जरूरत है। इसके बावजूद, पंजाब चुनाव में पानी सियासी मुद्दा नहीं बन सका है।
शिरीष खरे
15 Feb 2022
water shortage
तस्वीर कैप्शन: पंजाब में निजी कुंओं की संख्या अधिक है। प्रतीकात्मक फोटो-वर्ल्ड बैंक

बात गत 17 सितंबर की है, जब पंजाब विधानसभा की एक विशेष समिति ने यह पुष्टि की कि लगातार भूजल की कमी पंजाब को मरुस्थलीकरण की ओर धकेल रही है, जिसके कारण अगले डेढ़ दशक में एक भयंकर स्थिति का सामना करना पड़ सकता है। समिति ने अपनी रिपोर्ट के अंतर्गत जल स्तर में गिरावट को रोकने के लिए कृषि क्षेत्रीकरण और भूजल आपूर्ति की मीटरिंग की सिफारिश की। इसमें कहा गया कि हर साल रिचार्ज किए जाने वाले भूजल की मात्रा निकाले जा रहे पानी की तुलना में बहुत कम है।

बता दें कि पंजाब पिछले कई वर्षों से कैंसर की समस्या से जूझ रहा है, जिसका मुख्य कारण पीने के पानी का जहरीला होना है। आंकड़े बताते हैं कि राज्य में प्रत्येक एक लाख आबादी पर कम से कम 90 कैंसर रोगी हैं, जो राष्ट्रीय औसत 80 से अधिक हैं, पंजाब सरकार द्वारा एक सर्वेक्षण से पता चलता है कि इसकी वजह हरित क्रांति के दौरान अत्यधिक अनाज उगाने के लिए अपनाई जाने वाली कृषि पद्धति रही है, जो मुख्यत: रसायनिक उर्वरकों पर टिकी है। पंजाब के कुछ जिले तो ऐसे हैं, जहां एक लाख में से 100 कैंसर रोगी हैं। सबसे अधिक चिंता की बात यह है कि पंजाब का सिर्फ 60 प्रतिशत भूजल इस्तेमाल के लायक है। जाहिर है कि मात्रा ही नहीं, बल्कि पानी की गुणवत्ता के मामले में भी पंजाब भयंकर जल संकट का सामना कर रहा है।

इन दिनों पंजाब में विधानसभा चुनाव प्रचार चल रहा है, जिसके तहत 117 विधायकों को चुनने के लिए आगामी 20 फरवरी, 2022 मतदान होगा और मतगणना व परिणाम 10 मार्च को घोषित होगा, वहीं, तीन करोड़ आबादी वाला पंजाब जल संकट में है, जिसे सुरक्षित और पीने योग्य पेयजल पर ध्यान देने की सख्त जरूरत है। इसके बावजूद, पंजाब चुनाव में पानी सियासी मुद्दा नहीं बन सका है, जबकि पानी का मुद्दा न सिर्फ पीने बल्कि खेती और लोगों की स्वास्थ्य की स्थिति को भी तय करता है। कहने को पंजाब की तासीर देश के अन्य राज्यों से अलग मानी जाती है, लेकिन हकीकत यह है कि इन दिनों यहां की चुनावी राजनीति भी धर्म और जाति के इर्द-गिर्द ही घूम रही है।

ग्रामीण गरीब कुपोषण के शिकार

यूं तो पंजाब एक विकसित राज्य माना जाता है, लेकिन ग्रामीण अंचलों में गरीबों का एक वर्ग कुपोषण की चपेट में है। कुपोषण की स्थिति जल प्रदूषण के प्रभाव के चलते और अधिक जटिल बन गई है। दरअसल, पंजाब में दलित राज्य की आबादी का 32% हैं, लेकिन उनमें से महज 3% ही भूमि के मालिक हैं। जाहिर है कि दलित यहां मुख्य वंचित वर्ग है।

वहीं, जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक पंजाब में 11 लाख से अधिक श्रमिक हैं, जिनमें लगभग आधे खेतिहर मजदूर हैं, दलित समुदाय की 80 प्रतिशत से भी अधिक आबादी खेतिहर मजदूर हैं। लेकिन, हरित क्रांति और मशीनीकरण के कारण खेती में मजदूरी के दिनों की संख्या घट जाने से यह खेतिहर मजूदर गरीब से और अधिक गरीब होते गए। आखिरकार, राज्य में एक तबका जहां अमीर होता गया वहीं दूसरा तबका कुपोषण की गर्त में चला गया। 'जय किसान, जय जवान' नारे की गूंज से खेतिहर मजदूर अदृश्य ही रहे। कायदे से पंजाब में खेतिहर मजदूरों की स्थिति सुधरने की दिशा में काम किया जाना चाहिए था, लेकिन अफसोस कि यहां के राजनैतिक परिदृश्य में ग्रामीण गरीबों की खुशहाली से जुड़ी मांगों को कहीं पीछे धकेल दिया गया।

