NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
कोविड-19
भारत
आपको मालूम है कि इस कोरोना संकट में लोगों ने कैसे-कैसे एक-दूसरे की मदद की
“मैं इनमें से चुनिंन्दा एक्टिविस्ट और वॉलेंटीयर्स के अनुभवों को साझा कर रही हूं। यह एक झलकी भर है। इनके अलावा भी ढेर सारे लोग ऐसे कामों में लगे हैं जिनकी वजह से मानव मूल्य ज़िन्दा हैं”
कुमुदिनी पति
30 May 2021
आपको मालूम है कि इस कोरोना संकट में लोगों ने कैसे-कैसे एक-दूसरे की मदद की

कोरोना संक्रमण और महामारी को आए करीब दो वर्ष हो रहे हैं। ऐसे दौर में समाज में मानवता का एक विलक्षण व अनोखा उभार देखने का मिला है, जो हमें भाव विभोर करता है। मेरे संपर्क में कुछ ऐसे संगठन या लोग आए जो सोशल मीडिया प्लेटफामर्स या अन्य माध्यमों से संकट के इस दौर में मरीजों और उनके परिवारों की मदद कर रहे हैं। इनमें कुछ राजनीतिक दल या संगठन हैं, व्यक्ति या नागरिक समाज का एक हिस्सा भी है। बिना उनकी अन्य गतिविधियों के विस्तार में गए, मैं इनमें से चुनिंन्दा एक्टिविस्टों और वॉलेंटीयर्स के अनुभवों को साझा कर रही हूं। यह एक झलकी भर है। इनके अलावा भी ढेर सारे लोग ऐसे कामों में लगे हैं जिनकी वजह से मानव मूल्य ज़िन्दा हैं।

अप्रैल 2021 के आरंभ से अचानक कोविड-19 की दूसरी लहर तेजी पकड़ने लगी। खांसी, बुखार, सिर दर्द, बदन दर्द जैसे लक्षण आने लगे। बहुतों को लगा कि मौसम के बदलने से आम तौर पर जैसा होता है, वायरल फीवर का दौर शुरू हो गया है। लोग पैरासिटामॉल, खांसी का सिरप, काढ़ा, अदरक की चाय और हल्दी वाला दूध लेने लगे पर कोविड टेस्ट करानी की सोची भी नहीं। मेरा अनुभव है कि कुछ ही लोग कोविड टेस्ट करवा रहे थे और परिणाम आने में 3-4 दिन का समय लग जा रहा था। सरकार की ओर से टेस्टिंग पर जोर नहीं था और मोबाइल पर वही पुरानी रट ‘‘दो गज दूरी, मास्क है जरूरी...’’ सुनाई दे रही थी। कभी-कभार एक घोषणा आ रही थी ‘‘ट्रस्ट द इंडियन वैक्सीन....’’ पर कोई सरकारी घोषणा नहीं थी कि कोविड-19 के सेकेंड वेव में वायरस के नये स्ट्रेन बी.1.617 की तीव्र मारक क्षमता चंद दिनों में स्थिति को बेकाबू कर देगी, तो सावधान रहने की जरूरत है। सरकार ने पिछले एक साल में कोई तैयारी नहीं की थी-न घर-घर व्यापक टेस्टिंग के प्रबंध किये, न क्वरंटाइन सेंटर तैयार किये, न आईसीयू बेड वाले अस्पताल खड़े किये और न ग्रामीण क्षेत्रों में उप-केंद्रों, पीएचसी व सीएचसी को चाक-चौबंध किया गया ताकि कोविड मरीजों को प्राथमिक उपचार मिल सके। डॉक्टरों को कोविड केयर की ट्रेनिंग तक नहीं दी गई।

जिला अस्पताल पहुंचने के लिए एंबुलेंस व्यवस्था नहीं है। तो दूसरी लहर पीक करते ही प्रतिदिन 4 लाख से ज्यादा लोग कोविड संक्रमित होने लगे और मरने वालों की संख्या 4000 से अधिक हो गई। इसी को मीडिया ‘‘सिस्टम कोलैप्स’’ का नाम दे रही थी, पर इसमें बहुत हद तक सरकार और नौकरशाही की ओर से की गई लापरवाही थी। जब स्थिति बेकाबू हो गई तो ऐसा लगा कि हालात को मेडिकल कंपनियों और अस्पतालों के भरोसे छोड़ दिया गया और सत्तधारियों ने गांधी जी के तीन बंदरों को दूसरे अर्थों में आंख, कान और मुंह बंद करके चरितार्थ किया। 

