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साल दर साल प्याज़ के बढ़ते दाम और सियासत, लेकिन किसानों को नहीं राहत!
साल दर साल बढ़ती प्याज़ की किल्लत, बारिश और भंडारन की समस्या का सरकार कोई समाधान निकालने में नाकाम रही है। सवाल यह है कि सरकार ऐसी नीतियाँ क्यों नहीं बनाती, जिससे किसानों को उचित दाम मिले और उपभोक्ताओं को उचित कीमत पर प्याज़ उपलब्ध हो सके।
सोनिया यादव
26 Oct 2020
प्याज़
Image courtesy: DNA India

प्याज़ एक बार फिर बढ़ते दामों के कारण सुर्खयों में है। कई जगह कीमतें 100 रुपये प्रति किलोग्राम के पास पहुंच गई हैं तो वहीं कई शहरों में प्याज़ 140 से 150 रुपये प्रति किलो के दाम से मिल रही है। बढ़ती महंगाई और प्याज़ की आसमान छूती कीमतों के लिए विपक्ष जहां सरकार को जिम्मेदार ठहरा रहा है तो वहीं अब ये मुद्दा बिहार के चुनावी घमासान में भी शामिल हो गया है। लेकिन प्याज़ पर हो रही सियासत के बीच बढ़ते दामों की असल वजह क्या है इसकी परत खोलने की कोई ज़हमत नहीं उठा रहा है।

बारिश और भंडारन की समस्या

बीते साल 2019 में लगभग इसी समय तत्तकालीन खाद्य एवं आपूर्ति मामले के मंत्री रामविलास पासवान प्याज़ की बढ़ते दामों को लेकर उपाय सुनिश्चित करने के बजाय लोगों से ही कीमतें कम करने के सुझाव मांग रहे थे। तब भी विपक्ष इसे सरकार की नाकामी करार देने में लगा हुआ था। साल दर साल बढ़ती प्याज़ की किल्लत, बारिश और भंडारन की समस्या का अभी भी सरकार कोई समाधान निकालने में नाकाम रही है। इस साल भी भारी बारिश के चलते महाराष्ट्र, कर्नाटक और मध्य प्रदेश के प्रमुख जिलों में खरीफ की फसलें, संग्रहित प्याज़ और बीज नर्सरी भंडारण को काफी नुकसान पहुंचा है। मौसम में आये हुए इन बदलावों के बाद ही प्याज़ की कीमतों में काफी तेज वृद्धि हुई है।

प्याज़ उत्पादन में भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है। इसके बावजूद अक्सर देश में प्याज़ की कीमतें लोगों के आंसू निकाल देती है। बीते एक सप्ताह में दिल्ली समेत देश के कई राज्यों में प्याज़ के दामों में तेजी से वृद्धि हुई है। चेन्नई, कोलकाता जैसे शहरों में प्याज़ के दामों में लगभग 45 फीसदी का इज़ाफा हुआ है। इसके दामों में लगातार हो रही वृद्धि से लोगों के बजट पर फर्क पड़ना शुरू हो गया है। सरकार इससे निपटने के लिए भले ही कई दावे कर रही हो लेकिन तमाम सरकारी दावे बेअसर ही नज़र आ रहे हैं।

बता दें कि 14 अक्टूबर को सरकार ने खरीफ फसल के प्याज़ के आगमन से पहले के ख़ाली मौसम के दौरान घरेलू उपभोक्ताओं को उचित दरों पर उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए प्याज़ निर्यात पर प्रतिबंध की घोषणा करके एक पूर्ववर्ती उपाय किया है सिर्फ इससे किसानों और उपभोक्ताओं की समस्या स्थाई तौर पर हल नहीं होने जा रही।

एक सच्चाई ये भी है कि भारत में प्याज़ के भंडारण में भी दिक्कतें हैं। एक आंकड़े के मुताबिक भारत में सिर्फ 2 फीसदी प्याज़ के भंडारण की ही क्षमता है। 98 फीसदी प्याज़ खुले में रखा जाता है। बारिश के मौसम में नमी की वजह से प्याज़ सड़ने लगता है। भंडारण की समस्या की वजह से करीब 30 से 40 फीसदी प्याज़ सड़ जाता है। प्याज़ की बर्बादी की वजह से भी इसकी कीमतें बढ़ती हैं।

