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विश्व खाद्य संकट: कारण, इसके नतीजे और समाधान
युद्ध ने खाद्य संकट को और तीक्ष्ण कर दिया है, लेकिन इसे खत्म करने के लिए, संयुक्त राज्य अमेरिका को सबसे पहले इस बात को समझना होगा कि यूक्रेन में जारी संघर्ष का कोई भी सैन्य समाधान रूस की हार की इसकी चाहत को पूरा नहीं करने वाला  है।
सी. सरतचंद
26 May 2022
food

उत्पादन एवं वितरण के क्षेत्र में विश्वव्यापी खाद्यान्न संकट की स्थिति बनी हुई है। खाद्य संकट 2022 पर वैश्विक रिपोर्ट के मुताबिक, गंभीर खाद्य असुरक्षा ने 2021 में तकरीबन 19.3 करोड़ लोगों को अपनी चपेट में ले रखा था। ऐसे लोग 53 देशों/क्षेत्रों में स्थित थे। यह संख्या 2020 में गंभीर खाद्य असुरक्षा से पीड़ित लोगों की संख्या से 4 करोड़ अधिक थी। और यह स्थिति यूक्रेन में फरवरी 2022 में सैन्य शत्रुता के फ़ैल जाने से पहले की बात है, जिसने निःसंदेह अब दुनिया भर में खाद्य संकट को पहले से काफी बढ़ा दिया है।  

इस संकट के कारणों की पड़ताल करने से पहले, क्या यह उचित नहीं होगा कि हम समकालीन वैश्विक खाद्य प्रणाली के कामकाज एक बार पड़ताल कर लें। ऐसा तर्क दिया जाता है कि विकसित देशों के अभिजात वर्ग के द्वारा, जो कि मुख्य रूप से ग्लोबल नॉर्थ के शीतोष्ण भूमि में बसे हुए हैं, कई प्राथमिक वस्तुओं (फसलों और खनिज पदार्थों) पर अपने नियंत्रण को बनाये रखना चाहते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि ग्लोबल नॉर्थ में ऐसी अधिकांश प्राथमिक वस्तुएं उनके पास घरेलू स्तर पर उपलब्ध नहीं है।  

ये प्राथमिक वस्तुएं मुख्यतया (लेकिन विशेष रूप से नहीं) उष्ण-कटिबंधीय एवं उपोष्ण-कटिबंधीय क्षेत्रों में आधारित हैं, जो कि मुख्यतया विकासशील देशों का आवास है। इस नियंत्रण में यहाँ के मेहनतकश लोगों की आय पर एक शिकंजा बनाए रखना शामिल है, जो यहाँ से बड़ी मात्रा में प्राथमिक वस्तुओं को विकसित दुनिया को जारी करते हैं। जिसके परिणामस्वरूप, इन देशों के मेहनतकश लोग लगातार असाध्य भूख, कुपोषण और अकालग्रस्तता के अधीन बने रहने के लिए मजबूर हैं। हालाँकि, यह शिकंजा सभी विकासशील देशों के भीतर या सभी कामकाजी लोगों के विभिन्न वर्गों के बीच में समान रूप से नहीं लागू होता है।

जहाँ तक फसलों का संबंध है, तो यहाँ पर विकसित देशों को होने वाले इस निर्यात में अक्सर कृषि योग्य भूमि के उपयोग का खाद्य फसलों से गैर-खाद्य फसलों की ओर स्थानांतरण होना शामिल है। इतना ही नहीं बल्कि इसके साथ-साथ घरेलू खाद्य सुरक्षा की कीमत पर खाद्य फसलों का निर्यात भी इसमें शामिल है। उन विकासशील देशों में जहाँ पर यह बदलाव बड़े पैमाने पर किया जा चुका है, वे आज खाद्य वस्तुओं के आयात पर निर्भर हैं। इसने न सिर्फ उन्हें विश्व बाजार में कीमतों में अस्थिरता के प्रति संवेदनशील बना दिया है बल्कि कॉर्पोरेट कृषि व्यवसाय से जुड़े कॉर्पोरेट (और आमतौर पर विकसित देशों के अभिजात वर्ग के लिए, विशेष रूप से अंतर्राष्ट्रीय वित्त के माध्यम से), जो भले ही खाद्य एवं प्राथमिक वस्तुओं के विश्व व्यापार को यदि पूर्ण रूप से नहीं तो भी काफी बड़े हिस्से को नियंत्रित करता है, के प्रति कृतज्ञ बना डाला है।  