ग्रामीण पेयजल की स्थिति

जनवरी, 2020 में 'विश्व बैंक' ने एक अध्ययन रिपोर्ट सार्वजनिक की थी, जिसमें कहा गया था, ''पंजाब में कई परिवार मकान परिसर में ही निजी कुंए बनाते जा रहे हैं। ग्रामीण पंजाब में कई दशकों से बड़ी मात्रा में भूजल का दोहन होता रहा है। वहीं, यहां मुफ्त बिजली की दीर्घकालिक नीति रही है।यही वजह है कि यहां घर-घर निजी उथले बोरवेल होते हैं। लेकिन, ये बोरवेल रासायनिक प्रदूषण युक्त पानी की चपेट में हैं।"

कैग की रिपोर्ट के मुताबिक पंजाब के 23 जिलों में से 16 फ्लोराइड-युक्त, 19 नाइट्रेट-युक्त, 6 आर्सेनिक-युक्त और 9 आयरन-युक्त पानी की समस्या से जूझ रहे हैं। दरअसल, हरित क्रांति ने भारत के अनाज उत्पादन को बढ़ाने में मदद की, लेकिन इसके अधिक हानिकारक प्रभावों का खामियाजा पंजाब, हरियाणा और कुछ अन्य क्षेत्रों को भुगतना पड़ा है। पंजाब देश में सबसे तेज गति से जमीन से पानी निकाल रहा है।

रिपोर्ट में पाया गया कि वर्ष 2013 में भूजल निकासी 149 प्रतिशत से बढ़कर 2018 में 165 प्रतिशत हो गई है। इसका कारण धान की बुवाई बताया गया है। वहीं, कैग ने देखा कि उत्पादन बढ़ाने के लिए अत्यधिक उर्वरकों और कीटनाशकों का उपयोग किया जा रहा था। वर्ष 1980 और 2018 के बीच राज्य में उर्वरक का उपयोग 146 प्रतिशत बढ़ा। 2018 में, पंजाब में किसानों ने प्रति हेक्टेयर 232 किलोग्राम उर्वरक की खपत की, जो राष्ट्रीय औसत 133 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर से अधिक है। इसके बढ़ते उपयोग से सतह और भूजल दोनों की गुणवत्ता में गिरावट आ रही है। इसी तरह, लुधियाना, अमृतसर, मंडी गोबिंदगढ़, कपूरथला आदि जैसे औद्योगिक केंद्रों के आसपास भारी धातुओं जैसे लेड, क्रोमियम, कैडमियम, कॉपर, साइनाइड, निकेल आदि पाया गया है।

उच्च फ्लोराइड वाले जिलों की संख्या बढ़ी

कैग के मुताबिक उच्च फ्लोराइड वाले जिलों की संख्या चार से बढ़ कर नौ हो गई है, जिसमें बठिंडा, फरीदकोट, फतेहगढ़ साहिब, फिरोजपुर, मानसा, मुक्तसर, पटियाला, संगरूर और तरनतारन शामिल हैं। कैग की रिपोर्ट इस संकट को आधुनिक कृषि प्रथाओं से जोड़ती हुई कहती है, ''यह उल्लेखनीय है कि उच्च फ्लोराइड वाले पानी का उपयोग उन क्षेत्रों में होता है, जहां कृषि गतिविधियां प्रमुख हैं, क्योंकि फ्लोराइड फॉस्फेटिक उर्वरकों से आया है।"

वहीं, विश्व बैंक ने जनवरी 2020 में एक रिपोर्ट तैयार की, जिसके मुताबिक करीब 16,000 कुओं में से, 38 प्रतिशत में उच्च फ्लोराइड, 8 प्रतिशत में उच्च से बहुत अधिक, जबकि 30 प्रतिशत निम्न से मध्यम स्तर का फ्लोराइड था. इनमें मनसा और पटियाला जिलों की स्थिति सबसे खराब है।

वहीं, 'पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च, चंडीगढ़' में सामुदायिक चिकित्सा व स्वास्थ्य के विशेषज्ञ डॉ. जे.एस. ठाकुर बताते हैं कि पंजाब में आर्सेनिक-दूषित पानी का सेवन लीवर, किडनी, हृदय और फेफड़ों को नुकसान पहुंचा रहा है। अध्ययन के अनुसार, राज्य के 800 से अधिक गांवों में आर्सेनिक के स्तर खतरे से अधिक है।

कैंसर के क्षेत्रीय आयाम

'पंजाब विश्वविद्यालय, पटियाला', के प्रोफेसर भूपिंदर सिंह विर्क कर अगुवाई में मालवा क्षेत्र के विभिन्न हिस्सों से भूजल के नमूनों का परीक्षण किया गया। विर्क बताते हैं, ''हमने पाया कि इन गांवों और शहरों के लोग बड़ी संख्या में गुर्दे, मानसिक और शारीरिक असामान्यताओं से संबंधित बीमारियों से पीड़ित हैं। इसका एक कारण पानी और भोजन के माध्यम से सीसा का अत्यधिक सेवन है।'