ऐसे संकट के समय में जिन संगठनों, जन प्रतिनिधियों, मानवतावादी लोगों और धार्मिक समुदायों, खासकर गुरु़द्वारों व कई मुस्लिम भाइयों ने स्वतः कोविड संक्रमित लोगों की मदद की और मृतकों की अंतिम क्रिया की, वह बेमिसाल है। न्यूज़क्लिक के लिए रैंडम आधार पर कुछ ऐसे लोगों से बातचीत करके उनके अनुभवों को संकलित किया, ताकि समाज के और तबके और संस्थाएं इनसे कुछ सीख सकें और आगे इनसे मदद भी ले सकें। मानवजाति को महामारी से बचाना इस समय हमारा प्राथमिक कर्तव्य बन गया है। यही धर्म है और यही राजनीति भी!

सबसे पहले हमने देखा कि सोशल मीडिया में ‘हेल्प रिक्वेस्ट्स’ की बाढ़ सी आ गई थी। फेसबुक, वाट्सऐप, टेलिग्राम और ट्विटर पर लोग एसओएस मैसेज डाल रहे थे-किसी को प्लाज़्मा चाहिये, तो किसी को ऑक्सीजन सिलिंडर, रक्त और रेमडेसिविर तो किसी को अस्पताल में आईसीयू बेड। पोस्ट में एटेंडेंट का फोन नंबर या अस्पताल/नर्सिंग होम का नाम दिया रहता। कमेंट बाक्स में ढेर सारे लोग मदद करने को तैयार मिलते और कुछ समय में जुगाड़ भी हो जाता। फेसबुक के जरिये ही मैने देखा कि मेरी एक पुरानी मित्र थियेटर एक्टिविस्ट, चित्रकार और लेखिका शाम्भवी लगातार फेसबुक पर लोगों की मदद कर रही थी। फिर देखा कई लोग बिहार में माले के युवा विधायक मनोज मंज़िल के बारे में लिख रहे थे कि वे कैसे 24×7 सदर अस्पताल में मरीजों की मदद कर रहे थे, दिल्ली में इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्र संघ की पूर्व अध्यक्ष शालू लगातार फेसबुक पर लोगों से मदद की मांग करते हुए एटेंडेंट के साथ समन्वय स्थापित कर रही थीं। ऐसा ही पूर्व उपाध्यक्ष ऋृचा सिंह भी कर रही थीं। व्यक्तिगत तौर पर इ.वि.वि. भौतिकी विभाग के पूर्व छात्र विकास सिंह और एक्टिविस्ट रणविजय सिंह भी लोगों को मदद करते रहे।

इंकलाबी नौजवान सभा के प्रदेश सचिव सुनील मोर्य ने बताया कि अप्रैल प्रथम सप्ताह से ही फोन आने लगे थे, ‘‘दवा चाहिये’’, ‘‘अस्पताल में बेड दिलवा सकते हो?’’ ‘‘मरीज का ऑक्सीजन लेवल गिरता जा रहा है, सिलिंडर कहां से मिलेगा?’’सुनील कहते हैं कि पिछली बार जब प्रवासी मजदूरों का संकट आया था, वे काफी अच्छे से कोऑर्डिनेशन करके मदद पहुंचा पा रहे थे। बड़ी संख्या में मजदूरों का सहयोग किया गया। कई बार लाइया-चना बांटते समय पुलिस से हल्की झड़पें भी हुई। इस बार उस तरह से काम नहीं हो पाया, जिसके 3 प्रमुख कारण थे। एक तो प्रदेश में ऑक्सीजन की भयानक किल्लत थी तो हाथ-पांव मारकर भी सिलिंडर भरवाना मुश्किल था, अस्पतालों में बेड नहीं मिल पा रहे थे और रेमडेसिविर जैसी दवा ब्लैक में 20-25 हजार की मिल रही थी। दूसरे, लोग दहशत में थे कि अस्पताल में संक्रमण फैल रहा है इसलिए प्लाज़मा या खून देने नहीं जाते, तीसरे, पुलिस का आतंक था कि तगड़ा जुर्माना लग जाएगा या हवालात में रख दिया जाएगा। इमरजेंसी सिचुएशन थी सो छात्रों की टीम तुरंत नहीं बन पाई। फिर भी जानने वालों के यहां उस इलाके के छात्रों द्वारा कुछ दवाएं, मास्क, सैनिटाइज़र, वेपराइज़र, फल और खाना पहुचाने का काम किया गया। फेसबुक और वाट्सऐप से आरवाईए नेटवर्क के जरिये दूसरे शहरों में भी कुछ लोगों की मदद की गई। योजनाबद्ध अभियान नहीं चला; पर आगे ऐसा करना है।

