NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
पर्यावरण
भारत
राजनीति
महिलाएं जल संकट की मार झेलने के लिए विवश
पन्ना की तरह ही, बुंदेलखंड क्षेत्र के कई गांवों में पूरे साल भर पानी की कमी एक आम मुद्दा है।
कुमार दिव्यांशु
16 Jul 2021
महिलाएं जल संकट की मार झेलने के लिए विवश

जहां एक तरफ महामारी ने नियमित तौर पर हाथ धोने को एक अनिवार्य नियम बना दिया है, इन गांवों के पास पीने का पानी भी मुश्किल से नसीब हो पा रहा है। इस बारे में कुमार दिव्यांशु मध्य प्रदेश के पन्ना जिले और उत्तर प्रदेश के चित्रकूट से रिपोर्ट कर रहे हैं। 

जहाँ दुनियाभर में लोग कोविड-19 को दूर रखने के लिए अतिरिक्त एहतियात बरत रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ मध्य प्रदेश के पन्ना जिले में कुदकपुर गाँव के निवासियों को हर रोज पर्याप्त पीने के पानी तक के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। 

अनीता देवी बिला नागा सुबह पांच बजे गाँव के नलके पर पहुँच जाती हैं। पानी लाने के लिए वे अपने साथ हर संभव खाली बर्तन, जैसे कि बाल्टी, बर्तन और घर में जो कुछ भी उपलब्ध हो साथ में लेकर पहुँच जाती हैं।

34 वर्षीय अनीता ने द लीफलेट को बताया “अगर मुझे देर हो जाती है, तो मुझे पानी भरने की कतार में सबसे आखिर में लगना पड़ता है। समूचा गाँव पानी के लिए यहाँ पर पहुँचता है और अपने साथ वे हर संभव बर्तन लेकर पहुँचते हैं, जिसकी भी आप कल्पना कर सकते हैं।” वे बताती हैं “खाली बर्तन के साथ यह मेरे घर करीब 15 मिनट की पैदल दूरी पर है और वापसी में पानी ढोते समय कुल 25 मिनट लग जाते हैं।”

पिछले करीब छह सात वर्षों से पन्ना में अनीता के गाँव में स्थिति कमोबेश ऐसी ही बनी हुई है। मानसून के दौरान यहाँ के निवासी हैण्ड पंपों और एक कुएं के भरोसे रहते हैं। लेकिन गर्मी शुरुआत होने से पहले ही ये पानी के स्रोत सूख चुके होते हैं। फिर गाँव को सीमित जल आपूर्ति पर ही निर्भर रहना पड़ता है।

अनीता ने बताया “हमें दिन में दो बार पानी की आपूर्ति की जाती है, सुबह 5:30 बजे एक घंटे के लिए और फिर शाम को चार बजे। हमने अपने दैनिक कामकाज को उसी के अनुसार ढालना पड़ता है। हर रोज, हमारे लिए ये दो घंटे बेहद अहम होते हैं।”

अनीता अपने पति और तीन बच्चों के साथ कुदकपुर में रहती हैं। पांच लोगों का यह परिवार मार्च और अप्रैल के पहले कुछ दिनों तक उनके घर से एक किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैण्डपंप से मिलने वाले पानी पर निर्भर रहता है। जैसे-जैसे तापमान बढ़ने लगता है, जल स्तर कम होता जाता है और पानी की तलाश में अनीता को आधा किलोमीटर और पैदल सफर करना पड़ता है।

वूमेन फॉर वॉटर के अनुसार, संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों में "लैंगिक समानता", संख्या 5, 6 और 13 के लिए तीन समर्पित लक्ष्य हैं, जो स्वच्छ जल, स्वच्छता और जलवायु कार्यवाही के अनुरूप हैं। इनमें से प्रत्येक लक्ष्य पानी के प्रबंधन से भी जुड़ा हुआ है।

पन्ना की तरह ही, बुंदेलखंड क्षेत्र के कई गाँवों में पानी का संकट पूरे सालभर के लिए एक आम मुद्दा बना हुआ है। अप्रैल से जुलाई तक यह संकट अपने चरम पर होता है। ये जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का नतीजा है, जिससे गर्मी के आगमन में तेजी आई है और मानसून का आगमन देरी से होने लगा है।

