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आंदोलन
भारत
राजनीति
सीएए विरोधी आंदोलन के साथ लेखक-कलाकार एकजुट, 23 मार्च, 14 अप्रैल को विशेष कार्यक्रमों का आह्वान
"नागरिकों को धार्मिक आधार पर बाँटने वाला सीएए जब एनपीआर और एनआरसी के साथ जुड़ता है तब और खतरनाक हो जाता है। ये दोनों प्रस्ताव संदिग्ध नागरिकता का धुँधलका खड़ा करने के लिए डिज़ाइन किये गए हैं।"
न्यूज़क्लिक डेस्क
02 Mar 2020
सीएए विरोधी आंदोलन

01 मार्च 2020 को दिल्ली के जंतर-मंतर पर लेखकों, कलाकारों, संस्कृतिकर्मियों और विभिन्न संगठनों मसलन इंडियन कल्चरल फोरम, जनवादी लेखक संघ, प्रगतिशील लेखक संघ, जन संस्कृति मंच, दलित लेखक संघ, न्यू सोसलिस्ट इनिशिएटिव, जन नाट्य मंच, दिल्ली साइंस फोरम, जनसंस्कृति (मलयालम), विकल्प, सिनेमा ऑफ़ रेजिसटेंस, संगवारी के प्रतिरोध प्रदर्शन में पारित प्रस्ताव।

हम लेखक, कलाकार, संस्कृतिकर्मी और विभिन्न संगठन दिल्ली में हाल ही में हुई हिंसा और साम्प्रदायिक क़त्लेआम पर गहरी चिंता व्यक्त करते हैं।

हम समझते हैं कि यह भयावह घटना सीएए-एनआरसी-एनपीआर की साम्प्रदायिक बुनावट और विभाजनकारी राजनीति का सीधा परिणाम है। बावजूद इसके इसी दौर में हमने देखा कि दिल्ली की आम अवाम साम्प्रदायिकता की इस राजनीति के खिलाफ अपनी लड़ाई में एकजुट रही। ऐसी एकजुटता और सांप्रदायिक सौहार्द्र से ही सीएए-एनआरसी-एनपीआर को मात दी जा सकती है।

हम सीएए-एनआरसी-एनपीआर जैसे भयावह कानूनों के खिलाफ शांतिपूर्ण ढंग से चल रहे मौजूदा आन्दोलन के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हैं। भाजपा के नेतृत्त्व वाली केंद्र सरकार के द्वारा उठाया गया यह कदम भारतीय संविधान के उस लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष चरित्र को नष्ट कर देगा जो हमारी पहचान, विविधता में एकता, का आधार है। बर्तानवी (ब्रिटिश) साम्राज्यवाद के खिलाफ साझा लड़ाई लड़ते हुए हम भारत के लोगों ने जो साझा मूल्य विकसित किए थे, जो संविधान अपने को अर्पित किया था, सीएए इस सबको तबाह करने वाला कानून है। हम, भारत के लोगों की पहचान हमारी सांस्कृतिक, धार्मिक, भाषाई व प्राकृतिक संसाधनों की विविधता ही है।

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अथर्ववेद के 12वें मंडल में कहा गया है कि विभिन्न धार्मिक मान्यताओं और विविध भाषा-भाषी जनसमुदाय को एक परिवार के रूप में आश्रय देने वाली, अविनाशी और स्थिर स्वभाव वाली पृथ्वी, गाय के दूध देने की तरह ही हमें असीम ऐश्वर्य प्रदान करने वाली बने।

पुराने ज़माने से लेकर अब तक विभिन्न भारतीय भाषाओं के कवि इस बहुलातावाद और धर्मनिरपेक्षता को अभिव्यक्त करते रहे हैं। जाति, लिंग और आस्था पर आधारित भेदभावों के खिलाफ ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की भावना हमारी सांस्कृतिक पहचान रही आयी है।

हमारा मानना है कि सीएए-एनआरसी-एनपीआर जैसे विभाजनकारी कदम उठाए ही इसलिए गए हैं ताकि बढ़ती बेरोजगारी, किसानों की बदहाली, शिक्षा के बढ़ते संकट और आसमान छूती गैर-बराबरी जैसे असली मुद्दों को दबाया जा सके।

सीएए-एनआरसी-एनपीआर भारतीय संविधान की मूलभावना के खिलाफ़ हैं

हर तरह के भेदभाव के खिलाफ़ संघर्ष करने के लिए हमारा संविधान एक शक्तिशाली सामूहिक प्रयास है। यह सभी मनुष्यों, नागरिकों आर गैर-नागरिकों के लिए मूलभूत मानवाधिकारों की गारंटी करता है। इस नागरिकता संशोधन कानून से पहले हमारे संविधान के नागरिकता अधिनियम में जाति, धर्म, लिंग या राष्ट्रीयता के आधार पर बग़ैर किसी भेदभाव, प्रामाणिक आवेदकों को नागरिकता देने के लिए पर्याप्त प्रावधान थे।