शाम्भवी ने बताया कि वह कुछ वॉट्सऐप ग्रुप्स से जुड़ीं, जहां पता चल रहा था कि मदद मिल रही है। एक तो पटना के शिवम झा का था और दूसरा शीविंग्स संगठन के मदन मोहित का। ज्यादातर मरीजों को ऑक्सीजन, रेमडेसिविर, हॉस्पिटल बेड की जरूरत होती थी। कुछ को प्लाज़्मा और किसी खास ग्रुप का खून चाहिये होता। प्लाज़्मा डोनर्स का एक फेसबुक ग्रुप है, जिसके माध्यम से कुछ डोनर्स का कमेंट्स बॉक्स से पता चल जाता। शाम्भवी कहती हैं, ‘‘ हम फॉरवर्ड किये हुए फोन नंबरों पर फोन करते तो कोई फोन नहीं उठाता। या तो वे फोन उठाते-उठाते त्रस्त थे क्योंकि दामों पर बार्गेनिंग होती रहती और लोग सस्ते की ओर भागते, या फिर उनके पास माल ही नहीं होता। फिर हर मिनट मरीज की भी स्थिति बदलती रहती; कई बार हम कुछ जुगाड़ कर लेते और एटेंडेंट से संपर्क करते, तबतक उसका काम हो चुका होता, पर हमें कोई सूचना नहीं दी जाती। एक बार एक गर्भवती महिला को ऑक्सीजन चाहिये था पर थोड़ी देर में पता चला कि वह गुज़र गई हैं। दूसरी ओर फ्रॉड और कालाबाज़ारी भी होती रहती, तो कोई भी फोन नंबर सार्वजनिक करना खतरे से खाली नहीं होता। पता चला कि एक महिला, जो विदेश में रहती थीं, अपने रिश्तेदार के लिए रेमडेसिविर के लिए 60,000 एडवांस ऑनलाइन पेमेंट कर दीं। बाद में उस बन्दे का फोन ही नहीं उठा। जिस महिला वॉलेंटीयर ने इनसे सम्पर्क कराया था, वह भी फोन नहीं उठा रही थी; वह खुद संकट में फंस गई थी। इसलिए हमने सबसे कह दिया कि एडवांस कभी न दे और फ्रॉड के केस की शिकायत दर्ज करें।’’

पटना के शिवम से पता चला कि वह 24-वर्षीय नौजवान है, जिसने पहले भी बिहार में बाढ़ के समय और प्रवासी संकट के दौरान लोगों को राशन पहुंचाने का काम किया था। ‘‘2014 से सक्रिय हूं तो बिहार के अधिकतर जिलों में मेरा संपर्क है, और वह पप्पू यादवजी की कृपा है। राज्य के 80 प्रतिशत निजी अस्पतालों के मालिकों से संपर्क है और दिन में यदि 100 कॉल आए तो 40 लोगों की मदद तो हो ही जाती है। दवाखाने भी संपर्क में हैं; दवा नहीं भी होती हैं तो वे मंगवा देते हैं। ऑक्सीजन वेंडर भी संपर्क में हैं। पर हम सीधे संपर्क करते हैं ताकि धांधली न हो। कई छात्र-नौजवान मेरी टरम में जुड़ गए हैं और विभिन्न जिलों में मदद करते हैं। जरूरतमंदों के लिए मिलाप और केटो से क्राउडफंडिंग एजेंसियां हैं, वे ऑनलाइन अपील करके किसी मद में चंदा करवा देते हैं। इनसे संपर्क करवा देता हूं।’’