सदियों से चली आ रही औपनिवेशिक अवधि के दौरान, विकसित देशों के अभिजात वर्ग – उपनिवेशवादियों - के प्राथमिक वस्तुओं पर स्थापित इस नियंत्रण के ही परिणामस्वरूप इन उपनिवेशों एवं अर्ध-उपनिवेशों में रहने वाले करोड़ों लोगों को अकालग्रस्तता की स्थिति में अकाल और महामारी में मौत का शिकार होने को और तीक्ष्ण बना दिया था। ब्रितानी औपनिवेशिक सरकार ने प्राथमिक वस्तुओं के निर्यात के जरिये धन की निकासी की प्रकिया को प्राथमिकता देकर भारत की मेहनतकश जनता की क्रयशक्ति को निचोड़कर रख दिया था। इसने कृषि क्षेत्र में सार्वजनिक निवेश को बड़े पैमाने पर नजरअंदाज कर दिया, जिसे भूमि में इजाफे के जरिये संभव बनाया जा सकता था। इन चीजों ने ऐसी मौतों में अपनी प्रमुख भूमिका निभाई थी। हालाँकि, राजनीतिक गैर-औपनिवेशिककरण के वादे को, नियंत्रित अर्थव्यस्था की अवधि के दौरान अपर्याप्त रूप से महसूस किया गया था, लेकिन इसे जल्द ही नव-उदारवादी परियोजना के द्वारा झुठला दिया गया, जिसने कई विकासशील देशों में एक बार फिर से घरेलू खाद्य असुरक्षा को बहाल कर दिया है। इसने नियंत्रित अर्थव्यस्था की अवधि के दौरान कृषि के लिए हासिल सीमित सार्वजनिक समर्थन को भी लगभग समाप्त कर दिया है।

इसलिए, समकालीन विश्व खाद्य प्रणाली की कार्यपद्धति खाद्य असुरक्षा को एक बार फिर से निर्मित कर रही है, विशेष रूप से इसका संबंध विकासशील देशों से है। कॉर्पोरेट कृषि व्यवसायों ने अंतर्राष्ट्रीय वित्त के साथ मिलकर और मुख्य रूप से विकसित देशों में स्थित, कई कृषि से जुड़े इनपुट्स और आउटपुट के व्यापार पर अपना नियंत्रण स्थापित कर रखा है। इसके अलावा, समकालीन विश्व खाद्य व्यापार का अधिकांश भाग अमेरिकी डॉलर पर आधारित वित्तीय प्रणाली के जरिये ही संचालित किया जाता है। इस नियंत्रण में एक प्रमुख तत्व प्राथमिक वस्तुओं के सट्टा स्टॉक होल्डिंग पर नियंत्रण है, जो लाभदायक सट्टेबाजी के लिए अनुकूल हैं क्योंकि आपूर्ति समायोजन (विशेषकर फसलों के संदर्भ में) को ताजा उत्पादन करने के लिए एक निश्चित समय की जरूरत पड़ती है।

उदाहरण के लिए, मान लीजिये कि खराब मौसम के कारण निकट भविष्य में गेंहूँ के वैश्विक उत्पादन में कमी होने की उम्मीद है तो सट्टेबाजों के लिए –दूसरे शब्दों में कहें तो , कॉर्पोरेट कृषि व्यवसाय अंतर्राष्ट्रीय वित्त के साथ सांठगांठ कर - मौजूदा गेंहूँ के स्टॉक के अपने सट्टा स्टॉक-होल्डिंग को बढ़ाते जायेंगे। इससे खाद्य असुरक्षा कई गुना बढ़ जाती है और गेंहूँ की कीमतों में उछाल आ सकता है। यदि गेंहूँ का उत्पादन निकट भविष्य में बढ़ता है, और यदि बंपर फसल हो जाती है, तो कॉर्पोरेट कृषि-व्यवसाय अपने गेंहूँ के स्टॉक-होल्डिंग के एक हिस्से को इस उम्मीद में भौतिक रूप से नष्ट करने में नहीं हिचकिचाते, कि (गेंहूँ की कीमत और व्यापार के आकार में परिणामी परिवर्तन के जरिये) उन्हें गेंहूँ को बेचने या भंडारण की तुलना में अधिक लाभ प्राप्त हो सकता है। दूसरे शब्दों में कहें तो, विश्व खाद्य असुरक्षा असल में समकालीन विश्व खाद्य प्रणाली का एक प्रमुख नतीजा है, जिसमें कॉर्पोरेट कृषि घरानों के हित अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय पूंजी के साथ जुड़ते हैं।