हमारे सामने सवाल यह उठता है कि सरकार ऐसी नीतियाँ क्यों नहीं बनाती, जिससे किसानों को उचित दाम मिले और उपभोक्ताओं को उचित कीमत पर प्याज़ उपलब्ध हो सके। यह संतुलन क्यों नहीं बनता, क्यों हम आग लगने के बाद कुआं खोदने लगते हैं?

भारत में 2.3 करोड़ टन प्याज़ का उत्पादन होता है। इसमें 36 फीसदी प्याज़ महाराष्ट्र से आता है। इसके बाद मध्य प्रदेश में करीब 16 फीसदी, कर्नाटक में करीब 13 फीसदी, बिहार में 6 फीसदी और राजस्थान में 5 फीसदी प्याज़ का उत्पादन होता है। महाराष्ट्र जैसे प्याज़ उत्पादक राज्यों में भारी बारिश के बाद मंडियों में प्याज़ की आपूर्ति पर असर पड़ा है। जिसके कारण राजधानी दिल्ली में इसकी कीमतें लगातार बढ़ रही हैं। आकंड़ों के मुताबिक, प्याज़ की कीमतों में पिछले साल की तुलना में करीब तीन गुना वृद्धि हुई है। नवंबर 2018 में खुदरा बाजार में प्याज़ का भाव 30-35 रुपये किलो था।

खेतों में सड़ता प्याज़

प्याज़ किसानों के अनुसार बारिश के कारण खरीफ की फसलों का नुकसान हुआ है। खेतों में प्याज़ सड़ गया हैं। कई जगह कटाई के बाद उनकी सही व्यवस्था ना होने के कारण ये मंडी तक पहुंच ही नहीं पा रहा है। ऐसे में दाम बढ़ना लाज़मी है।

गांव कनेक्शन की रिपोर्ट के मुताबिक प्याज़ के आयात को आगामी 15 दिसंबर 2020 तक सुविधाजनक बनाने के लिए सरकार ने आयात के लिए प्लांट क्वारेंटाइन ऑर्डर - 2003 के तहत दिनांक 21 अक्टूबर को पादप स्वच्छता प्रमाणपत्र पर धूम्रीकरण और अतिरिक्त घोषणा के लिए शर्तों में ढील दी है। भारतीय उच्च आयोगों को संबंधित देशों में निर्देश दिया गया है कि, वे देश में प्याज़ के अधिक आयात के लिए व्यापारियों से संपर्क करें। आयातित प्याज़ की ऐसी खेप जो पीएससी पर प्रभाव के लिए धूम्रीकरण और पुष्टि के बिना भारतीय बंदरगाहों तक पहुंचती है, तो उसका धूम्रीकरण भारत में एक मान्यता प्राप्त उपचार प्रदाता के माध्यम से आयातक द्वारा किया जाएगा। खेप में अगर डंठल और सूत्रकृमि या प्याज़ भुनगा का पता चलता है, तो धूम्रीकरण के माध्यम से इसे समाप्त कर दिया जाएगा और जारी की जाने वाली खेप पर कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं लगाया जायेगा। आयातकों से एक वायदा भी लिया जाएगा कि, प्याज़ का उपयोग केवल उपभोग के लिए किया जाएगा न कि उत्पादन और प्रसार के लिए। खपत के लिए आने वाली प्याज़ की ऐसी खेप को पीक्यू के आदेश 2003 के तहत आयात की शर्तों में गैर अनुपालन के कारण चार गुना अतिरिक्त निरीक्षण शुल्क के अधीन नहीं लाया जाएगा।