इसी तरह विज्ञान संकाय, इ.वि.वि के भूतपूर्व छात्र और वर्तमान आयकर विभाग के इंस्पेक्टर, विकास सिंह का संपर्क फेसबुक पर मिला-शालू माल्वी के पोस्ट से। विकास और इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्रों के नेटवर्क ने काफी काम किया। विकास कहते हैं, ‘‘पीक समय में सुबह से रात तक हम लगे रहते। वेन्डर्स और दवाखानों से लेकर अस्पतालों तक के सैकड़ों फोन खंगालते, फिर कॉल करते तो दो-चार सही निकलते और उनसे कुछ मदद दिलवा पाते। शुरू में मैं अकेला था, फिर कई सारे वाट्सऐप ग्रुपों से जुड़ा-जैसे बानर सेना और पीसीएस मंत्रा ग्रुप। एक ऐसा वेबसाइट है सांख्यिकी विभाग के ऐलमनाइ का-एयूस्टा डॉट ओआरजी (AUSTAA.org) इसने एक कोविड हेल्प डेस्क शुरू किया है और डाटाबेस तैयार किया है- कहां से क्या मिल सकता है। प्रेम प्रकाश, माधवेंन्द्र और ज्योति यादव सबसे सक्रिय हैं।’’

विकास बताते हैं कि महिला, जिनके पति कोविड संक्रमित थे, सम्पर्क देने पर ऑक्सीजन लेने गाज़ियाबाद से फरीदाबाद गईं, 5 घंटे से अधिक बिताकर सिलिंडर लेकर आईं। विकास कई बार ब्लड डोनर्स को घर से पिक अप करके आईएमए के ब्लड बैंक तक ले जाते हैं।

एक ऐसे सक्रिय साथी हैं डॉ. कमल ऊसरी जो पहले एक निजी अस्पताल में चिकित्सक थे, अब ऑल इंडिया काउंसिल आफ ट्रेड यूनियन्स के तहत रेल कर्मचारियों को संगठित कर रहे हैं। डॉ. कमल ने कहा कि वे दो स्तरों पर काम कर रहे हैं-एक तो मरीजों को यथासंभव मदद पहुंचाना, खासकर जिनको जानते हैं, या उनके ही परिवार, रिश्तेदारों, आदि को। बाकी, सबसे बड़ा काम है कोविड वॉरियर्स को उनका हक दिलाना। कोविड-19 की पहली लहर के दौरान बहुत से प्रवासी मजदूरों की मदद की गई थी-खाद्य पदार्थों और पैसे से। उस समय श्रमिकों की कई श्रेणियों को कोविड वॉरियर माना गया था। इस बार उन सबको शामिल नहीं किया गया है। सबसे बुरी स्थिति पैरामेडिकल स्टाफ की है-वे लाश ढोकर अंतिम क्रिया तक करवाते हैं। हमने मांग की है कि उन्हें, बिजली कर्मचारी, जल विभाग कर्मी, रेल कर्मी, आशा वर्कर, डिलिवरी बायज, डाकियों आदि़ सभी को, फ्रंटलाइन वॉरिययर माना जाए। हमने आशा वर्करों की मांगों पर 24 मई को विरोध दिवस मनाया। वे पीपीई किट के बिना सर्वे करने को तैयार नहीं हैं, पर जबरदस्ती की जा रही है। 25 मई को रेल यूनियन, आईरईएफ (IREF) की ओर से प्रतिवाद दिवस मनाया गया जिसमें सभी रेल कर्मियों को करोना वारियर मानने, रेल का निजीकरण रोकने और कोविड से मौत होने पर 50 लाख मुआवजे की मांगें प्रमुख हैं।’’