वर्तमान दौर में यूक्रेन में जारी सशस्त्र शत्रुता और संयुक्त राज्य अमेरिका और उसके “सहयोगियों” के द्वारा रूस के खिलाफ शुरू किये गये आर्थिक युद्ध ने विश्व खाद्य संकट को काफी बढ़ा दिया है। यह संकट पहले से ही गंभीर बना हुआ था क्योंकि जिस प्रकार से कॉर्पोरेट कृषि घरानों के द्वारा अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय पूंजी के साथ तालमेल बिठा रखा था, उसने कोविड-19 महामारी के दौरान नव-उदारवादी नीति प्रतिक्रियाओं के चलते उत्पन्न व्यवधानों का जमकर फायदा उठाया था।

मौजूदा खाद्य पदार्थों के स्टॉक के वितरण के दायरे पर भी एक नजर डालते हैं। खाद्य एवं कृषि संगठन के खाद्य मूल्य सूचकांक के अनुसार, फरवरी 2020 की शुरुआत और मार्च 2022 की शुरुआत के बीच में विश्व बाजार में अनाज की कीमतों में 17.1% का इजाफा हुआ है। इसी अवधि के दौरान, तिलहन की कीमतों में विश्व बाजार में 24.8% की वृद्धि हुई है।

खाद्य संकट पर 2022 की वैश्विक रिपोर्ट के मुताबिक, रूस और यूक्रेन एक साथ मिलकर गेंहूँ के विश्व निर्यात का 33%, जौ के विश्व निर्यात का 27%, मक्के के विश्व निर्यात का 17%, सूरजमुखी के बीजों के विश्व निर्यात का 24% और सूरजमुखी के तेल के विश्व निर्यात के 73% हिस्से पर एकाधिकार रखते हैं। इन खाद्य पदार्थों की आपूर्ति में प्रमुख व्यवधान कॉर्पोरेट कृषि व्यावसायिक घराने हैं, जिनके तार अंतर्राष्ट्रीय वित्त के साथ जुड़े हुए हैं, जिनके हित ऐसी (और इससे संबंधित) फसलों के अन्य मौजूदा संस्करणों के अपने स्टॉक-होल्डिंग को लाभप्रद रूप से बढ़ाने के लिए हैं, जिसके चलते इन प्राथमिक वस्तुओं की वैश्विक कीमतों में निषेधात्मक वृद्धि हुई है।

संयुक्त राज्य अमेरिका और इसके “सहयोगी देशों” का दावा है कि रुसी संघ की नौसेना ने काला सागर पर यूक्रेन के बंदरगाहों को अवरुद्ध कर रखा है, जो यूक्रेन से कृषि से संबंधित वस्तुओं के नौपरिवहन पर आधारित निर्यात को रोक रहा है। वहीं दूसरी तरफ यूक्रेन से रेल के माध्यम से कृषि जिंसों के परिवहन के प्रयास में दो अड़चनें बनी हुई हैं। पहला, मौजूदा समय में रेलवे एक निश्चित अवधि में, पानी के जहाजों की तुलना में इस प्रकार के माल की कम मात्रा को ही संभाल पाने में सक्षम है। दूसरा, रुसी संघ के सैन्य बलों ने यूक्रेन की रेलवे प्रणाली को सैन्य रूप से लक्षित कर रखा है, जिससे कि संयुक्त राज्य अमेरिका और इसके “सहयोगियों” के द्वारा यूक्रेन को हथियारों की आपूर्ति को बढ़ाने की कोशिश को रोका जा सके। यदि ऐसा होता है तो रुसी संघ के शसस्त्र बलों की ओर से यूक्रेन की रेलवे प्रणाली पर और भी ज्यादा हमले हो सकते हैं।

इसके चलते यूक्रेन से रेल के माध्यम से जो थोड़ा-बहुत कृषि निर्यात अभी तक हो रहा है वह और भी कम हो सकता है और यूक्रेन में अन्य आवश्यक खाद्य आयात और लोगों की आवाजाही को प्रभावित कर सकता है, जो मानवीय संकट को बढ़ा देगा। इसके अलावा, यूक्रेन में जारी सशस्त्र शत्रुता के कारण अगले सीजन में कृषि फसल की मात्रा को लेकर चिंताएं बनी हुई हैं। कल्पना करें कि वर्तमान दौर की तुलना में यदि अगली फसल तुलनात्मक रूप से काफी कम होती है तो क्या होगा। उस स्थिति में, घरेलू खाद्य सुरक्षा को लेकर चिंताओं के चलते यूक्रेन से होने वाले कृषि वस्तुओं के निर्यात के आकार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।