उत्तरप्रदेश के बांदा क्षेत्र के चित्रकूट जिले में भी स्थिति कोई खास भिन्न नहीं है। यहाँ पर, लोधवारा गाँव की रहने वाली सुमति यादव को अपने पड़ोसी से मिलने वाले चार बाल्टी पानी के लिए 50 रूपये देने पड़ते हैं। यह 49 वर्षीय महिला अपनी तीन बेटियों, एक बेटे और पति के साथ रहती हैं, जो पहले राष्ट्रीय लॉकडाउन के बाद सूरत से लौट आये थे।

सुमति कहती हैं “गर्मियों में हमारे हैण्ड पंप सूख जाते हैं और हमें पड़ोसी से पानी लेना पड़ता है जिसके पास अपना बोरवेल है। इससे पहले वे हमसे 40 रूपये लिया करते थे, लेकिन अब उन्होंने इसे बढ़ा दिया है। आखिर हम क्या करें- हमें जिंदा रहने के लिए पानी तो चाहिए ही।”

सुमति प्रतिदिन 50 रूपये में 20 लीटर वाली चार बाल्टियाँ पानी भरती हैं, जिसका अर्थ है छह लोगों के परिवार को एक दिन में 80 लीटर पानी में गुजारा चलाना पड़ता है। जल जीवन मिशन के तहत प्रतिदिन के 55 लीटर प्रति व्यक्ति के मानक के मुकाबले या 13.3 लीटर प्रति व्यक्ति प्रतिदिन बैठता है।

पानी लाने के काम के लिए सुमति अपनी बेटी को भी साथ ले जाती हैं। वे कहती हैं “हम दोनों दो-दो बाल्टियाँ लाते हैं।” वे सवाल करती हैं “अब देखिये, चूँकि हमारे पास बड़ी मुश्किल से सिर्फ पीने और साफ़-सफाई के लिए ही पानी का इंतजाम हो पाता है, ऐसे में हमें शौच के लिए जंगल का रुख करना पड़ता है। जब यहाँ पर पानी ही नहीं है, तो यहाँ पर शौचालय किस काम का है?”

सुमति कहती हैं  "शहरों में लोग हाथ धोने की वकालत करते हैं, लेकिन हमारा क्या? क्या उन्हें मालूम भी है कि हमें पीने का पानी भी पर्याप्त मात्रा में नसीब नहीं हो पा रहा है? हमारे गांव के अधिकांश लोग खुले में शौच करते हैं।”

उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा चलाए गए एक अध्ययन में कहा गया है कि भारत में दुनिया की आबादी का 16 फीसद हिस्सा आबाद है, लेकिन मीठे पानी के संसाधनों का सिर्फ 4% ही उपलब्ध है। 2011 की जनगणना के आधार पर, 2015 के लिए अनुमानित प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता 1,700 क्यूबिक मीटर के वैश्विक औसत के मुकबले 1,545 क्यूबिक मीटर थी, जो देश के पानी के संकट के स्तर की ओर संकेत करता है।

वाटर ऐड (उत्तरी भारत) के प्रोग्राम कोऑर्डिनेटर, शिशिर चंद्रा कहते हैं “यदि हम पर्यावरणीय मुद्दे के अलावा जल संकट के बारे में बात करते हैं, तो यह एक लैंगिक मुद्दा भी है। ज्यादातर हिस्से में, पानी लाने के काम को महिलाओं के जिम्मे माना जाता है। महिलाओं की तरह ही लड़कियों से भी पानी लाने की उम्मीद की जाती है, जिससे उनके हिस्से का काम बढ़ जाता है।”

पिछले 30 वर्षों से जैविक कृषक के रूप में काम करने वाले प्रेम सिंह, जिन्होंने बांदा जिले में मानव कृषि केंद्र नामक एनजीओ की स्थापना की, उनका कहना है “जिस प्रकार की जीवनशैली हमने अपना ली है, उसके कारण हमने तापमान, हवा और पानी के बीच के संतुलन को खो दिया है। बुंदेलखंड की जलवायु देश के कई हिस्सों से भिन्न है। इसे आदर्श रूप में 40 दिनों के लिए अच्छी लू वाली गर्मी, 40 दिनों तक चलने वाले अच्छे मानसून और 40 दिन की सर्दी की दरकार रहती है। लेकिन हम जानते हैं कि ऐसा नहीं हो रहा है। हमें इस बात को समझना होगा कि कैसे ये सारी चीजें आपस में जुड़ी हुई हैं।”