डा. कमल बताते हैं कि उन्होंने अधिकतर गरीबों, ठेका मज़दूरों, रेल व बीमा कर्मचारियों, सफाई कर्मियों और आशा कर्मियों व उनके परिवारों को मदद पहुंचाई है और उनके लिए चंदा भी किया है। अब उनके लिए एक कोष भी बनाया गया है। कई बार एलआईयू के लोगों ने छद्म नाम से ऑक्सीजन मांगा या प्रतिरोध करने वालों के नाम जानने का प्रयास किया। आशा वर्करों को अधिकारियों से धमकी मिली कि मांग उठाने या हड़ताल करने पर निकाल दिया जाएगा। फिर भी सचेत ढंग से लड़ाई जारी है। पर इस बार पुलिस का दबाव पिछली बार से काफी ज्यादा है।

शीविंग्स (SheWings) संगठन के बारे में शाम्भवी ने बताया। यह प्रमुख तौर पर महिला स्वास्थ्य और शिक्षा पर काम करता है। पर वर्तमान दौर में उसने कोरोना वॉर रूम बनाया है, जिसमें डाक्टरों से लेकर समाज सेवी और उद्यमी हैं, जिसके माध्यम से कोविड मरीजों को बेड, ऑक्सीजन, प्लाज्मा, दवाएं आदि उपलब्ध कराई जाती है। संगठन की सदस्य विधि ने बताया, ‘‘हमारे सेवियर रूम टीम में आईआईटी रुड़की, आईआईटी खड़गपुर, ऐम्स, आईआईएम इंदौर, और आईआईएम शिलॉन्ग के ऐलम्नाई शामिल हैं। हमारे कोविड वॉरियरों की संख्या अब 450 है और अब ग्रामीण क्षेत्रों में टीकाकरण के लिए पंजीकरण करने में हम लगे हैं। अबतक 10,000 लोगों तक पहुंच चुके हैं।’’

बिहार के भोजपुर अगिआंव क्षेत्र से जीते माले प्रत्याशी मनोज मंजिल ने भी कोविड की लड़ाई में मिसाल कायम की है। वे सदर अस्पताल में 24×7 बैठे रहते। स्वयं ऑक्सीमीटर से वे मरीजों का SpO2 लेवल नापते, डाक्टरों से बात करते, ऑक्सीजन और दवाओं की व्यवस्था करते और युवाओं की टीम बनाकर मरीजों की देखभाल करते। जन प्रतिनिधि के रूप में उन्होंने एक मॉडल प्रस्तुत किया है।

दूसरी ओर दिल्ली में ऑल इंडिया स्टूडेंट ऐसोसिएशन (AISA), आरवाईए (RYA) और एआईसीसीटीयू (AICCTU) ने ज़रूरतमंद लोगों को न केवल राशन बांटा, बल्कि कोविड मरीजों को ऑटो ड्राइवरों के माध्यम से जनता एबंलेंस सेवा उपलब्ध कराई है।

चेन्नई के औद्योगिक क्षेत्र अम्बत्तूर में लेफ्ट ट्रेड यूनियन सेण्टर के बैनर तले 30 श्रमिक वालंटियर्स ने कामरेड आर मोहन के नेतृत्व में राहत कार्य शुरू किया। उन्होंने कई अनौपचारिक श्रमिक परिवारों को प्रतिदिन कुल 300 किलो चावल वितरित किया। जिनके पास राशन कार्ड नहीं थे उनको 5 से 10 किलो राशन पहुँचाया। क्वारंटाइन में रह रहे श्रमिकों के घर दवा, खाना, दूध पहुंचाया। बेरोज़गार श्रमिकों को 1000 रुपये, विधवाओं को 2000 रुपये और कुछ को इलाज हेतु 5-5 हजार रुपये दिए गए।

इसी तरह तमिलनाडु ने सीपीआई-एम के काम की सराहना हुई। पार्टी से जुड़े डॉ. एस कासी ने बताया " चेन्नई के किल्पौक मेडिकल हॉस्पिटल में सुबह से  कोविड की दवाएं और ऑक्सीजन लेने 500-1000 मरीज जमा हो जाते थे। हमने ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन की पद्धति शुरू करवाई। पार्टी ने 6 हेल्पलाइन नंबर भी चालू किये हैं। पार्टी से जुड़े डॉक्टर्स फोरम फॉर पीपल्स हेल्थ इनके द्वारा निशुल्क परामर्श देते हैं और बेड,  ऑक्सीजन आदि कहां मिलेंगे बताते हैं। तूतीकोरिन मेडिकल कॉलेज के 20 छात्र, जो एसएफआई के सदस्य हैं, मरीजों की देखभाल भी करते हैं जब उनके सहायक नहीं होते। 