जब इस गतिरोध से आमना-सामना करना पड़ा, तो संयुक्त राज्य अमेरिका में मुख्यधारा की मीडिया और इसके “सहयोगी” दो अव्यवहार्य समाधानों के साथ प्रस्तुत हुए। पहला, रुसी संघ की नौसेना के खिलाफ संयुक्त राज्य अमेरिका के द्वारा सैन्य उपायों के इस्तेमाल के जरिये काला सागर से यूक्रेन के द्वारा कृषि निर्यात को बहाल किया जा सकता है। ऐसी किसी भी पहल के जवाब में रुसी संघ की सैन्य शक्ति की ओर से बड़े पैमाने पर जवाबी कार्यवाई को देखते हुए कोई भी विश्वास के साथ इसकी उम्मीद कर सकता है, ऐसे में ऐसा विकल्प कभी शुरू भी हो सकता है, इस बारे में संदेह बना हुआ है। दूसरा, अमेरिका और इसके “सहयोगी” एकतरफा प्रतिबंधों में कुछ समय के लिए ढील देने के बदले में बेलारूस को भूमि पारगमन मार्ग के तौर पर बाल्टिक गणराज्यों में बन्दरगाह के जरिये कृषि उपजों के व्यापार के लिए इस्तेमाल करने के बारे में विचार कर सकते हैं। हालाँकि, यह काला सागर में बंदरगाहों के माध्यम से प्राथमिक वस्तुओं के जहाज आधारित परिवहन का पूर्ण विकल्प नहीं हो सकता है।

संयुक्त राज्य अमेरिका और इसके “मित्र देशों” के बेलारूस में शासन में बदलाव के हालिया प्रयासों और रुसी संघ के संबंध में मौजूदा बेलारूस सरकार की रणनीतिक स्वायत्तता के परिणामी दुर्बलता को देखते हुए, संयुक्त राज्य अमेरिका और इसके “सहयोगियों” के द्वारा इस प्रकार के प्रस्ताव की सफलता न के बराबर है।

रुसी संघ की सरकार ने अपने तईं, इस बात का दावा किया है कि यूक्रेन के सशस्त्र बलों ने काला सागर में यूक्रेनी बंदरगाहों तक पहुँचने के रास्ते पर सुरंगे बना रखी हैं, जिसके चलते यूक्रेन से जहाज़ों के आने-जाने में रुकावट खड़ी हो रही है। इसके साथ ही, दोनों देश अधिकांशतः जिन फसलों का उत्पादन करते हैं, उसमें यूक्रेन की तुलना में रूस का उत्पादन और निर्यात दोनों ही ज्यादा है। इसलिए, रुसी संघ की सरकार का दावा है कि संयुक्त राज्य अमेरिका और इसके “सहयोगियों” के द्वारा रूस पर लगाये गए एकतरफा प्रतिबंध कृषि वस्तुओं के निर्यात में सबसे बड़ी बाधा हैं। वैश्विक स्तर पर जारी इस खाद्य वितरण संकट को देखते हुए, कई सरकारें (भारत, कजाकिस्तान, आदि) ने अपने घरेलू खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए खाद्य निर्यात को प्रतिबंधित कर दिया है।

कृषि संबंधित उत्पादन के मुद्दे पर लौटते हुए, इस बात को ध्यान में रखना होगा कि वैश्विक स्तर पर रूस नाइट्रोजन उर्वरकों का सबसे प्रमुख निर्यातक है। वह दुनिया में पोटेशियम उर्वरकों के निर्यात के मामले में दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक है और फास्फोरस उर्वरक के निर्यातक के रूप में तीसरा सबसे बड़ा निर्यातक देश है। इसके अलावा, बेलारूस पोटेशियम उर्वरक का एक प्रमुख निर्यातक है। रूस (और बेलारूस) के खिलाफ आर्थिक युद्ध छेड़ने के माध्यम से संयुक्त राज्य अमेरिका और इसके सहयोगी देशों ने इन उर्वरकों की आपूर्ति को बाधित कर दिया है, और उर्वरकों की कीमत जो पहले से ही काफी अधिक थी उसे और भी बढ़ा दिया है। उर्वरकों की कीमत में इस बढ़ोत्तरी की प्रमुख वजह कॉर्पोरेट कृषि व्यवसाय की अंतर्राष्ट्रीय वित्त के साथ सांठ-गांठ ने सट्टेबाजी के माध्यम से इसे भुनाना जारी रखा हुआ है।