दूसरी तरफ, कपास उत्पादक मालवा क्षेत्र को कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग और पानी के दूषित होने के कारण 'कैंसर बेल्ट' कहा जाता था, जबकि विभिन्न अध्ययन बता रहे हैं कि मालवा की तुलना में अब अमृतसर और लुधियाना कैंसर के मामले अधिक दर्ज हो रहे हैं।

लेकिन, समस्या अब इतनी भयावह रूप लेती जा रही है कि बठिंडा के कैंसर संस्थान में आवश्यक सुविधाओं की कमी के बावजूद पिछले तीन वर्षों में कैंसर के रोगियों की संख्या में वृद्धि देखी हुई है। यहां प्रतिवर्ष दस हजार से अधिक कैंसर के मरीज आ रहे हैं। पंजाब सरकार द्वारा गंभीर बीमारी से पीड़ित लोगों को वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए 'मुख्यमंत्री पंजाब कैंसर राहत कोष योजना' चल रही है। इसके तहत हर कैंसर रोगी के इलाज के लिए डेढ़ लाख रुपये तक की राशि उपलब्ध कराई जाती है। लेकिन, तमाम योजनाओं के बावजूद प्रभावितों की संख्या कम होती नहीं दिख रही है। 

(शिरीष खरे पुणे स्थित स्वतंत्र पत्रकार हैं, व्यक्त विचार निजी हैं।)

punjab
Punjab Assembly Elections 2022
Water Shortage
Water crisis
malnutrition
malnutrition in children
Malnutrition in Punjab
Rural Drinking Water

Related Stories

विश्व जल दिवस : ग्राउंड वाटर की अनदेखी करती दुनिया और भारत

यूपी चुनाव : माताओं-बच्चों के स्वास्थ्य की हर तरह से अनदेखी

ग्राउंड रिपोर्ट : किडनी और कैंसर जैसे रोगों का जरिया बनता बिहार का पानी

दुनिया की 42 फ़ीसदी आबादी पौष्टिक आहार खरीदने में असमर्थ

माओवादियों के गढ़ में कुपोषण, मलेरिया से मरते आदिवासी

देश में पोषण के हालात बदतर फिर भी पोषण से जुड़ी अहम कमेटियों ने नहीं की मीटिंग!

क्या रोज़ी-रोटी के संकट से बढ़ गये हैं बिहार में एनीमिया और कुपोषण के मामले?

बच्चों में बढ़ता कुपोषण और मोटापा चिंताजनक!

महाराष्ट्र: कोरोना-काल में बढ़ा कुपोषण, घट गया आदिवासी बच्चों का वज़न

यमन में बच्चों में कुपोषण ख़तरनाक गति से बढ़ रहाः यूएन


बाकी खबरें

  • वी. श्रीधर
    आर्थिक रिकवरी के वहम का शिकार है मोदी सरकार
    03 Jun 2022
    सकल घरेलू उत्पाद के नवीनतम अनुमानों से पता चलता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था रिकवरी से बहुत दूर है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में 84 दिन बाद 4 हज़ार से ज़्यादा नए मामले दर्ज 
    03 Jun 2022
    देश में पिछले 24 घंटों में कोरोना के 4,041 नए मामले सामने आए हैं। देश में एक्टिव मामलों की संख्या बढ़कर 21 हज़ार 177 हो गयी है।
  • mundka
    न्यूज़क्लिक टीम
    मुंडका अग्निकांड: 'दोषी मालिक, अधिकारियों को सजा दो'
    02 Jun 2022
    देश की राजधानी दिल्ली के पश्चिम इलाके के मुंडका गाँव में तीन मंजिला इमारत में पिछले महीने हुई आग की घटना पर गुरुवार को शहर के ट्रेड यूनियन मंच ने श्रमिकों की असमय मौत के लिए जिम्मेदार मालिक,…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    मुंडका अग्निकांड: ट्रेड यूनियनों का दिल्ली में प्रदर्शन, CM केजरीवाल से की मुआवज़ा बढ़ाने की मांग
    02 Jun 2022
    दिल्ली में मुंडका जैसी आग की ख़तरनाक घटनाओं के ख़िलाफ़ सेंट्रल ट्रेड यूनियन के संयुक्त मंच दिल्ली के मुख्यमंत्री के आवास पर प्रदर्शन किया।
  • bjp
    न्यूज़क्लिक टीम
    बॉलीवुड को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है बीजेपी !
    02 Jun 2022
    बोल के लब आज़ाद हैं तेरे में आज अभिसार शर्मा चर्चा कर रहे हैं बीजेपी सरकार जिस तरह बॉलीवुड का इस्तेमाल कर रही है, उससे क्या वे अपना एजेंडा सेट करने की कोशिश कर रहे हैं?
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License