सीएए, इन प्रावधानों से मुसलमानों को बाहर कर देता है। इसकी मार के दायरे में वे ‘अवैध प्रवासी’ आ जाते हैं जो बांलादेश,पाकिस्तान और अफ़गानिस्तान से आए थे। नागरिकता अधिनियम में पेश किये गए इस अनावश्यक साम्प्रदायिक भेदभाव का सन्देश यह है कि भारतीय मुसलमान किसी भी तरह इस देश के अन्य धार्मिक समुदायों के बराबर नहीं हैं। इसका मतलब सिर्फ़ यह है कि जो मुसलमान के रूप में पैदा हुआ है, उसके पास हक-अधिकार और सम्मानित भारतीय नागरिक होने की दावेदारी न के बराबर है। साथ ही यह कानून राष्ट्र के आगे ‘मुसलमानों’ को ‘पराए’ के रूप में दिखाने की कोशिश करता है।

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हाल ही में हुए दिल्ली विधानसभा चुनावों में हम इसके गवाह बने। चुनावी ध्रुवीकरण करने के उद्देश्य के साथ दो धार्मिक समुदायों के बीच युद्ध जैसा उन्माद पैदा करने की कोशिशें की गईं। सौभाग्य से जागरूक मतदाताओं ने इस ज़हर भरे विभाजनकारी खेल को आगे नहीं बढ़ने दिया। भारत के संविधान के आधारभूत सिद्धांतों की रक्षा के लिए ऐसे विभाजनों को ख़त्म करना भारत के कर नागरिक का महत्वपूर्ण कर्तव्य है।

सीएए-एनआरसी-एनपीआर हमारे संविधान की प्रतिष्ठा पर धब्बा हैं

नागरिकों को धार्मिक आधार पर बाँटने वाला सीएए जब एनपीआर और एनआरसी के साथ जुड़ता है तब और खतरनाक हो जाता है। ये दोनों प्रस्ताव संदिग्ध नागरिकता का धुँधलका खड़ा करने के लिए डिज़ाइन किये गए हैं। इनके चलते करोड़ों गरीब भूमिहीन नागरिकता से बाहर किए जा सकते हैं। उनमें से कुछ को सीएए के जरिये अगर नागरिकता दी भी जाए तो इसके लिए उनके धार्मिक विश्वास आधार बनाए जाएँगे और ख़ासकर मुस्लिम समुदाय के साथ भेदभाव किया जाएगा।

सीएए-एनआरसी-एनपीआर में समस्या सिर्फ इतनी नहीं है कि ये साम्प्रदायिक हैं। ये ऐसे शक्तिशाली हथियार के रूप में गढ़े गए हैं कि जो भी सरकार से असहमति रखेगा, उसके सभी संवैधानिक अधिकार छीन लिए जाएँगे और उत्पीड़ित समुदायों की सभी असहमतियों को कुचल दिया जाएगा। बिना कोई कारण बताये सरकार यदि किसी व्यक्ति को अवैध नागरिक घोषित कर देती है तो उसके सभी संवैधानिक अधिकार तत्काल समाप्त हो जायेंगे। आज़ाद भारत में हमारे लोकतंत्र के सामने आज तक इतना गंभीर खतरा कभी नहीं आया था।

सीएए-एनआरसी-एनपीआर भारतीय सपने को ध्वस्त करते हैं

सीएए-एनआरसी-एनपीआर परियोजना भारत के सपने और भारतीय संस्कारों के भी खिलाफ़ है। विभाजन की दुर्भाग्यपूर्ण विरासत के बावजूद, हमने दो-राष्ट्र के साम्प्रदायिक सिद्धांत को कभी भी स्वीकार नहीं किया। विभाजन के पहले भारत के लोगों द्वारा देखे गए भावनात्मक एकता के सपने आज हमारे हैं। सीएए-एनआरसी-एनपीआर परियोजना दो-राष्ट्र सिद्धांत की ओर बढ़ाया गया सरकार का पहला आधिकारिक कदम है। हम भारत के लोगों को दृढ़ता और एकजुटता से इस परियोजना के खिलाफ संघर्ष करने की जरुरत है।

हम भारत के लोगों ने सांस्कृतिक, धार्मिक, भाषाई और प्राकृतिक संसाधनों की विविधताओं पर हमेशा गर्व किया है। हमारी साझा संस्कृति के इस सारतत्व को भारतीय संविधान आत्मसात करता है। दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि मौजूदा केंद्र सरकार के नेतृत्व में पल-बढ़ रही हिंदुत्व की विचारधारा हमारे देश की संस्कृति और संविधान की साझेपन की मूल भावना के खिलाफ है। भारतीय संविधान के निर्माता बाबा साहेब अम्बेडकर ने हिंदुत्व की विचारधारा की तीखी आलोचना की थी क्योंकि यह स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे के लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ थी। बीजेपी-आरएसएस के नेतृत्व में चलने वाली एनडीए सरकार सभी के लिए विकास के वादे के साथ आई थी लेकिन उसने अब उसने वह मुखौटा भी उतार फेंका है। अब उसने खुलेआम फासीवादी विचारधारा आधारित आरएसएस के हिंदुत्ववादी एजेंडे को लागू करना शुरू कर दिया है।