हालांकि सरकार के प्याज़ आयात के निर्णय से किसान और किसान संगठन नाराज भी हैं। क्योंकि सितम्बर में केंद्र सरकार ने प्याज़ के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था। महाराष्ट्र की स्वाभिमानी शेतकारी संगठन के अध्यक्ष राजू शेट्टी बताते हैं, "पहले सरकार ने महाराष्ट्र से प्याज़ के निर्यात पर रोक लगा दी थी, जबकि कर्नाटक से निर्यात चालू रहा और अब सरकार बाहर से प्याज़ आयात करने जा रही है। सरकार चाहती क्या है अभी किसानों की फसल बारिश से बर्बाद हो गई है, लेकिन फिर पहाड़ी क्षेत्रों में फसल को उतना नुकसान नहीं हुआ है। जब किसानों की फसल तैयार हो जाएगी, तो सरकार बाहर से प्याज़ मंगाने जा रही है। ऐसे में नुकसान तो किसानों का ही होगा।"

महाराष्ट्र राज्य प्याज़ उत्पादक संगठन के अध्यक्ष भारत दिघोळे ने गांव कनेक्शन को बताया, "नासिक मंडी में प्याज़ की कीमत 7000 से 8000 प्रति कुंतल तक हो गई है, अगर बारिश से प्याज़ को नुकसान न होता तो प्याज़ इतना महंगा न बिकता। लेकिन इससे उन्हीं को फायदा हो रहा है, जिनका प्याज़ रखा हुआ है, क्योंकि बारिश की वजह से स्टॉक में रखा प्याज़ भी खराब हो गया है।" "अभी जल्दी नई प्याज़ मार्केट में आएगी नहीं, इसलिए प्याज़ अभी जल्दी सस्ता भी नहीं हो सकता, क्योंकि प्याज़ की फसल तो खराब हुई ही, पहले से रखा प्याज़ भी खराब हो गया है।"

दिल्ली आजादपुर मंडी के कारोबारी और ऑनियन मर्चेंट एसोसिएशन के विकास शर्मा ने कहा कि दक्षिण भारत के राज्यों में भारी बारिश के कारण प्याज़ की फसल खराब होने व नई फसल की तैयारी में विलंब हो जाने की आशंकाओं से प्याज़ की कीमतों को और सपोर्ट मिल रहा है। शर्मा ने बताया कि इससे पहले 2015 में प्याज़ का भाव 50 रुपये किलो से ऊपर चला गया था। हालांकि सरकार बार-बार कह रही है कि प्याज़ का पूरा स्टॉक है।

सरकारी नीतियां जिम्मेदार

बढ़ती कीमतों के संदर्भ में प्याज़ कारोबारियों का कहना है कि पिछली फसल में प्याज़ का उत्पादन बहुत कम हुआ था। इस बार की फसल बेमौसम बारिश का शिकार हो गई है। सरकार की नीतियां भी इसे लेकर प्रतिकूल ही रही हैं। जिसे लेकर कीमतों में उछाल देखने को मिल रहा है।

किसान आंदोलनों में सक्रिय राजेंद्र चौधरी ने न्यूज़क्लिक से बातचीत में कहा, 'प्याज़ के दाम बढ़ने का मुख्य कारण केंद्र सरकार की नीति है। सरकार महाराष्ट्र की मजबूत प्याज़ लॉबी के दबाव में आकर समय रहते प्याज़ निर्यात पर पहले से कोई प्रतिबंध नहीं लगाती जब तक प्याज़ की किल्लत नहीं हो जाती। जिसकी वजह से प्याज़ का निर्यात तो बढ़ता है लेकिन  घरेलू बाज़ार में उपलब्धता घटती है और कीमत बढ़ जाती है'। 2015 के बाद से ये हर साल का किस्सा हो गया है, अक्टूबर से लेकर दिसंबर तक यही हाल रहता है।

सरकार की कोशिशें!