यह लेख मूल रूप से द लीफलेट में प्रकाशित हुआ था।

(कुमार दिव्यांशु एक स्वतंत्र पत्रकार हैं जो ग्रामीण मुद्दों को उठाना पसंद करते हैं। व्यक्त किये गए विचार व्यक्तिगत हैं।)

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें।

Women Bear the Brunt of the Water Crisis

civil society
COVID-19
India
Water Rights
Water crisis

Related Stories

UN में भारत: देश में 30 करोड़ लोग आजीविका के लिए जंगलों पर निर्भर, सरकार उनके अधिकारों की रक्षा को प्रतिबद्ध

लू का कहर: विशेषज्ञों ने कहा झुलसाती गर्मी से निबटने की योजनाओं पर अमल करे सरकार

पानी को तरसता बुंदेलखंडः कपसा गांव में प्यास की गवाही दे रहे ढाई हजार चेहरे, सूख रहे इकलौते कुएं से कैसे बुझेगी प्यास?

‘जलवायु परिवर्तन’ के चलते दुनियाभर में बढ़ रही प्रचंड गर्मी, भारत में भी बढ़ेगा तापमान

बिहारः गर्मी बढ़ने के साथ गहराने लगा जल संकट, ग्राउंड वाटर लेवल में तेज़ी से गिरावट

बनारस में गंगा के बीचो-बीच अप्रैल में ही दिखने लगा रेत का टीला, सरकार बेख़बर

विश्व जल दिवस : ग्राउंड वाटर की अनदेखी करती दुनिया और भारत

यूपी चुनावः सरकार की अनदेखी से राज्य में होता रहा अवैध बालू खनन 

पर्वतों में सिर्फ़ पर्यटन ही नहीं, पर्यावरण और पारिस्थितिकी तंत्र का संरक्षण भी ज़रूरी है

हर नागरिक को स्वच्छ हवा का अधिकार सुनिश्चित करे सरकार


बाकी खबरें

  • MUNDIKA
    मुकुंद झा, रौनक छाबड़ा
    मुंडका अग्निकांड: लापता लोगों के परिजन अनिश्चतता से व्याकुल, अपनों की तलाश में भटक रहे हैं दर-बदर
    14 May 2022
    संजय गांधी मेमोरियल अस्पताल में, जहां शवों और घायल लोगों को चिकित्सा सहायता के लिए लाया गया था, वहां लोगों में निराशा के दृश्य थे, क्योंकि परिवार के सदस्य अपने परिजनों के बारे में कुछ जानकारी की…
  • FINALS
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    बैडमिंटन टूर्नामेंट: 73 साल में पहली ‘थॉमस कप’ का फाइनल खेलेगा भारत
    14 May 2022
    बैडमिंटन टूर्नामेंट में भारत ने इतिहास रच दिया है, 73 साल में पहली बार भारत थॉमस कप के फाइनल में पहुंचा है।
  • Congress
    न्यूज़क्लिक टीम
    कांग्रेस का उदयपुर चिंतन शिविर: क्या सुधरेगी कांग्रेस?
    14 May 2022
    लंबे अरसे बाद कांग्रेस विधिवत चिंतन कर रही है। इसके लिए उसने उदयपुर में चिंतन शिविर आयोजित किया। वर्षो से बेहाल कांग्रेस को क्या ऐसे शिविर से कुछ रास्ता दिखेगा? क्या उसका राजनीतिक गतिरोध खत्म होगा? #…
  • Indian Muslims
    न्यूज़क्लिक टीम
    हम भारत के लोगों की कहानी, नज़्मों की ज़ुबानी
    14 May 2022
    न्यूज़क्लिक के इस ख़ास कार्यक्रम 'सारे सुख़न हमारे' के इस एपिसोड में हम आपको सुना रहे हैं मुसलमानों के ख़िलाफ़ हिंसा, और मुसलमान होने के मायनों से जुड़ी नज़्में।
  • sugaercane
    अमेय तिरोदकर
    महाराष्ट्र में गन्ने की बम्पर फसल, बावजूद किसान ने कुप्रबंधन के चलते खुदकुशी की
    14 May 2022
    मराठवाड़ा में जहां बड़े पैमाने पर गन्ने की पैदावार हुई है, वहां 23 लाख टन गन्ने की पेराई सरकार की कुव्यवस्था से अभी तक नहीं हुई है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License