उर्वरकों की कीमतों यह वृद्धि और रूस पर आर्थिक युद्ध के चलते उर्जा की कीमतों बेतहाशा बढ़ोत्तरी की वजह से खेती की लागत में भी भारी वृद्धि हुई है। इसके चलते कई किसानों को अपने खेती के क्षेत्र को सीमित करने के लिए बाध्य होना पड़ सकता है, या लागत में वृद्धि और कॉर्पोरेट कृषि व्यवसाय की अंतर्राष्ट्रीय वित्त के साथ सांठ-गाँठ में सट्टा गतिविधियों के कारण खाद्य वस्तुओं की कीमतों में और अधिक बढ़ोत्तरी हो सकती है।

इसके अलावा, रूस के खिलाफ आर्थिक युद्ध ने कई देशों में मुद्रास्फीति को तेज कर दिया है, जिसमें संयुक्त राज्य अमेरिका भी शामिल है। इसका नतीजा यह हुआ है कि अमेरिकी फेडेरल रिजर्व के द्वारा अपनी नीतिगत ब्याज की दरों को बढ़ा दिया है। जब तक अन्य केंद्रीय बैंकों के द्वारा अपने नीतिगत ब्याज की दरों में इजाफा नहीं किया जाता है, अंतर्राष्ट्रीय वित्त इन देशों से बाहर निकल जायेगा। विकासशील देशों में नीतिगत दरों में इस प्रकार की वृद्धि से कर्जदारों की उधार की दर में वृद्धि होगी। चूँकि विकासशील देशों में किसानों के पास ऊँची ब्याज दरों पर ऋण हासिल करने की क्षमता सबसे कम होती है (विकसित देशों के भारी-सब्सिडी वाले कॉर्पोरेट कृष व्यवसाय के विपिरीत), ऐसे में उनके कृषि उत्पादन को या तो उच्च ब्याज दरों वाले ऋणों के जरिये या कर्ज लेने की कम पहुँच के माध्यम से अवशोषित किये जाने की आशंका है। चूँकि कई गरीब किसान विशुद्ध रूप से खाद्यान्न के खरीदार हैं, ऐसे में कृषि उत्पादन पर इस व्यापक दबाव के कारण दुनियाभर में श्रमिकों और इन किसानों के सामने खाद्य असुरक्षा का संकट बढ़ जाने वाला है।

लेकिन प्रतिकूल जलवायु परिवर्तन ने भी कृषि उत्पादन में इस संकट को बढ़ा दिया है। 2021-22 के रबी सीजन में, भारत के गेंहूँ-उत्पादक क्षेत्रों में बेमौसमी गर्म लहरों के कारण गेंहूँ के उत्पादन में करीब 10% से अधिक की गिरावट को अनुमानित किया जा रहा है। इसके अलावा, विभिन्न अध्ययनों में यह देखने को मिल रहा है कि उत्तर भारत और पाकिस्तान में भीषण गर्मी की संभावित आवृत्ति बीसवीं सदी की तुलना में इस सदी में लगातार बनी रहने वाली है, जिसके चलते कृषि उत्पादों के उत्पादन पर इसके हानिकारक परिणाम देखने को मिल सकते हैं। इसके अलावा, फ़्रांस में सूखे की खबरों में इस वर्ष फसल की पैदावार में कमी होने की उम्मीद है। इस प्रकार की परिघटना कॉर्पोरेट कृषि व्यवसाय को अंतर्राष्ट्रीय वित्त के साथ सांठगांठ में सट्टेबाजी के जरिये खाद्य पदार्थों की कीमतों में और बढ़ोत्तरी करने में सक्षम बनाती हैं, जिसके परिणामस्वरूप बड़े पैमाने पर भुखमरी और अकाल की स्थिति उत्पन्न होती है।