ऐसे अनेक व्यक्तिगत और सामूहिक प्रयासों ने भारत के इस संकटपूर्ण दौर में आशा का एक दीपक जलाया है। आज देश को ऐसे हज़ारों-हज़ार कार्यकर्ताओं की जरूरत है। साथ ही, हम जोखिम-भरा काम करने वाले उन कोविड वॉरियर्स के हकों के लिए आवाज़ उठाएं जिनको न कोई सुविधा न ही सम्मान मिल रहा है।

(लेखिका एक्टिविस्ट हैं और महिला अधिकारों के लिए काम करती रही हैं।)

Coronavirus
COVID-19
Corona Crisis
Activists
Volunteers
poverty
Hunger Crisis
Effect of Coronavirus

Related Stories

कोरोना अपडेट: देश में कोरोना ने फिर पकड़ी रफ़्तार, 24 घंटों में 4,518 दर्ज़ किए गए 

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 3,962 नए मामले, 26 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: देश में 84 दिन बाद 4 हज़ार से ज़्यादा नए मामले दर्ज 

कोरोना अपडेट: देश में कोरोना के मामलों में 35 फ़ीसदी की बढ़ोतरी, 24 घंटों में दर्ज हुए 3,712 मामले 

कोरोना अपडेट: देश में पिछले 24 घंटों में 2,745 नए मामले, 6 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: देश में नए मामलों में करीब 16 फ़ीसदी की गिरावट

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में कोरोना के 2,706 नए मामले, 25 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 2,685 नए मामले दर्ज

कोरोना अपडेट: देश में पिछले 24 घंटों में कोरोना के 2,710 नए मामले, 14 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: केरल, महाराष्ट्र और दिल्ली में फिर से बढ़ रहा कोरोना का ख़तरा


बाकी खबरें

  • संदीपन तालुकदार
    वैज्ञानिकों ने कहा- धरती के 44% हिस्से को बायोडायवर्सिटी और इकोसिस्टम के की सुरक्षा के लिए संरक्षण की आवश्यकता है
    04 Jun 2022
    यह अध्ययन अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि दुनिया भर की सरकारें जैव विविधता संरक्षण के लिए अपने  लक्ष्य निर्धारित करना शुरू कर चुकी हैं, जो विशेषज्ञों को लगता है कि अगले दशक के लिए एजेंडा बनाएगा।
  • सोनिया यादव
    हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?
    04 Jun 2022
    17 साल की नाबालिग़ से कथित गैंगरेप का मामला हाई-प्रोफ़ाइल होने की वजह से प्रदेश में एक राजनीतिक विवाद का कारण बन गया है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    छत्तीसगढ़ : दो सूत्रीय मांगों को लेकर बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दिया
    04 Jun 2022
    राज्य में बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दे दिया है। दो दिन पहले इन कर्मियों के महासंघ की ओर से मांग न मानने पर सामूहिक इस्तीफ़े का ऐलान किया गया था।
  • bulldozer politics
    न्यूज़क्लिक टीम
    वे डरते हैं...तमाम गोला-बारूद पुलिस-फ़ौज और बुलडोज़र के बावजूद!
    04 Jun 2022
    बुलडोज़र क्या है? सत्ता का यंत्र… ताक़त का नशा, जो कुचल देता है ग़रीबों के आशियाने... और यह कोई यह ऐरा-गैरा बुलडोज़र नहीं यह हिंदुत्व फ़ासीवादी बुलडोज़र है, इस्लामोफ़ोबिया के मंत्र से यह चलता है……
  • आज का कार्टून
    कार्टून क्लिक: उनकी ‘शाखा’, उनके ‘पौधे’
    04 Jun 2022
    यूं तो आरएसएस पौधे नहीं ‘शाखा’ लगाता है, लेकिन उसके छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने एक करोड़ पौधे लगाने का ऐलान किया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License