उपभोक्ता मामले मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, “सरकार पूरी कोशिश कर रही है कीमतों को नियंत्रण में लाने की। प्याज़ के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। बफर स्टॉक से प्याज़ की आपूर्ति की जा रही है। साथ ही आयात के नियमों में दी ढील भी दी गई है। आने वाले दिनों में प्याज़ के दाम में कमी आएगी। हालांकि, बेमौसम बारिश की वजह से इन्हें उपभोक्ता क्षेत्रों तक लाने में दिक्कत हो सकती है।”

कई सालों से प्याज़ की खेती कर रहे किसान राम लाल ने न्यूज़क्लिक से कहा, 'जब प्याज़ के दाम बढ़ जाते हैं तो हम किसान अगली फसल में ज्यादा एकड़ ज़मीन पर प्याज़ उगाते हैं, प्याज़ की ज्यादा उपज हो जाए तो कीमत फिर गिर जाती है और हमें वाजीब दाम नहीं मिलता। इससे हमें ही नुकसान होता है। हमें बढ़ी कीमत का फ़ायदा तो नहीं मिलता, पर गिरी कीमतों का नुक़सान जरूर उठाना पड़ता है'।

बता दें कि बीते साल गोदामों में 32 हजार टन सरकारी प्याज़ सड़ गया था। इस साल जनवरी में खुद तब के केंद्रीय मंत्री रहे राम विलास पासवान ने इसकी जानकारी दी थी। रामविलास पासवान ने इतनी बड़ी मात्रा में प्याज़ खराब होने के बारे में बताया था कि 2019 में प्याज़ की कीमतें आसमान छूने के बाद एक सरकारी संस्था को 41,950 मीट्रिक टन प्याज़ आयात करने के निर्देश दिए गए थे। वहीं, जनवरी खत्म होने से पहले-पहले 36,124 मीट्रिक टन प्याज़ देश में आ चुकी थी।

लोकसभा में दी गई एक जानकारी के अनुसार 30 जनवरी तक 13 राज्यों को 2,608 टन प्याज़ बेच दिया गया था। लेकिन दूसरे राज्यों ने प्याज़ लेने से इनकार कर दिया। उनका तर्क था कि विदेशी प्याज़ में वो स्वाद नहीं है जो भारतीय प्याज़ में है। नतीजा यह हुआ कि प्याज़ गोदामों में रखा रह गया।

एक सवाल के जवाब में लोकसभा में दी गई जानकारी के अनुसार 30 जनवरी तक विदेशों से आई प्याज़ सिर्फ 13 राज्यों ने खरीदी थी। इस प्याज़ की मात्रा कुल 2,608 टन थी। प्राप्त जानकारी के मुताबिक, इन राज्यों में आंध्र प्रदेश, केरल, तेलंगाना, यूपी, उत्तराखण्ड, पश्चिम बंगाल, हिमाचल प्रदेश, असम, गोवा, जम्मू-कश्मीर, हरियाणा, मेघालय और ओडिशा। इन राज्यों में सबसे ज़्यादा प्याज़ 893 टन आंध्र प्रदेश ने खरीदी थी। फिर मेघालय 282 और तीसरे नंबर पर उत्तराखण्ड 262 टन प्याज़ खरीदी थी।

 जानकारों का मानना है कि इस पूरे मामले में सबसे दिलचस्प भूमिका निर्यातकों और बिचौलियों की होती है। वे अपने हिसाब से कीमतें घटाते-बढ़ाते हैं, उन्हें अधिक मुनाफ़ा होता है, लेकिन वह मुनाफ़ा उस अनुपात में किसानों तक नहीं पहुँच पाता है। किसानों को प्रकृति की मार भी सहनी होती है और बाजार की भी।

गौरतलब है कि बांग्लादेश, श्रीलंका और म्यांमार जैसे देशों को भारतीय प्याज़ का निर्यात होता था। भारत से प्याज़ की किल्लत होने के बाद अंतरराष्ट्रीय बाजार में प्याज़ की कीमतें तेजी से बढ़ रही हैं, यानी प्याज़ की उपज में कमी की जो हमारी एक घरेलू समस्या थी, वह अब एक अंतरराष्ट्रीय संकट के रूप में सामने आ खड़ी है। अगर यही हाल रहा, तो प्याज़ की आपूर्ति तो सुधर सकती है, लेकिन इसकी कीमत बहुत ज्यादा नीचे आने की संभावना नहीं बनेगी।

इसे भी पढ़ें : प्याज़ के बढ़ते दाम पर सियासत के बीच असल मुद्दा गायब!

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