वर्तमान में जारी विश्व खाद्य संकट की गंभीरता से निपटने के लिए एक अल्पावधि सहित दीर्घकालिक नीति पहल के व्यापक सेट की आवश्यकता है। अल्पावधि में, संयुक्त राज्य अमेरिका को इस बात को समझना होगा कि यूक्रेन में जारी इस संघर्ष का कोई सैन्य समाधान नहीं हो सकता है, जो उनकी “रूस को पराजित” हो जाने की उम्मीद को पूरा कर सके। संयुक्त राज्य अमेरिका को इस बात को अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए कि यदि वह अन्य देशों पर प्रतिबंधों को थोपता है तो इन देशों की सरकारें भी जवाबी कार्यवाही करेंगी, जिसे नहीं रोका जा सकता है। यह प्रतिशोधात्मक कार्यवाही जरुरी नहीं कि उसी प्रकार से चले जैसा कि संयुक्त राज्य अमेरिका ने “नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय क्रम” के तहत आम तौर अन्य देशों के लिए निर्धारित कर रखा है।

संयुक्त राज्य अमेरिका के द्वारा यूक्रेन में संघर्ष के कूटनीतिक समाधान को स्वीकार करने से साफ़ इंकार की भारी कीमत को शेष विश्व के द्वारा चुकाया जा रहा है। इसलिए, यूरोप की सरकारों, विशेषकर फ़्रांस और जर्मनी को यूक्रेन में संघर्ष के कूटनीतिक समाधान के बारे में अपनी अग्रणी भूमिका के साथ आगे आना चाहिए, और रूस पर लगाये गये आर्थिक युद्ध को खत्म करना चाहिए। यह उन लोगों को बड़ी राहत प्रदान करेगा जो मौजूदा वैश्विक खाद्य संकट के सबसे बड़े भुक्तभोगी हैं।  

इसके अलावा, सभी सरकारों को खाद्य एवं इससे संबंधित वस्तुओं पर सट्टेबाजी के खिलाफ प्रशासनिक कार्यवाही करने की आवश्यकता है। इसके लिए निजी संस्थानों के लिए स्टॉक-होल्डिंग की सीमा को तय करने, खाद्य पदार्थों के व्यापार के विनियमन करने, खाद्य पदार्थों के प्रत्यक्ष सरकारी वितरण, और निजी बाजारों में खाद्यान्न की सरकारी बिक्री आदि के माध्यम से खाद्य वस्तुओं पर सट्टेबाजी को नियंत्रण में रखने की आवश्यकता है। जहाँ पर ऐसा करना उपयुक्त हो, वहां पर खाद्यान्न एवं उर्वरक में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को अमेरिकी डॉलर के अलावा अन्य मुद्राओं में भी शुरू किये जाने की आवश्यकता है। विकासशील देशों के बीच में इस प्रकार के उपायों पर अधिकाधिक आपसी सहयोग के उपायों को अपनाने की जरूरत झ्जई, जो उनके लिए भविष्य में विश्व खाद्य संकट से निपटने के लिए दीर्घकालिक प्रयासों की आधारशिला रखने का काम करेगा।

दूरगामी दृष्टि से देखें तो, सभी सरकारों को खाद्य फसलों के लिए कृषि संबंधी भूमि के उपयोग में आवश्यक बदलावों और खाद्य निर्यात के विनियमन के जरिये अपनी अपनी घरेलू खाद्य सुरक्षा को प्राथमिकता में रखना होगा। इसके अलावा, कृषि उत्पादन में वृद्धि के लिए सरकारी समर्थन को कृषि में हस्तक्षेप को समूचे परिदृश्य में विस्तारित करना चाहिए, जिसमें कृषि के परिवर्तन को जलवायु लोचनीयता के मद्देनजर, कृषि-पारिस्थितिकी पर आधारित हो, भूमि वृद्धि में सार्वजनिक निवेश जैसे उपायों के माध्यम से लागू करना होगा। इस प्रकार के परिवर्तनों को सिर्फ प्रशासनिक बदलावों से ही नहीं लागू किया जा सकता है बल्कि इसके लिए अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक अर्थव्यस्था में मुलभूत परिवर्तन करने की आवश्यकता है। भले इस इस प्रकार के बदलाव की संभावना कितनी भी क्षीण क्यों न हो, ये मानव जाति के लिए बेहतर विकल्प को पेश करने वाले हैं, जिसमें लाखों लोगों की टालने योग्य  मौतें शामिल हैं, जैसा कि जारी कोविड-19 महामारी के दौरान घटित हुआ था।

लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय से संबद्ध सत्यवती कालेज में अर्थशास्त्र विभाग के प्रोफेस्सर हैं।  (इस लेख के पिछले संस्करण में महत्वपूर्ण हस्तक्षेप के लिए डॉ. नवप्रीत कौर को धन्यवाद। ) व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं।
 
अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

World Food Crisis: Causes, Consequences and Solutions

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