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अब केंद्र पर भाजपा-आरएसएस का नियंत्रण है जो लोकतांत्रिक मूल्यों को लगातार तबाह कर रहे हैं। बिना जम्मू-कश्मीर की विधानसभा की अनुमति लिए अनुच्छेद 370 ख़त्म करना और इसके बाद साम्प्रदायिक भेदभाव आधारित सीएए जैसे कदम हमारे संविधान के लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ हैं।

सीएए-एनआरसी-एनपीआर के खिलाफ जनता का आन्दोलन

देश के गृहमंत्री ने संसद भवन में धमकी भरे लहजे में ऐलान किया कि सीएए के बाद देश में एनपीआर और एनआरसी आएगा। इस धमकी के खिलाफ मुल्क के लोकतांत्रिक लोगों ने जोरदार आवाज बुलंद की। गलियों मुहल्लों में शांतिपूर्ण धारणों-प्रदर्शनों की अनवरत ऋंखला ही चल पड़ी जिसमें अक्लियत (अल्पसंख्यक) के साथ नागरिक समूह, अध्यापक, वकील, छात्र, युवा, महिलाएँ, बुद्धिजीवी, कलाकार, सेलिब्रेटीज और राजनीतिक पार्टियाँ शामिल हैं। गैर-बीजेपी शासित अधिकांश राज्यों की विधानसभाओं में हमारे संविधान के धर्म-निरपेक्ष आधार को नुकसान पहुँचाने वाले सीएए के खिलाफ संकल्प पारित किए गए।

प्रधानमंत्री और उनके गृहमंत्री लगातार यह झूठ बोलते रहे हैं कि ‘सीएए नागरिकता देने का कानून है न कि नागरिकता छीनने का।’ सीएए द्वारा दी जाने वाली नागरिकता में धर्म के पहलू को शामिल करना हमारे संविधान को तो ख़त्म करता ही है, साथ ही देश के वास्तविक नागरिकों को भी ‘अवैध घुसपैठिये’ घोषित करने के पर्याप्त औजार मुहैया कराता है। ऐसा असम में हो चुका है। ‘साधारण लोगों के मामलों के अलावा ऐसे बहुत से मामले सामने आए जिनमें सेना के अधिकारियों, सरकारी अफ़सरों और यहाँ तक कि भारत के पूर्व राष्ट्रपति के पारिवारिक सदस्यों व असम के पूर्व मुख्यमंत्री को भी एनआरसी सूची के मसौदे से बाहर रखा गया। उन्हें न्यायाधिकरणों के सामने यह साबित करने के लिए मजबूर किया गया कि वे “अवैध” प्रवासी नहीं हैं।’(इण्डिया टुडे, अगस्त 31, 2019)

हमारी एकजुटता

हम लेखक, कलाकार, संस्कृतिकर्मी और विभिन्न सांस्कृतिक संगठन यह मानते हैं कि शाहीन बाग़ और भारत के अलग-अलग हिस्सों में आम अवाम द्वारा चलाये जा रहे शांतिपूर्ण आंदोलन भारत के संविधान की मूल आत्मा, हमारे प्यारे देश की ‘विविधता में एकता’ और लोकतांत्रिक मूल्यों को बचाने का प्रयास हैं। ये ही हमें एक आधुनिक सभ्य धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बना सकते हैं। हम पूरे देश में चल रहे इन अहिंसक आंदोलनों के साथ एकजुट हैं। सभी देशभक्त नागरिकों से हम अपील करते हैं कि सीएए और एनआरसी की प्रस्तावित योजना को रद्द कराने के लिए इन आंदोलनों में शरीक हों।

हमारी अपील

हम इस महान मुल्क के सभी लेखकों कलाकारों का आह्वान करते हैं कि

1. सीएए-एनआरसी-एनपीआर के ख़िलाफ़ सभी शांतिपूर्ण आंदोलनों के साथ सक्रिय रूप से एकजुट हों

2. 23 मार्च [शहीद दिवस] और 14 अप्रैल [बाबा साहेब दिवस] का इस्तेमाल देश भर में हो रहे इन शांतिपूर्ण प्रदर्शनों, नागरिकता, संविधान और भारतीय स्वप्न के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए करें।

3. ऐसे सम्मेलन सभी राज्यों में आयोजित किए जाएँ और इसके बाद लेखकों-कलाकरों के दूसरे राष्ट्रीय सम्मलेन के लिए हम फिर मिलें।

CAA
NRC
NPR
CAA Protest
Anti-CAA Movement
Writer-Artists Unite
Religion Politics
Communalism
indian hindu-muslim
Jantar Mantar
Secularism
Constitution of India
BJP
RSS

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